“शेर खान कोई शेर नहीं है!” लाहौर में सुरक्षित पहुंचा हुमायू अपने भाइयों के बीच बैठा बता रहा था। “अगर हम सब मिल कर लड़ते तो हरगिज न हारते!” उसने दावा किया था। “ये शेर खान की नहीं ये जीत उस तिलक धारी पंडित की है – हेम चंद्र की। इसे हिन्दुओं की विजय माना जाए। शेर खान तो हमारा कल का नौकर होता है।” हुमायू ने बात को हलका कर दिया था। “लाहौर में बैठकर अगर हम सब ..”
लेकिन वो सब साथ साथ तो अभी भी न थे। सब के सब बारी बारी हिन्दुस्तान का बादशाह बनने का ख्वाब देख रहे थे। हुमायू तो उन सब के लिए महज एक हारा हुआ इंसान था।
“शेर खान की सेना सर हिंद पहुंच गई है।” खबर आई थी। “लाहौर के लिए ..” अगली बात कोई न सुन पाया था। शेर खान का डर उन सबके भीतर तक भर गया था।
“अब क्या हो ..?” कामरान ने कांपते हुए पूछा था। “मुझे इसी का डर था कि ..”
“मैं एक सुलहनामा लिख कर भेज देता हूँ।” हुमायू का प्रस्ताव था। “मुझे उम्मीद है कि शेर खान मान लेगा और अगर लाहौर हमें मिल जाएगा तो ..”
“मैंने तुम्हें सारा हिन्दुस्तान सौंप दिया है शेर खान!” हुमायू ने लिखा था। “तुम मुझे केवल लाहौर दे दो।” उसने आग्रह किया था। “सर हिन्द हमारे बीच हुई सुलह की गवाह रहेगी।” हुमायू का प्रस्ताव था।
हुमायू का प्रस्ताव पा कर शेर खान खिल उठा था। उसे हुमायू की मांग जायज लगी थी और फिर लाहौर में रह कर हुमायू उसका बिगाड़ भी क्या सकता था? फिर भी उसने एक बार पंडित जी की राय लेना उचित समझा था।
“एक म्यान में दो तलवारें नहीं रहती शहंशाह!” पंडित हेम चंद्र का मत था। “ये शास्त्र कहते हैं कि दो शासक ..” पंडित हेम चंद्र ने मुड़ कर शेर खान की आंखों को पढ़ा था। “उसे काबुल जाने को कहो!” पंडित हेम चंद्र की राय थी।
और जब हुमायू के सामने शेर खान का जवाब आया था और जब उसे पता चला था कि उसके भाई कामरान ने पंजाब पाने के बदले हुमायू को शेर खान के हवाले करने के कॉल करार किये हैं तो वह भाग खड़ा हुआ था।
शेर खान अब बादशाह शेर शाह सूरी के नाम से अपनी सल्तनत को कायम कर, दिल्ली में बैठ पूरे साम्राज्य को पलता बढ़ता देख रहा था। अचानक शेर शाह सूरी का मन बना था कि वो अब राजपूतों पर आक्रमण करे और उन्हें अपने अधीन कर ले। लेकिन उसे एक ही शंका था – राजपूतों के खिलाफ हो सकता था कि पंडित हेम चंद्र की राय अलग हो।
“कायर है हुमायू!” शेर शाह सूरी की आंखों में अपनी कामयाबी के कारनामे तैर आये थे। “टिका ही नहीं हमारे मुकाबले!” शेर शाह खूब जोरों से हंसा था। “जान बचा कर भाग गया वरना तो ..!”
लेकिन पंडित हेम चंद्र को पता था कि शेर शाह सूरी को घमंड था – अपनी जीत का, अपने प्राप्त साम्राज्य का और अब वह चाहता था कि …
“राजपूतों को – मैं चाहता हूँ पंडित जी कि ..” शेर शाह रुका था। उसने पंडित जी की ओर मुड़ कर देखा था।
“क्या मिलेगा इस खून खराबी से?” अचानक पंडित हेम चंद का प्रश्न आया था।
शेर शाह सूरी – हिन्दुस्तान का बादशाह एक अदद और अदना पंडित हेम चंद्र की हिम्मत को देख दंग रह गया था। शायद वो कहीं उसे शहंशाह मानता ही नहीं था – केवल कहता ही था।
“शहंशाह का मतलब होता है ..” शेर शाह सूरी ने अपनी दलील आगे बढ़ाई थी।
“कि वह अपने राज्य का सुप्रबंध करे, विकास करे, जनता की भलाई करे और देश परदेशों का ..”
“क्या फायदा?” बात काट दी थी शेर शाह सूरी ने।
“फायदा ये शहंशाह कि लोग आपके नाम का गुण गान करेंगे, साम्राज्य सुसंस्कृत होगा, सुविधाएं बढ़ेंगी तो राज्य को लाभ होगा और फिर जब आपका यश बढ़ेगा तो अन्य राज्य स्वतः ही आपके परचम के नीचे चले आएंगे! वो आपके मित्र होंगे, सहयोगी बनेंगे और फिर ..”
“क्या यही आपके शस्त्रों में लिखा है?”
“हॉं! शास्त्रों का यही आदेश है। राजा की परिभाषा है ..”
“जिसका लोग लोहा मानें, जिससे दुश्मन डरें और उसका इतना खौफ हो कि ..”
“तब जनता की दुआएं नहीं मिलती राजा को!” पंडित हेम चंद्र फिर से बताने लगे थे। “और अगर जनता की बद्दुआएं लग जाएं तो राजा ..?”
“मैं इन बातों की परवाह नहीं करता पंडित जी!” शेर शाह सूरी ने ऐलान जैसा किया था।
“आप ने कहीं और जाकर तो नहीं बसना?” मुसकुराकर प्रश्न पूछा था पंडित जी ने। “यहीं अपने हिन्दुस्तान में रहना है। और फिर आप तो हैं भी यहीं के!” उन्होंने याद दिलाया था। “जब ईश्वर ने आपको ये नियामत बख्शी है तो फिर विध्वंस क्यों? स्वर्ग बनाइये अपने देश को, जन्नत में तबदील कीजिए अपने हिन्दुस्तान को .. और ..” विहंस गये थे पंडित जी।
बादशाह शेर शाह सूरी जैसे किसी और लोक में पहुंच गये थे और बेहद प्रसन्न थे।
पंडित हेम चंद्र ने एक और फतह पा ली थी।
“कामरान कह रहा है – मुझे पंजाब दे दो मैं तुम्हें हुमायू दे दूंगा!” बादशाह शेर शाह सूरी प्रसन्न होकर पंडित हेम चंद्र को सूचना दे रहे थे। “बुरा सौदा तो नहीं है?” उन्होंने अब पंडित जी को उद्देश्य सहित देखा था।
“वो आपको हुमायू देगा कि नहीं देगा लेकिन पंजाब ले लेगा और फिर दिल्ली ..” पंडित जी ने स्पष्ट कहा था। “कामरान कोई कम काइयां नहीं है। जो अपने बाप भाइयों का सगा नहीं है क्या वो आपसे मित्रता निबाहेगा?”
“तो फिर ..?” शेर शाह ने साथ ही प्रश्न पूछा था।
“राजपूतों से रसूख बढ़ा कर हुमायू को ..?” पंडित जी ने गहरी चाल चली थी।
“कर लें आप कोशिश पंडित जी!” शेर शाह प्रसन्न था। “मुझे तो हुमायू चाहिये।” उसका आदेश था।
अंगद लम्बे अरसे के बाद लौटा था। वह प्रसन्न था। उसे अपने उद्देश्य में सफलता मिली थी। उसने हेमू के बताए सारे काम फतह किये थे और अब आगे का काम ले कर लौटना था।
“चारों भाइयों को चार दिशाओं में मोड़ दिया है!” अंगद बता रहा था। अब कभी मिलकर नहीं बैठेंगे।” हंस रहा था अंगद।
“यह सब कैसे संभव हुआ?” हेमू ने पूछा था।
“चारों के दिमाग में चार तरह से शेर शाह सूरी का खौफ उगा दिया है। चारों को बता दिया है कि शेर शाह सूरी उनके खून का प्यासा है!” अंगद ने बताया था। “हुमायू को कामरान ने काबुल आने से मना कर दिया है। अब न वह कांधार जा सकता है और न लाहौर में ही रह सकता है। अब तो वह ..”
“राजस्थान में ही मुड़ेगा?” हेमू बात को समझ गया था। “ये मौका अच्छा है अंगद। जोधपुर जाकर तुम जाल बिछा दो।” हेमू का आदेश था। “होशियारी से काम करना।” हेमू ने चेतावनी दी थी।
हुमायू एक ऐसे चौराहे पर आ खड़ा हुआ था जहां कोई भी रास्ता उसकी मंजिल की ओर न जाता था।
“अब्बा की हासिल की सल्तनत गई, भाइयों ने दगा दी और भाग्य ने मजलूम बना कर खड़ा कर दिया।” हुमायू गमों के दरिया में डूबा जा रहा था। “वो ख्वाब .. वो हसीन स्वप्न – तुम्हारा बेटा जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर एक दिन हिन्दुस्तान का बादशाह बनेगा – भी फरेबी निकला। जन्म हुआ लेकिन बीबी गुलनार की गोद में बेटी आई। कैसा मजाक बनकर खड़ी हो गई थी जिन्दगी?” हुमायू सोचे जा रहा था। “कैसे जिए? कहां रहे?” वह समझ ही न पा रहा था।
“आपका स्वागत है शहंशाह!” अचानक जोधपुर महाराज का निमंत्रण आन पहुंचा था। “बीकानेर में आप को दे दूंगा।” उन्होंने लिखा था। “रहें आप – जब तक चाहें!” उनका वायदा था।
हुमायू को अचानक ही हिन्दुओं के प्रति एक सम्मान की भावना का एहसास हुआ था। बजाए भाइयों के अगर वो राजपूतों से सहयोग मांग लेता और सुलह कर लेता तो शायद उसे ये दिन न देखने पड़ते!
“मैं आपका वफादार – अटका खान हूँ!” हुमायू के सामने एक हलीम-शलीम व्यक्ति आ खड़ा हुआ था। “आपका नमक खाया है तो हाजिर हुआ हूँ – ये बताने कि ..” वह रुका था।
“क्यों क्या हुआ अटका खान?” हुमायू ने चिंतित स्वर में पूछा था।
“शेर खान ने माल देव को खरीद लिया है, शहंशाह!” अटका खान बता रहा था। “आपको शेर खान के हवाले कर वह मालवा लेगा और ..”
“ओ परवरदिगार ..!” हुमायू ने अब आसमान की ओर देखा था और हाथ जोड़ दिये थे। “रहम करो मेरे मौला!” उसने भीख मांगी थी। “अब मैं क्या करूं .. कहां जाऊं ..?”
“भागों ..! सर पर पैर रख कर भागो! माल देव की सेना कभी भी पहुंचेगी और ..”
भगदड़ जैसी मच गई थी हुमायू के पड़ाव पर। हर किसी को जान बचा कर भागना था। जिसे जो मिला उसने वही लिया और जैसे भी वह भाग सकता था – भाग लिया। ले दे कर सब भागने में सफल हो गये थे।
हेमू ने इसे अपनी हार माना था। जाल ले कर उड़ गये पंछियों को वह आसमान पर जाते देख रहा था।
“लेकिन ये चूक हुई कैसे?” हेमू अंगद से सवाल कर रहा था। “पहली बार हम हारे हैं .. अंगद?” हेमू को अफसोस था।
“ये अटका खान जो महाराज के यहां मुलाजिम था – इसका तो भान तक न था हमें। और जो दो जासूस सुमेर और मुनेर हमने लगाये थे वो तो लड़े भी थे। किसी तरह कोशिश भी की थी कि हुमायू के काफिले को रोक लें! खास कर हमारी आंख हुमायू पर थी। गुनेर ने तो हुमायू के घोड़े को मार डाला था और उसे पकड़ने वाला ही था कि उसे कत्ल कर डाला। मुनेर भी लड़ा था पर वह भी मारा गया।” गहरे अफसोस में डूबा था अंगद।
“हो जाती है कभी कभी चूक पंडित जी।” शेर शाह सूरी ने जैसे पंडित हेम चंद्र के गुनाह माफ कर दिये थे, इस अंदाज में कहा था। “लेकिन मुझे हुमायू चाहिये – जिंदा या मुर्दा!” उसका फरमान था।
हेमू भी अभी हारा नहीं था और हुमायू भी उड़ कर आसमान से कहीं नहीं जा सकता था।