एक अजूबा ही था जो लालू, शशांक और जंगलाधीश सुंदरी से मिलने एक साथ आये थे। हवा में बहुत कुछ आलतू फालतू फैलता चला जा रहा था। जंगल में अब जो बयार बह रही थी उसका रुख मुख देख कर तो ऐसा लग रहा था मानो कोई जलजला आएगा जरूर!

जिस जानवर ने भी इन तीनों को सुंदरी के पास जाते देखा उसी ने प्रश्न पूछे। और जितने प्रश्न थे उतने ही उत्तर थे!

सुंदरी के पास उनके आने से पहले ही सूचना पहुंच चुकी थी। वह भी समझ न पा रही थी कि यों जंगलाधीश का उसके पास चले आना क्या अर्थ रखता था? अपनी जान सलामती के लिए उसे कुछ उपाय तो करने ही थे क्योंकि वह जानती थी कि जंगलाधीश क्रोधी तो था ही!

शेरों के मुंह लगना लोमड़ी को यों भी पसंद नहीं था।

“मौसी! महारानी बनने का इससे अच्छा मौका और कभी नहीं आयेगा!” शशांक ने चुपके से सुंदरी के कान में बात डाल दी थी। “जंगलाधीश की पत्नी रानी शिकारियों के हाथ मारी गई है! अब यह बेचारा अकेला भटक रहा है!”

“तू पागल तो नहीं हो गया शशांक?” लोमड़ी ने शशांक को घुड़का था। “लोमड़ी और शेर की शादी कभी सुनी है?” उसने प्रश्न दागा था।

“अरे मौसी! अब हम भी इस जात पात के चक्कर में कब तक फंसे रहेंगे?” शशांक मुसकुराया था। “अब तो आदमी ने भी इन सब टुच्ची बातों को तिलांजलि दे दी है! गोरी काले की गोरी बनी है तो काला गोरियों का दूल्हा! जो चाहे जिसे वरे!” शशांक ने लोमड़ी की आंखों को पढ़ा था। “शेर के साथ शादी करने पर क्या शान होगी – कभी सोचा भी है?”

सुंदरी सकते में आ गई थी लेकिन शशांक जो कह रहा था उसे उस पर विश्वास नहीं हो पा रहा था।

“मेरी बात झूठ लगती है तो सूरमा से पूछ लो!” शशांक बोला था। “वह तो तुम्हारा मुंह बोला भाई ही है! उसी ने तो प्रस्ताव रक्खा है!”

सुंदरी ने तीखी निगाहों से लालू को घूरा था। लालू बड़े ही मोहक अंदाज में सुंदरी की ओर मुसकुराया था। फिर उसने सामने खड़े जंगलाधीश को देखा था। वह उदास था। लगा था – जैसे रानी की मौत का गम उसे खाए जा रहा था। सुंदरी जानती थी कि रानी गर्भवती थी। अब उसकी मौत हो जाने के बाद तो जंगलाधीश की वंश बेल ही मिट जानी थी!

घोर अन्याय हुआ था – जंगलाधीश के साथ।

“रानी की मौत का मुझे बहुत अफसोस है!” सुंदरी ने तनिक आगे बढ़ कर जंगलाधीश से कहा था। सुंदरी की मोहक छटा भी देखने लायक थी। वह जंगलाधीश के सामने आकर शर्म से दुहरी हो गई थी। “सत्यानाश हो इस आदमी का!” सुंदरी ने कोसा था – आदमी को। “पता नहीं, सब यही खाकर मरेगा?”

“मरेगा .. लेकिन हमारे हाथों मरेगा!” सूरमा बड़े ही तीखे अंदाज में बोला था। “सुंदरी बहन अब जंगल के सभी जानवरों की लाज तुम्हारे हाथ है!” कह कर उसने जंगलाधीश को देखा था। “ये बेचारे तो लाचार हैं! नाम के ही शेर रह गये हैं! आदमी के आगे अब इनकी दो कौड़ी नहीं उठती!”

“लेकिन हमारे तो महाराज हैं!” शशांक ने बहती बात को थाम लिया था। “लेकिन हमें इनकी सहायता करनी ही होगी!”

“वैसे भी अकेले अकेले लड़कर हम आदमी से जंग नहीं जीत सकते!” लालू ने सच्चाई बयान की थी। “हॉं अगर मिलकर लड़े तो फतह हो सकती है!” उसने सुझाव सामने रख दिया था।

सुंदरी की समझ में कुछ नहीं आ रहा था। लालू जरूर कोई स्वांग रच रहा था – उसे अंदेशा हुआ था।

लेकिन जंगल की महारानी बनने का सपना साकार होकर सुंदरी के सामने आ खड़ा हुआ था।

सामने खड़ा जंगलाधीश सुंदरी को न जाने क्यों बहुत भा गया था। कितना बलिष्ठ था वह? सुंदरी ने तो उसे दहाड़ते भी सुना था और दौड़ते भी देखा था! शिकार को फाड़ते फफेड़ते भी देखा था और उसके पौरुष की अनेकानेक कहानियां भी सुंदरी ने सुनी थीं। उससे सब डरते थे। उसके सामने बोलने की जुर्रत करता कौन था?

जंगलाधीश की तनी मूँछें जैसे सुंदरी को जंगल की महारानी बनने का निमंत्रण दे रही हों – ऐसा लगा था। उसकी लम्बी झब्बेदार पूंछ और गर्दन पर झूलती बालों की झालर उसकी गरिमा को चार चांद लगा रहे थे। यह पहला ही मौका था जब सुंदरी ने जंगलाधीश को नई निगाहों से देखा था। लेकिन शेर के साथ शादी करने का तो कभी सपना भी नहीं आया था?

जंगल की महारानी के क्या ठाठ होंगे – अब सुंदरी गिनती करने लगी थी। जंगलाधीश के यहां तो रोज रोज ताजा गोश्त खाने को मिलेगा – वह जानती थी। इसके अलावा भी जंगल का हर जानवर उसे जोहार सलाम तो करेगा ही! फिर उसे किसी का भी डर नहीं सताएगा – वह समझती थी!

और फिर इस जंगलाधीश की आड़ में सल्तनत तो उसी की चलेगी!

“सुंदरी का प्रस्ताव है महाराज कि पहले वह आपसे शादी करेगी!” लालू ने बड़ी ही आजिजी के साथ जंगलाधीश को बताया था। “उसके बाद तो – आदमी का बाल भी नहीं बचेगा – उसका वायदा है!”

जंगलाधीश ने अब मुड़ कर लालू को घूरा था।

लोमड़ी और गीदड़ मिलकर शेर की शाख और शिनाख्त दोनों को खतम कर देना चाहते थे – जंगलाधीश ने महसूसा था। और वह सुंदरी की बगल में बैठा शशांक भी इसी साजिश का एक हिस्सा था। जंगलाधीश की आंखें क्रोध से मशाल जैसी जलने लगी थीं। शशांक सुंदरी की ओट में जा छुपा था।

“क्यों बे साले गीदड़!” जंगलाधीश तनिक गर्जा था। “ये ख्वाब तुझे कब आया कि शेर लोमड़ी से शादी कर लेगा?”

“आपने ठीक ही मुझे साला कहा, महाराज! सुंदरी के साथ आपकी शादी होने के बाद हमारा यही रिश्ता होगा!” वह चुहल पर उतर आया था। “आप होंगे मेरे जीजा जी और मैं हूंगा आपका सगा साला!” वह जोरों से हंस पड़ा था।

सुंदरी की तनिक जान में जान आई थी। उसकी बगल में छुपा शशांक भी तनिक कुनका था। जंगलाधीश ने छुपे बैठे शशांक को देख लिया था।

“और तू ..? शरीफजादे शशांक?” जंगलाधीश का पारा तनिक गिरा था। “तूने कौन सा रिश्ता रखना है?”

“मेरे तो आप मौसा जी होंगे जंगलाधीश!” मधुर आवाज में बोला था शशांक। “मैं भी इस रिश्ते से कुछ खा कमा लूंगा!”

“भाई! काम ही तभी चलेगा जब हम सब किसी न किसी रिश्ते में बंध जाएंगे! एक भाई चारा एक भायप और एकजुट होकर लड़ने की ताकत तभी तो पैदा होगी?” लालू ने अब अपना दर्शन बघारा था। “इस आदमी के पास यही तो जादू है! अकेला अकेला तो यह भी कुछ नहीं है! आप के सामने अकेला किस कदर घिघियाता है – देखा है न आपने?”

सुंदरी ने तिरछी निगाहों से जंगलाधीश को निरखा परखा था! बात कुछ कुछ बनती लगी थी और जंगल की महारानी का ताज उसे अपने सर पर धरा सा लगा था!

मेजर कृपाल वर्मा

मेजर कृपाल वर्मा

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