कुतुब खान, जलाल खान और जैना खान को मिली सजा-ए-मौत ने आताल-पाताल को हिला दिया था।

इस्लाम खतरे में है – समवेत स्वर में पूरा मुस्लिम जहान बोला था। हिन्दू राष्ट्र की अवगूंज न जाने कैसे हर मुसलमान शासक को सताने लगी थी। कुछ था जो अचानक ही सारे मुसलमानों को खबरदार कर गया था। हिन्दुओं को तो अब तक फांसी ही दी जाती थी, जिंदा जलाया जाता था और उनके सर काट काट कर मीनारें चुनी जाती थीं लेकिन इस्लाम शाह का ये फैसला फारस से खुरासान तक जा पहुंचा था।

“मिर्जा कैमरान ने भाई चारा बनाने का सुझाव भेजा है। हम कल काबुल चले जाएंगे।” इस्लाम शाह सूरी प्रसन्नता पूर्वक पंडित हेम चंद्र को बताने लगे थे।

“चले तो जाएंगे आप मगर लौटना शायद ही संभव हो।” पंडित हेम चंद्र ने तनिक मुसकुरा कर कहा था।

इस्लाम शाह सूरी चौंक पड़े थे। पंडित हेम चंद्र के कथन में उन्हें कोई खोट नजर आया था। शकिया निगाहों से उन्होंने पंडित जी को गौर से देखा था। कुछ था तो – उन्हें अहसास हुआ था।

“मिर्जा कैमरान से तो शहंशाह हुमायू भी जान बचा कर फारस भाग गये वरना तो ..” एक अदद सूचना दी थी पंडित हेम चंद्र ने। “भाई चारा तो उनका तकिया कलाम है – लेकिन निभाते तो वो दुश्मनी हैं।” कहकर चुप हो गये थे पंडित हेम चंद्र।

शहंशाह इस्लाम शाह सूरी सकते में आ गये थे।

“हिन्दू राष्ट्र बनाएगा – पंडित हेम चंद्र!” किसी ने शहंशाह इस्लाम शाह सूरी के कान में कहा था। “तुम्हें बहका रहा है। अपने भाई बंधुओं से अलग कर रहा है। चाहता है कि अब मुसलमान आपस में लड़ मरें! हर मोर्चों पर अपने आदमी तैनात कर रहा है और ..”

“आप जानते हैं कि मुझे तो कुछ लेना देना है ही नहीं! लेकिन आपकी जान सलामती को मैं अपना दायित्व मानता हूँ। और आप ये भी जानते हैं कि आप के मातहत आपके गुण गा रहे हैं और आपके दुश्मन थर-थर कांप रहे हैं। शास्त्रों के नियमानुसार आपकी सल्तनत में वो सब हो रहा है जो एक कुशल शासक करता है।” तनिक हंसे थे पंडित हेम चंद्र। “फिर कैमरान क्यों नहीं चाहेगा कि ..?”

संभल गया था इस्लाम शाह सूरी। उसने पंडित हेम चंद्र की निष्पाप आंखों में कोई खोट नहीं देखा था। वह जानता भी था कि पंडित हेम चंद्र सूरी सल्तनत का सबसे ज्यादा शुभ चिंतक था।

“कश्मीर का क्या रहा?” अचानक ही इस्लाम शाह ने प्रश्न पूछा था।

“संधि पत्र पहुंच गया है। आपकी दी शर्तों पर संधि हो रही है।” पंडित हेम चंद्र ने बताया था। “और विजय नगर से भी दूत आया है। अगर आप चाहें तो दक्खिन के दौरे पर चले जाएं।” सुझाव था पंडित हेम चंद्र का।

शहंशाह इस्लाम शाह सूरी को पंडित हेम चंद्र का सुझाव बहुत बेहतर लगा था। वह भी चाहते थे कि दक्खिन को एक बार देखा जाए! दक्खिन जीतने के बाद तो हिन्दुस्तान उनका था। लेकिन अचानक ही एक शक ने आकर उनके उठते कदम रोक दिये थे। “दिल्ली से इतना दूर दक्खिन में जाकर न लौटे तो?” उन्होंने स्वयं से पूछा था और तुरंत ही विचार को त्याग दिया था।

खबस खान पंजाब पहुंच गया था।

वह जानता था कि पंजाब के हैबत खान और नियाजी आजम हुमायू के पास एक बड़ी सेना थी और अगर वो अन्य अफगानों के साथ मिलकर दिल्ली पर आक्रमण करता तो बात बन सकती थी। यह सुनहरी मौका था जब कुतब खान, जलाल खान और जैना की मौत का बदला उतारने के लिए वो सब एक जुट हो सकते थे।

“कल आपका नम्बर आयेगा हैबत भाई!” खबस खान ने सीधा तीर मारा था। “आपको भी तो सजा-ए-मौत ही मिलेगी – सल्तनत नहीं।” वह जोरों से हंसा था।

“मैं किसी कुत्ते की मौत मरने वाला नहीं हूँ, खबस भाई!” चहक कर बोले थे हैबत खान।

“लेकिन पंडित हेम चंद्र के पास सब के गले का फंदा मौजूद है।” खबस खान बताने लगा था। “वो हम सब को बारी बारी मिटा कर हिन्दू राष्ट्र बना लेगा – मैं बता रहा हूँ।”

हैबत खान के कान खड़े हो गये थे। नियाजी आजम खान हुमायू भी दरक गये थे। पंडित हेम चंद्र का नाम आते ही आज कल हर अमीर उमरा कांप उठता था।

“इलाज ढूंढो न इस पंडित का भाई!” नियाजी आजम खान हुमायू ने टीसते हुए आग्रह किया था खबस खान से। “चलो कोई चाल और कर दो पंडित को चित!” वह जोरों से हंसा था।

खबस खान को यूं ही बात बोली थी नियाजी ने।

दिल्ली में पहली बार ईद-उल-फितर का जश्न बड़े ही जोर शोर से मनाया जा रहा था।

ये पहला ही मौका था जब बादशाह इस्लाम शाह सूरी ने पंडित हेम चंद्र से कोई सलाह मशविरा न किया था। पूरे उत्सव का बंदोबस्त उन्होंने स्वयं ही बड़ी लगन के साथ कराया था। खबर थी कि इस बार दिल्ली में इस्लामी भाईचारे का एक नया चलन तय होगा ताकि सारे मुसलमान भाई आपस में हेल मेल से रहें और सब को उनके हक-हकूक बरकरार मिलते रहें!

एक बड़े पैमाने पर आवाजाही हो रही थी दिल्ली और दिल्ली के आस पास!

सारे दरगाह ओर इबादत गाह आगंतुकों से लबालब भर गये थे। चूंकि सूफी संगम आ रहा था और अल्लाह की इबादत में एक सप्ताह तक जश्न मनाया जाना था अतः दूर दराज के लोग चल चल कर दिल्ली पहुंच रहे थे।

लेकिन हिन्दुओं के बढ़ते दखल से सारे मुसलमान नाखुश थे।

सूचनाएं आ जा रही थीं। पंजाब से हैबत खान और हुमायू अपने सभी यारे प्यारों के साथ दिल्ली पधारे थे। कश्मीर से हैदर आया था तो जौनपुर से सलावत खान! बंगाल से बड़े पैमाने पर शाही लोग पधारे थे और काबुल से मय लश्कर के कैमरान मिर्जा भी आन पहुंचे थे। इस्लाम शाह सूरी एक अतिरिक्त उत्साह के साथ इन सब अपनों की मेजबानी में जुटे थे। उन्हें बेहद प्रसन्नता थी कि इस्लामी ताकतें एकजुट हो रही थीं। उन्होंने खुले हाथों ईद-उल-फितर के इस मुबारक मौके पर खूब खिल्लतें बांटने का निर्णय ले लिया था।

पंडित हेम चंद्र के कठोर परिश्रम से दिल्ली सल्तनत के खजाने खचाखच भरे थे।

लेकिन पंडित तन्ना शास्त्री और कलाकृति आज कल बेकार बैठे थे।

हो हल्ला सूफियों का था। बोल बाला इस्लाम का था। बोल बाला अल्लाह और उसकी इबादत करने वालों का था।

“बहुत मन था मेरा कि मैं तुम्हारा नृत्य देखूं और संगीत सुनूं!” केसर कलाकृति से कह रही थी। “अच्छा हुआ तुम्हें ठलवार मिली।” हंसी थी केसर। “इस बीच मैं भी तुम से नृत्य कला सीखूंगी!” केसर का इरादा था।

“तुम तो सैनिक हो!” हेमू बीच में बोल पड़ा था। “तुम्हें नृत्य सीखने की क्या जरूरत है केसर?” उसका प्रश्न था।

केसर ने बहस नहीं की थी। उसने हेमू की ही बात स्वीकार ली थी। उस छोटी गोष्ठी के अंत में हेमू ने अंगद को आंखों में देखा था और आंखों के इशारों में ही सब जता दिया था।

उत्सव आज समाप्त हुआ था ओर रात को सूफी कलाम कहा जाना था।

अचानक ही बादशाह इस्लाम शाह सूरी पर जानलेवा हमला हुआ था। इससे पहले कि हमलावर अपने मकसद में कामयाब हो जाते जुझार सिंह के तैनात किए योद्धाओं ने उनका कत्ल कर दिया था। उसके बाद तो जमकर जंग हुई थी। आगंतुकों के वेश में आये सैनिक और सिपहसालार दिल्ली पर कब्जा करने टूट पड़े थे। लेकिन उन्हें भनक तक न पड़ी थी कि उनके इस षड्यंत्र को नाकामयाब बनाने के लिए उन सब के पीछे जुझार सिंह ने अपने सैनिक तैनात किए हुए थे।

उस पूरी रात दिल्ली में जंग होती रही थी ओर हुए रक्तपात से दिल्ली की सड़कें लाल हो गई थीं। जुझार सिंह के आदेश थे कि कोई बच कर भाग न पाये और तय योजना के तहत खुल कर नरसंहार हुआ था और संग्राम भी जमकर हुआ था।

सुबह जब बेहोशी जाती रही थी तो बादशाह इस्लाम शाह सूरी ने पंडित हेम चंद्र को बुला कर दिल्ली की खैर खबर ली थी।

“तख्ता पलटने का षड्यंत्र था।” पंडित हेम चंद्र बता रहे थे। “आपको कत्ल करने के बाद मिर्जा कैमरान ने दिल्ली पर कब्जा कर लेना था।” उन्होंने सूचना दी थी तो बादशाह इस्लाम शाह सूरी के छक्के छूट गये थे। इस्लामी भाईचारे का भूत सामने खड़ा खड़ा हंस रहा था। “इसमें आपके सभी भाई बंद शामिल थे।” पंडित हेम चंद्र तनिक मुसकुराए थे।

“क्या सभी मारे गये?” बादशाह इस्लाम शाह सूरी ने पूछा था।

“नहीं!” उत्तर था पंडित हेम चंद्र का। “मिर्जा कैमरान औरत का वेश बदल कर भाग गये और खबस खान भी ..”

“और बाकी?”

“सब मारे गये!” पंडित जी ने बताया था।

“हम हैं आपके गुनहगार!” अचानक बादशाह इस्लाम शाह बोले थे। “आपने हमें नई जिंदगी दे दी और एक हम हैं कि ..”

उस दिन बादशाह इस्लाम शाह सूरी की आंखें नीची हो गई थीं!

मेजर कृपाल वर्मा

Discover more from Praneta Publications Pvt. Ltd.

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading