शहंशाह शेर शाह सूरी का कलाकृति को पा लेने का सपना महोबा की गलियों में कहीं बिखर गया था।
दो माह होने को थे लेकिन अभी तक महाराजा कीरत सिंह की सेनाएं मुकाबले के लिए नहीं पहुंची थीं। सुलतान की उम्मीद के खिलाफ उनका कोई संधि संदेश भी नहीं पहुंचा था। उनकी आशा के विरुद्ध उन्हें कोई अर्थ लाभ होने की उम्मीद भी जाती लग रही थी।
आती जासूसों की खबरें भी बड़ी ही भ्रामक थीं।
पैदल पहुंचे सैनिकों का फतेहपुर में अजीब ही हाल था। जहां शेख, उलेमा और मिर्जा और उनके सेनापति लूटमार कर माला माल होने के सपने संजो कर आये थे वहीं उनके रसद राशन तक लुट गये थे। जंगलों से अचानक प्रकट हुए भील, गोंड और आदिवासी उनपर टूट पड़ते और लूटमार कर गायब हो जाते। यही हाल घुड़सवार सेना का था। उनके तो सत्रह घोड़े तक गायब थे और उनके सवारों की हत्याएं हो गई थीं। महोबा से भी बीस हाथी चुरा लिए गये थे .. और
आती रसद राशन की खेपें रास्ते में ही लुट गई थीं।
सुलतान शेर शाह सूरी ने क्रोधित होकर कालिंजर किले की घेरा बंदी के फरमान जारी किये थे!
पंडित हेम चंद्र को ध्यान में रख कर सुलतान ने अब किले की घेरा बंदी भी उसी क्रम में आरम्भ की थी और हाथी, घोड़े और पैदल सैनिकों को एक जुट कर इस तरह मोर्चा बंदी की थी कि कीरत सिंह हर हाल में समर्पण करेगा और उस हालत में सुलतान शेर शाह सूरी ने अपनी शर्तें रखनी थीं। उसके उपरांत महाराज कीरत सिंह को दंड भी देना था। और फिर अंत में राजपूतों का कत्लेआम होना था और राजपुतानियों को ..
तोपों के चार दस्तों को चारों ओर लगा कर किले पर गोलाबारी आरम्भ हो चुकी थी। अब उम्मीद थी कि महाराजा कीरत सिंह बिल बिला कर बाहर आयेगा और ..
लेकिन दो दिन लगातार बमबारी करने के बाद भी कोई किले से बाहर नहीं आया था। हॉं! शाम होने के बाद युद्ध विराम की बेला में नित्यप्रति किले में होती पूजा के स्वर सबको सुनाई देते थे। मंत्रोच्चार की ध्वनि और भोले की जयजयकार बोलते लोग अंत में होती शंख ध्वनि से सारा किला और कांतार गूंज उठता था!
सुलतान शेर शाह सूरी को होती आरती के ये पल बेहद असह्य हो उठते थे! उन्हें लगता था कि हिन्दू उन्हें चिढ़ा रहे थे, सता रहे थे और एक अनाम सी चुनौती उन्हें भेज रहे थे जबकि वो असहाय से उन उलाहनों को बरदाश्त करने में असमर्थ थे लेकिन ..
अल्लाह हू अकबर के उनके अजान के स्वर कहीं कालिंजर की कोख में समा जाते और कोई उत्तर लौटा कर न लाते।
लगता जैसे पहली बार सुलतान शेर शाह सूरी ने इस तरह की हिन्दू मुसलमानों का मुकाबला देखा था। चूंकि अब उनकी फौज में केवल मुसलमान ही थे अत: हिन्दू भी गोल बना कर अब उनके सामने आ खड़े हुए थे। कोई था तो जिसने हिन्दुओं को एक कर लिया था और ..
क्या ये पंडित हेम चंद्र की कोई चाल थी?
“नहीं! उसने तो मरना है, शायद मर भी गया हो!” खुश होकर सुलतान ने स्वयं को बताया था।
“चार बोरा बाजरा के लिए आप दिल्ली दे बैठते!” अचानक शहंशाह शेर शाह सूरी को पंडित हेम चंद्र के स्वर सुनाई देने लगे थे। “क्या धरा है यहां मारवाड़ में?” उनका कहना था। “इज्जत बचाते हैं और चलते हैं!” उनकी राय थी।
लेकिन अब क्या हो? सुलतान स्वयं सोचने पर मजबूर थे। यहां तो चार बोरा बाजरा भी नहीं था और सुलतान अपनी पूरी सल्तनत का सौदा कर बैठे थे।
“पंडित को बुलाओ!” शेर शाह सूरी ने रोष में आकर आदेश दिये थे। “जिंदा व मुर्दा उसे लेकर आओ!” फरमान शेर शाह का था।
दिल्ली की ओर घोड़े दौड़ पड़े थे।
“बुरा हाल है शेर शाह का!” कालिंजर से फरमान लेकर आया माहिल हेमू को बता रहा था। “अब आकर आपकी याद आई है।” तनिक हंसा था माहिल। “ये सोच रहा था कि सारी फतह, कामयाबी और करतब इसी के किये थे!” व्यंग था माहिल की आवाज में। “अबकी बार नानी याद आ गई बच्चू को!” हंस रहा था माहिल। “सच सुलतान! इतना बुरा हाल तो शायद ही कभी किसी का हुआ हो। शाही फौज के सैनिकों का वध हो रहा है – सरेआम।” माहिल कहता ही जा रहा था। “और कालिंजर ..”
“मेरे लिए क्या फरमान लाए हो?” बड़े ही सहज स्वभाव से पूछा था हेमू ने।
“जिंदा या मुर्दा – पंडित हेम चंद्र को पेश करो!” अब गंभीर था माहिल। “मैं .. मैं तो हुक्म का गुलाम हूँ सुलतान! लेकिन ..” वह रुक गया था।
हेमू को लगा था कि ये सामने बैठा माहिल नहीं साक्षात उसकी मौत ही थी।
“चलते हैं!” हेमू ने चहक कर कहा था। वह अपने मनोभाव छुपा गया था। “कालिंजर तो चीज ही क्या है?” हेमू की आवाज में एक उत्कर्ष था। “देखते हैं ..”
माहिल आश्चर्य से हेमू का मुंह ताकता रहा था।
माहिल के जाने के फौरन बाद ही अंगद चला आया था। अंगद का चेहरा फूलों सा खिला था। हेमू उसे देख कर तनिक अचंभित हुआ था। मन में भरा विषाद और मौत का भय उसे तनिक हल्का हुआ लगा था।
“पुर्तगाली लोग पधारे हैं!” अंगद ने शुभ सूचना दी थी। “मिलना चाहें तो ..?” अंगद ने पूछा था।
“ये क्या ..?” हेमू ने स्वयं से पूछा था। “मौत के पीछे जिंदगी चली आ रही है?” वह तनिक सा हंसा था। “ये कैसा विचित्र संयोग है ईश्वर!” हेमू ने परमात्मा को याद किया था। “क्यों नहीं?” फिर उसने अंगद से कहा था। “बुलाइये उन्हें!” हेमू ने मिलने की स्वीकृति दे दी थी।
बड़ी ही गर्मजोशी के साथ मिले थे हेमू और पुर्तगाली!
बड़ी ही विस्तार से बातें हुई थीं। पुर्तगालियों का मकसद भी वही था जो मुसलमानों का था। हेमू समझ रहा था कि हिन्दुस्तान हर किसी को चाहिये था। भूखा मरता विश्व अब हिन्दू भारत को लूटने चला आ रहा था।
“गुजरात हमारा होगा!” पुर्तगालियों की सीधी मांग थी।
“काम होने पर मैं हाथ न रोकूंगा!” हेमू ने भी वायदा दे दिया था।
स्वीकृति और सलाह मशविरे के लिए तनिक वक्त चाहिये था – दोनों पक्षों को। पुर्तगालियों को कहीं शर्तें मंजूर तो थीं पर ..
“विश्वासघात ..” हेमू के दिमाग में स्वतः ही प्रश्न उठ खड़ा हुआ था।
“चौहान की चाल पर चलोगे तो तुम भी जान गंवा बैठोगे सुलतान!” ये इतिहास की दी चेतावनी थी। “राणा सांगा को ही देख लो? देख लो – आंखें खोल कर देख लो मुसलमानों के चरित्र को! कालिंजर की फतह के बाद फौरन ही बादशाह ने तुम्हारा सर मांग लेना है! और अगर पुर्तगालियों से बात बनती है तो जिंदगी ही नहीं जन्नत भी मिलेगी! इस कांटे को निकाल फेंको सुलतान!” इतिहास आज स्वयं आदेश दे रहा था उसे। “इसके बाद तो है कौन तुम्हें हाथ देने वाला हिन्दुस्तान में?”
“चूकिये मत सुलतान!” अंगद की भी यही राय थी।
“बैरी है हमारा शेर शाह सूरी!” केसर ने भी साफ साफ कहा था।
और पुर्तगालियों ने भी हेमू की सारी शर्तें स्वीकार कर ली थीं।
माहिल कालिंजर लौटने की जल्दी में था। लेकिन पहली बार उसकी समझ में सुलतान हेमू का किया वायदा न आया था। “पंडित बीमार है .. मरने वाला है!” यह खबर तो हर किसी के पास थी। लेकिन अब जब पंडित हेम चंद्र को युद्ध के मैदान में आया देख लोग क्या सोचेंगे ..
“मेरा ये खत आप शहंशाह को दे दीजिए माहिल!” हेमू कह रहा था। “इसमें लिखा है – फतह आपके पास पहुंच रही है! बुंदेलखंड के खंड खंड होकर बिखर जाएंगे! इंशा अल्लाह आपका रुतबा रहेगा और मेजर डिसूजा और कैप्टन लॉरेंस आपके साथ आ रहे हैं! ये दोनों सुलतान को ..” हेमू ने माहिल के कठोर हो आये चेहरे को पढ़ा था। “आप चिंता न करें! ये दोनों महान पुरुष बारूद के खेल में पारंगत हैं! कालिंजर तो क्या .. जरूरत पड़ी तो ये दोनों ..” हंस गया था हेमू।
माहिल ने एकबारगी हेमू के चालाक चेहरे को पढ़ा था। वह भी कहीं प्रसन्न था। जाते जाते वह भी हेमू को सलाम ठोकना न भूला था।
“आप भारत के सम्राट अवश्य बनेंगे सुलतान!” अंगद भी बोल पड़ा था।
और केसर ने प्रसन्न होकर उस दिन हेमू के साथ मिल कर राग मेघ मल्हार गाया था।