हमें छूट थी कि हम अपने सब यारों प्यारों को बारात में लेकर आएं!

कुछ ऐसा समा बंधा था कि हर कोई इस बारात में जाने के लिए लालायित था। जो कुछ हुआ था – उसने एक धूम मचा दी थी। लोग लालायित थे कि केसर की ढाणी को जाकर देखें। उन लोगों के ठाठ-बाट देखें। लेकिन मैं सिकुड़ रहा था। मैं तो जान रहा था कि निरे रेगिस्तान के उस उजाड़ बियाबान में बसी केसर की ढाणी कोई दिल्ली न थी! चार छह झोंपड़े .. वहां एक अकेला सरोवर और चारों ओर उगी कटीली झाड़ियों का जंगल था। कुल मिला कर एक पड़ाव सा कुछ था!

लेकिन एक जंगी बारात सुबह चार बजे ही केसर की ढाणी की ओर रवाना हो गई थी।

मैं गुरु जी और शेख शामी के साथ फिटन पर बैठा था। कादिर अकेले ऊंट पर सवार था। वह खुश था – बहुत खुश! अन्य लोग भी ऊंटों पर सवार थे। नीलोफर और अशरफ बेगम बारात में शरीक नहीं थीं। उन के यहां औरतों को बारात में बुलाने का रिवाज न था!

काफिला एक लम्बा फासला तय करने के बाद ही गनगौर पहुंचा था।

गनगौर में बारात का प्रथम स्वागत समारोह संपन्न हुआ था। उन लोगों की ओर से वहां लोग सम्मान देने पहुंचे थे। खान-पान, जल-पान और आराम आश्रय सब कुछ मोहिया था। बारातियों को बड़े ही सम्मान के साथ आदर सत्कार दिया गया था। दावत भी बड़े ही गजब की बनी थी। भूखे बारातियों ने मन भर कर खाना खाया था।

फिटन यहां से आगे नहीं जा सकती थी। अब तो वही रास्ता था – जिसे कभी मैंने ऊंट की पीठ पर बैठ कर नापा था। लेकिन मैं और कादिर अब हाथी पर सवार होने जा रहे थे। मैं तो हाथी को देख कर दहलाया था पर कादिर खुश था। महावत ने मुझे बड़े आदर के साथ हाथी की सूंड़ पर चढाया था और फिर हाथी ने मुझे स्वयं हौदे में ले जाकर रख दिया था। हौदा अच्छा खासा चौड़ा चकरा था और मैं और कादिर आराम से आ बैठे थे। दूसरे हाथी पर शेख शामी और गुरु जी सवार थे। इस के बाद जिसे जहां जगह मिली वह जा बैठा था।

काफिला चल पड़ा था। जैसे एक अलग ही रौनक चल पड़ी थी। हाथियों के आने से तो बात ही बड़ी हो गई थी क्योंकि हाथी की सवारी और ऊंट की सवारी में तो जमीन आसमान का अंतर था। हम दोनों तो शाही मेहमानों की तरह एक अनोखी शान के साथ हाथी पर सवारी कर रहे थे और अपने पीछे पसरे दृश्य को आंखें भर-भर कर देख रहे थे!

“यार! ये तो हुआ सफर!” कादिर कह रहा था। “कितना मजा आ रहा है!” उसने मेरी पीठ पर हाथ मारा था। “और एक बिहार भी गये थे! मेरी शादी में ..?” वह बता रहा था। “ओह – साला कैसी दुर्गति हुई थी?” वह टीस आया था। “ये साला बिहार” चुप हो गया था कादिर।

लेकिन मैं कहीं चुप न था। मैं समझ रहा था कि जब हम केसर की ढाणी में जा लेंगे तब कादिर को होश आएगा! उस उजाड़ बियाबान में पहुंचकर जब उसे दिल्ली याद आएगी .. और हॉं – जब वह केसर को देख लेगा – तब तो सारा ही गुड़ गोबर हो जाएगा! मैं यह जानता था। और शेख शामी भी शायद उस माहोल को देख कर खोदा पहाड़ और निकली चुहिया का जुमला कह कर हंसेंगे जरूर! और कादिर नीलोफर के साथ बैठ कर तो जरूर ही खिल्ली उड़ाएगा .. जरूर ही वह ..

सब से कठिन काम तो मुझे अपने आप को ही मनाना लग रहा था!

मैं दूल्हा था। मेरे पीछे ही बारात आ रही थी। मैं मुख्य अतिथि था। मेरे लिए ही सारा साज सामान सजाया जा रहा था। और मैं ही कहीं गहरे में .. बहुत भीतर अप्रसन्न हुआ बैठा था .. रूठा हुआ था .. गमगीन था और एकदम अकेला था! जिसे मेरे साथ होना चाहिये था वही केसर मेरे साथ न थी!

“कैसे स्वागत करूंगा मैं केसर का ..?” मैंने अपने आप से पूछ कर देखा था।

तुरंत कोई उत्तर न आया था। एक सोच ही लौटा था। मैंने सोचा था कि केसर बहादुर है .. भेड़ियों को एक ही वार में मार डालती है .. सोटा चलाती है .. और मेरी दुखती टांग इसका गवाह थी! उसका हुलिया .. उसके अस्त व्यस्त बाल और वो उसकी अक्खड़ आवाज .. गंवारू उसका बोल मैंने सुना था, “बेकार का आदमी!” उसका लगाया इल्जाम मुझे याद था। लेकिन ..

“केकयी की तरह साथ लड़ेगी केसर कुंवर जी!” बाबा सा की आवाजें थीं।

लेकिन .. लेकिन बाबा सा मुझे तो नीलोफर जैसी कोई इस तरह की औरत चाहिये जो राज महल की शोभा बढ़ाए! ऐसी – जो विश्व सुंदरी हो .. और जो एक बेजोड़ हुस्न की मालकिन हो! अगर केसर दिल्ली गई तो – खिल्ली उड़ेगी वहां तो बादशाहों का रहन-सहन है और वहां शाही लोग बसते हैं जहां एक से एक सुंदर बेगमों का निवास है! वहां पर केसर जैसी पहाड़ी भेड़ की क्या जरूरत है? कौन ध्यान देगा! लोग हंसेंगे तो ..?

कुछ समझ में न आ रहा था। कई बार सोचा था कि बारादरी में ले जा कर मैं केसर को सब से छुपा कर रख लूंगा। लेकिन डर था कि अशरफ बेगम का नाश्ता लेकर आता नौकर ही सारी पोल खोल देगा! और फिर तो सारी बात फैलते देर न लगेगी ..

अशरफ बेगम केसर को देख कर क्या सोचेंगी? और क्या नीलोफर उसे बराबरी देगी? और मैं जो साम्राज्य स्थापित करने की सोच रहा था क्या मेरी प्राणों से भी प्यारी केसर उसकी महारानी बन सकेगी?

क्या .. हम दोनों को सिंहासन पर साथ साथ बैठा देख लोग अनुमान नहीं लगा लेंगे कि मैं कोई छोटा-मोटा किसान कट्टू ही था और किसी गलती के तहत केसर को लेकर सिंहासन पर आ बैठा था?

वक्त रहते ही काफिला निकल पड़ा था। शाम होते-होते हम केसर की ढाणी पहुंच गये थे!

आज एक लम्बे अंतराल के बाद मैंने केसर की ढाणी को निगाहें भर-भर कर देखा था। सब कुछ वही था – निज का तिज था। वही चार-छह घरों के साये .. चंद पेड़-पौधे और साथ में लगा सरोवर! दृश्य को देख कर मेरी नब्ज तेज हो आई थी। लगा था – सरोवर तीरे जैसे केसर मेरा इंतजार कर रही हो .. मुझे ही पुकार रही हो और कह रही हो – “गंवार अब तक कहां खोए थे?” मैं भी एक पल के लिए केसर मय हो उठा था। यह उसका गांव था .. मेरी केसर का गांव और मेरी प्राण प्रिया का जन्म स्थान था! यहां .. जी हां यहां पहली बार मेरे मन में केसर को देख प्रेम का अंकुर उदय हुआ था और मैंने किसी क्वांरी लड़की का स्पर्श किया था! मुझे आज भी यह अपने जीवन का आरम्भ जैसा लगा था!

हाथी पर बैठा मैं सामने की सरोवर को निहार रहा था। पूरा का पूरा समा बदला हुआ था।

सरोवर के चौगिर्द शामियानों की कतारें लगीं थीं। सरोवर के बीचोबीच एक टापू जैसा बना था। सरोवर के पानी पर अनेकों छोटी-छोटी डोंगियां तैर रही थीं। यह एक नई तैयारी की निशानी थी। शायद बारात को यहां ठहराने का बंदोबस्त था?

केसर की ढाणी में प्रवेश करते ही शाही बाजे और तुरई का जयघोष हुआ था। लगा था – हम किसी संग्राम का शुभारम्भ कर रहे थे। जम कर धूम-धड़ाका हुआ था। मेरे साथ बैठा कादिर मुझे बहुत असहज हुआ लगा था। वह पूरे दृश्य को नई आंखों से देख रहा था। उसकी आंखों में एक असमंजस आ बैठा था। शायद कादिर को इस तरह के हमारे स्वागत की उम्मीद ही न थी!

बारातियों को लगे शामियानों में ठहरा दिया गया था।

शाम घिर आयी थी। हर शामियाने के साथ दो सेवादार थे – जो बारातियों की हर तरह की ख्वाहिश को पूरा करने की सामर्थ्य रखते थे। मशालें जली थीं तो पूरा दृश्य सरोवर में जा डूबा था। गजब का पुरवइया छूट गया था। भीनी-भीनी बयार हल्के-हल्के बह रही थी। आसमान पर चांद भी उग आया था। केसर की ढाणी से मधुर संगीत लहरी हम तक चल कर पहुंच रही थी। शायद हमारे लिए ही ये स्वागत गीत गाये जा रहे थे!

“यार! हम किसी जन्नत में आ गये लग रहे हैं!” कादिर एक बड़े अंतराल के बाद बोला था। “क्या साला समा बंधा है?” वह हैरान था। “यह सुरमई आसमान चांद .. सरोवर और यह संगीत सब कितने निराले लग रहे हैं?” वह अब प्रसन्न था।

मुझे अच्छा लगा था – बहुत अच्छा! मेरी पहली गलत धारणा का अंत आ गया था।

दो लोग मुझे सजाने-बजाने और कपड़े-लत्ते पहनाने के लिए आ पहुंचे थे। अब मुझे चढ़ाई पर जाना था। चंद बारातियों के साथ केसर की ढाणी में प्रवेश करना था और फिर वहां हमारी शादी होनी थी। हाथी पर सवार होते समय मैंने कादिर को देखा था। वह अब भी प्रसन्न था। मैं अकेला ही जा रहा था उसे गम न था। जैसे ही हम केसर की ढाणी में प्रवेश करने को थे – आतिशबाजी आरम्भ हुई थी। बाप रे बाप! पूरा युद्ध क्षेत्र जैसा बन गया था। और हाथी पर ऊपर बैठा मैं खूब मजे ले रहा था। मैं कहीं से तनिक प्रसन्न हुआ लगा था। लेकिन वो कांटा .. जब खटकता तो मुझे सताने लगता और ..

शादी का शानदार मंडप तैयार किया गया था!

अब मैं चौकी पर आ बैठा था। पंडित जी ने मंत्र आरम्भ किये थे तो मैंने अपने गुरु जी के स्वर भी सुने थे। वो भी शामिल थे उस मंत्रोच्चार में। मैं उन्हें वहां देख कर खिल गया था। फिर केसर को बुलाने का आदेश हुआ था। केसर आहिस्ता-आहिस्ता अंधकार के पेट से उदय हुई थी। मुझे भी खड़ा होने के आदेश हुए थे। हमारी जय माला जो होनी थी!

यह हमारी पति-पत्नी होने के लिए ली पहली रजामंदी थी!

मैंने देखा था कि मेरे सामने आ कर खड़ी हुई केसर मुझ से नप रही थी। उसका कद न जाने कब इतना हुआ था कि अब वह मेरे ही बराबर थी। जय माला डालते वक्त लोगों ने हम दोनों को खूब तंग किया था। पर केसर ने मेरी ही लर बजाई थी – मैं बहुत प्रसन्न था!

और जब शादी होने के दौरान मुझे केसर का अंगूठा छूने को कहा था – तब केसर ने अपना हाथ दुलहन के परिधान से बाहर निकाला था तो मैं देख कर दंग रह गया था! वह हाथ क्या था – मेरे लिये तो एक आश्चर्य था! सफेद बर्फ जैसा हाथ था। लम्बी-लम्बी सुघड़ उंगलियां थीं। नाखून रचे-बसे थे। हाथ पर मेहँदी लगी थी। और वो हाथ – जी हां वो हाथ मेरे भीतर एक अनाम सा सुख भर गया था – एक संदेश दे गया था और मुझे आश्वस्त कर गया था और हो न हो ये केसर वो न हो – कह गया था!

बड़े ही करीने के साथ मैंने केसर के अंगूठे का स्पर्श किया था।

तभी .. हां तभी केसर का घूंघट तनिक खिसका था तो मैं खबरदार हो गया था! मेरा मन था कि मैं किसी तरह उसका हुस्न चुरा लूं! उसे अभी-अभी पा लूं! उस से अभी बतियाऊं और पूछ लूं कि तुम केसर .. केसर कब हुईं? इस आती महक ने तुम्हारे अंदर प्रवेश कब पाया? मैं जब तुम से मिला था – तब तो तुम एक कटीला झााड़ थीं और चुभती पैने चाकू सी तुम्हारी जुबान और वो बेरहमी से किया सोटे का प्रहार ..?

शायद केसर ने यह सब सुन लिया था!

पर वह बोली न थी!

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