इब्राहिम लोधी को आज लोधी सल्तनत का तीसरा सुलतान चुना गया था।

दरबार में भीड़ बहुत थी। सारे अफगान सरदार और जागीरदार जमा थे। सभी ने अपने अपने मनसूबे कांख में दबाए थे और इससे पहले कि इब्राहिम लोधी को वो सुलतान मान लें – अपनी मांगें मनवा लेना चाहते थे! सब एकजुट थे, एक मन थे ओर किसी भी तरह की संगीन स्थिति में साथ साथ रहने का वायदा कर चुके थे।

इब्राहिम लोधी भी उन सब के मनसूबों को जानता था।

वह जानता था कि जलाल नहीं आया है। जलाल ने कालपी को राजधानी बना कर जौनपुर को ले लिया है और अब बंगाल की ओर बढ़ेगा। वह जानता था कि ये लोग आज बटवारे की बात उठाएंगे और लोधी सल्तनत को टुकड़ों में बांटकर – बंदर बंटवारा करेंगे। और वह जानता था कि अगर उन की मांगें मान ली जाएंगी तो समूची सल्तनत का अंत आ जाएगा।

“साहेबान!” इब्राहिम लोधी ने धारदार आवाज में घोषणा जैसी की थी। “मेरा फर्ज बनता है कि मैं आप लोगों को बता दूं कि राजपूत महाराणा सांगा के साथ मिल कर दिल्ली को ले लेना चाहते हैं! वह चाहते हैं कि हम अफगान – उनका मुल्क छोड़कर जाएं .. और .. वो ..” इब्राहिम लोधी ने रुक कर सभी सभासदों के चेहरे पढ़े थे।

“लेकिन हम राजपूतों को बता देना चाहते हैं कि लोधी सल्तनत खेलने वाला खिलौना नहीं है जिसे वो तोड़ फोड़ डालेंगे! हमने खून दिया है .. फतह किया है दिल्ली को .. और हम लड़ना जानते हैं!” उसकी आवाज बुलंद थी। “मैं चाहता हूँ कि इस बार फिर हम सब मिल कर एक विशाल सेना खड़ी करें और आंधी की तरह इन राजपूतों को उड़ा ले जाएं!” उसने फिर से जमा लोगों को पढ़ा था।

“लेकिन बादशाह ..?” खान-ए-जहान लोधी बोल पड़ा था। जिया खान लोधी भी उसकी बगल में बैठा था। ये बिहार के शासक थे और बगावत पर उतर आये थे।

“जंग जीतने के बाद मैं आप लोगों को निहाल कर दूंगा, मालामाल कर दूंगा – ये मेरा वायदा है!” दाहिना हाथ उठा कर इब्राहिम लोधी कह रहा था। “एक बार राजपूताना हमारे कब्जे में आ जाए और ग्वालियर को तो हम जीत ही चुके हैं .. तो दोस्तों हिन्दुस्तान हमारा होगा! सोच कर देखें हमें क्या कुछ नहीं मिल सकता है?” इब्राहिम लोधी ने उमंगों के कबूतर आजाद कर दिए थे।

कुछ लोगों के चेहरे पलटे थे। सोच बदला था। बात भी सबकी समझ आई थी!

“मुझे ग्वालियर जीतने के बाद भी नहीं दिया?” आजम खान शेरवानी कूद कर खड़ा हो गया था। “हम क्यों लड़ेंगे – हेमू को लड़ाओ?” उसने दरबार में बैठे हेमू की ओर इशारा किया था। हेमू के पीछे खड़े महान सिंह ने आजम खान शेरवानी को कड़ी निगाहों से घूरा था।

“हमें तो हमारा पंजाब दे दें!” लाहौर से आये दिलावर खान ने मांग की थी। “ये वायदा हम से बहलोल ने किया था .. लेकिन .. आज तक?”

“पंजाब आप को नहीं मिलेगा!” इब्राहिम लोधी ने दो टूक उत्तर दिया था। “कभी भी – और किसी भी सूरत में हम पंजाब आपको नहीं देंगे, चचा जान!” कहकर हंस गया था – इब्राहिम। “और अगर आपने जलाल जैसी हरकत की तो हम आपको भी गद्दार कहेंगे जैसे कि जलाल को कहते हैं! और फिर हम आपको बख्शेंगे नहीं!” इब्राहिम ने बात को उछाल दिया था ताकि अन्य लोगों को भी सबक मिल जाए!

दरबार में सन्नाटा छा गया था। एक भय भर गया था। सब जानते थे कि इब्राहिम जिद्दी था और एक बार उसने ना कह दिया तो वह ना ही था!

“जनाबेआला – हमारा पंद्रह सौ तीन का समझौता?” बंगाल से आए अलामुद्दीन ने इब्राहिम को याद दिलाया था। “हम चाहते हैं कि ..?” घबराई हुई आवाज में कहा था अलामुद्दीन ने।

इब्राहिम लोधी ने उसे कटोंही निगाहों से घूरा था!

“जंग के बाद सोचेंगे!” इब्राहिम ने हाथ उठा कर कहा था। “आप जंग में हमारे साथ आएं! राजपूतों को शिकस्त दें .. फिर तो पूरा हिन्दुस्तान हमारा है और फिर हम आपको ..?”

इब्राहिम लोधी का दिया जवाब सबकी समझ में आ गया था!

“हम साथ ना आएंगे!” बशीर खान लोहानी गाजीपुर वाले क्रोधित हो कर बोले थे। “हम तो बंटवारा पहले?” उसकी बात गले में अटक गई थी।

“इन्हें हिरासत में ले लिया जाए!” इब्राहिम लोधी की आवाज गूंजी थी!

और बशीर खान लोहानी को हिरासत में ले लिया गया था!

“मुनादी की जाती है कि साहबजादे इब्राहिम लोधी को आप सब साहेबानों की रजा से लोधी सल्तनत का सुलतान चुन लिया गया है!” दरबार इस घोषणा के साथ ही तालियों की गड़गड़ाहटों से गूंज उठा था!

लोगों ने आशीर्वाद दिए थे, सदाएं दी थीं और सुलतान का खैर मकदम किया था। इसके बाद ही इब्राहिम लोधी सल्तनत के सुलतान नियुक्त हो गये थे। विद्रोहियों के दिल दिमाग भय से भरे थे। उन्हें डर था कि कहीं उन सब को कैद न कर लिया जाए? सब ने एक साथ एक निगाह से हेमू को देखा था! जैसे उन सब को पता था कि ये सब हेमू के दम पर ही हो रहा था। वह मान गये थे कि अब इब्राहिम लोधी किसी की भी परवाह न करेगा! उसने हिन्दुओं को सल्तनत में साझी कर लिया था!

आहिस्ता आहिस्ता आगरा खाली होने लगा था।

लेकिन उस रात का जश्न बड़े ही जोशो खरोश के साथ मना था।

केसर का यह पहला ही मौका था जब वह इस तरह के माहौल को देख रही थी। वह समझ रही थी कि हेमू, उसका पति पुरुष इस माहौल का सिरमौर था। हेमू की आंख भी उसपर टिकी थी। सब जानते थे कि अगली जंग में हेमू ही लड़ेगा और जीतेगा! राजपूतों से जंग लड़ना कठिन काम था और वो भी राणा सांगा के सामने – जो महावीर था, बांका वीर था, गजब का लड़ाका था और अब पूरे राजपूतों को संगठित कर अफगानों को हिन्दुस्तान से खदेड़ देने का प्रण कर बैठा था!

“मैं चाहता हूँ कि आप लोग इस बार अपनी सारी शक्ति लगा कर लड़ें!” इब्राहिम जमा जागीरदारों और सरदारों को समझा रहा था। “आप लोग हेमू जो भी मांगे वो दे दें। ज्यादा से ज्यादा सेना जंग में भेजें। हमारी जीत तभी होगी जब हम इन राजपूतों को आंधी की तरह उड़ा ले जाएंगे।” हंस रहा था इब्राहिम लोधी। “मैं जंग में आपके संग आऊंगा।” वह बताने लगा था। “आप देखेंगे कि मैं किस तरह अपने दादा बहलोल लोधी से भी बढ़कर ..” उसने जमा लोगों की आंखों को पढ़ा था।

वहां सहमति न थी। लोग बहलोल लोधी को भूले कहां थे? वह तो यारों का यार था – न दगाबाज था और न धोके बाज! बड़ा ही जांबाज आदमी था! चूहा था – ये इब्राहिम लोधी!

“मुझे तो ये आदमी बिलकुल अच्छा नहीं लगा, साजन!” केसर ने अपनी राय व्यक्त की थी।

“सुलतान ऐसे ही होते हैं!” हेमू ने स्पष्ट कहा था। “राज काज कोई मामूली खेल नहीं प्रिये!” उसने केसर को चेता दिया था।

“पर मुझसे तो बड़े ही सलीके से बातें की थीं!” केसर प्रसन्न थी।

“क्योंकि तुम उसकी सगी नहीं हो और उससे आधा राज नहीं मांग रही हो!” हंसा था हेमू।

केसर की समझ में बात समा गई थी। सारा खेल अपने तेरे का था!

“दिल्ली अब तुम्हारे अधीन रहेगी, हेमू!” इब्राहिम लोधी बता रहा था। “यहां से जाने के बाद सारा का सारा काम मुरीद से ले लो! तुम्हें एक बड़ी से बड़ी सेना तैयार कर मुझे सौंपनी होगी। इन सब जागीरदारों को निचोड़ लो। खजाने में खूब माल होना चाहिये। जो तुम्हारी बात ना माने उसे माफ मत करना! दिल्ली अपने नीचे इतनी सेना रख लेना जितनी इन लोगों से निपटने के लिए दरकार हो। जो सर उठाए, कुचल देना। और अगर जलाल भी सामने आता है तो उसका सर कलम कर देना।” इब्राहिम आदेश दिए जा रहा था। “तुम अगर यहां कामयाब होते हो तो मैं वहां जंग जरूर जीत लूंगा!” वह जोरों से हंसा था। “अब हिन्दुस्तान हमारा होगा दोस्त। अब्बा का ख्वाब सच होगा! राजपूतों के हाथ आने के बाद मैंने तुम्हें लोधी सल्तनत का परचम फहराते हुए .. पूरे हिन्दुस्तान पर ..”

हेमू चुप था। गंभीर था वह। इब्राहिम लोधी के चालाक चेहरे को वह ध्यान से पढ़ रहा था। उसका अनुमान ठीक था। वह अब हेमू को जंग नहीं लड़ाना चाहता था। वह नहीं चाहता था कि हेमू परवान चढ़ जाए .. और वो ..”

“ये सब माहिल को कैसे पता था?” हेमू स्वयं से उत्तर मांग रहा था। “क्या इसी में ही उसका शुभ था?”

“दो धारी तलवार है – ये हिन्दू मुसलमान का मिलकर लड़ना!” हेमू को गुरु जी के बोल अब सुनाई दे रहे थे। “लेकिन इब्राहिम लोधी की ये मजबूरी है!” उसने भी अपना मत स्पष्ट कर दिया था।

दिल्ली आ कर यों बागडोर संभालना हेमू से ज्यादा केसर को अच्छा लगा था।

मेजर कृपाल वर्मा

मेजर कृपाल वर्मा

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