“हमने मुहर्रम और ताजिया बंद कराने का ऐलान कर दिया है!” सिकंदर लोधी खचाखच भरे दरबार में घोषणा कर रहे थे। “हमने कबीर साहब और संत नसीब दास की फरमाइश पर हिन्दू और मुसलमानों के बीच भाईचारे की नींव डाली है और हमने अब अपनी फौजों में भी अफगान, मुगल और मेवातियों के अलावा राजपूत और उनके बहादुरों के लिए भर्ती खोल दी है – जो लोधियों के खैरख्वा हैं!” सिकंदर लोधी ने अपने जमा वफादार और विद्वान लोगों पर निगाह डाली थी।

उच्च आसन पर आसीन सिकंदर लोधी के गुरु शेख तगी का चेहरा खिल उठा था!

अचानक ही दरबारियों को सिकंदर लोधी के किये सुधार एक एक कर याद आने लगे थे। जमीन की नपत का चलन और लगान में किये सुधार सहूलियतें सब सराहनीय लगे थे। शायद ये सब सिकंदर लोधी ने हिन्दुओं के साथ किये जुर्म और जादतियों को छुपाने के लिए किया था – लोग कयास लगाने लगे थे। कल तक तो लोधी गिन गिन कर मंदिरों को तुड़वा रहा था और हिन्दुओं के पीर पैगम्बरों को जिंदा जलवा रहा था। लेकिन आज ..

“आज हम अपने देखे ख्वाब के करीब आ खड़े हुए हैं!” सिकंदर लोधी ने एक बयान जैसा दिया था। “आज हम साफ साफ देख पा रहे हैं कि लाहौर, दिल्ली, आगरा से कलकत्ता और अब दिल्ली से ग्वालियर और फिर दक्खिन पर लोधियों का परचम फहराएगा!” उसने निगाहें भर कर अपनी जमात को देखा था। सब लोग एक स्वीकार में सर झुकाए दिखाई दिये थे। “ये खुरासान के लिए हमारी सौगात होगी!” हंस गया था सिकंदर लोधी।

दरबार में बैठे अरब सभासद और खुरासान से आये लोगों ने हाथ उठा उठा कर इस ऐलान का स्वागत किया था!

“और .. और हम फख्र के साथ कहते हैं कि इसके बाद सूरज हर रोज उगेगा और इस्लाम को ही सलाम करेगा!”

तालियां बजी थीं। एक उन्माद उठा था। लोगों ने खड़े होकर बादशाह सिकंदर लोधी के ऐलान को सर माथे चढ़ाया था! सारे अमीर, उलेमा, जागीरदार और औहदेदार एक साथ बादशाह सिकंदर लोधी की जय जयकार कर उठे थे!

उठे शोर में .. मचे उस हुड़दंग में भी ईश्वर से भी ऊपर उठी इन आकांक्षाओं में हेमू खड़ा रहा था। लेकिन उसका मन बैठ गया था, हिया कांप उठा था और उसका अपना छोटा सा सोच – ‘हिन्दू राष्ट्र’ का उगा कोमल कुल्हा दरक गया था! उसे लगा था कि एक चतुर चोर की तरह अपनी कांख में हिन्दू राष्ट्र के सपने की पोटली दबाए वो रंगे हाथों पकड़ा गया था और अब .. अब शायद ..

“ग्वालियर फतह के बाद लोधियों के लिए नया सवेरा होगा!” बात हवा में फैलने लगी थी। “दक्खिन हाथ आने के बाद तो समुंदर का रास्ता खुलेगा, व्यापार बढ़ेगा और जो आमदनी लोधियों को होगी – उसका तो अनुमान ही नहीं लगाया जा सकता!” लोग आपस में बतिया रहे थे। “और फिर राज के दुश्मन ..?”

“रहेगा कौन हमारा दुश्मन ..?” सिकंदर लोधी ने ही कहा था। “जो तैमूर लंग न कर सका .. चंगेज खां लौट गया और सिकंदर की भी हिम्मत न हुई, तुगलक खप गया और जो हमने कर दिखाया है, वो तो ..” दर्प था सिकंदर लोधी की आवाज में!

“कैसे रुकेगी ये इस्लाम की आंधी?” हेमू के दिमाग में चुपके से एक प्रश्न कूद कर आ धमका था। “महाराजा मान सिंह जैसे महान योद्धा को स्वयं राजपूतों ने ही मार डाला? न जाने क्यों हिन्दुओं को खुदकुशी करने में एक अलग ही आनंद आता है! क्या कुसूर था मान सिंह का? यही कि वो जाति प्रथा को समाप्त कर हिन्दुओं का एका बना कर हिन्दू साम्राज्य को ..” वह रुका था। उसने अपने सपने को परखा था। “मैं .. अगर मैंने भी जाति प्रथा को तोड़ा .. या कुछ वैसा ही सुधार बिगाड़ किया तो ये हिन्दू मुझे भी तो ..?” डर गया था हेमू।

“बादशाह का बुलावा है!” पीर मुनीर ने जगा सा दिया था हेमू को। “आओ चलें!” उसने हेमू को पुकार सा लिया था।

“क्या खबरें लाए हैं?” बादशाह सिकंदर लोधी का सीधा प्रश्न था।

पीर मुनीर एक छोटी तैयारी के बाद संभल कर बोला था। हेमू चुप था। उसे पता था कि सारी खबर, राय और मशविरा पीर मुनीर ने ही करना था। पीर मुनीर की खबर पर और परामर्श पर ही बादशाह ने युद्ध प्रबंध और आक्रमण के ऐलान करने थे!

“खैरियत है जनाब!” पीर मुनीर ने कहना आरंभ किया था। “हाथी, घोड़े और सैनिक सब के सब आपके फरमान के इंतजार में हैं! दोनों शहजादे अपने अपने काम को सरंजाम दे चुके हैं और हमारी फतह ..”

“बहुत खूब!” बादशाह सिकंदर लोधी प्रसन्न थे। फिर उन्होंने हेमू को निगाहें भर कर देखा था।

“कुछ सीखा ..?” बादशाह का चेहरा दीप्तिमान था। “कुछ समझा?” उनका प्रश्न था।

हेमू कई पलों तक चुप रहा था। कोई उत्तर सोच लेना चाहता था वह। कोई ऐसा उत्तर जो बादशाह को प्रसन्न कर दे और ..

“जी, हुजूर ..” हेमू ने अतिरिक्त विनम्रता बरतते हुए बादशाह को अन्य दरबारियों की तरह जुहार बजाई थी। उसका उद्देश्य अपने इरादों को हवा न लगने देना था।

“क्या सीखा बताइए!” बादशाह जैसे फुरसत में थे और अब हेमू को गौर से सुनना चाहते थे। साथ खड़ा पीर मुनीर तनिक कांपने लगा था। उसे उम्मीद थी कि हेमू कुछ न कह पाएगा।

“मैंने हवा में डोलती बारूद की गंध को सूंघ लिया है जनाब!” हेमू ने बड़े ही आत्मविश्वास के साथ कहा था। “एक बार बंगाल और दक्खिन हमारे पास आने के बाद तो हमें ..?” हेमू ने पलट कर सिकंदर लोधी की आंखों में झांका था। “सुना है – मंगोलों के पास ‘तोप’ जैसा कुछ है जो बारूद से ..” हेमू रुका था।

“शोरे का व्यापार था न तुम्हारा?” अचानक सिकंदर लोधी ने एक अप्रत्याशित प्रश्न दागा था। “बारूद बनाने में शायद शोरा ही?” उन्होंने स्वयं ही उत्तर दिया था प्रश्न का।

“कहते तो यही हैं जनाब!” हेमू ने संक्षेप में उत्तर दिया था।

लम्बे पलों तक सिकंदर लोधी कहीं खो सा गया था। कई बार उसने सामने चुपचाप खड़े हेमू को पलट कर देखा था। उसे याद आता रहा था कि किस तरह उसने मंगोलों से बहुत कुछ सीखा था! छुपकर घात लगाना .. दुश्मन पर बगल से वार करना .. और हार की संभावना होने पर मैदान छोड़ देना .. गायब हो जाना .. और ..

“अगर मंगोलों के पास तोपें हैं तो ..” बादशाह कुछ कहना चाहते थे। “चलो! पहले ग्वालियर से निपट लें!” वो हंसे थे। “फिर लौट कर तुम्हारे विचार को तरजीह देंगे!” उन्होंने जैसे हेमू से एक वायदा किया था।

पीर मुनीर बड़े ध्यान से हेमू को देख रहे थे। आज पहली बार उन्हें हेमू के अंदर छुपा वो विलक्षण आदमी नजर आ गया था जिसे शायद बादशाह ने पहले दिन ही देख लिया था।

“बंगाल और दक्खिन जाने के बाद हम चाहेंगे हेमू कि तुम बंगाल का बोझ भार पीर मुनीर के कंधों से उठा लो!” बादशाह फिर से काम की बात करने लगे थे। “चूंकि दक्खिन नया होगा, काम बहुत ज्यादा होगा और जिम्मेदारी का होगा अतः पीर मुनीर के जिम्मे आएगा!” अब बादशाह ने पीर मुनीर को देखा था। वो मुसकुराए थे। “क्यों मीर साहब!” उन्होंने पीर मुनीर से पूछ सा लिया था।

“हाजिर हूँ हुजूर!” पीर मुनीर ने आभार व्यक्त किया था। “आपकी खिदमत करना ही तो मेरा ..”

“और आप बंगाल तक पहुँचें .. देखें समझें और सुझाव दें!” बादशाह ने हेमू को आदेश दिये थे। “ग्वालियर के बाद आप ..”

“बेहद मुफीद विचार है हुजूर!” पीर मुनीर ने प्रसन्न होकर कहा था। “ये तो संभाल लेंगे!” उसने हेमू को अपांग देखा था। “इनमें सोच और समझ है!” पीर मुनीर ने जैसे प्रशंसा की थी हेमू की।

हेमू के दिमाग ने हेमू को ही धन्यवाद दिया था कि उसने आज पहली बार एक लड़ाई जीत ली थी!

“बादशाह धौलपुर पर हाथियों के हमले को भी तुम पर ही छोड़ेंगे – देख लेना!” पीर मुनीर बड़ी प्रसन्नता के साथ हेमू को बता रहे थे। “तुम मन चढ़ गये हो, बादशाह के!” उसने हेमू की आंखों में देखा था। “जांबाज हो भाई!” उनका स्वर कोमल था। “सीख लो – हाथियों के हमले के हुनर को – मैं आगाह किये देता हूँ!” कहकर उन्होंने हेमू के कंधे थपथपाए थे। “बढ़ो .. आगे बढ़ो!” उन्होंने आशीर्वाद दिया था।

हेमू आज अपनी उपलब्धियों पर प्रसन्न था!

उसे लगा था कि बादशाह के विचारों के साथ साथ उसके अपने विचार भी कहीं पीछे न थे। आज नहीं तो कल – तोपों का चलन तो आएगा! उसे अचानक अब्दुल याद हो आया था। वह चाहने लगा था कि अब्दुल से भेंट हो जाए और ग्वालियर लेने के बाद तो अवश्य ही अगर वो आ जाये तो ..

और .. और हॉं! बंगाल? दिल्ली से कलकत्ता तक का सैर सपाटा और आवा जाही ..?

“अकेले ही जाओगे साजन ..?” केसर के स्वर थे। वही खनकती हंसी थी और थी वही आवाज। “बुरी बात ..?” केसर ने उलाहना दिया था।

“नहीं रे!” हंसा था हेमू। जोरों से हंसता रहा था। “बिन तुम्हारे तो कोई सपना पूरा ही नहीं होता केसर!” उसने प्रत्यक्ष में कहा था।

हंस रहा था हेमू!

मेजर कृपाल वर्मा

मेजर कृपाल वर्मा

Discover more from Praneta Publications Pvt. Ltd.

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading