हेमू बेसुध हुआ हाथी पर बैठा बैठा तीरों से छिदी सुलतान इब्राहिम लोधी की लाश को देख रहा था – अपलक!

दसों दिशाओं में मुनादी सी हुई थी – इब्राहिम मारा गया! बाबर की जीत हुई! लोधियों का नाश हो गया ..

न जाने कैसे हेमू की आंखों के सामने एक चिता भक्क से जल उठी थी। उसे समझते देर न लगी थी कि बोधन जल रहा था – जिंदा, जीवंत और वह हंस रहा था, कह रहा था – लोधियों का अंत है ये! आंसू पोंछ दो – मैं मरूंगा नहीं! ईश्वर की अवहेलना करता इंसान अहंकार में अंधा हो जाता है! ये हिन्दुओं का दुर्दिन है लेकिन मुसलमानों का विनाश भी दूर नहीं है। ये इसी तरह आपस में लड़ लड़ कर मरेंगे ..

और हेमू देख रहा था कि किस तरह से बाबर के तीरंदाज दस्तों ने सुलतान इब्राहिम लोधी की सेना को चारों ओर से घेर लिया था और अब मौतें बांट रहे थे! सैनिक मर रहे थे, घोड़े मर रहे थे, हाथियों पर गोले बरस रहे थे और पैदल सैनिक हाहाकार मचाते इधर उधर भाग रहे थे। धरती लहूलुहान हो गई थी, लाशों पर लाशें पट गई थीं और ..

“इतने जतन से बनाया बानक बिगड़ गया!” हेमू की आंखें नम थीं। “जिसका डर था – वही हुआ?” वह कह देना चाहता था!

“पा-ग-ल हो!” उसने सुना था। “होतव्य को कौन टाल सकता है हेमू?” बोधन हंस रहा था।

सुलतान इब्राहिम लोधी की विशाल सेना की हुई हार ने बाबर को एक सितारे की तरह आसमान पर टांग दिया था!

दौलत खान से लेकर आजम खान तक सभी अफगान जागीरदारों और सिपहसालारों की आंखों में घी के दीपक जल रहे थे। सब को उम्मीद थी कि बाबर उन सब को लोधी सल्तनत को बराबर बराबर बांट कर काबुल लौट जाएगा।

लोधियों के हुए सर्वनाश से राणा सांगा को शांति तो मिली थी पर अब बाबर का आगरा आकर ठहर जाना अखर रहा था! ‘कहीं बाबर का साथ देकर गलती तो नहीं हुई?’ महा राणा सांगा सोच में डूबा था। अगर बाबर काबुल न लौटा तो – एक प्रश्न था जो कांटे की तरह चुभ रहा था। उत्तर भारत पर अपना होता आधिपत्य उन्हें अब हिलता डुलता नजर आने लगा था।

बाबर के लिए यह पानीपत की जीत एक बहुत बड़ी उपलब्धि सिद्ध हुई थी!

लोधियों की विशाल सेना को उसने बंदी बनाया था, साथ मिलाया था और अपनी रण नीति को आने वाले समयानुसार फिर से बदल दिया था। वह जानता था कि लालची अफगान सरदार और सिपहसालार कुछ न मिलने पर फिर से एकजुट होकर लड़ेंगे और राणा सांगा भी उनके साथ लड़ेगा अवश्य! अतः उसने सेना का पुनर्गठन किया था और अपने सिपहसालारों को छूट दी थी कि वो बंदियों में से अपने वफादार लोग चुन लें और अगले संग्राम की तैयारी करें। सबसे पहले उसने हुमायू को कालपी भेजा था।

“कुछ भी पता नहीं चला!” बेदम होकर लौटा महान सिंह हर रोज की तरह केसर को बता रहा था। “न जिंदा .. न मरा” वह रोने रोने को था। “सब से आगे हाथी था उन्हीं का!” वह बता रहा था। “और .. तोप के गोले ..”

“फिर बचा क्या होगा महान सिंह?” केसर की आवाज रुलाई में टूटी थी। “फिर .. फिर ..” वह सुबकने लगी थी।

“बाबर ने जादा तर सैनिकों को बंदी बना लिया है। वह उन्हें अपनी सेना में ले रहा है। हो सकता है ..?” महान सिंह ने जैसे एक आशा दीप जलाया था।

केसर कुछ न सोच पा रही थी। वह जानती थी कि बाबर हेमू को कभी भी अपनी सेना में जगह न देगा! हेमू का तो बह सर कलम कराएगा! और वह हिन्दू है – इसलिए ..?”

“लोग तो कह रहे हैं कि लोधियों को हेमू ने हराया है!” महान सिंह उड़ती अफवाहों के बारे बताने लगा था। “उसकी चाल थी। हेमू बाबर से मिला हुआ था। वरना तो इतनी विशाल सेना ..?”

“हेमू हारने वाला इंसान ही नहीं है!” क्रोध में आकर केसर बोली थी। “बकते हैं लोग!” वह कहे जा रही थी। “जरूर कुछ और ही हुआ है!” वह कयास लगाए जा रही थी।

“हाथी तोपों के सामने आते ही रुक गये, डर गये .. और” महान सिंह बताने लगा था।

“नहीं!” केसर ने साफ मना किया था। “कुछ और ही कारण है!” उसने आंखें बंद कर ली थीं। “साजन तो ..”

दिल्ली में मातम छाया हुआ था। एक अजीब सी आवाजाही थी। लोग महसूस रहे थे कि अब दिल्ली अफगानों की नहीं मुगलों की हो चुकी थी!

“मारा गया तुम्हारा दोस्त!” करीम कादिर को बता रहा था। वह पानीपत के युद्ध से भाग कर आया था। “बाबर ने तलवार से खुद काटा था उसका सर!” करीम की आंखों में विस्मय था। “हिन्दू था न! और ये बाबर हिन्दुओं से वैर मानता है!” उसने कादिर की आंखों को पढ़ा था।

कादिर ने, ‘मर गया तुम्हारा दोस्त!’ के अलावा कुछ न सुना था!

केसर का हुस्न एकबारगी कादिर की आंखों के सामने था! चंचल और कजरारे केसर के नयन, मीठे शहद से पगे उसके बैन, उसकी खनखनाती हंसी और उसका बेजोड़ सौंदर्य कादिर को मोहित करे खड़ा था। “अकेली होगी केसर!” उसके दिमाग ने चुपके से कहा था। “चल! चल कादिर चल! मौका है। उठा ला केसर को! क्या धरा है अब नीलोफर में? बेटा होने के बाद तो ..

और कादिर अपने साथ पांच साथी लेकर दिल्ली के लिए रवाना हो गया था!

दिल्ली अचानक ही एक नई आवाजाही से भर उठी थी। स्वतः ही कुछ लोग दिल्ली छोड़ छोड़ कर जाने लगे थे और कुछ अनजान और अजनबी लोग आ आकर दिल्ली में बसने लगे थे। हवा को भी पता था कि लोधी सल्तनत का पतन हो चुका था। पता था – सबको कि अब लोधियों या अफगानों का आगमन असंभव था। पानीपत में हुई मुगलों की फतह ने पूरे देश में एक अलग से शंखनाद फूंक दिया था।

“फिर हो गई विधवा दिल्ली!” लोगों को कहते हुए सुना था। “ये खसम खाती है!” दिल्ली पर आरोप था। “पांचवीं सल्तनत को भी सटक गई पांचाली!” हंसने लगे थे लोग। “अब तो शायद ही किसी को वरे?” लोगों को बाबर के आगरा प्रस्थान करने से जंच गया था कि शायद उसका मन दिल्ली पर न था।

पर हिन्दुस्तान पर तो बाबर का मन आ ही गया था!

“अब बाबर के सिपाही हेमू को तलाश रहे हैं!” महान सिंह को खबर मिली थी।

महान सिंह ने पूरी जान लगा कर गुपचुप सारी खबरें समेटी थीं। उसने अनुमान लगा लिया था कि हेमू जिंदा था। लेकिन कहां था – ये कोई नहीं जानता था।

“कोई नहीं जानता ..?” बाबर आग बबूला हुआ प्रश्न कर रहा था। “उड़ के तो कहीं नहीं जाएगा? हाथी पर सवार था .. फिर ..?” बाबर स्वयं भी अचंभित था। उसने खुद अपनी आंखों से हेमू के हाथी को गाड़ियों को रोंद कर पार आते देखा था और महसूसा था कि वह अब हारा कि जब हारा! लेकिन सुलतान इब्राहिम का हाथी रुका था, खड़ा हो गया था और तभी बाबर की तोपों के मुंह खुल गये थे! वरना तो .. उसकी ये हार थी – बाबर मान रहा था! अगर हेमू सफल हो जाता तो ढह जाता उसका सपना ..

“खोजो .. खोज निकालो उसे!” बाबर गरज रहा था। “हेमू ही तो था?” वह कह रहा था। “वही हिन्दू हेमू ..!” उसने आंखें तरेरी थीं। “सांप है वह – जहरीला सांप!” बाबर को कहते लोगों ने सुना था। “जिंदा रह गया तो – डसेगा जरूर!”

“जिंदा हैं कुंवर सा!” महान सिंह प्रसन्नता पूर्वक केसर को बता रहा था। “आज की खबर से तो ..”

“क्या खबर है?” केसर ने उतावली में पूछा था।

“बाबर के सिपाही हेमू को खोजते फिर रहे हैं! वह अचानक ही कहीं गायब हो गये थे। लेकिन किसी को कुछ पता नहीं .. कहां और कैसे ..”

केसर की आंखों में एक नई चमक लौट आई थी!

“हम भी गायब हो जाते हैं!” महान सिंह कह रहा था। “दिल्ली जरूर पहुंचेंगे सिपाही!” उसका अनुमान था। “और अगर ..?” उसका इशारा था कि अगर केसर उनकी पकड़ में आ गई तो सारा खेल ही बिगड़ जाएगा!

“चलते हैं!” केसर ने फौरन बात मान ली थी। “साजन तो स्वयं ही ठिकाने पर पहुंच जाएंगे!” वह पहली बार मुसकुराई थी। उसे अपने दिलेर पति पुरुष पर घमंड हो आया था!

कादिर ने एक एहतियात बरतते हुए केसर को ले उड़ने की मुहिम बनाई थी। वह समय जाया न करते हुए अपने उद्देश्य को पा लेना चाहता था। क्योंकि उसे दिल्ली के सारे रास्ते मालूम थे अतः चोरों की तरह वह हेमू के निवास पर आ पहुंचा था! अब उसका दिल धड़क रहा था। पल पल बीत रहा था और केसर उसे पास आती लग रही थी ..

“घर तो खाली है!” कादिर के साथी ने लौट कर बताया था। “शायद भाग गये!” उसका अनुमान था।

कादिर खड़े खड़े ही सूख गया था!

मेजर कृपाल वर्मा

मेजर कृपाल वर्मा

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