जरासंध की याद आते ही पृथ्वी राज उछल पड़ा था। अब काग भुषंड की खैर नहीं – उसने सोच लिया था। तेजी की आंखों में लौट आई चमक को भी नकुल ने पढ़ लिया था। अचानक ही एक शक्ति संचार जैसा हुआ था और एक विजय घोष अनचाहे में ही हवा पर तैर आया था।
“महाराज की जय!” जरासंध सामने था। “महाराज का हुक्म सर आंखों पर!” उसने उच्च स्वर में घोषणा की थी। “आदेश दें धरापति। किसकी कजा आनी है – उसका नाम बताएं!”
करामाती अपने सारे दुख और पीढ़ा भूल गया था। वह बोल पड़ना चाहता था कि पहली मौत काग भुषंड को ही मिले – पर चुप ही बना रहा था।
“इस कौवे की मुश्क बांध लो।” आदेश नकुल ने दिया था।
“दरबार में पेश करो इस अपराधी को।” तेजी ने भी समर्थन किया था।
“हम अब न्याय करेंगे।” पृथ्वी राज का अटल इरादा था।
हवा गरम हो गई थी। पृथ्वी राज का आदेश चारों ओर फैलता ही जा रहा था। काग भुषंड को पहले तो आश्चर्य हुआ था कि पृथ्वी राज – एक चूहा इस तरह का कोई फरमान जारी भी कर सकता था? फिर उसे ज्ञान हुआ था जब उसने जरासंध के आगमन की बात सुनी थी। और अब जब जरासंध उसे लेने आ रहा था तो काग भुषंड भागता जा रहा था .. तेजी से पूरी सामर्थ्य के साथ वह धरती के किसी ऐसे छोर पर जा बैठना चाहता था जहां जरासंध पहुंच ही न पाये।
लेकिन यह असंभव था – यह तो काग भुषंड भी जानता था।
हर खेमे में खलबली मच गई थी।
लालू तो बहुत प्रसन्न था। और जब उसने यह खबर जंगलाधीश को सुनाई थी तो वह भी खिल उठा था। काग भुषंड को सजा मिलनी ही चाहिये थी – इस बात पर सब सहमत थे।
“बचाओ मित्र, मुझे बचाओ!” काग भुषंड अब हुल्लड़ की कमर पर आ बैठा था। “तुम्हारे सिवा मेरा और कोई हिमायती नहीं है – सब जानते हैं। हमारी मित्रता सब को बुरी लगती है।” वह बताता जा रहा था। “यह कमीना करामाती हमारी सारी खबरें ले उड़ता है और नकुल को बेच देता है।” वह अपना पक्ष सामने रख रहा था। “अब तुम्हीं बताओ – मैंने क्या बुरा किया जो इस जासूस को ..”
लेकिन हुल्लड़ किसी गहरे सोच में डूबा था। एक चूहा था – जो स्वयं ही धरा पति बन गया था और अब फरमान जारी किए जा रहा था। जिसे जरासंध कहते थे – उस बला का मुकाबला करना हुल्लड़ को भी असंभव ही लग रहा था।
“इस जरासंध का तोड़ क्या है मित्र?” हुल्लड़ ने सीधा प्रश्न दागा था। “क्या करें इस बला का?” वह अफसोस के साथ कह रहा था। “न तो ये दिखता है ओर न ही सामने आता है। अब इसका बिगाड़ें भी तो क्या? न कोई इसकी शक्ल है ओर न कोई सूरत।”
काग भुषंड ने हुल्लड़ की असमर्थता में एक निचोड़ पा लिया था। हाथियों का जरासंध के सामने कुछ उठता ही नहीं था। ये हाथी तो धरती के ऊपर बोझ थे। इनकी कोई शक्ति या सामर्थ्य नहीं थी।
वह उड़ा था। उसने जोरों से दौड़ लगाई थी। वह नहीं चाहता था कि किसी तरह भी वह जरासंध के चंगुल में फंस जाए। लेकिन जाए तो कहां जाए?
भागते काग भुषंड को देख देख कर हर कोई प्रसन्न हो रहा था। यह पहला ही मौका था जब काग भुषंड किसी मुसीबत के नीचे आ गया था।
“हमें काग भुषंड की मदद करनी चाहिये, महाराज!” लालू ने जंगलाधीश को परामर्श दी थी। “इस तरह तो पृथ्वी राज निरा निरंकुश हो जाएगा। चाहे जिसके खिलाफ मौत के फरमान ..”
“सत्ता तो उसके हाथ में आ जाएगी जंगलाधीश!” सुंदरी भी चिंतित थी। “जिस तरह से उसका फरमान जारी हुआ है और अब काग भुषंड भागा फिर रहा है उस तरह से तो यह गाज किसी पर भी गिर सकती है?”
“न्याय और निर्णय किसी एक के हाथ में नहीं होने चाहिये महाराज!” शशांक ने अपना मत पेश किया था। “जिस समाज वाद की लालू भाई बात करते हैं वह तो अब कोसों दूर छूट गया है।” उसने अपनी आंखें मटकाई थीं। “इस पृथ्वी राज को हक क्या है कि ये जरासंध का यों दुर-उपयोग करे?”
जंगलाधीश को शशांक की बात में दम लगा था। जरासंध एक शक्ति तो था लेकिन वह अकेले पृथ्वी राज के लिए सुरक्षित क्यों था? वह तो सबका था। उसका इस्तेमाल केवल आदमियों के खिलाफ होना चाहिये था न कि उनके अपने खिलाफ!
“त्राहिमाम ..! त्राहिमाम ..!!” काग भुषंड हार थक कर गरुणाचार्य के चरणों में आ गिरा था। “शरणागत हूँ आपका आचार्य!” उसने विनीत स्वर में कहा था। “मेरी रक्षा कीजिए प्रभु!” वह रोने रोने को था। “प्राण दान दें आचार्य! मेरी कोई गलती नहीं है!” उसने गरुणाचार्य की ओर बड़े ही विनीत भाव से देखा था।
काग भुषंड के ऊपर तना खड़ा जरासंध अब प्रहार करने को आतुर था।
“ये महाराज का आदेश है – आचार्य!” जरासंध ने ऐलान किया था। “मेरी तो मजबूरी है कि मुझे इसकी मुश्क बांधकर इसे दरबार में पेश करना होगा!” उसने मिली आज्ञा का खुलासा किया था।
“इसे अभयदान दें बस!” आचार्य ने जरासंध से विनीत वाणी में अनुरोध किया था। “इसके अपराध की समीक्षा होगी और इसे दंड भी मिलेगा।” उन्होंने अपना मत पेश किया था। “जाकर महाराज को हमारा अभिवादन दें!”
“और ये कौवा ..?” जरासंध ने पूछा था।
“हम इसे स्वयं दरबार में पेश करेंगे!” गरुणाचार्य ने जिम्मा ओट लिया था।
बात कुछ थम सी गई थी। गरुणाचार्य का दिया दखल सब को अच्छा लगा था।
आज पहली बार काग भुषंड ने गरुणाचार्य को आभारी आंखों से देखा था।