जहिरउद्दीन मोहम्मद बाबर काबुल में बैठे विकट वीरानों में भटक रहे थे!

थके मादे पंछी की तरह वह समरकंद और फरगना हार कर यहां – इस वीराने में आ बैठे थे – अकेले! लेकिन बादशाह बनने का ख्वाब अभी भी उन्हें छोड़ कर न गया था! किसी न किसी तरह वह अब हिन्दुस्तान को ..

“लाहौर से आजम खान मिलने आये हैं!” बाबर को सूचना मिली थी।

जैसे सूरज निकला हो, बिजली कौंधी हो या कि कोई अजूबा घटा हो – ऐसा लगा था बाबर को। उसे लगा था जैसे अल्लाह ताला ने उसकी गुहार सुन ली थी – और ..

“या खुदा!” बाबर ने आसमान को निहार इबादत में हाथ फैलाए थे। “मेहर करना मालिक!” उसने प्रार्थना की थी।

बाबर समझ गया था कि आजम खान का आना क्या अर्थ रखता था!

“फरमाइये ..?” बाबर ने संकेत में पूछा था। वह जानता था कि आजम खान दिल्ली से हारकर भागा था और अब बाबर के लिए दिल्ली दूर नहीं थी।

“ज-ना-ब!” रोने लगा था आजम खान। “मैं .. मैं दिल्ली इब्राहिम से मिलने गया था कि ..” चुप हो गया था आजम खान।

“हुआ क्या?” बाबर ने संभल कर पूछा था।

“उस हिन्दू हेमू ने मेरे अफगान सिपहसालार मुबारक का सर काट दिया! उसका घोड़ा सर लेकर दौड़ गया! और फिर मुझे ..”

“फिर आप जान बचाकर किस तरह भाग निकले?”

“जी जनाब!” सुबकियां रोक ली थीं आजम खान ने। “आप .. माई बाप मदद करें! दिल्ली पर ..”

“आप साथ देंगे – हमारा ..?”

“जी जान से! तन मन धन से! मैं और पूरा पंजाब आपके साथ होगा! आपको डरने की कोई बात नहीं है! वह एक हिन्दू हेमू ही है जो मुसलमानों पर जुल्म ढाता है और ये इब्राहिम उसे ..”

आजम खान के बुलावे पर बाबर लाहौर चला आया था! लेकिन वह सीधा इब्राहिम लोधी से भिड़ना न चाहता था। वह चाहता था कि एक जनमत तैयार करे, सबसे मदद ले और फिर सोच समझ कर दिल्ली से टक्कर ले!

इब्राहिम लोधी के कानों पर भी झुनझुने बजने लगे थे!

गुप्तचरों ने एक एक सूचना ला कर दे दी थी। बाबर तोपें ले कर आया था। बाबर के पास तीर कमानों से लैस घुड़ सवार थे – जो कभी तैमूर के पास हुआ करते थे। और उसके पास ..

“जंग तो होगी!” इब्राहिम ने माथे पर उगी पसीने की बूंदों को पोंछा था। “लेकिन ..?” उसके पास प्रश्न ही प्रश्न थे – उत्तर न थे। मरता क्या न करता की हालत में फिर उसे एक ही नाम याद आया था – हेमू – जो हिन्दू था!

बुलावा आने से पहले ही हेमू को सारी स्थिति का ज्ञान था!

बाबर से भिड़ जाने का मन था हेमू का। लेकिन इब्राहिम लोधी को भी वह जानता था। हेमू के लिए ये एक मुबारक मौका था – बाबर को परास्त कर काबुल तक जाने का! लेकिन उसे आजादी कहां थी? हेमू का नाम आगे आते ही इब्राहिम को अपना साम्राज्य जाता दिखाई दे जाता था। अगर उसकी मजबूरी न होती तो अभी तक हेमू न जाने कहां होता?

“बाबर से लड़ोगे?” इब्राहिम लोधी ने हेमू से अटपटा सवाल पूछ लिया था।

“सुलतान का हुक्म होगा तब तो ..?” हेमू ने बड़ी ही चतुराई से उत्तर दिया था।

“लेकिन है क्या हमारे पास – बाबर से लड़ने के लिए?” इब्राहिम आज उलटा ही बोल रहा था।

“क्या नहीं है हमारे पास?” हेमू ने भी उलटा ही प्रश्न किया था।

इब्राहिम चुप था। वह हेमू को परख रहा था। वह डरा हुआ था और अपने डर को बाहर न आने देना चाहता था।

“मुझे बाबर से मुकाबला करना है और मुझे ..?” इब्राहिम लोधी ने अपनी फरमाइशें हेमू के सामने रख दी थीं। ये सब असंभव को संभव करने वाली शर्तें थीं। हाथी, घोड़े, सैनिक और साज सामान सब कुछ चाहिये था – इब्राहिम लोधी की मांग थी!

“सब कुछ मिलेगा आपको!” हेमू ने हंस कर स्वीकारा था। “आप के हुक्म की तामील होगी!” हेमू ने नारा जैसा दिया था।

एक बार फिर सुलतान इब्राहिम लोधी हेमू को हैरान परेशान आंखों से देखता रहा था।

लाहौर में रह कर बाबर ने सेना का पुनर्गठन किया था।

राणा सांगा से आई मदद और लाहौर की सेना को लेकर उसने इब्राहिम लोधी की विशाल सेना से लोहा लेने के लिए पूरी सूझ-बूझ से काम लिया था। बाबर के पास 24 तोपें थीं। तोपची सारे उस्मानिया के थे और वही तोपें दागना जानते थे। उसके पास पंद्रह हजार घुड़ सवार थे जिन्हें उसने तीरंदाज सैनिकों से लैस किया था और एक चलता फिरता तूफान बना दिया था। पांच हजार पैदल सैनिकों के साथ उसने लाहौर और राणा सांगा के सैनिक जोड़ कर एक अच्छी ढाल तैयार की थी – जो किसी भी हारते मोर्चे पर पहुंच उसे जिताने में समर्थ थी!

इब्राहिम लोधी को भी हेमू ने एक विशाल सेना का गठन कर के दिया था!

एक हजार हाथियों का बल लेकर और बीस हजार तुर्की रिसाला और बीस हजार अपना रिसाला लेकर वह पानीपत जा रहा था। उसके पास दस हजार पैदल सैनिक थे और एक ऐसा सूरा पूरा दल बल था जिसने बाबर की नींद उड़ा दी थी!

लेकिन बाबर एक बात से बहुत आश्वस्त था कि राणा सांगा और लाहौर उसके साथ थे! सुलतान इब्राहिम लोधी का चाचा ही उसके खून का प्यासा था! अब उसे केवल एक ही डर सता रहा था और वो था – हेमू और थे हेमू के रण बांकुरे हजार हाथी!

इब्राहिम लोधी ने मुड़ कर अपनी सेना को देखा था। अफगान थे, तुर्क थे, हिन्दू थे और थे नए नए सेना नायक! हेमू ने बड़ी ही चतुराई से सेना का गठन किया था। सुलतान इब्राहिम लोधी की बाछें खिल उठी थीं। अब उसका मन था कि वह बाबर को काबुल तक रोंदेगा और फिर तो ..

बाबर को भी जंच गया था कि अगर उसने बिना किसी चतुर रण नीति के इब्राहिम की सेना का मुकाबला किया तो पानीपत के उस खुले मैदान में उसकी छोटी सेना को तो हेमू के हजार हाथी ही समाप्त कर डालेंगे! अतः उसने एक सुरंग का निर्माण किया – एक ऐसी मासूम सुरंग जिसमें आक्रमण के लिए घुसना अनिवार्य था और अंत में तोपें लगी थीं जिनके साथ बैल गाड़ियां खड़ी थीं जिन्हें आपस में चमड़े के रस्सों से बांधा गया था! यह हाथियों को रोकने का उपक्रम था और फिर रोक कर उन्हें तोपों से उड़ाने की अटकल थी!

हेमू ने भी बाबर के बनाए इस चक्रव्यूह को समझ लिया था!

“इस युद्ध का एक ही निर्णायक पल है!” हेमू सुलतान इब्राहिम लोधी को बता रहा था। “और वह पल है जब हमारे हाथियों का हमला तोपों के सामने उस वक्त होगा जब हम उन तोपों की मार में होंगे! न पहले और न बाद में! वही पल है जब हमारा दल पूरी ताकत और तीव्रता से तोपों पर चढ़ जाएगा और उन्हें उठा फेंकेगा! तोपचियों को पैरों तले कुचल देगा और बैल गाड़ियों को फेंक चलाएगा! और फिर तो कितना ही बाबर का तीरंदाज रिसाला वाण बरसाए – सब व्यर्थ जाएगा! हमारी विशाल सेना के आगे ..” हेमू ने मुड़ कर सुलतान का चेहरा पढ़ा था।

“मेरा हाथी सबसे आगे होगा!” इब्राहिम ने अब शर्त रख दी थी। “मैं ही इस हमले को ..”

“लेकिन वो एक पल .. वो पल जिसकी मैं बात कर रहा हूँ – अगर हाथ से निकल गया सुलतान .. तो ..? हेमू ने खबरदार किया था इब्राहिम को। “मेरा हाथी आप से आगे हो! मैं आक्रमण का आरम्भ करूं और आप पूरा का पूरा पीछे से संभालें तो ..?”

“हमें मंजूर है!” इब्राहिम मान गया था।

एक तूफान जैसे पागल होकर टूट पड़ा था! चीखते चिंघाड़ते हाथियों का दल सूड़ें उठाये वायु वेग से बाबर की तोपों की ओर बढ़ चला था। दुश्मन के होश उड़ गये थे। बाबर दहला गया था। लोधियों की जीत निश्चित थी। कौन रोक सकता था उस तूफान को?

हेमू हाथी के हौदे में खड़ा हो गया था। उसे तोपें नजर आ गई थीं। वो पल आ पहुंचा था और ‘आक्रमण’! हेमू जोरों से चिल्लाया था! लेकिन तभी न जाने क्यों और कैसे सुलतान का हाथी रुक गया था। पीछे वायु वेग से आते हाथियों का समूह आपस में टकरा टकरा कर टूटने लगा था और तभी हॉं हॉं तभी बाबर की तोपों के मुंह खुल गये थे!

तोपों के गोलों और धनुर्धरों के तीरों के निशाना बने रुके झुके हाथी और भी जोरों से चीखने चिंघाड़ने लगे थे, मुड़ने लगे थे, भागने लगे थे ओर महावतों के हाथों से निकल विध्वंस पर उतर आये थे!

दुर्भाग्य से सुलतान के हाथी की छाती में तोप का सीधा गोला लगा था और वह पछाड़ खाकर जमीन पर सीधा जा गिरा था। सुलतान इब्राहिम लोधी ने उठकर भागने का प्रयत्न किया था लेकिन आती वाण वर्षा में फंस कर वो प्राण गंवा बैठे थे!

अपनी ही सेना को अपना ही विध्वंस करते देख हेमू ने आंखें बंद कर ली थीं! उसका अकेला हाथी तोपों के उस पार खड़ा था और उसके बारे में सब बे खबर थे!

लेकिन बाबर ने हेमू को देख लिया था!

मेजर कृपाल वर्मा

मेजर कृपाल वर्मा

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