“क्या था .. जो मेरे पास नहीं था?” एक लंबी सोच विमोच के बाद सुलतान इब्राहिम लोधी ने स्वयं से ही प्रश्न पूछा था। खतौली में हुई करारी हार कांटे की तरह चुभ रही थी उसे!
“हेमू ..!” एक छोटा सा बारीक उत्तर उसके दिमाग में टपका था!
आया उत्तर सुलतान इब्राहिम लोधी के सामने खड़ा ही रहा था। उसने इसे छूआ तक नहीं था। स्वीकारा भी नहीं था। और न ही इसे मानने का उसका मन था! ये उत्तर शायद उसके लिए खतौली में हुई हार से भी ज्यादा खतरनाक था। किसी भी सूरत में वह – हेमू को ..
“राजपूतों को मैं ही हराऊंगा – हेमू नहीं!” उसने एक लकीर खींच दी थी। “और .. और .. जल्द ही, बहुत जल्द मैं फिर राजपूतों पर हमला करूँगा!” उसने आंख उठा कर आसमान को देखा था। “धरा क्या है? एक राणा सांगा ही तो है! एक हाथ कट गया है .. टांग से लंगड़ा है .. बीमार है! अब ..?” तनिक हंसने की कोशिश की थी – इब्राहिम ने!
लेकिन तभी, उसी वक्त और उन्हीं अच्छे सच्चे पलों में इब्राहिम लोधी के सामने खतौली संग्राम का वही दृश्य जिसमें राणा संग्राम सिंह ने कटे बाजू और लंगड़ी टांग को संभालते हुए उसपर हमला किया था। वह हाथी के ऊपर बैठा था। वह देख रहा था कि आंधी के वेग से महाराणा घोड़े को दौड़ा रहा था और फिर उसने जो बरछे का वार किया था – वो ..? अगर वह हौदे में लेट न गया होता तो वह बरछा उसके आर पार हो जाता और ..
“ऐसा कमाल तो पहले कभी देखा ही नहीं!” इब्राहिम लोधी ने एक असमंजस को पीते हुए स्वयं से कहा था। “ये राणा सांगा – है तो बला का बहादुर और उसके ये जांबाज घुड़सवार? कैसे रोकेगा इस आंधी को ..?”
“हेमू ..!” फिर वही उत्तर आकर सामने खड़ा हो गया था।
इब्राहिम ने इस बार भी इस उत्तर को छूआ तक नहीं था!
लेकिन हॉं! उसने फौरन ही हरकारा भेज कर हेमू को आगरा बुला लिया था। वह चाहता था कि हेमू की जानकारी ले ले और पूछ ले कि लोग उसकी हार को कैसे देख रहे थे और खासकर उसके प्रतिद्वंदी अफगान और जलाल – उसका अपना भाई? और .. और हॉं! शहजादे की बंद भी तो छुड़ानी थी?
“लाहौर वाले बहुत खुश हैं!” सुलतान को सूचनाएं मिल रही थीं। “अब फिर से उन का मन है कि पंजाब ले लेंगे!” उनका मंतव्य भी सामने आ गया था।
“लेकिन मेरे जीते जी नहीं!” सुलतान ने भी स्वयं से वायदा किया था। “मैं सल्तनत को बांटूंगा नहीं!” उसने ऐलान जैसा किया था।
एक बारगी सुलतान इब्राहिम का टूटा सपना लहूलुहान हो उसके सामने आ खड़ा हुआ था। कितना हसीन था ये सपना? अगर वो युद्ध जीत गया होता तो .. अगर वो घड़ी – जब राणा सांगा का हाथ कटा था और तीर उसकी टांग में लगा था – चंद पल के लिए ठहर जाता .. और राणा का अंत आ जाता तो आज .. जय जयकार हो रही होती – इब्राहिम लोधी की! रह ही कितनी दूर गई थी फतह? लेकिन राणा सांगा न जाने किस मिट्टी का बना है ये आदमी?
हेमू आया था तो इब्राहिम को अच्छा सा लगा था!
“एक बार फिर लड़ूंगा इस राणा से!” हेमू का आदाब स्वीकारते हुए इब्राहिम ने कहा था।
“क्यों नहीं?” हेमू ने विहंस कर इब्राहिम के विचार को बड़ा किया था।
“दोगे – इस बार भी उतनी ही बड़ी सेना?” इब्राहिम ने सीधा प्रश्न पूछा था।
“उससे भी बड़ी!” हेमू का स्वर आश्वस्त था। “आपका हुक्म ..”
इब्राहिम लोधी प्रसन्न हो गया था। न जाने क्यों हेमू उसके मन की बात जान लेता था और उसके पास हमेशा ही हर मुसीबत का हल होता था! इब्राहिम का मन हुआ था कि हेमू से पूछ ले – राजपूतों से युद्ध जीतने का तोड़! पर वह रुक गया था। वह चाहता नहीं था कि हेमू को ..
“शहजादे कैद में हैं?” इब्राहिम ने प्रश्न सामने रक्खा था। क्या करें ..?”
“शर्तों पर ले आते है!” हेमू ने सीधा उत्तर दिया था।
“कौन लाएगा?” इब्राहिम ने भी सीधे सीधे पूछ लिया था।
हेमू चुप था। वह न बोला था। उसने कोई राय ही न दी थी। वह इब्राहिम का मुंह ताकता रहा था। वह कोई गलती करना ही न चाहता था।
“जाएंगे आप ..?” इब्राहिम लोधी ने एक लंबी सोच के बाद पूछा था।
“आपका हुक्म होगा तो ..” हेमू ने गंभीर होकर कहा था।
इब्राहिम लोधी मग्न हो गया था। वह समझ सोच कर ही हेमू को यह काम देना चाहता था। राजपूतों के पास हेमू को भेजना – खतरे से खाली न था! हेमू की ख्याति हर ओर फैल चुकी थी। राजपूत भी बेखबर तो न होंगे – वह जानता था। और फिर हेमू?
परेशान हो उठा था इब्राहिम लोधी! हर प्रश्न का उत्तर ही हेमू था – वो करता भी तो क्या?
“जलाल को कैसे हलाल करें?” इब्राहिम लोधी ने एक उलटा सवाल पूछ लिया था। वह सोच रहा था – हेमू के पास शायद इसका उत्तर न होगा। वह हंस रहा था!
हेमू ने इब्राहिम लोधी के दिमाग को पढ़ लिया था। उसे इस प्रश्न का उत्तर पहले से ही आता था। वह जानता भी था कि यह प्रश्न कभी भी उसके सामने आ सकता था। लेकिन हेमू ने आज सीधा उत्तर नहीं दिया था!
“वो आपके भाई हैं!” हेमू के स्वर विनम्र थे। “मैं तो ..”
“ग्वालियर वाली गलती मत करो हेमू!” इब्राहिम ने भी उसे वर्जा था। “जलाल हमारा कुछ नहीं लगता!” दो टूक बात की थी उसने। “इस कांटे को निकालो! बोलो कैसे?”
“कादिर को बता देते हैं!” सहजता से कहा था हेमू ने। “वह बिहार चला गया है। शेख शामी को आपने जागीर सौंप दी है। वो आपके वफादार हैं ..”
“कैसे कर पाएगा कादिर?”
“हम यहॉं से सेना कालपी भेजेंगे लेकिन असल तो कादिर पीछे से आ कर काम तमाम कर देगा!” हेमू अब सतर्क था।
“भरोसा रखते हो?”
“हॉं! पर ..”
“क्या?”
“कादिर को कुछ न कुछ तो देना ही होगा आपको!”
“वफादारों के लिए तो हम खड़े मिलते हैं! काम होने पर जो चाहे सो दे देना!” इब्राहिम हंस रहा था।
सब तय हो गया था और सब हेमू के ही हाथ में था!
“और .. ये .. राणा सांगा?” इब्राहिम से रहा न गया था तो पूछ ही लिया था। “बताओ – कहां, कैसे और कब परास्त करें राजपूतों को?”
“धौलपुर – एक ऐसा क्षेत्र है जहां राणा सांगा की आंधी उठेगी ही नहीं!” हेमू ने सोच समझ कर उत्तर दिया था। “उन बीहड़ों में – क्या दौड़ेगा कोई?” हंसा था हेमू। “और फिर ग्वालियर से तौमर हमें बड़ा सहारा देंगे! धौलपुर का किला अगर हम ठीक से उपयोग में ला सके तो यही हमें जंग जिता देगा!” हेमू ने अपने तर्क सामने रख दिये थे।
“लेकिन सेना ..? और ये जो लाहौर से सूचनाएं आ रही हैं ये?”
“एक ही उत्तर है सुलतान!” हेमू ने तुरंत कहा था। “सब को बुला लें – जंग में और शर्तों के साथ कहें कि – जंग हारे तो जागीरें जब्त! कह दें कि ये स्वयं अपनी अपनी सेना के साथ आएं और अपने अपने मिले मोर्चे संभालें! इससे सारे खतरे टल जाएंगे और आपकी जीत भी निश्चित हो जाएगी!” हेमू ने ठहर कर इब्राहिम लोधी की आंखों में घूरा था। “और जो अब तक धन माल की क्षति हुई है – मैं उसे भी पूरी कर लूंगा!” हेमू मुसकुरा रहा था।
“बहुत खूब! बेहद – सुंदर, उम्दा!” इब्राहिम कहता ही रहा था। “एक तीर से दो चिड़िया?” वह भी हंसने लगा था।
“जागीरें मांगते हैं – जंग में आते नहीं!” हेमू बड़ी ही सहजता से कह रहा था। “सल्तनत में अगर साझा है तो जंग में क्यों नहीं?” हेमू का अंतिम तर्क था।
“कांटे की बात है दोस्त!” इब्राहिम लोधी प्रसन्न होकर उछल रहा था। “अब हम जंग जीतेंगे!” उस ने फिर से ऐलान किया था।
“अब वक्त आप अपनी सहूलियतों से मुकर्रर कर लें!” हेमू का निवेदन था। “मुझे आप जब भी आदेश देंगे .. मैं ..”
हेमू ने अपनी पूरी बात कह दी थी!
इब्राहिम लोधी के दिमाग पर अभी भी एक वजन बैठा था! वह उसे हेमू के सामने उगलना नहीं चाहता था। लेकिन अब उसे कोई और चारा दिखाई न दे रहा था। उसने न जाने क्यों अपने मन में ही हेमू से हार मान ली थी!
“शहजादे को बंद से छुड़ा कर कब लाओगे?” इब्राहिम ने पूछ ही लिया था!
“जब आप का हुक्म हो तब!” हेमू ने हंस कर कह दिया था!
हेमू आज फिर इब्राहिम लोधी के बहुत समीप आ गया था!
मेजर कृपाल वर्मा