“फिर बनाओगे चूहे को शेर, साजन ..?” दरबार जाने के लिए तैयार खड़े हेमू से केसर ने पूछ लिया था।
दप दप जलते केसर के दैदीप्यमान मुखमंडल पर एक अमर आभा को हेमू ने खेलते देखा था। केसर के होंठों पर हंसी धरी थी। आंखों में व्यंग था। केसर की आवाज में गूंजता उलाहना भी हेमू ने सुना था और अगली गलती करने से पहले की हिदायत भी सुन ली थी।
हेमू ने पलट कर केसर की आंखों में घूरा था। लेकिन वह चली गई थी। दस्तक हुई थी। शायद कोई मिलने चला आया था।
केसर के प्रश्न ने जैसे हेमू के जेहन में बैठे पूरे ब्रह्माण्ड को हिला दिया था।
अचानक ही प्राण त्यागते सिकंदर लोधी और और उसकी लाश पर लड़ते उसके दोनों बेटे हेमू के सामने आ खड़े हुए थे।
“मुझे जलाल का सर चाहिये?” इब्राहिम लोधी का ऐलान उसने सुना था।
इब्राहिम लोधी को, उस अनाड़ी को, उस बुजदिल जल्लाद को और घोर स्वार्थी इब्राहिम लोधी को हेमू ने अपने दम पर उठाया था। एक अजेय सेना को उसने संगठित किया था और इब्राहिम के बैरी हुए अफगानों का संहार किया था। और .. वो पानीपत का मैदान जब वह बाबर को परास्त करने ही वाला था तो उस कायर इब्राहिम ने ही अपना हाथी रोक दिया था।
“मरते मरते बचे जनाब!” हेमू का अंतर हंस पड़ा था। “पराई आई में अपनी जान जाने को थी लेकिन ..”
और फिर छुप छिपा कर किसी तरह बाबर की आंख में धूल झोंक कर वह फरीद खान के पास पहुंचा था। फिर फरीद खान को शेर खान बनाया, फिर उसे शेर शाह सूरी बनाया ओर फिर उसे ..
“क्या खा कर जीत लेता हुमायू को वो फरीद खान? अगर तुम न होते हेमू तो ये सूरी तो भाग लेता। हाहाहा! डरपोक ..। लेकिन .. जालिम, छलिया, नराधम, बेईमान और ..”
और पूरे भारत वर्ष में खुले घूमते ये अफगान, मुगल, तुर्क और बलूची हिन्दुओं को काफिर मान कर जानवरों की तरह उनका शिकार करते हैं। लूट-पाट करते हैं, नरसंहार करते हैं, औरतों की लाज लूटते हैं ओर धन माल के भूखे हैं। शेर शाह सूरी के मरने के बाद अब हर अमीर उलेमा फिर से अपनी जागीरें आबाद करेगा, फिर से सैन्य शक्ति बढ़ाएगा और फिर से इन्हीं में से कोई एक शहंशाह बन बैठेगा और ..
फिर वही मिटाएगा हिन्दुओं को, उनकी संस्कृति को, उनके समूचे वजूद को और बनाएगा भारत वर्ष को एक इस्लाम देश। यही तो अंतिम फरमान है फारस का और खुरासान का ..
फिर हेमू ने महसूसा था कि शेर शाह सूरी के मरने के बाद एक सांस तो आ ही गई है। शायद यही एक सांस लुटने पिटने के बाद जान बचाने का एक मौका बन जाए? देश को इन दानवों के चंगुल से आजाद करने का अवसर आ गया है शायद .. और .. शायद ..
“अब पहले वाली गलती नहीं करूंगा केसर!” हेमू ने जैसे वचन भरा था केसर से।
अंगद आ गया था।
खबर थी कि दोनों भाइयों की ठन गई थी। दोनों की सेनाएं अब आमने-सामने थीं। पूरे के पूरे अफगान, मुगल, तुर्क और बलूची दो खेमों में बंट गये थे। इस्लाम शाह सूरी को अब अपनी गद्दी जाती लगा रही थी।
“आप के बिना तो ये अवश्य हारेगा!” हंस गया था अंगद। “खबस खान के सामने इन में से टिकेगा कौन?” अंगद का अनुमान था। “अब आप का हुक्म ..?” अंगद ने पूछा था।
“लड़ते हैं!” हेमू ने भी हंसते हुए कहा था। “इस बार अगर सांपों को अगर सांपों से लड़ाते हैं और लड़ने देते हैं जब तक कि ..?”
“सही रहेगा सुलतान!” अंगद प्रसन्न हो उठा था। “बात बिलकुल सही है।” उसने भी हामी भरी थी। “ये सगे तो किसी के नहीं हैं!” उसने भी बात को स्पष्ट कर दिया था।
हेमू दरबार के बुलावे पर चला जा रहा था।
“तबीयत कैसी है आपकी?” इस्लाम शाह सूरी ने हेमू से पहला प्रश्न पूछा था। वह चाक-चौबंद हेमू को देख कर दंग रह गया था। उसे शक हुआ था कि कहीं हेमू ..
“मरते मरते बचा लिया चूड़ामन शास्त्री ने!” हेमू ने तनिक सकुचाते हुए उत्तर दिया था। “जीने की आस ही छोड़ बैठा था मैं तो!” वह बता रहा था। “लेकिन देव योग देखिये ..”
“चूड़ामन शास्त्री ..?” इस्लाम शाह सूरी का शक शांत न हुआ था।
“श्रंगेरी से आये हैं!” हेमू ने उत्तर दिया था। “प्रकांड विद्वान हैं और आयुर्वेद के ज्ञाता हैं। मैंने उनसे अनुरोध किया है कि वो आप की खिदमत में .. मेरा मतलब है कि हमारे नवरत्नों में शामिल हो जाएं!”
इस्लाम शाह का दिमाग घूम गया था।
“जानते नहीं पंडित जी आप कि आदिल शाह ने बगावत कर दी है?” इस्लाम शाह ने मुद्दे की बात की थी। “हमने तो उसे जागीर अता की थी लेकिन अब वो तो दिल्ली मांग रहे हैं?” हैरानी हो रही थी इस्लाम शाह को। “मैंने करीम खान को ..”
“यह जानते हुए भी कि आदिल के साथ खबस खान भी विद्रोह में शामिल हैं?” हेमू का प्रश्न था।
चौंक पड़ा था इस्लाम शाह। खबस खान की खबर पाते ही वह घबरा गया था। खबस खान को कौन नहीं जानता था? फिर उसका आदिल शाह के साथ आना खतरे की घंटी जैसा था।
“राजा महेश दास को भेजिये!” हेमू ने तुरंत ही सुझाव सामने रक्खा था।
“लेकिन वो तो हिन्दू है!” इस्लाम शाह ने आपत्ति खड़ी की थी।
“और खबस खान मुगल है।” हेमू ने भी तुरप लगा दी थी। “और उसका एक सेनापति – मुरीद पठान करीम खान का मामा है।” हेमू ने इस्लाम शाह को कांटे की सूचना दी थी। “आप स्वयं समझ लें कि अपने पराये का आज कोई मोल नहीं है!”
“लेकिन करीम ने तो कसम उठाई है कि वह ..” इस्लाम शाह सूरी ने सच उगला था।
“झूठ बोल रहा है। ये दगा देगा आपको!” हेमू ने तर्क किया था। “आप जानते हैं कि मेरे रहते हुए शहंशाह शेर शाह सूरी एक भी युद्ध नहीं हारे। यहां तक कि हमने हुमायू को देश निकाला देकर ही दम लिया और ..”
“महेश दास ..”
“भरोसे का बहादुर है! खबस खान और आदिल शाह दोनों को बंदी बना कर आपके सामने ..”
“बहुत खूब पंडित जी!” निहाल हो गया था इस्लाम शाह। “मेरे मन की मुराद भी यही है और मैं चाहता हूं कि इन दोनों को ..”
“मैं हूँ न! आप की हर मुराद पूरी करूंगा।” हेमू ने आश्वासन दिया था।
अब महा प्रसन्न था इस्लाम शाह सूरी। उसे हेमू पर भरोसा था। वह तो जानता था कि शेर शाह सूरी के लिए हर मोर्चे पर फतह लाने वाला पंडित हेम चंद्र ही तो था।
और वह चुपके से दिल्ली छोड़ ऐश फरमाने आगरा निकल गया था।
लेकिन गजब तब हुआ था जब आदिल शाह और खबस खान ने उसे आगरा में ही आ पकड़ा था। भारी सेना और दबे पांव आ कर उन्होंने अइयाशियों में डूबे इस्लाम शाह को अकेले में ही आ पकड़ा था। हमला हुआ था – जोर शोर के साथ हमला हुआ था लेकिन तीन दिन से इस इस आने वाले हमले का इंतजार करते हुए बैठे राजा महेश दास ने जब इनके आक्रमण का उत्तर दिया था तो उन दोनों के पास जान बचाकर भागने के सिवा कोई चारा ही न बचा था।
उस आक्रमण करती भारी सेना का संहार राजा महेश दास ने बड़े ही करीने से किया था। ये भी हेमू के ही आदेश थे।
“जौनपुर से खबर है कि ..” इस्लाम शाह सूरी ने हेमू को सूचना दी थी।
“कालपी को कह दिया है कि उसे कुचल दे!” हेमू ने तुरंत उत्तर दिया था।
इस्लाम शाह सूरी अति प्रसन्न हुआ था। अचानक ही उसे पूरे भारत देश पर अपना परचम फहराता दिखाई दे गया था।
“बंगाल से लेकर काबुल तक सब धधक उठा है।” अब हेमू ने इस्लाम शाह सूरी को सूचित किया था। “मुगल मान नहीं रहे हैं!” वह बता रहा था। “लेकिन आप निश्चिंत रहिए! मैंने अब मुगलों को देश में घुसने ही नहीं देना है!” हेमू का वायदा था।
इस्लाम शाह सूरी ने हेमू – पंडित हेम चंद्र को अपना सलाहकार, अपना सिपहसालार, अपना संरक्षक और अपना रहनुमा – सब कुछ मान लिया था।