“तुम ही तो मेरे विक्रम जीत हो साजन!” केसर की आवाजें थीं, आग्रह थे, प्रोत्साहन था और उसकी आंखों में समाई आकांक्षा की महक थी, एक सुखद भविष्य था – एक साम्राज्य का जिसे हेमू ने पहली बार देखा था! उसे आश्चर्य तो हुआ था .. लेकिन आज का विश्वास ..?
“मुझे हिन्दू राष्ट्र चाहिये!” गुरु जी के स्वर थे। उन स्वरों में आक्रोश था, उलाहना था और था मर मिटने वाला एक आग्रह! “जानते हो कृष्ण ने क्या कहा था?” गुरु जी ने पूछा था। “नपुंसक न बनो पार्थ!” उन्होंने स्वयं उत्तर दिया था। उसे फटकारा था – उन्होंने। “राम को राज्याभिषेक के स्थान पर क्या मिला था – जानते तो हो!” उन्होंने फिर से पूछा था। “चौदह वर्ष का वनवास!” स्वयं ही उत्तर दिया था उन्होंने। “कृष्ण का तो जन्म ही कारावास में हुआ था!” वह कहते रहे थे।
कैसे कैसे आदर्श थे ये जो उसे बार बार बुला रहे थे, लुभा रहे थे और कह रहे थे कि वो संघर्ष करे तो! हेमू भी अब उठ खड़ा होना चाहता था लेकिन कोई रास्ता सामने होता तभी तो?
अचानक ही तोपों का लगाया कारखाना और पुर्तगालियों के साथ हुई दोस्ती दो संदर्भ सूत्रों की तरह उसकी उंगलियों में फंस खुजली करने लगे थे!
पुर्तगाली – वास्कोडिगामा और कोलंबस पुर्तगाल से समुद्री मार्ग द्वारा भारत पहुंच गये थे। यहां आ कर उन्होंने व्यापार, कारखाने और न जाने क्या क्या खड़ा कर दिया था! गजब के कर्मठ लोग हैं, लड़ाके हैं, व्यापारी हैं, राज नेता हैं और बला के दूरदर्शी हैं! ये लोग बेशुमार धन कमा रहे हैं! और .. और पुर्तगाल कहां से कहां ..
व्यापार – हेमू की आंखों के सामने कई पलों तक खड़ा रहा था। इन पुर्तगालियों के साथ मिलकर व्यापार और अफगानों का सामना? एक सहयोग के साथ एक मोर्चा खड़ा करना? और धन भी तो एक अस्त्र है! व्यापार भी तो एक संग्राम है! पहला कदम – गुप्त – परम गुप्त – अपने ही देश में वेश बदल कर ..?
अब प्रसन्न था हेमू .. उसे रास्ता सूझ गया था!
केसर ने हेमू के खुले खिले चेहरे को आज बड़े दिनों के बाद देखा था।
“कौन सा किला फतह किया है आज?” केसर हेमू की बलैयां ले रही थी। अपने कामना पुरुष की प्रशंसा कर रही थी। “कहो न साजन ..?” उसका आग्रह था।
हेमू हिचक रहा था। कहीं केसर उसकी खिल्ली न उड़ा बैठे – उसे भय था। और यह व्यापार का रास्ता साम्राज्य की ओर जाता भी था या नहीं – अभी कोई निश्चित न था।
“हम व्यापारी बनेंगे केसर!” हेमू कह बैठा था।
“क्यों ..?” केसर का तुरंत प्रश्न आया था।
“हमें सम्राट जो बनना है!”
“लेकिन वो कैसे?”
“धन भी तो एक अस्त्र है – अमोघ अस्त्र!”
“हॉं – तो ..?”
“व्यापार भी एक संग्राम है?”
“हॉं! है तो ..?”
“पहले धनवान हो जाते हैं, फिर बलवान हो जाते हैं और फिर सम्राट!”
“ओ साजन ..!” चहकी थी केसर। “ये मारा पापड़ वाला। अब आयेगा आनंद!” केसर उल्लसित थी। मानो आज उसे मन की मुराद मिल गई हो – वह मतवाली हो गई थी।
दिल्ली के राय पूरन दास के गोदाम शोरे से खचाखच भरे थे। व्यापार जोरों पर था। धन की वर्षा हो रही थी।
“हुमायू गुजरात के सुलतान बहादुर शाह पर हमला करेगा!” अब्दुल ने आते ही बताया था।
“तो हमें क्या लाभ?” हेमू ने भी पूछ लिया था।
“चल कर उसे तोपें बेच देते हैं!” अब्दुल का सुझाव था। “अब तो ओने पोने भी खरीद लेगा!” हंसा था अब्दुल। “मौका है। चलते हैं?”
“चलते हैं!” हेमू ने तुरंत स्वीकार कर लिया था।
और आज पहली बार पंडित हेमचंद्र शोरे वाले अब्दुल के साथ गुजरात व्यापार करने निकल पड़े थे!
केसर ने हेमू के दमकते ललाट पर चंदन का सफेद टीका लगाया था। उसने भी महसूसा था कि हेमू एक आकर्षक युवक था और सुलझा व्यापारी लग रहा था! केसर ने हेमू के पैर छूए थे।
“जनाब! ये हैं पंडित हेमचंद्र शोरे वाले!” अब्दुल ने सुलतान के साथ हेमू का परिचय कराया था। “आपकी सेवा में एक नायाब सौगात लेकर आये हैं!” अब्दुल बता रहा था।
सुलतान बहादुर शाह ने पंडित हेमचंद्र शोरे वाले को अपांग देखा था!
बेहद आकर्षक पुरुष था ये शोरे वाला। उसके माथे पर लगा सफेद चंदन का टीका कुछ इस अदा के साथ लगाया गया था – मानो वह जगत गुरु हो! सुलतान बहादुर शाह बहुत प्रभावित हुए थे। उन्हें लगा था जैसे खुदा का भेजा हुआ कोई फरिश्ता था और कोई खुश खबरी लेकर उनके दरबार में हाजिर हुआ था!
“क्या सौगात लाए हैं?” सुलतान ने पूछा था।
“तोपें!” हेमू ने संक्षेप में उत्तर दिया था।
बहुत देर तक सुलतान बहादुर शाह हेमू को देखता ही रहा था। उसे समझ ही न आ रहा था कि वह युवक था कौन और वह चाहता क्या था?
“दिल्ली में खबरें चल पड़ी हैं जनाब कि हुमायू का हमला अब गुजरात पर होगा!” अब्दुल ने बात संभाली थी। “और पंडित जी चाहते हैं कि आप की खिदमत में तोपखाना नजर करें ताकि आप मुगल सेना को करारा जवाब दे सकें!”
एक बार फिर से सुलतान बहादुर शाह सकते में आ गया था। ये कुछ नया ही सौदा था – उनका मन तो न जाने कब से था कि तोपखाना बना लें लेकिन कोई सूरत ही सामने न आई थी लेकिन अब .. आज .. और वो भी हुमायू के हमले से पहले ..
“शर्तें ..?” सुलतान बहादुर शाह ने अब अब्दुल से ही पूछा था।
“कीमत पहले ही अदा करनी होगी सुलतान! एक बैटरी का हम ..”
“हमें मंजूर है!” सुलतान ने अब्दुल की बात मान ली थी। “लेकिन शिनाख्त ..?”
“दिल्ली में पंडित जी के गोदाम हैं .. और तोपों का कारखाना ..”
सुलतान बहादुर शाह एक नई उमंग से भरा उछलने लगा था! एक बारगी उसे अब हुमायू का भय न सता रहा था। वह भी अब मुगलों से लोहा ले लेना चाहता था। और अगर उसके पास तोपखाना आता है .. तो ..
शाही मेहमानों का खूब आगत स्वागत हुआ था।
“वायसराय सेमूल सूरत आये हुए हैं!” अब्दुल के पुर्तगाली मित्र ने सूचना दी थी। “चाहें तो सूरत आ कर मुलाकात कर लें?” उसका सुझाव था।
हेमू ये मौका छोड़ना न चाहता था। वह तो चाह ही रहा था कि किसी तरह से पुर्तगालियों के साथ धड़ा बन जाये। अतः वो दोनों सूरत जा पहुँचे थे और उनका वायसराय से मुलाकात का समय तय हो गया था।
“हिन्दू हैं ..?” वायसराय का पहला प्रश्न था। वह हेमू के रूप स्वरूप को देख कर बहुत प्रभावित हुआ था।
“जी ब्राह्मण हूँ!” हेमू ने उत्तर दिया था।
“पुर्तगालियों से दोस्ती करेगा?”
“क्यों नहीं!” हेमू ने तुरंत मान लिया था।
उसके बाद तो कहानी बनती ही चली गई थी। तुर्की से घोड़ों को लाने का सौदा भी तय हो गया था। बदले में नकदी के बजाय माल देना तय हुआ था। और फिर अब्दुल ने सुलतान बहादुर शाह को तोपें बेच कर पूरा साज सामान और उसकी शिक्षा सब पुर्तगालियों के सर डाल दी थी।
मेजर कृपाल वर्मा