शेख शामी सपरिवार बिहार जा रहे थे।
सिकंदर लोधी की अता की जागीर उन्हें मिल गई थी। सासाराम के साथ ही उनकी जागीर थी – परेली। धनाढ्यों का इलाका था। शेख शामी मालामाल तो हो ही जाने थे, साथ में उन्हें और भी बहुत सारी सहूलियतें मिल जानी थी। उन्हें तीस हजार सैनिक रखने और दस हाथी पालने की इजाजत थी। कादिर के होते उन्हें उम्मीद थी कि वो एक अच्छी सेना का गठन कर ही लेंगे।
पूरे परिवार के होंसले बुलंद थे। अगर कोई थोड़ा बहुत गमगीन था तो वह था कादिर! कादिर को जागीर मिलने की खुशी से ज्यादा हेमू का दिल्ली पर कब्जा होना सता रहा था। और .. और वह जानता था कि हेमू उससे आगे निकलता ही चला जा रहा था .. और .. और हॉं! केसर?
जाने से पहले हेमू ने पूरे परिवार को दावत पर बुलाया था।
माहिल आया था और चुपके से सलाम बजा कर दावत का पूरा का पूरा बंदोबस्त कर चला गया था। केसर को माहिल न जाने क्यों बेहद पसंद आया था। “ये है तुम्हारा वफादार।” केसर ने हेमू को भी बता दिया था। “ये कभी दगा न देगा!” केसर का कहना था।
बारादरी चमचमाती रोशनी में नहा कर स्वागत के लिए तैयार खड़ी थी।
शेख दंपति जब परिवार के साथ पधारे थे तो हेमू ने उनका स्वागत किया था। बूआ के चरण स्पर्श कर हेमू ने आशीर्वाद लिया था और शेख शामी को सलाम कर उनका प्यार लूटा था। कादिर बांहें पसार कर मिला था और फिर नीलोफर से नमस्कार हुई थी। सजाधजा पूरा परिवार शाही था। हर हर मायनों में शेख शामी ने बादशाह बनने की सारी तमीज तहजीब पा ली थी।
केसर ने बूआ के पैर लगे थे और बूआ ने उसे बढ़ चढ़ कर सौभाग्यवती होने के आशीर्वाद दिये थे। नीलोफर गले मिली थी तो कादिर ने भी आदाब कहा था। अपलक केसर को देखते कादिर को नीलोफर झटक कर अंदर ले आई थी।
शेख शामी और बूआ के बीच बैठा हेमू गहरे मशविरे के बीच से गुजर रहा था। शेख शामी को अपनी सल्तनत कायम करने की फिकर थी और उनका ये सपना बिन हेमू के पूरा न होता था। खासकर धौलपुर और ग्वालियर फतह करने के बाद से हेमू उनकी नजरों में बहुत ऊंचा चढ़ गया था। वह जानते थे कि हेमू ..
“मैं बुलाऊंगी बहू को!” बूआ कह रही थीं। “आना! समय लेकर आना!” उनका आग्रह था। “वो भी तुम्हारा ही घर होगा .. बेटे!”
“और मैं तो चाहूंगा हेमू कि तुम भी बिहार आ जाना! दोनों भाई मिल कर ..” उनका इशारा था कि जागीर को जल्द से जल्द सल्तनत में बदला जाए!
“मैं आपसे जुदा नहीं हूँ अब्बा!” हेमू ने वायदा कर दिया था।
कादिर का सारा मजा महान सिंह ने किरकिरा कर दिया था।
ऑंखें भर भर कर वह तो केसर का दीदार ही करना चाहता था लेकिन यहॉं केसर नीलोफर के साथ गप्पों में उलझी थी वहीं महान सिंह ने कादिर की खातिरदारी आरम्भ कर दी थी।
“अरे रे! आपने ये नहीं चखा ..?” महान सिंह बार बार कादिर से आ भिड़ता था। “ये पीकर तो देखो जनाब! तर हो जाएंगे ..” महान सिंह हंसता ही रहा था!
कादिर ने कई बार महान सिंह को झिड़कना चाहा था पर उसकी बड़ी बड़ी मूँछें, भारी कंठ स्वर और अट्टहास की हंसी कादिर को परेशान किये थे।
केसर कनखियों से कादिर की होती दुर्गति को देख हंस रही थी!
“तू मेरा बेटा है हेमू!” जाते वक्त बूआ कह रही थी। “भूल मत जाना!” उनका आग्रह था। “इसे लेकर आना है!” उन्होंने केसर के सर पर हाथ रक्खा था।
“हम जरूर आएंगे बूआ!” केसर ने जिम्मा लिया था।
केसर के हुस्न का उजास पूरी बारादरी को जैसे प्रकाशित किये था! केसर की मधुर मुस्कान को पकड़ने के लिए कादिर अभी भी बेकल था। केसर की हंसी ने उसकी रात की नींद तक उड़ा दी थी।
“सच में ही तू परी है!” बूआ ने जाते जाते कहा था तो नीलोफर का चेहरा भी बुझ गया था!
केसर को प्रसन्न करने के लिए कादिर कौन सा तीर छोड़े – वह समझ ही न पा रहा था!
लेकिन केसर ने कादिर को समझ लिया था!
रात दिन की दौड़ भाग के बाद हेमू ने इब्राहिम लोधी का मनचाहा कर दिखाया था! इब्राहिम लोधी के पास राणा सांगा से जंग करने के लिए एक विशाल सेना खड़ी थी और रिसाला, हाथी और तीरंदाज – सब मिला कर एक अजेय सेना बन गये थे। हेमू का अनुमान था कि अगर इब्राहिम लोधी ने अपने हुनर का ठीक से प्रयोग किया तो उसकी जीत निश्चित थी!
लेकिन जो उसने राणा सांगा के बारे में सुना था – वह भी तो कम आश्चर्यजनक न था! राणा सांगा जैसे कोई वरदानी वीर था – जो युद्ध भूमि में उतरते ही अजेय हो जाता था और जिस शिद्दत के साथ वह युद्ध करता था – बेजोड़ ही था!
खतौली पर दोनों सेनाएं आमने सामने आ खड़ी हुईं थीं। खबर थी कि राजपूतों के पास रिसाले के सिवा और कुछ न था। राणा सांगा रिसाले के अचूक हमले से ही दुश्मन को बेदम कर देता था और हरा देता था! लेकिन इब्राहिम लोधी ने ठीक सामने राजपूतों से तौमरों को भिड़ाने की चाल खेल दी थी। महाराजा विक्रम जीत सिंह तेज पाल तौमर के साथ राजपूतों से लोहा लेने के लिए तैयार था। इब्राहिम लोधी ने दाहिने और बाएं से हाथियों के जत्थे उस समय हमला करने के लिए रक्खे थे जब राजपूत और तौमर भिड़ जाएं और बाजी जीतने के लिए हाथियों का हमला हो जाए! वह स्वयं हाथियों के बाएं जत्थे के साथ था और दाएं जत्थे के साथ शहजादा इस्लाम शाह था। तीरंदाज सेना का संचालन शहजादा शमीम लोधी कर रहा था। बाकी के सेनापति और जागीरदारों को इब्राहिम लोधी ने चार हिस्सों में बांटकर एक मुकम्मल सैनिक इकाई की रचना की थी जिसे केंद्र में होना था!
हेमू अंदाजा लगा रहा था कि इब्राहिम राजपूतों से युद्ध जीतने के बाद पूरे राजपूताना को हड़प लेगा और किसी को बट्ट की भुसी भी न देगा! उसका अगला कदम होगा राजपूत, तौमर और अफगान तुर्कों को लेकर हिन्दुस्तान को ले लेना! संभव था – वह जानता था। लेकिन राणा सांगा ..?
इब्राहिम लोधी की आंख भी राणा सांगा पर लगी थी!
“एक बार किसी तरह राणा सांगा पराजित हो जाए या बंदी बना लिया जाए फिर तो हिन्दुस्तान उसका होगा!” इब्राहिम प्रसन्न होकर सोच रहा था। “बंदी होने पर राणा सांगा को भी महाराजा विक्रम जीत की तरह जागीर देकर साथ ले लेगा! राजपूत ..”
आंधी की तरह राजपूत रिसाले ने इब्राहिम लोधी की विशाल सेना पर हमला बोल दिया था। जैसे बाज कबूतर पर झपटे – वैसे ही राजपूत रिसाला शाही सेना पर झपटा था और मौतें बांटने लगा था, काट काट कर धराशायी करने लगा था शाही सैनिकों को – जो बे भाव जानें गंवा रहे थे। उनकी समझ में ही न आ रहा था कि उन जांबाज राजपूतों का हमला कैसे रोकें?
बाएं से हाथियों के जत्थे ने हमला बोल दिया था लेकिन पल छिन में ही उनके सेनापति शहजादे शमीम लोधी को बंदी बना लिया गया था और हाथियों का जत्था मैदान छोड़कर भाग निकला था। बीच में तौमरों का अभी तक मुकाबला ही न हुआ था। राजपूतों ने उन्हें छूआ तक न था। वह अब इस्लाम शाह की ओर मुड़े थे!
इब्राहिम लोधी ने स्वयं मुड़ कर महाराणा सांगा पर हमला किया था। वह जानता था कि उसके पास यही एक युद्ध जीतने का मोहरा शेष था। तीरंदाजों ने तीरों की बौछार में महाराणा को घेर लिया था। महाराणा के पैर में तीर लगा था और जैसे ही वह तीर निकालने झुके थे घुड़सवार ने सीधा तलवार का वार किया था और उनका बाजू काट दिया था!
“या अल्लाह!” इब्राहिम लोधी पागलों की तरह उछला था। उसे जंच गया था कि अब वह युद्ध जीत गया था। महाराणा के मरने की घड़ी वह गिनने लगा था।
लेकिन तभी उसने देखा था कि महाराणा ने एक ही हाथ से इब्राहिम के हाथी की सीध में अपना घोड़ा दौड़ाते हुए बरछे से वार किया था! बाल बाल बचा था इब्राहिम लोधी लेकिन तभी उस पर अनगिनत बरछों के वार आने लगे थे। महाराणा के रिसाले ने इब्राहिम को चारों ओर से घेर लिया था। अब लगा था कि उसका अंत आ गया था। अगर वो चंद घड़ी और रुका तो ..
इब्राहिम ने आंख उठा कर देखा था। उसकी सेना भाग रही थी। इस्लाम शाह का जत्था भी भागा जा रहा था और तौमरों की सेना भी धूल चाट रही थी। घोर निराशा ने इब्राहिम की आंखें अंधी कर दी थीं। उसपर होते वार के बाद वार किसी भी पल उसकी जान ले सकते थे – वह समझ गया था!
क्या करता इब्राहिम? युद्ध भूमि छोड़ वह भी भाग लिया था।
पीछा करती राजपूतों की सेना ने शाही सेना को खूब काटा पीटा था और इब्राहिम लोधी का हिन्दुस्तान को हड़प लेने का ख्वाब खतौली में ही दफन हो गया था – कुल पांच घंटों में!
मेजर कृपाल वर्मा