बख्शी-ए-मलिक पीर मुनीर का आना एक खास मकसद का संकेत था। उनका आना तभी होता था – जब सल्तनत में भारी उथल-पुथल होनी होती थी। चूंकि अब ग्वालियर पर हमला होना था अतः सभी तैयार थे आदेश लेने के लिए!
सूरज के उगते ही मेला जैसा भर गया था। सल्तनत के सभी प्रांत प्रदेशों से शाही फरमान लेने के लिए नुमाइंदे पहुंचे हुए थे!
कहां से कितने कितने हाथी पहुंचे थे – अभी तक गिनती हो रही थी।
अपने दो सौ हाथियों का जत्था तैयार था। बाकी जत्थे बाहर से आने थे। कुछ पहुंच गये थे, कुछ पहुंचने वाले थे। कुल मिलाकर दो हजार हाथियों की सेना ग्वालियर फतह के लिए रवाना होनी थी!
“आप सारी जानकारी ले लें। बादशाह आप से हर मामले में पूछेंगे!” पीर मुनीर ने हेमू को सतर्क किया था। “जहां शक हो मुझे पूछ लें!” उन्होंने हंसकर कहा था।
दो हजार हाथियों की सेना! दो हजार हाथियों की सेना का सेनापति!
हेमू ने पाया था कि सब कुछ पूर्व निर्धारित था। किसके कितने हाथी जाने थे – सब को बता दिया गया था। हस्ती और हैसियत के हिसाब से सल्तनत के खिदमतगारों को हाथियों के जत्थे भेजने थे। इन जत्थों का पूरा खर्च, खाना सब भेजने वाले का जिम्मा था। जो दो सौ हाथी सल्तनत के थे केवल उन्हीं का खर्चा शाही खजाने से जाना था!
हाथियों की सेना के लड़ने का पूरा साज सामान तैयार था। हेमू ने उसका निरीक्षण किया था। था तो बड़ा ही जिम्मेदारी का काम अतः हेमू जुट गया था पूरी जानकारी जुटाने में। हाथियों के ओहदे से लेकर अंकुश तक और सजावट से लेकर शराब तक सब कुछ गिनती में शुमार था।
शाही सवारी के लिए अलग से हाथियों का जत्था था। उनके नाम, उनके निशान और उनके काम सब अलग-अलग थे!
मर्दाना उसका एक नमूना था! सिकंदर लोधी के हाथी ‘हिमली’ का तो नाज नखरा ही अलग था! हेमू हंसा था। नाम के साथ काम जुड़ा था – उसने सोचा था।
“ये आपका हाथी है साहब!” पीलवान हेमू को बता रहा था। “मैं महादेव!” उसने अपना नाम बताया था। “और ये है अश्वस्थामा!” उसने फिर हाथी का नाम बताया था। “हम दोनों आपकी खिदमत में रहेंगे!” कहते हुए महादेव ने अश्वस्थामा की ओर देखा था तो उसने हेमू को सलाम किया था।
हेमू ने सलाम कबूल किया था और अश्वस्थामा को देख कर हंस पड़ा था!
डेढ़ हजार हाथियों की सेना जमा हो चुकी थी। बाकी अगले सप्ताह तक आ जाने थे।
गढ़ी गोशाल में जैसे एक उत्सव मनाया जा रहा था – ऐसा लगता था! बख्शी-ए-मलिक पीर मुनीर ने चलने से पहले सभी जमा ओहदेदारों को आदेश दिये थे। सब को चेतावनी भी दी थी कि इस आड़े वक्त में सल्तनत के खिलाफ कोई गफलत न हो! संगीन जुर्म मानी जाएगी – हुक्म अदूली – उन्होंने साफ साफ ऐलान किया था!
मर्दाना जाने के लिए तैयार था। पीर मुनीर को अब नूरपुर कलां के लिए रवाना होना था। लम्बा रास्ता था और शाम तक ही पहुंचने की उम्मीद थी।
“आपको कुछ पूछना तो नहीं है?” पीर मुनीर ने हेमू से रास्ते में चलत-चलते प्रश्न किया था। “सब कुछ आपकी उंगलियों पर होना चाहिए!” उन्होंने संकेत दिया था। “बादशाह कुछ भी पूछ लेते हैं!” वह हंस पड़ा था।
हेमू का चेहरा आरक्त हो आया था। शाही खिदमत बजाने का यह उसका पहला ही मौका था। पीर मुनीर ने उसे एक बारगी डरा ही दिया था। बादशाह जैसे कोई भूत था और अब उसपर सवार था – ऐसा लगा था!
“क्या उम्र होती होगी हाथी की जब उसे लड़ाई के मैदान में उतारते हैं?” हेमू ने प्रश्न पूछा था।
पीर मुनीर ने मुड़कर हेमू को गौर से देखा था।
“अच्छा सवाल पूछा है!” पीर मुनीर मुस्कराए थे। “साठ साल का हाथी लड़ाई के लिए लिया जाता है!” वो बताने लगे थे। “लड़ाई के लिए जिन हाथियों को लेते हैं – उनका निरीक्षण परीक्षण अलग से होता है! यह बड़ा ही अजीब जानवर है। खुश है तो आपका – नाराज है तो न मेरा न तेरा! सब किया धरा बिगाड़ देता है!” उन्होंने बताया था। “अपने पीलवान तक की जान ले लेता है!” उन्होंने पलटकर हेमू की आंखों में देखा था। “अच्छा सवाल पूछा है!” वो प्रसन्न थे।
नूरपुर कलां पहुंचने पर हेमू ने देखा था कि वहां तो अलग ही नजारा था!
चूंकि शहजादे इब्राहिम लोधी नूरपुर कलां पहुंचे हुए थे अतः वहां की हलचल और गहमागहमी अलग प्रकार की ही थी। चर्चा थी कि अगले बादशाह इब्राहिम लोधी होंगे अतः उनका रौब और रुतबा स्वयं भी आसमान पर जा बैठा था! लोग अलग से उनके आव-आदर और आगत-स्वागत में लगे थे!
पीर मुनीर हेमू को साथ लिए सीधे शहजादे इब्राहिम लोधी से मिलने पहुंचे थे!
“गढ़ी गोशाल की क्या खबर है?” शहजादे इब्राहिम पूछ रहे थे।
“सब कुशल है! पूरा बंदोबस्त सही है। कुछ जत्थे और भी आने हैं .. सो ..”
“आप हेमू हैं?” शहजादे इब्राहिम लोधी ने चुप खड़े हेमू से प्रश्न किया था।
“जी जनाब!” हेमू ने विनम्रता पूर्वक उत्तर दिया था।
“कैसा लग रहा है आपको?” शहजादे का फिर प्रश्न आया था।
” ” हेमू चुप ही बना रहा था।
“दिल तो नहीं दहला रहा?” शहजादे ने यूं ही पूछ लिया था।
एक हलका परिहास हवा पर तैर आया था!
“नए हैं! सीख जाएंगे!” पीर मुनीर ने बात को संभाल लिया था।
“ग्वालियर की ईंट से ईंट बजानी है!” शहजादे ने ऐलान जैसा किया था। “अब की बार राजपूतों को ..”
“कुछ ने तो पहले ही हमारे साथ आने की बात मान ली है!” पीर मुनीर ने सूचना दी थी। “महाराजा मान सिंह के बाद अब क्या धरा है वहां?” वह हंस गये थे।
“गारद होता भारत!” एक टीस उगी थी हेमू के सीने में। “हारते हिन्दू!” वक्त उसे बता रहा था। “बादशाह की खिदमत में जुटे महाजन और व्यापारी? ये आंधी न जाने कहां जाकर रुकेगी?” हेमू ने आह भरी थी। “निस्सहाय .. हार के इंतजार में खड़ा ग्वालियर राज्य ..?”
“तुम्हारे तो अभी दूध के दांत भी नहीं गिरे हेमू?” हंसा था – वक्त उसपर। “कोई बच्चों का खेल नहीं हिन्दू राष्ट्र!”
तो! आसान तो कुछ भी नहीं था! सब से पहले उसे महाराजा मान सिंह की तरह दुश्मन के दांत कीलने की कला सीखनी थी। युद्ध कौशल .. महाराजा मान सिंह की तरह जिसने अकेले ही नकेल डाल कर रक्खी थी अफगानों की ..
“अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता हेमू!” गुरु जी थे। “संगठन के बिना भारत ..”
बंटे खड़े भारत को हेमू ने एक साथ देख लिया था! ईर्षा और वैमनस्य का जहर हिन्दुओं की नस-नस में तारी था! पश्चाताप .. निराशा ..
“डर क्यों रहे हो ..?” अचानक शहजादे इब्राहिम लोधी ने हेमू के कंधे पर थाप देकर पूछा था। “एक लड़ाई लड़ लोगे .. बस ..!” वह हंस रहे थे। “तुम्हें तो कोई रोकने वाला पैदा ही नहीं हुआ!” न जाने क्यों शहजादे इब्राहिम ने उसकी प्रशंसा की थी।
पीर मुनीर ने भी पलटकर हेमू को एक बार फिर परखा था!
“मंदरायल पर घेरा डालने के लिए इस बार मुझे लंबा समय लेना होगा!” शहजादे इब्राहिम पीर मुनीर को समझाने लगे थे। “आप जानते हैं कि मुझे ..?”
“मैं सब समझता हूँ, शहजादे!” पीर मुनीर ने स्वीकार में सर हिलाया था। “बंजारों को सब समझा दूंगा! आप को तनिक भी चिंता नहीं करनी!” उसने आश्वासन दिया था।
युद्ध से पहले ही जैसे नूरपुर कलां में जीत के नगाड़े बज रहे थे!
शहजादे इब्राहिम लोधी ने अपने पांच हजार घुड़ सवारों के मन जीत लिए थे!
सेनाओं का मनोबल युद्ध जीतने का सबसे बड़ा सबब होता है – हेमू ने बात को गांठ बांध लिया था!
मेजर कृपाल वर्मा