बाबर ने आगरा में डेरा डालकर बारूद को चिंगारी दिखा दी थी!

“पंजाब का बंटवारा कैसे करेंगे जहांपनाह?” लाहौर से आये दौलत खान और आजम खान बाबर के सामने पेश हुए प्रश्न पूछ रहे थे। चूंकि उन्होंने बाबर की पूरी पूरी मदद की थी, उसे बुलाया था और युद्ध जिताया था अतः उन्हें उम्मीद थी कि उनका इनाम इकरार बाबर उन्हें अवश्य देगा। “हम दोनों को ही दे दें पंजाब!” उनका आग्रह था।

“राणा सांगा तुम्हें कहां रहने देगा?” एक लम्बी सोच के बाद बोला था बाबर। “इन हिन्दुओं से हमें मिल कर निपटना होगा!” उसका सुझाव था।

और जब दौलत खान और आजम खान आगरा से खाली हाथ लौटे थे तो सबको जंच गया था कि बाबर के इरादे नेक न थे।

अविश्वास की इस चिंगारी ने विश्वासघात के बारूद में आग लगा दी थी! हिन्दू, अफगान और पठान सब के सब एक जान, एक प्राण होकर अब बाबर के प्राणों के प्यासे हो उठे थे!

इब्राहिम लोधी के भाई सुलतान महमूद लोधी ने अपने आप को दिल्ली का सुलतान घोषित कर दिया था। मेवात के हसन खान ने सरे आम बाबर के साथ बगावत की थी और मोर्चा खोला था। निजाम खान बचाना और मुहम्मद जैतून ने धौलपुर तथा तातार खान ने ग्वालियर को बाबर के विरुद्ध खड़ा कर दिया था!

उधर हुसैन खान लोहानी खोरी से, कुतुब खान इटावा से, आलम खान कालपी से और कासिम संभाली संभलपुर से बाबर के सामने आ खड़े हुए थे! तभी बाबन पठान ने अपनी पठान सेना खड़ी कर संभलपुर पर कब्जा कर लिया!

मलिक बाबन संभाली बाबर के साथ मिल कर पानीपत की जंग लड़ना चाहता था लेकिन बाबर ने उसे दुतकार कर भगा दिया था। सरहिंद से भाग कर संभाली ने संभलपुर को आ पकड़ा था और अब बाबर को ललकार रहा था।

बाबर ने बड़ी ही दूरदर्शिता के साथ शेख कुरीन और हिन्दूबेग को संभल पर काबू करने तथा हुमायू को कालपी-जौनपुर को कब्जे में लेने के लिए भेजा!

हिन्दुबेग और शेख कुरीन की तुर्क और मुगल फौजें जब गंगा पार कर रही थीं तभी एक मुगल सेनापति कुल 150 सैनिक लेकर संभल पर जा चढ़ा था। बाबान की सेना मुकाबले में आई थी लेकिन डट न पाई! इतना जौमदार आक्रमण था तुर्कों और मुगलों का कि बाबन भागता नजर आया था!

प्रमाण सामने आया था कि बाबर का खौफ चारों ओर छाया था। मात्र इशारों पर ही आगरा के आस पास के सभी जागीरदार और सेनापति बाबर के साथ आ जुड़े थे। धौलपुर, ग्वालियर, इटावा और संभल सब शांत हो गये थे। लेकिन दिल्ली को अफगानों ने मिलकर सुलतान महमूद लोधी को सोंपा था और मेवात के शाह खान मेवाती ने राणा सांगा के साथ मिलकर बाबर को आगरा से उखाड़ फेंकने का फैसला कर लिया था!

आगरा से कुल पचास मील की दूरी पर बयाना में बैठा निजाम खान बाबर को आंखों में घूर रहा था। बाबर ने तारदी बेग को हुक्म दिया था कि जाकर बयाना को पकड़े और आस पास के इलाकों को तहस नहस कर डाले। तभी निजाम खान का भाई आलम खान चुपके से तारदी बेग से आ मिला था और अपने भाई का साथ देने की एवज कुछ जागीर पाने का आग्रह किया तो तारदी बेग ने बाबर को बताया। बाबर ने आलम खान को साथ मिला कर निजाम खान को हराने का ऐलान किया।

कुल तीन सौ तुर्की और दो हजार हिन्दुस्तानी सैनिक लेकर बयाना पर तारदी बेग ने आक्रमण किया। निजाम खान अपनी चार हजार घुड़ सवारों की सेना और दस हजार पैदल सैनिक लेकर मैदान में आया और तारदी बेग तथा आलम खान को बंदी बना लिया।

लेकिन दुर्भाग्य वश तभी राणा सांगा ने आक्रमण कर बयाना को अपने कब्जे में ले लिया।

बाबर को गहरा सदमा लगा था! उसे विश्वास हो गया था कि उसका अगला मुकाबला अब राणा सांगा से ही होगा।

“हेमू कहां गुम हो गया?” एक दूसरी दुविधा थी जो बाबर को भीतर ही भीतर खाए जा रही थी। “इतनी खोज खबर के बाद भी हेमू कहां समा गया?” बाबर सोच ही न पा रहा था। “और अगर अबकी बार हेमू राणा सांगा के साथ मिलकर सामने आया तो ..?” बाबर के पास इसका कोई उत्तर न था!

बाबर को याद थी हेमू की ज्वाला बरसाती सतेज आंखें और उसके चेहरे पर धरा नूर! सम्राट ही लगा था उसे हेमू! और अगर सुलतान इब्राहिम तोपें देख कर डर न जाता तो हेमू ..?

हेमू के खयाल में खोई केसर ने सिंदूर से मांग भर कर अपने सुहाग की परमेश्वर से प्रार्थना कर रही थी। जैसे ही उसने माथे पर बिंदिया लगाने को हाथ उठाया था कि शीशे में उसे एक भयावह परछाई दिखाई दी थी। केसर डर से उछल पड़ी थी। लेकिन तभी उसकी मन की आंखों ने अपने प्रियतम को पहचान लिया था। वह मुड़ी थी और उसने देखा था हेमू को! बढ़ी हुई मूँछों के पार से हेमू का थका थका चेहरा न जाने उससे कौन से आग्रह करता लगा था!

“सा-ज-न! पछाड़ खा कर केसर हेमू की बाँहों में झूल गई थी। “मैं .. मैं मरी नहीं .. साजन!” सुबकियों के बीच से केसर कह रही थी। “मैं .. मैं जानती थी कि आप सा आएंगे जरूर! मैं मानती थी कि आप सा ..”

“तुम्हारी मन्नतों ने ही तो मना लिया अनिष्ट को, केसर!” हेमू धीमे से बोला था। “वरना तो बाबर ने ..?”

“क्या इतना खतरनाक है बाबर जो .. जो?” केसर अपनी जिज्ञासा को रोक न पाई थी। बाबर की वीरता की कहानियां भी तो आस पास ही हवा में तैरने लगी थीं!

“हवा है – बाबर!” हेमू की आवाज बेबस थी। “केवल हवा है केसर!” उसने पलट कर केसर को आंखों में देखा था। “मेरा मन तो हुआ था कि हाथी से कूद कर सामने घोड़े पर बैठे उस चांडाल का सर कलम कर दूं!” दांती भिच आई थी हेमू की।

“लेकिन ..?” अब प्रश्न केसर ने पूछा था। केसर को हेमू के कहे कृत्य की आशा थी – हेमू से।

“लेकिन महावत हाथी को ले उड़ा था!” हेमू तनिक सहज हुआ था। “शायद उसने ठीक ही निर्णय लिया था केसर! मैं मुगलों के बीचों बीच अकेला ही आ खड़ा हुआ था। इब्राहिम लोधी ने अपना हाथी रोक कर ..” आंखें छलक आई थीं हेमू की। “ओह केसर!” वह अब रो पड़ना चाहता था। “पागल ..! पागल – इब्राहिम! अभागा – इब्राहिम!”

“कहते हैं वो तो मर गया?” केसर पूछ बैठी थी।

“हॉं! मेरी आंखों के सामने ही तो मरा! बाबर की तोप का गोला हाथी को लगा और फिर जमीन पर आ गिरे इब्राहिम को तीरंदाजों ने तीरों से बींध दिया! उसके बाद मैं वहां नहीं था ..”

“बाबर ..?”

“उसकी आंख मुड़ी ही थी कि हम ..”

“महान सिंह तो बताता है कि आप सा की खोज में तो बाबर ने जहान ही खोद डाला है!” केसर की आंखों में आश्चर्य था।

“हम उसी के पीछे तो छुपे थे!” हेमू तनिक हंसा था। “कई बार तो ऐसा भी मौका आया केसर कि मैं अगर चाहता तो बाबर का सर कलम कर देता!”

“किया क्यों नहीं?” हंस कर पूछा था केसर ने।

“तुम्हीं मुझे कायर का करार दे देतीं?” हेमू भी हंस पड़ा था।

केसर ने मुड़ कर अपने श्रेष्ठ पति पुरुष को परखा था। आज पहली बार केसर को भी ‘हिन्दू चरित्र’ पर प्रश्न चिन्ह लगाने का मन हुआ था। क्या हिन्दुओं के मुगलों से युद्ध लड़ने के नियम ही गलत थे?

“लेकिन अब हम नए हथियारों से लड़ेंगे साजन!” केसर ने जैसे नई घोषणा की थी। “अब हम इन आताताइयों से ..” केसर को रोष चढ़ता लग रहा था।

“ठीक ही कह रही हो केसर!” हेमू सहज था। “हमें युद्ध के नियम बदलने ही होंगे!” उसने भी मान लिया था। “मैं तो मान बैठा हूँ केसर कि तोपखाने के बिना मैं न लड़ूंगा!” हेमू ने जैसे अपना ही वायदा दोहराया था।

तभी महान सिंह सामने आ खड़ा हुआ था!

“मैंने हाथी देखते ही समझ लिया था कि आप सा आन पहुंचे!” सांस साध कर महान सिंह बोल रहा था। “हे भगवान! म्हारा तो जनम सुफल हो गया!” उसने हाथ जोड़कर परमात्मा को याद किया था। “पण – सा! आप बचे कैसे?” महान सिंह पूछ ही बैठा था।

“बाबर की परछाईं बनकर!” सीधा उत्तर दिया था हेमू ने। “उसी के पीछे .. और उसी के आस पास थे हम! वरना तो कहीं और छिपना संभव कहां था?” हेमू हंस पड़ा था।

एक अलौकिक उल्लास उमड़ आया था और महान सिंह हेमू की महानता के नारे लगा रहा था!

मेजर कृपाल वर्मा

मेजर कृपाल वर्मा

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