पंजाब में हुई इस घटना ने सबके होश उड़ा दिये थे।
बाबर ने जैसे एक नया खेल खेल दिया था! वह जो संदेश दे रहा था – वह किसी की भी समझ में न आ रहा था। पंजाब को .. हाथ लगे पंजाब को यों लाहौरियों में बांट देना कौन सी चाल थी? अलग अलग शासकों पर इसकी अलग अलग प्रतिक्रिया हुई थी। कुछ थे जो प्रसन्न हुए थे तो कुछ थे जो संदेह में डूब गये थे! कुछ शंकाकुल थे तो कुछ थे शोक मग्न!
हर किसी के दिमाग पर बाबर एक नए सितारे सा उग आया था!
कुल बारह साल की उम्र में जहीरउद्दीन मोहम्मद बाबर तख्तनशीन हुआ था। पिता की मौत के बाद फरगना रियासत का ताज पहनते ही उसे शहनशाह बनने का सपना सताने लगा था। दो साल बाद ही उसने समरकंद जीत लिया था। लेकिन दुर्भाग्य वश उसके हाथ से समरकंद के साथ फरगना भी जाता रहा था। तीन बार कोशिश करने के बाद भी जब बाबर समरकंद को न जीत पाया था और हाल बेहाल हो गया था तो काबुल भाग आया था।
काबुल तब खाली पड़ा था!
पंद्रह सौ चार में अंततः समरकंद से हारने के बाद बाबर ने समरकंद को भुला हिन्दुस्तान के ख्वाब को अपने सपनों में परोसा था। यह तीसरा हमला था बाबर का जिसमें उसने लड़ाई के मैदान में सैनिक नहीं शतरंज के मुहरे खड़े किये थे और अब अपने सभी प्रतिद्वंदियों को चाल चलने के लिए मजबूर कर दिया था!
राणा सांगा – जो अब राजपूताने का मालिक था, जो जंग जीतने का शौकीन था और जो अपने साम्राज्य की सीमाएं अनंत तक बढ़ाने का इच्छुक था – बाबर की बिछाई इस शतरंज में किसी भी गोट को छूने से भी डर रहा था! वह अपने ही सोच विमोच में डूबा अभी बाबर को और देख परख लेना चाहता था!
आगरा में सुरक्षित बैठा इब्राहिम लोधी अब बेचैन था!
युद्ध के बजते नगाड़ों का शोर उसे सुनाई तो दे रहा था पर वह जान बूझ कर उसे सुनना न चाहता था! उसकी मजबूरियां उसके हाथ बांधे उसके पास खड़ी थीं। उसे लग रहा था कि वो चारों ओर से घिरता चला जा रहा था। पंजाब जाने के बाद बंगाल भी जाता रहा था। नए अफगान सैनिकों की भर्ती नहीं हो रही थी। पुराने बहुत सारे जांबाज लड़ाके दिल्ली को छोड़ कर जाते रहे थे। तुर्की से घोड़े भी नहीं आ रहे थे। शाही खजाना भी खाली होता चला जा रहा था। और .. और हॉं! दुश्मन बना परिवार उसे कांटे की तरह चुभता ही रहता था।
कौन था लोधी सल्तनत का उत्तराधिकारी इब्राहिम लोधी नहीं जानता था! कोई ऐसा अफगान .. कोई ऐसा बहादुर और जांबाज लड़ाका उसकी निगाह में था ही नहीं जो लोधी सल्तनत का परचम उठा कर चल पड़ता!
घोर निराशा घेरे थी – इब्राहिम लोधी को!
लेकिन आजम खान की आंखों में घी के चिराग जल रहे थे!
भला हो इस बाबर का जिसने उसे गद्दीनशीन किया और उसकी कमर पर हाथ रख दिया! उसके दिमाग में अब घोड़े हिनहिनाने लगे थे। पैदल सेनाएं चल पड़ी थीं और उसकी जीत के नगाड़े बज उठे थे। फिर उसकी जय जयकार हो रही थी। वह शेर शाह था, दिल्ली का बादशाह बन गया था और अब लोधी वंश का चिराग बन पूरे देश में उजाला बखेरने चल पड़ा था!
“कौन रोकने वाला है मुझे?” उसने स्वयं से प्रश्न पूछे थे। “मैं चुपचाप बिल्ली की तरह दिल्ली ले लूंगा!” वह कहने लग रहा था। “नहीं नहीं!” उसने हाथ हिलाया था। “पहले मैं काबुल को फतह करूंगा! पहले इस बाबर की खिट खिट खत्म करूंगा हमेशा के लिए! उसके बाद दिल्ली फतह करूंगा और फिर तो मुझे रोकने वाला कोई पैदा ही नहीं हुआ?” वह हंस रहा था। वह प्रसन्न था।
आजम खान को आज अपना सोया और खोया पौरुष लौट आया लगा था!
उसे लगा था कि वह आज भी उतना ही वीर था, जांबाज था, जंग का खिलाड़ी था जितना कभी बहलोल लोधी के जमानों में हुआ करता था! वह भी तो अपनी सल्तनत कायम करना चाहता था। वह भी तो बहलोल के साथ साथ अपना साम्राज्य बनाना चाहता था – हिन्दुस्तान जीत कर! लेकिन ..
“अब मैं ये मुबारक मौका नहीं छोड़ूंगा!” उसने ठान ली थी। “चाहे जो हो – मैं जंग तो लड़ूंगा ही!” वह अब घोषणा कर रहा था। “चुपचाप बिल्ली की तरह पहले दिल्ली को हड़प लेता हूँ! उसके बाद काबुल कौन दूर रह जाएगा मेरे लिए! क्या है ये बाबर मेरे मुकाबले? तनिक सी चूक हो गई थी वरना तो मैंने धर ही लिया था उसे! और फिर युद्ध में हार जीत तो होती ही रहती है!”
आजम खान ने तनिक ठहर कर फिर से सोचा था। उसे अपना विचार बुरा न लगा था। फिर उसने दृढ़ निश्चय किया था कि वह दिल्ली पर हमला करेगा और इब्राहिम लोधी को कैद में डालकर उसकी अकड़ निकाल देगा!
बादशाह बनना जैसे उसका शौक था!
और वह सोचता ही रहा था!
“आपने तो मेरे मन की बात कह दी बादशाह!” मुबारक खान बरमूली अति प्रसन्न था। “कब से चाह रहा था मैं कि हम दिल्ली को ले लें और खत्म करे इस इब्राहिम की कहानी!” उसने भी अपने मनसूबे कह सुनाए थे।
आजम खान ने अपने जांबाज सेनापति को गौर से देखा था। उसे यकीन था कि मुबारक खान अपना वचन पूरा करेगा। लेकिन जो कांटा आजम खान के मन में गहरा गढ़ा था वह उसका पता भी मुबारक खान को दे देना चाहता था।
“ये हिन्दू .. हेमू ..?” आजम खान तनिक टीसते हुए बोला था। “बादल गढ़ फतह करने के बाद से अपने आप को ये बहुत बड़ा सरदार मान बैठा है!”
“इसका कत्ल मैं करूंगा!” मुबारक खान ने तड़कते हुए कहा था। “मैं भी इन हिन्दुओं से खट्टा खाता हूँ!”
“और सामने यही आयेगा मुबारक!” आजम खान उसे चेता रहा था। “ये कम चालाक नहीं है ..”
“हमने काहे को हमला करना है।” मुबारक खान आहिस्ता से बोला था। “किसी को कानों कान खबर तक नहीं लगने देनी! दिल्ली जब रात के दो बजे सो रही होगी तब हम चढ़ बैठेंगे!” हंस रहा था मुबारक खान। “दिल्ली तक का सफर भी रात के अंधेरे में और आगरा को अलग से शेर खान को सुपुर्द करेंगे। इब्राहिम को तो जाते ही बंदी बना लेंगे और ..”
“बहुत खूब!” आजम खान प्रसन्न था। “सेना ..?”
“मेरे पास प्रबंध है!” मुबारक खान ने जिम्मा ओटा था। “समझो दिल्ली अब आपकी झोली में ..” उसने प्रश्न वाचक निगाहों से आजम खान को देखा था।
“और आगरा तुम्हारा!” आजम खान ने घोषणा की थी। “और जब काबुल ले लेंगे तो तुम पंजाब को संभालना। मिल कर चलेंगे बिरादर! इब्राहिम की तरह मैं बेईमान नहीं हूँ!” उसने इजहार किया था।
“इन भतीजों को भी भनक न लगे तो अच्छा है!” मुबारक खान ने पंजाब के अन्य दो हिसैरी दौलत खान और तातार खान की ओर इशारा किया था। “फिर ये भी हिस्सा मांगेंगे?” उसने चेतानी दी थी।
और आजम खान मुबारक खान बरमूली के साथ इब्राहिम लोधी से नाराज हुए तुर्क और अफगानों को लेकर दिल्ली चोरों की तरह जा पहुंचा था!
शांत सोती दिल्ली पर रात के ठीक दो बजे आजम खान की सेना ने चार तरफ से हमला किया था। उनका अनुमान था कि जब तक हेमू को हमले की भनक लगेगी तब तक तो वह कब्जा कर चुके होंगे और हेमू को बंदी बना कर मुबारक खान बरमूली उसका सर कलम कर देगा! और बंदी बना इब्राहिम लोधी .. तब ..
लेकिन कमाल तब हुआ था जब मुबारक खान बरमूली चारों ओर से घिर गया था और हेमू के सैनिकों ने उन्हें चोरों की तरह चुन चुन कर पकड़ा, काटा, परास्त किया और बंदी बनाया! उस रात दिल्ली पर कहर बरपा था। नींद खुलने पर दिल्ली वालों ने खून के दरिया बहते देखे थे!
घोड़े पर सवार मुबारक खान बरमूली जैसे पागल हो गया था! हेमू नजर आते ही वह उसकी ओर दौड़ लिया था। उसने हेमू पर बरछे से वार किया था। लेकिन हेमू ने बड़ी ही चतुराई के साथ बरछे को बचाया था ओर फिर मुबारक खान बरमूली का सर काट दिया था। धड़ से अलग हुआ सर जमीन पर आ गिरा था ओर उसका घोड़ा मुबारक खान के धड़ को लेकर भाग गया था!
आजम खान भी बिना विलम्ब के दिल्ली छोड़ कर भाग लिया था!
भोर होने को थी। कुछ कुछ दिखाई देने लगा था। आजम खान गीली हुई आंखों से दिल्ली को देख परख रहा था। एक बेहद सजीला ख्वाब आज मर मिटा था। आशा दीप भी बुझ गये थे। अंधकार ही अंधकार था हर ओर! उसकी समझ में ही न आ रहा था कि ये सब हुआ तो कैसे?
तभी उसने भागते भागते नजर उठा कर अपने खेमे के बाहर खड़े इब्राहिम लोधी को देख लिया था!
“इसका मतलब दगा खेली गई है मेरे साथ!” आजम खान कहता जा रहा था। “किसने खबर दी होगी? गद्दारी की है किसी ने वरना इब्राहिम का यहां होना और वो भी ..?”
मन बहुत कुंद हो आया था आजम खान का। उसे अब अपनी हार का गम नहीं था पर उसके साथ हुई गद्दारी पर रोष था। सीधी उंगली घी न निकालेगी – उसने दांती भींची थी। इस इब्राहिम को मैं खत्म करके ही दम लूंगा – आजम खान ने भी शपथ ले ली थी। और वह भागते भागते इब्राहिम को हराने का कोई न कोई विकल्प सोचता जा रहा था।
और तभी – हॉं हॉं तभी बाबर उसकी निगाहों के सामने विकल्प के रूप में आ खड़ा हुआ था! ओर समर्थ बाबर .. गजब का सूरमा बाबर .. लड़ाका बाबर उसे तुरंत ही पसंद आ गया था!
और आजम खान सीधा काबुल जा पहुंचा था!
मेजर कृपाल वर्मा