फारस से पधारे विद्वानों ने आज के दिन को अल्लाह की इबादत और लोधियों के लिए मुबारक मौका बताया था! किसी भी हिन्दू पंडित या विद्वान की उपस्थिति को आवश्यक नहीं माना था!

पूरा का पूरा इबादत गाह सुन्नी मुसलमानों से खचा-खच भरा था!

फारसी विद्वानों के लिहाज से लोधियों के लिए ये एक तरह का राजसूय यज्ञ था जहॉं लोधियों के चक्रवर्ती सम्राट बनने के लिए प्रयास, उपासना और आशीर्वाद प्राप्त करना था। यह दिन एक पर्व की तरह मनाया जा रहा था और इबादत गाह पर भारी मेला लगा था। सुदूर से भारी संख्या में मुसलमान पधारे थे!

फिजा पर लोधियों के फतवे गूँज रहे थे!

अल्लाह की इबादत करने तीनों लोधी – सिकंदर लोधी, जलालुद्दीन लोधी और इब्राहिम लोधी उपस्थित थे। तीनों शाही परिधानों में सजे-बजे थे और तीनों के चेहरों पर शाही नूर आ बैठा था। सल्तनत का गुरूर और लोधी होने पर एक मगरूर मौन उनकी ऑंखों में समाया था। जमा लोग भी उन्हें ऑंखें भर-भर कर देख रहे थे!

गाजे-बाजों के साथ इबादत शुरू हुई थी। फारसी विद्वानों ने अपनी जबान में आयतें पढ़ी थीं! अल्लाह को याद किया गया था और तीनों लोधियों ने अल्लाह के फरमान को मानने का वचन भरा था। जो कुछ भी बरकत हो रही थी वह अल्लाह का करम था और अल्लाह के फजल से संपन्न हो रहा था!

लोधियों ने अब समूचे हिन्दुस्तान पर शासन करना था – यह तय हो गया था।

शाही मेहमानों के लौटने के बाद खूब खिल्लतें बंटी थीं। लोग झोलियां भर-भर कर माल-असबाब घर लाए थे!

दरबार की शोभा और दरबार का अदल आज अनोखा ही था!

आज का दरबार रिआया के लिए भी खुला था। दिल्ली के गण-मान्य लोग आमंत्रित थे। उनके लिए कालीनें बिछी थीं और लोग आ-आकर तसल्ली से बैठे थे। आगे की तीन कतारों में शहंशाह के दरबारी और आमंत्रित लोग बैठे थे। पहली कतार में अमीर-उमरा और शेख सभापति बैठे थे। उनके साथ व्यापारी और शाह-साहूकार भी उपस्थित थे। शेख शामी तीसरी कतार में बैठे थे। दाएं-बांए पर कादिर और हेमू बैठे थे। तीनों शाही मेहमानों में शामिल थे।

इबादत गाह से शाही काफिला चल कर दरबार महल में पहुँचा था।

एक हलचल उठी थी। एक जलजला जैसा आया था। हर कोई खबरदार हुआ लगा था। फारस से आये विद्वानों ने दरबार महल में आकर अपने-अपने आसन ग्रहण किये थे। अब शाही मेहमानों के आने का इंतजार था।

सबसे पहले घोषणा हुई थी – शहजादा जलालुद्दीन लोधी पधार रहे हैं!

जमा लोगों की ऑंखें आते शाहजादा जलालुद्दीन को देखने के लिए तरस उठी थीं। हेमू और कादिर के लिए यह पहला ही मुबारक मौका था – जब उन्हें शाही मेहमानों के दर्शन पाने का सुयोग मिला था!

शाही पोशाक में सजा-बजा शाहजादा जलालुद्दीन दरबार महल में आकर अपने दाएं हाथ पर लगे सिंहासन पर बैठ गया था। खूब तालियां बजी थीं उनके स्वागत में। हेमू को जलालुद्दीन एक भला सा इंसान लगा था।

दूसरी घोषणा हुई थी – शाहजादा इब्राहिम लोधी पधार रहे हैं!

एक बार फिर से लोगों ने चाहत भरी निगाहों से आते शाही मेहमान इब्राहिम लोधी को निहारा था। शाही पोशाक में सजा-बजा इब्राहिम लोधी चलकर बाएं पड़े सिंहासन पर बैठ गया था। तालियां फिर बजी थीं तब हेमू ने होश संभाला था और इब्राहिम लोधी को गौर से देखा था। कुछ था – जो इब्राहिम लोधी में अलग से था!

और अब तीसरी और आखिरी घोषणा हुई थी – शहंशाह सिकंदर लोधी पधार रहे हैं!

एक तुमुल कोलाहल उठ खड़ा हुआ था। सभी आगंतुक खड़े हो गये थे। सभी ने शहंशाह की जम कर जय-जयकार की थी। शहंशाह के गुणों का गुणगान हुआ था। उनका स्वागत हुआ था। एक अनोखी उमंग दरबार महल में भर आई थी!

सिकंदर लोधी ने हाथ उठा-उठा कर लोगों के अभिवादन स्वीकार किये थे ओर भेंट में लाए तोहफों को छू-छू कर स्वीकार किया था। उपस्थित लोग जैसे धन्य हुए थे और अपना इमाम पा गये थे!

सिकंदर लोधी अब अपने सिंहासन पर विराजमान थे!

“लोधी सल्तनत की ओर से फरमान जारी करेंगे – सम्राट सिकंदर लोधी!” घोषणा हुई थी।

हेमू के कान खड़े हो गये थे। उसे लगा था जैसे उसे कोई फांसी देने जा रहा था!

“मैं सिकंदर लोधी ऐलान करता हूँ कि लोधियों ने ग्वालियर राज्य पर हमला करना है और ग्वालियर को फतह करके लोधी सल्तनत में शामिल करना है!” सम्राट सिकंदर लोधी का स्वर दरबार महल के आर-पार गूँजा था।

एक कोलाहल उठ खड़ा हुआ था। सिकंदर लोधी की घोषणा से पूरा का पूरा माहोल कांप उठा था। लोधियों की सल्तनत का संदेश जैसे हवा ले उड़ी थी और दसों दिशाएं खबरदार हो कर उठ खड़ी हुई थीं!

हेमू को लगा था कि वह मरा महाराजा मान सिंह है और ग्वालियर के उजड़े आशियाने में अकेला बैठ है! निराश है – वह। लोधियों की ललकार सुनकर भी वह चुप है। दरक गई है उसकी आत्मा। खंड-खंड होकर आ खड़ा हुआ है उसका स्वाभिमान! लजा गई है उसकी वीरता। उसकी मौत का जिंदगी के साथ किया विश्वासघात महाराजा मान सिंह को बहुत बुरा लगा था।

महाराजा की ऑंखों के सामने निराशाओं के वीराने आकर खड़े हो गये थे। कौन था अब जो लोधियों से मुकाबला करता? विक्रम जीत तो बच्चा ही रहा! मृग नयनी यों तो वीरांगना थी लेकिन लोधियों के धावा बोलते इस टिड्डी दल को रोक पाना उसकी बिसात से बाहर था! क्या कोई आगे आएगा ग्वालियर की रक्षा के लिए?

“न मालवा आएगा न मारवाड!” महाराजा सुन रहे थे। “तुम से लोगों को उम्मीद कहॉं थी – मान! तुम्हारे तो आत्म सुहृदय भी तुम्हारी हार के हामी हैं! तुम्हारा वैभव, यश, पराक्रम उन्हें पचा कहॉं? अब तो सब तमाशा देखेंगे और ग्वालियर लुटेगा!”

और महाराजा मान सिंह सुन रहे थे – लुटते लोगों की चीखो पुकार, महिलाओं के डकराते स्वर, उनकी लुटती लाज के वो बेशर्म दृश्य न जाने क्यों और कहॉं से चल-चल कर आ रहे थे! उनका प्राणों से भी प्यारा ग्वालियर जल रहा था और .. और ..

“उफ!” राजा मान सिंह ने घृणा से भरी ऑंखें बंद कर ली थीं। “ये मुसलमान – किस बेरहमी से फाड़ते-खाते हैं जनता को! न औरतों को छोड़ते हैं न बच्चों को बख्शते हैं। संपूर्ण नरसंहार तो इनकी रिवाज है!” वह अपने अनुभवों को गिन रहे थे।

महाराजा मान सिंह का विलाप और आंसुओं से भरी ऑंखें देख हेमू भीतर बाहर से द्रवित हो आया था!

“इस बार हमारा हमला पूरे दल-बल के साथ होगा! हम नहीं चाहते कि इस बार हमें हमारे रास्ते का कोई भी रोड़ा .. कैसा भी रोड़ा हमें रोक ले! हमारा इरादा है कि हम आगरा को कलकत्ता तक का साम्राज्य सौंपेंगे और इसे शाहजादा जलालुद्दीन लोधी संभालेंगे!” सिकंदर लोधी भविष्य का बखान करने लगे थे। “और ग्वालियर फतह करने के बाद यहॉं के मालिक होंगे इब्राहिम लोधी। ये कन्याकुमारी तक फैले लोधी साम्राज्य को संभालेंगे!” सिकंदर लोधी का स्वर ऊंचा था, साफ था और सही था!

“हम दिल्ली में रहेंगे!” मुस्कराकर कहा था सिकंदर लोधी ने। ” दिल्ली हिन्दुस्तान की राजधानी खुरासान के अधीन आएगी और ..”

दरबार महल सिकंदर लोधी के लिए होते जय-जयकार से दहला गया था।

हेमू को लगा था जैसे किसी ने अभी-अभी उसके जिस्म की दो फाड़ कर दी हैं और दोनों को दो भिन्न दिशाओं में फेंक चलाया है ताकि कभी भविष्य में भी मिल न पाएं!

“आ गया तेरे हिन्दू राष्ट्र का अंत हेमू?” कादिर पूछ रहा है। “मुसलमान अब छोड़ेंगे नहीं हिन्दुस्तान को!” वह हंस रहा है। “अभी तो मुझे देखना तू, मेरे यार!” उसने हेमू की ऑंखों में देखा है। “देखना जब मैं .. केसर को .. तुझसे ..?”

“छीन लूंगा ..?” हेमू ने ही वाक्य पूरा किया है। “हे भगवान!” हेमू ने गुहार लगाई है। “कैसे संकट में फंसा दिया?” उसने शिकायत की है।

“डरते बहुत हो साजन!” अब केसर हंस रही थी। “वक्त के पंख होते हैं, प्रियतम!” वह हेमू को जता रही थी। “कोई शहंशाह भी नहीं उखाड़ पाता वक्त के पंख फिर कादिर तो चीज क्या है?” केसर ने दांती भींची है। “देख लेना! इसे तो मैं ही कत्ल करूँगी!” दृढ़ प्रतिज्ञा की थी केसर ने!

बहादुर तो बहुत थी केसर – हेमू ने आज मान लिया था!

मेजर कृपाल वर्मा

मेजर कृपाल वर्मा

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