दिल्ली में दीवाली मनाई जा रही थी!

1571 से समय ने लोधी साम्राज्य के लिए सौभाग्य के दरवाजे खोल दिये थे। सिकंदर लोधी का उत्साह आसमान छू रहा था। उसे अल्लाह ने अनहोनी नियामत बख्शी थी। मात्र महाराजा मान सिंह ग्वालियर के शासक की मौत के संदेश ने दिल्ली में घी के चिराग जला दिये थे। अब लोधी सुलतान का सबसे अधिक टीसता कांटा स्वयं ही निकल गया था!

आये इस सौभाग्य को सिकंदर लोधी ने भी सहेज लिया था और बिना किसी विलम्ब के ग्वालियर पर चढ़ाई करने का मनसूबा बना लिया था!

“सीधी टक्कर ग्वालियर से होगी!” सिकंदर लोधी के वफादार और रणबॉंकुरे अफगान अली हुसैन खान ने घोषणा की थी। घुड़सवार सेना का प्रधान था अली हुसैन खान।

राजपूताना से तो कोई कुत्ता भी भोंकने नहीं आएगा!” उसका एलान था।

यह सबसे बड़ा शुभ संदेश था – लोधियों के लिए!

और सिकंदर लोधी भी इस बार मौका चूकना न चाहता था। वह चाहता था कि अभी .. इस बार ही – वह हिन्दुस्तान पर पूर्ण विजय प्राप्त करने के अपने प्रयत्नों को आगे बढ़ाए और लोधियों की सेनाएं देश के आर-पार निकल जाएं! बंगाल तक तो उसने फतह पा ही ली थी। अब ग्वालियर जीतने के बाद वह चाहता था कि कन्या कुमारी तक लोधियों का परचम फहराए! और तभी हॉं फिर खुरासान के साथ संबंध जुड़ते ही हिन्दुस्तान अफगानों का हो जाएगा – हमेशा के लिए!

“जुमे के दिन दरबार में चलना है!” शेख शामी ने हेमू और कादिर को बुलाकर सूचना दी थी। शेख शामी की आंखों में भी मंशाओं के चिराग रोशन थे। “समय आ गया है जब तुम दोनों सिकंदर लोधी के जहन में अपनी जगह बना लो!” शेख शामी ने सीधे-सीधे अपना मंतव्य बयान किया था। “नए लोगों की भर्ती है। नए लोगों की जरूरत है।” उन्होंने उन दोनों को नई निगाहों से देखा था। अफगान .. इतने अफगान कहॉं से कहॉं से आएंगे?” उनका प्रश्न था। “अब हिन्दुओं को ही मौका मिलेगा। जो बहादुर है, सूरमा है, और जो लोधियों से मिल कर चलना चाहते हैं – वो लोग लिए जा रहे हैं! क्योंकि लोधी सल्तनत अब दिल्ली से लेकर ..!” शेख शामी की निगाहें जैसे उठकर पूरे हिन्दुस्तान पर फैल गई थीं!

हेमू का कलेजा धक से रह गया था। जहां शेख शामी की ऑंखों में चिराग रोशन थे वहीं हेमू का दिल दिमाग घोर अंधकार में डूब गया था।

“गुरु जी – गलत कहते हैं क्या?” उसने आज पहली बार स्वयं से प्रश्न पूछा था। “क्या ये मात्र वहम है कि .. हिन्दू राष्ट्र ..?”

“लोधियों का मुकाबला कोई नहीं कर पाएगा!” शेख शामी ने घोषणा जैसी की थी। वह मुस्कराए थे। “मेरे सपूतो ये मुबारक मौका बड़े दिनों के बाद मिला है!” वह बताने लगे थे। “राजा मान सिंह ..” उनके मुंह का जायका बिगड़ गया था। “ये महाराजा मान सिंह .. लोधियों का सर दर्द ही बना रहा – जब तक जिंदा रहा!” शेख शामी कुछ टटोलने लगे थे। “पहली गलती – बहलुल लोधी – इनके अब्बा की पहली गलती थी कि उन्होंने इस मान सिंह को मात्र 8 लाख टका जुर्माना ले कर छोड़ दिया था।” उन्होंने सामने बैठे अपने दोनों शागिर्दों को देखा था। “दुश्मन जब भी चंगुल में आ जाए – तभी उसे मसल दो!” उनका कहना था। “क्या पता ..?”

कई पलों तक खामोशी छाई रही थी। हेमू का दिल दिमाग दिल्ली से उड़कर ग्वालियर जा पहुँचा था। ग्वालियर की रक्षा कैसे हो – वह उलटी दिशा में सोचे जा रहा था। “मैं यह गलती कभी नहीं करूंगा!” कादिर ने शेख शामी को जैसे वचन दिया था।

“पांडवों के वंशज हैं ये तौमर!” हेमू गुरु जी की आवाजें सुन रहा था। “बहादुरी में इनका मुकाबला अफगान नहीं कर सकेंगे!” उनका कहना था। “लेकिन ये अफगान हैं बड़े बेईमान! इनका दीन ईमान है – धन माया और ..” गुरु जी की ऑंखों में निराशा थी।

“हेमू!” शेख शामी ने हेमू को जैसे सोते से जगा दिया था। “सिकंदर लोधी ने तुम्हें मेरी सिफारिश पर ले लेना है!” वह हंसे थे। “लेकिन बेटे उन्हें तुम्हारी वफादारी दरकार होगी! हो सकता है तुम्हें ग्वालियर ही इनाम में मिल जाए!” वह हंस पड़े थे।

हेमू भांप गया था कि शेख शामी लालच के बकरे उसके सामने बांध रहे थे और उन्हें हेमू के दिमाग में बहते विचारों का पता चल गया था।

“मैं तो आपके इशारों पर चलता हूँ!” हेमू ने विनम्र स्वर में कहा था। “मेरा अपना क्या है?” वह भी मुस्करा रहा था।

लेकिन कादिर जानता था कि हेमू झूठ बोल रहा था।

दिल्ली एक अजब गजब कोलाहल से लबालब भरी थी। जितने मुंह उतनी ही बातें ईजाद हो रही थीं। कारण एक ही था – ग्वालियर पर लोधियों का आक्रमण! हालांकि यह पहला मौका न था जब लोधी ग्वालियर के राजपूतों से संग्राम करने जा रहे थे। अब तक उनकी अनगिनत बार टक्करें हो चुकी थीं। ग्वालियर के राजा मान सिंह का लोहा लोग मानते थे। लोग यह भी मानते थे कि मान सिंह के रहते लोधियों की जुर्रत न थी कि ग्वालियर की ओर ऑंख उठा कर देख लेते!

लेकिन अब 1516 में राजा मान सिंह के निधन के बाद तो लोधियों के होंसले बुलंद थे।

“गीदड़ हैं .. साले!” कुछ लोगों को कहते सुना था। “शेर मर गया है न! अब जा रहे हैं मरा मांस खाने!” उलाहना था लोगों का। “याद है – महावीर! जब ये लोधी – सिकंदर लोधी दुनिया भर का लाव-लश्कर ले कर ग्वालियर पर चढ़ा था – कित्ती मार पड़ी थी इसपर!”

“जटवार तक खदेड़ा था और पूरी लोधियों की फौज जान बचा कर भागी थी। 1505 की ही तो बात है!” महावीर ने हामी भरी थी।

“फिर दिल्ली पर आक्रमण क्यों नहीं किया महाराजा मान सिंह ने?” हेमू उन बतियाते लोगों से ही पूछ लेना चाहता था। “फिर महाराजा मान सिंह ने ..?” कितने ही प्रश्न थे .. अनगिनत प्रश्न थे – हेमू के दिमाग में!

“यह पहुँचेंगे ही नहीं ग्वालियर तक!” महावीर नाम का व्यक्ति ही बोलने लगा था। “इन्हें श्राप लगा है हिम्मत!” उसने कुछ अटपटी बातें कही थीं। “चंबल पार कर ले तभी है!” उसने भविष्य वाणी की थी।

हेमू ने खुले खिले आसमान को देखा था। वहां तो कुछ लिखा नहीं था। और नहीं इस आदमी हिम्मत के कहे का प्रमाण ही था! लेकिन हेमू को एक राहत मिली लगी थी, एक उम्मीद कहीं जागी थी कि हो सकता है होगा कोई नियम होगी कोई प्रार्थना और होगा कोई उपाय जो आदमी की हार-जीत तय करता होगा .. और ..

दिल्ली के लोग – आशा-निराशाओं के उल्लास से लेकर गम-गायलों तक लबालब भरे थे। सैनिकों से ले कर शिखंडियों तक हर कोई कुछ खाने पाने के लिए लालायित था। लोग जानते थे कि लड़ाई के माहोल में सत्तासीन लोगों की ऑंखों से आशाएं आती थीं .. नीतियां और अनीतियां जारी होती थी .. जागीरें अता होती थीं और हॉं कुछ लोग जो सत्ता को नहीं सुहाते थे – सब कुछ गंवा बैठते थे! बड़ा ही विचित्र वक्त होता था!

कादिर का दिमाग अपने लिए एक अलग घोसला बनाने में व्यस्त था!

वह अब न जाने क्यों मृग नयनी को भूल गया था। अब उसे केवल केसर की ही याद थी। केसर का हंसता खेलता चेहरा उसके सामने आ कर प्रश्न करता था – केसर की खनकती हंसी उसे मृग नयनी के महल में खींच ले जाती थी और ..

“अवश्य ही कुछ करना होगा!” कादिर कह रहा था। “लोधियों से अब्बा लेते-देते रहेंगे। मैं तो ..” कुछ ठोस अभी तक कादिर के सामने ना उभरा था।

लेकिन हेमू उदास था। उसे लोधियों के वैभव की उठती आंधी अंधा बना रही थी। लोधियों के फतवे, ऐलान, घोषणाएं और मंसूबे इतने बुलंद थे कि हेमू – अकेला हेमू मात्र उन्हें सुनकर ही हैरान था। कहॉं से जाता था – उसका रास्ता, वह तो भूला खड़ा था! उसे लग रहा था कि उसने गुरु जी के कहने पर एक बहुत भारी वजन अपने कंधों पर उठा लिया है .. और अब ..

“अब तुम्हें हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करनी होगी साजन!” अचानक ही केसर के स्वर गूँजे थे।

केसर की बात को नकारा नहीं था हेमू ने!

दिल्ली दरबार में शरीक होने बड़े और ख्याति प्राप्त लोगों का जमघट इकट्ठा हो रहा था। सेनापति थे, रईसजादे थे, सिकंदर लोधी के वफादार थे, औहदेदार थे और व्यापारियों से लेकर राजे-रजवाड़े तक थे! लोधियों का अब सिक्का चल रहा था। उनके सभी मातहत उन्हें सलाम करने आ रहे थे और हर संगत सहयोग के लिए उन्हें आश्वस्त कर रहे थे!

“कट्टर – सुन्नी मुसलमान है!” दो आदमी बतिया रहे थे। “हमें तो झांसा दे रहा है।” वह दोनों कह रहे थे। “माल-असबाब सब लोधी ही लेंगे! ग्वालियर तो गढ़ है .. खजाने हैं .. और ..”

“इस बार माला-माल हो जाएगा सिकंदर!” दोनों ने अनुमान लगा लिया था। “देगा किसी को कुछ नहीं!” उन दोनों ने खरी बात कह दी थी।

मेजर कृपाल वर्मा

मेजर कृपाल वर्मा

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