राजपूतों के हाथों दूसरी करारी हार होने के बाद भी इब्राहिम लोधी का हिन्दुस्तान पर लोधी वंश का परचम फहराने का ख्वाब टूटा न था।

जलाल का सर हासिल करने के बाद उसे अपनी अगली मुसीबतों का अंत आ गया लगा था। कादिर कहीं उसे बड़े काम का आदमी लगा था। उसका अफगान होना और होनहार होना – इब्राहिम को दोनों ही पसंद आ गये थे! और उसे लगा था जैसे धौलपुर के युद्ध में हुई उसकी हार – असल में उसकी जीत थी!

इब्राहिम लोधी ने आगरा के उस एकांत में बैठकर युद्ध में जान गंवा बैठे उन अफगानों के नाम गिने थे – जो उसकी जान के प्यासे बने हुए थे। एक तरह से तो सफाया सा ही हो गया था। उसे सांस आती लगी थी। लगा था – जो शेष बच गये थे शायद ही मुंह खोलेंगे!

लाहौर से हरकारा आया है – इब्राहिम लोधी को सूचना मिली थी।

हरकारा उनके चचा जानी का खत लाया था। हरकारे ने वापसी पर खत का उत्तर ले जाने की मांग की थी। इब्राहिम लोधी ने एकांत में उस खत को पढ़ा था।

सुलतान इब्राहिम!

जिस चालाकी से तुमने राजपूतों को बुलाकर हम अफगानों के सर कटवाए हैं – उससे लोधी सल्तनत का भला नहीं होगा, बेटे! हमें तुम से अब कोई उम्मीद नहीं है कि तुम हमारा ही नहीं किसी भी अफगान का भला सोचोगे! जलाल की हत्या के बाद तो मुझे लग रहा है कि कहीं तुम ..

लौटते खत में लिखो कि हमें हमारा हक मिलेगा कि नहीं?

खत पढ़ते पढ़ते इब्राहिम लोधी के पसीने छूट गये थे! एक बारगी उसे लगा था कि उसके नीचे की सल्तनत खिसक गई थी। लगा था कि चचा जानी ने उसे गले से पकड़ कर सब कुछ छीन लिया है और अब जलाल की हत्या के आरोप में उसे सजाए मौत सुनाने वाले हैं!

“हरकारे को ठहराओ! हम कहें तब खत लेकर जाएगा!” इब्राहिम लोधी ने हुक्म दिया था। “निगाह के नीचे रहेगा हरकारा!” उसने चेतावनी दी थी।

दुश्मनों से ज्यादा अपनों से डरा हुआ था इब्राहिम लोधी!

“लाहोरिये नहीं लड़े थे!” अचानक इब्राहिम लोधी चंद आवाजें सुनने लगा था। “इन्होंने ही तो हराया है!” सैनिक बता रहे थे। “भगदड़ मची क्योंकि ये भाग लिए थे।” सबूतों के साथ लोग बता रहे थे।

तब तो इब्राहिम ने इन शिकायतों को आया गया कर दिया था लेकिन आज इसे सच और सही मान लिया था। जलाल के बाद चचा जानी ही थे जो सल्तनत को तबाह करने पर तुले हुए थे!

“अब मैं आप के साथ नहीं लड़ूंगा!” इब्राहिम लोधी अपने बेटे इस्लाम शाह की आवाजें भी सुनने लगा था। “हर बार हारना मुझे अच्छा नहीं लगता!” उसकी शिकायत थी।

हॉं! इस्लाम शाह की इस बात में तो दम था। सेनाओं को भी अब शक होने लगा था कि इब्राहिम लोधी तैरते जहाज को डुबो देने वाला पत्थर था, अगर हेमू होता तो – उसने लोगों को कहते भी सुना था!

“इतना बड़ा लाव लश्कर लेकर भी हार गया? था क्या राजपूतों के पास?” हुसैन खान ने तो सरेआम दिल्ली में बैठकर उसकी पगड़ी उछाली थी। वह अफगानों का सरगना था और बिरादरी उसकी बात मानती थी!

अब सर जमी डोलती नजर आई थी इब्राहिम को!

“हेमू ..!” अचानक वह पुकार बैठा था। “तुरंत बुलाओ हेमू को!” उसका आदेश था।

न जाने क्यों हेमू को उम्मीद थी कि आगरा से जल्द ही उसके लिए बुलावा आएगा! उसने केसर से आगरा चलने का आग्रह किया था तो वह साफ नाट गई थी।

“पीछे की रखवाली करना उतना ही जरूरी है साजन जितना कि आगे से आता हमला रोकना!” केसर ने कहा था और हंस गई थी।

केसर की बात में दम था – हेमू ने महसूसा था। ये कथन सामरिक शिक्षा का जैसे एक अंग था और हेमू ने इस बात को गांठ बांध लिया था!

राजपूतों से दूसरी बार हारने के बाद अब आगरा शांत था। एक मातमपुरसी जैसा माहौल था। हेमू ने भी महसूस किया था कि इस बार की हार ने इब्राहिम लोधी को तबाह कर दिया था और उसे लोग अब एक अपशकुन की तरह याद करने लगे थे। जैसे ही दुश्मन निशाने पर आता था – इब्राहिम के हाथ कांप जाते थे! हेमू ने हार का कारण पकड़ लिया था लेकिन ..

“खत पढ़ लिया?” इब्राहिम लोधी ने हेमू से पूछा था।

“विद्रोह है! कहें तो सीधी बगावत!” हेमू ने लंबी सांस छोड़ते हुए कहा था। “जबकि बात अब साफ हो चुकी है कि लाहोरिए नहीं लड़े!” हेमू ने सीधा इब्राहिम लोधी की आंखों में देखा था। “मैदान छोड़कर भागे भी यही थे!” वह बताने लग रहा था। “और ..”

“मैं भी सोचता रहा कि – हम हारे कैसे ..?”

“वो भी इतने दल बल के साथ?” हेमू ने शक को पुख्ता किया था।

“क्या होना चाहिये था?” इब्राहिम पूछ बैठा था।

“वही – जो हमने तय किया था।” हेमू ने तुरंत उत्तर दिया था। “लाहोरिए जम जाते और न भागते तो हमारे घुड़ सवारों ने राजपूतों को पीछे से आकर घेर लेना था। और जैसा कि तय था – आप आगे से हमला कर देते तो राणा की कमर टूट जाती! थे ही कितने राजपूत! कुल दस हजार घुड़ सवार और पांच हजार पैदल!”

इब्राहिम की आंखों के सामने अफसोस का सागर तैर आया था। कितना बड़ा मौका गंवा दिया था उसने, अब समझ आ रहा था। और जो बदनामी हुई उसका तो कोई मोल ही न था!

“पंजाब का क्या करे?” इब्राहिम सीधा मुद्दे पर आ गया था।

“जैसा भी आप मुनासिब समझें!” हेमू का मत था।

इब्राहिम फिर से एक सोच में डूब गया था। मामला बड़ा ही पेचीदा था। ग्रह युद्ध की नौबत जैसी आन पड़ी थी। लाहोरिए उसके अपने कुनबे के थे और चचा जानी कोई गैर भी न थे। लेकिन सारा मुद्दा तो सल्तनत का था!

“चले जाओ!” इब्राहिम तनिक मुसकुराया था। “चित्तौड़गढ़ की तरह कोई बात बने तो ..?”

“बातों से पंजाब में बात न बनेगी – मेरा अनुमान है!” हेमू ने साफ कहा था। “वो मौका मिलते ही मुझे बंदी बना लेंगे और दिल्ली पर ..” पलट कर हेमू ने इब्राहिम को पढ़ा था।

हेमू की बात तर्क संगत थी। इब्राहिम लोधी को भी चचा जानी के इरादे समझ आ रहे थे। उन्हें हर कीमत पर अब सल्तनत में साझा चाहिये था।

“फिर ..?” एक गहरी सांस लेकर इब्राहिम लोधी ने पूछा था। “मैं सल्तनत तो न बांटूंगा!” उसने धीमे स्वर में कहा था। “एक बार फिर से मैं हिन्दुस्तान फतह करने निकलूंगा हेमू!” गंभीर था इब्राहिम।

“फिर चला जाता हूँ!” हेमू ने इब्राहिम का हाथ पकड़ा था। “लेकिन जाऊंगा पूरी तैयारी के साथ!” हेमू ने अपनी मांग सामने रख दी थी। “मेरे आने को वो लोग सहज न लेंगे! और अगर बात न बनी तो मैं ..” रुका था हेमू।

उसने इब्राहिम को देखा था। इब्राहिम का चेहरा आरक्त हो आया था। लाहोरिए उसके अपने तो थे ही! और वह जानता तो था ही कि हेमू को कोई भी परिवार का अफगान पसंद न करता था। हिन्दुओं को सेना में भरती करना भी उन्हें पसंद न था। हेमू को सभी अफगान कानी आंख से देखते थे!

“बात बना कर लौटना!” इब्राहिम एक लंबे सोच के बाद लौटा था। “जैसे भी बात बने हेमू बना कर ही लौटना!” अब उसने मुसकुराते हुए कहा था। “पूरा दारोमदार अब मैं तुम पर छोड़ता हूँ!” उसने अंतिम आदेश भी दे डाले थे।

दिल्ली लौटकर हेमू ने अंगद उर्फ मुस्तकीन बंगाली को बुलाया था।

“पंजाब चलने की सूची बना लो!” हेमू आदेश दे रहा था। “खटक सकती है – सोच कर काम करना और हॉं हमारे दिल्ली से निकलने से पहले तुम लाहौर चले जाओ! मुझे लाहौर पहुंचते ही सारी खबर चाहिए!” हेमू ने पंजाब में बैठे खतरे को सूंघ लिया था।

“मैंने तो कब के पठा दिये हैं अपने चूहे!” अंगद हंस रहा था। “मैं तो जानता था सुलतान कि ये काम आपको ही मिलेगा!” वह हंस रहा था। “आप जितना बहादुर इनमें है कौन जो जंग जीत लाए?” उसका ऐलान था।

और इब्राहिम लोधी भी इस सत्य को जान गया था।

मेजर कृपाल वर्मा

मेजर कृपाल वर्मा

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