“सुना है पंडित हेम चंद्र तिल तिल कर मर रहे हैं। काया गल रही है। काया गल रही है दिन दिन और ..” जौनपुर से लाव लश्कर लेकर आये आजम हुसैन अपने साथी अमीर उलेमाओं को बता रहे थे।

कालिंजर पर हमला हो रहा था – ये किसी उत्सव से कम न था। बड़ी मुद्दत के बाद अब आ कर सल्तनत के इन नुमाइंदों को फिर से अवसर मिला था हिन्दुओं की लूट पाट करने का और अपना कद ऊंचा करने का।

“तभी तो ये मुबारक मौका हम लोगों को मिला है मिर्जा!” खुश खुश बिहार से आये लोहानी ने समर्थन किया था उनका। “वरना तो खुदा कसम मैं तो मरने वाला था।” उन्होंने जमात को नई निगाहों से देखा था। “अरे भाई! कहां गये – जन्नत में! क्या किया – भाड़ झोंका!” वो जोरों से हंसे थे। “आये थे हिन्दुस्तान में लूट पाट करने, माल कमाने, औरतों का दीदार करने और लगा दिया सड़क बनाने पर!” उन्होंने सुलतान शेर शाह सूरी के किये सुधारों का मखौल उड़ाया था।

जोरों के ठहाके लगे थे। सब मिल कर और खुल कर हंसे थे।

“सच कहते हो खिबला!” लाहौर के तरार कहने लगे थे। “मेरा तो मन कब से कुंद था। हरम खाली पड़ा है। मौका ही नहीं मिला कि ..”

“अरे जनाब! हमारी तो भूखों मरने की नौबत आ गई थी। इस काफिर पंडित ने न जाने कौन सी लोंग सुंघाई सुलतान को कि ये मुसलमानों पर ही पिल पड़े।” उन्होंने आंखें नचाते हुए अपने आस पास को निहारा था। “सियासत का मतलब है यारों – ऐश अइयाशी! लेकिन यह पंडित सुलतान को बहकाता रहा है ..”

“भला हो ऊपर वाले का जो सुलतान को अक्ल दे दी वरना तो दोस्तों ..” मौलवी हंस हंस कर कह रहे थे। “हिंदुस्तान फिर से हिन्दुओं का होने वाला था। ये जालिम पंडित – ऐसा गारत करता इस शहंशाह को कि ..”

“इस बार मैंने तो जिद ठान ली है कि जम कर माल लूटेंगे और .. और हॉं – इस बार औरतों को जौहर नहीं करने देंगे .. ताकि ..” उन्होंने चतुर निगाहों से सभी जमा सिपहसालारों को देखा था। “अरे भाई उन्हें आग में क्यों जलाएं? क्यों न तन से लगायें ओर सुख पाएं?”

खूब हंसे थे – सब लोग। सब को यह विचार पसंद आया था।

“बुंदेलखंड की तो ईंट से ईंट बजा देंगे इस बार!” कयामत खान का ऐलान था।

सब के सब जैसे भूखे भेड़िये थे और इस बार सब ने ही अपनी अपनी भूख मिटाने की कसमें उठाई थीं। अब हिन्दुस्तान के ऊपर एक नया कहर टूटने वाला था। दिल्ली में जमा ये लाव लश्कर कालिंजर की ओर उठा एक तूफान था जिसने सब कुछ खाते बिगाड़ते और लूटते खसूटते कालिंजर पहुंचना था और वहां जाकर भी ..

शहंशाह शेर शाह सूरी को अब भरोसा हो गया था कि कालिंजर के आक्रमण के बाद वह हिन्दुस्तान का बेताज बादशाह था! चारों ओर से सिमट कर आया लाव लश्कर उसे आश्वस्त कर रहा था कि विजय उसी की होगी इस बार! अब वह राजपूतों को अंततः परास्त कर नई दिशा में आगे बढ़ेगा और फिर हिन्दुस्तान को खलीफाओं के मुताबिक एक इस्लामी देश बनाएगा और अपने इरादों में सफल हो जाएगा!”

नवंबर 1544 का समय था!

सुलतान शेर शाह सूरी ने इस बार बिना किसी के परामर्श लिए स्वयं ही आक्रमण की पूरी रूप रेखा तैयार की थी। हालांकि उन्हें पंडित हेम चंद्र की राय लेने का मन कई बार बना था लेकिन एक नया अभिमान था, नया उत्साह था और नया जोश था जो बार बार पीछे मुड़ कर न देखने की सलाह दे रहा था। अब तो उनका अपना नाम और काम ही इतना था कि कालिंजर अवश्य ही उनके भय से थर थर कांप रहा होगा।

आक्रमण के फरमान जारी हो चुके थे।

“शहजादे आदिल खान पैदल सेना की अस्सी हजार फौज के साथ जालोंन होते हुए उरई और फिर फतेहपुर पहुंचकर नाका बंदी करेंगे और कालिंजर की टोह लेंगे।” शहंशाह शेर शाह सूरी घोषणा कर रहे थे। “शहजादे इस्लाम शाह घुड़सवार फौज के पचास हजार सैनिकों का नेतृत्व करेंगे और वो टीकमगढ़ से छतरपुर होते हुए खजुराहो में जा कर मोर्चा संभालेंगे!” सुलतान ने आंख उठा कर अपने सेनापति बेटों को एक साथ देखा था। इस्लाम शाह उनकी नजर में हिन्दुस्तान का अगला शहंशाह था। “हम स्वयं हाथियों के जत्थे का संचालन करेंगे और हमारे साथ 11 तोपों के चार दस्ते माने कि कुल 44 तोपों का टमटमा चलेगा। ये काफिला मऊ रानीपुर होते हुए महोबा पर मोर्चा संभालेगा!” सुलतान का चेहरा चमक रहा था। “हमें उम्मीद है कि राजपूत हमें महोबा पर आ कर रोकेंगे और तब ..” वो तनिक हंसे थे। “हम चाहते हैं कि हमारे साथ आये सभी उलेमा और मिर्जा ख्वाजा अपनी अपनी मर्जी के मुताबिक शामिल हो जाएं और अपने अपने मंसूबे तय कर लें! ये संग्राम एक नई शुरुवात होगा हम मुसलमानों के लिए!” उनका इशारा बिना हिन्दुओं को शामिल किये युद्ध करने का था और मंतव्य भी स्पष्ट था कि यहां से आगे उन्होंने हिन्दुओं को अपने किसी भी फतह का हिस्सा नहीं बनने देना था।

घोषणा को सुन कर हर किसी के चेहरे खिल उठे थे। केवल हिन्दू राजे रजवाड़े ही थे जिनकी आंखों के जलते चिराग गुल हो गये थे।

“लद गये दिन।” राजा टोडरमल ने स्वयं से कहा था।

“न जाने अब क्या होने वाला है?” राजा महेश दास ने भी स्वयं से ही प्रश्न पूछा था।

“हम चाहते हैं कि राजा टोडरमल हमारे दिल्ली से जाने के बाद यहां की सारी सुरक्षा का भार संभालेंगे। राजा महेश दास रोहतास नगर में तैनात होकर बाहरी खतरे से दिल्ली की सुरक्षा करेंगे और सारे अन्य हिन्दू अधिकारी ..” उनकी आंखों की त्योरियां तन आई थीं। “हमारी फतह के लिए दुआएं करते हुए आप लोग सल्तनत का साथ देंगे .. और ..”

“मुसलमान बन जाएंगे!” वजीर बने राजा पूरन दास ने चुपके से कहा था। “वरना तो ..?” घोर निराशा में वह चुप रहे थे और कुछ न बोल पाए थे।

अपने बुलंद इरादे व्यक्त करते वक्त सुलतान शेर शाह सूरी ने जाहिर तौर पर कूच करते सलामी दस्तों को जो दिशा दी थी वह बड़ी ही भेद भरी थी। चूंकि कूच करती फौज ने रास्ते में हिन्दुओं की लूटपाट करनी थी अत: सुलतान ने उन्हें अलग अलग रास्ते बांटे थे जहां से उन्हें अच्छी आमदनी होनी थी।

“हिन्दुओं के माल असबाब का ठिकाना नहीं!” शेर शाह सूरी सोच रहे थे। “लेकिन जब तक हिन्दू की गर्दन को तलवार की नोक नहीं छूती वह देता भी कुछ नहीं है।” तनिक हंसे थे सुलतान। “इस बार तो निहाल हो जाएंगे मुसलमान!” उनका अनुमान था।

अचानक ही शेर शाह सूरी की आंखों के सामने धन माल के ढेर लगे नजर आये थे!

“संधि कीजिए शहंशाह!” उन्हें महाराजा कीरत सिंह के अनुरोध सुनाई देने लगे थे। “आपकी नजर .. अशरफियां, घोड़े, हाथी और .. औरतें? हॉं हॉं और कलाकृति भी, सुंदर बुंदेलखंडी बालाओं के साथ और .. और हॉं हॉं हमारा सब कुछ समर्पित ..”

और हॉं – मैदान छोड़ कर कालिंजर का अधिष्ठाता नंद और लूटपाट करता गजनवी और युद्ध में मारवाड़ का शासक महाराजा रातों रात जोधपुर जाता उन्हें हिसाब देने लगा था! उन्हें उम्मीद बंध गई थी कि इस बार वो खूब नाम और नामा कमाएंगे और इस्लाम का परचम हिन्दुस्तान पर फहराते हुए अपने ध्येय में कामयाब हो जाएंगे ..

और फिर पंडित हेम चंद्र के मरने के बाद तो ये सारी सामरिक चतुराई और युद्ध कौशल उन्हीं के अपने नाम पर लिख दिया जाएगा!

मेजर कृपाल वर्मा

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