“मुझे जलालुद्दीन का सर कलम कर के ला दो!” इब्राहिम लोधी हेमू के सामने उसके खेमे में खड़ा मांग कर रहा था।
हेमू के कानों को एक बारगी विश्वास ही न हुआ था कि वो जो सुन रहा था क्या वो सच भी था? जलाल इब्राहिम का भाई था – इतना तो हेमू जरूर ही जानता था! और कल वो दोनों साथ साथ ग्वालियर पर चढ़ाई कर रहे थे – यह भी सबको विदित था! लेकिन रातों रात जब की सिकंदर लोधी अभी मरा भी नहीं था – ये परिवर्तन, ये मांग ..?
“मंद्रायल के किले पर जलाल ने कब्जा कर लिया है!” इब्राहिम बताने लगा था। “ग्वालियर ने उसे शरण दे दी है। लेकिन अभी भी वक्त है! तुम आज ही .. रात को अपनी शर्त पूरी कर दो!” इब्राहिम की आवाज तीखी थी। उसकी ऑंखों में एक नशा तारी था। “हेमू! हम तुम्हें ..” वह लम्बे पलों तक हेमू को ऑंखों में घूरता ही रहा था।
हेमू के दिमाग में एक अजीब प्रकार का अंधड़ उठ खड़ा हुआ था।
कल तक तो सिकंदर लोधी को हर कीमत पर ग्वालियर चाहिये था। और आज .. अभी जब सिकंदर लोधी मरणासन्न है और मरा नहीं है – इब्राहिम लोधी को जलाल का सर चाहिये? सियासत का सरूर भी अजब होता है – हेमू ने इन पलों में महसूस करा था। जंग में जायज-नाजायज कुछ भी नहीं होता – शायद मात्र बाजी मारनी होती है – तरीका जो भी हो!
अभी तक हेमू ने अकेले हाथ से कोई हत्या नहीं की थी!
धौलपुर दुर्ग पर भी उसने बिना किसी खून खराबा के कब्जा किया था। उसका मन ज्यादा मार-धाड़, लूट-पाट या आगजनी में रमता न था। वह तो हमेशा ही चाहता था कि ..! लेकिन – अब चाहत इब्राहिम लोधी की चलनी थी – उसकी नहीं – हेमू ने महसूसा था!
“इब्राहिम लोधी ही कल का बादशाह है, जलाल नहीं!” हेमू की समझ में आ रहा था। “रास्ता एक ही है हेमू!” इब्राहिम बहुत धीमे से बोल रहा था। “मैंने अपने जांबाज दस्ते को बुला लिया है! बशीर खान आता ही होगा!” इब्राहिम ने सूचना दी थी। “बशीर बला का बहादुर है। पीठ न देगा तुम्हें!” इब्राहिम ने आश्वस्त किया था हेमू को। “मेरे ये लोग माहिर हैं अपने काम में!” अब उसने हेमू को घूरा था। “तुम .. और तुम्हारा काम ..?” वह रुका था। “मैं चाहूंगा कि तुम अपनी तलवार से जलाल का सर कलम करो!” हंसा था इब्राहिम। “बस! मैं मान लूंगा कि तुम .. मेरे ..”
था कहॉं और कोई रास्ता हेमू के पास?
हेमू ने स्वीकार में सर हिलाया था तो इब्राहिम लोधी की बाछें खिल गई थीं। शायद वो चाहता था कि हेमू उसके खेमे में शामिल हो जाये! हेमू को अपनी पहली मुलाकात भी याद हो आई थी।
इब्राहीम के जाने के बाद हेमू निपट अकेला खड़ा था। अचानक ही उसे केसर की याद हो आई थी। “न जाने केसर क्या सोचेगी, उसका मन तनिक कुंद हुआ था। लेकिन उसके पास इब्राहिम लोधी से ना कहने का कोई सबब भी तो नहीं था? और फिर यह तो था ही सियासत का खेल – जहां जिन्दगी और मौत के सौदे होते ही रहते हैं!
अजीब ही खेल था – हेमू सोचे जा रहा था। अभी तक बादशाह तो मरा भी नहीं है! वह मरणासन्न है .. बीमार है .. तड़प रहा है और अपने गुनाहों को कबूल रहा है और परवरदिगार से दया की भीख मांग रहा है! और .. और किये जुल्मों, अपराधों और हत्याओं को गलत और अमानवीय मान रहा है। जहां वो पश्चाताप की आग में जल रहा है वहीं दूसरा होने वाला बादशाह अपने ही सगे भाई की हत्या का षड्यंत्र रच रहा है? ओर शायद वह भी उन्हीं गुनाहों को करेगा जो उसके अब्बा ने किये हैं .. और .. फिर ..
“क्या ये गुनाह मैं भी करूंगा .. अगर मैं ..?” अचानक एक प्रश्न, नंगा प्रश्न दांत निपोरे हेमू के पास आ खड़ा हुआ था!
अंधेरा होने से पहले ही हेमू बशीर के साथ मंद्रायल पहुंच गया था!
घोड़ों को किले के पीछे छोड़ अंधेरी रात में वो चारों की तरह किले में दाखिल हुए थे। उन्हें पता था कि आज जलाल बादशाह बनने का जश्न मना रहा था।
“मैं लोगों को संभालूंगा और आप सीधा नंगी तलवार से जलाल का सर कलम कर देना! शरीफ उस सर को लेकर भागेगा और कहीं नहीं रुकेगा! हम उसके बाद ..”
रात का अवसान था। लाख कोशिशें के बाद भी कहीं कोई जश्न होता नजर न आया था। घोर नीरवता में किला चुपचाप सो रहा था। फिर उन्होंने एक पहरेदार को जगा लिया था!
“कहां है जलाल?” बशीर ने उसे घुड़क कर पूछा था। “बता .. वरना तो ..” नंगी तलवार उसके गले पर धर दी थी बशीर ने।
“हुजूर! वो तो चले गये!” कठिनाई से बताया था पहरुए ने।
“कहां गये ..?” बशीर ने फिर से पूछा था।
“शायद – हुजूर मालवा गये हैं!” उसका सीधा उत्तर था।
हेमू का खूंखार रूप स्वरूप अब निरुत्साहित हुआ खड़ा था!
बशीर खान भी खाली खड़ा खड़ा खाली हाथ मल रहा था। इब्राहिम लोधी को अब क्या मूंह दिखाएंगे – वह सोच ही न पा रहा था!
“न तो ग्वालियर गिरा और न ही जलाल मरा?” आस निराश हुआ हेमू सोचे ही जा रहा था।
होना न होना सब ईश्वर के हाथ होता है हेमू! न जाने ये कौन था जो उसे खड़े खड़े बता रहा था।
हेमू का चेहरा उड़ा हुआ था। यों जलाल पंछी की तरह घोंसला तोड़ कर भाग जाएगा उसे उम्मीद ही न थी!
“कादिर के जासूस होते तो .. शायद ..?” हेमू सोच रहा था। “बिना खबर सुध लिए यों भागे चला जाना ठीक नहीं था। बशीर खान तो कोरा हत्यारा है। अक्ल का तो नाम नहीं!” हेमू ने उसे कोसा था।
“कोई बात नहीं!” इब्राहिम लोधी ने जैसे उसका अपराध क्षमा कर दिया था। “ग्वालियर ने तो गद्दारी की है?” उसने जोर देकर कहा था। “अब ग्वालियर ..” उसने फिर से ऑंख उठा कर हेमू को देखा था। “किसी भी कीमत पर हम ग्वालियर तो लेंगे ही! अल्लाह हुजूर का ख्वाब तो पूरा करना ही होगा हेमू!” तनिक खुश हुआ था – इब्राहिम।
“दिल्ली ..?” हेमू ने पूछना चाहा था। “अभी तो ..?” उसका इशारा सिकंदर लोधी की मौत की ओर था।
“देखो हेमू!” इब्राहिम ने तनिक संभल कर कहा था। “दिल्ली में ग्वालियर से भी ज्यादा बड़े दुश्मन बैठे हैं!” वह हंसा था। “तुम नहीं जानते कि ये अपने ही जान के प्यासे हो गये हैं!” ठहर कर इब्राहिम ने हेमू को घूरा था। “तुम अब ग्वालियर को संभालो और मैं दिल्ली को देखता हूँ!” उसका ऐलान था।
“लेकिन ..?”
“लेकिन कुछ नहीं दोस्त!” इब्राहिम ने हेमू के कंधे पर हाथ धरा था। “सुनो! कादिर को घोड़े और सैनिकों सहित धौलपुर किले पर आने को कहो। बशीर खान को घुड़सवारों के साथ नरवार ओर लहर के किलों पर लाकर छोड़ दो। मैं हाथियों के जत्थे को लेकर दिल्ली जाता दिखाई दूंगा। लेकिन तुम अपना जत्था रख लो और शेष को आगरा पर भेज दो। मैं दिल्ली असल में घोड़े लेकर ही जाऊंगा!”
“जी! लेकिन मुझे ..?”
“सब तो तुम्हारे पास है! मैं तो खाली हाथ लौट रहा हूँ!” इब्राहिम ने हेमू को प्रश्न वाचक निगाहों से देखा था। “और क्या चाहिये तुम्हें ग्वालियर फतह करने के लिए?” वह पूछ रहा था। “मुझे धौलपुर जैसा ही करिश्मा चाहिये! मुझे चाहिये .. ग्वालियर .. मुझे चाहिये वो सब .. जो ..”
“सब कुछ मिलेगा आपको!” बड़े ही आत्मविश्वास के साथ हेमू ने कहा था।
“और हॉं! नए लोग लाओ – जैसा कि बशीर खान है! कोई मेघवान है! ओर वो कोई नसीर खान भी अच्छा लड़का है! लाओ इन्हें ऊपर! मुझे पुराने तोते पसंद नहीं हैं!” हंस गया था इब्राहिम।
“हैं मेरी नजर में – कुछ लोग!” हेमू ने आश्वासन दिया था। “बड़े ही जांबाज लोग हैं!”
“लेकिन भरोसे के होने चाहिये!” इब्राहिम का इशारा था – वफादार कौमों के लोगों को लेने के लिए।
“इसकी आप फिक्र न करें! जान हाजिर है – वाले लोग हैं मेरे पास!” हेमू बता रहा था।
“अब मुझे तो अब्बा हुजूर की हाजिरी में होना होगा!” इब्राहिम बता रहा था। “अब सब कुछ तुम्हारे ऊपर है हेमू!” यह एक आदेश था हेमू के लिए।
बादशाह सिकंदर लोधी भी अभी तक बुरे हाल में थे। पीढ़ा के पारावार थे जो उन्हें अतलांत की वेदना से भर रहे थे। न जाने कौन कौन से कर्म उदय हो आये थे और न जाने क्या क्या छूट रहा था, क्या क्या रह रहा था! उन्होंने पास बैठे इब्राहिम को देखा था। फिर जलाल को खोजा था शायद! लौट कर उनकी ऑंखें इब्राहिम पर ही टिकी रही थीं!
“म..म..मैं आप का अधूरा ख्वाब पूरा करूंगा अब्बा जान!” इब्राहिम ने कांपते स्वर में कहा था। “आप जाइये .. जन्नत में! में ..”
आंसुओं से लबालब भर आईं थीं बादशाह सिकंदर लोधी की ऑंखें और शायद उन्हीं पलों में उन्होंने प्राण त्याग दिये थे!
योजना के तहत इब्राहिम लोधी का काफिला दिल्ली चला जा रहा था!
हेमू खड़ा खड़ा जाते उस काफिले को देख रहा था जो मृत बादशाह सिकंदर लोधी की लाश को लेकर दिल्ली लौट रहा था। वो चेहरा – बादशाह सिकंदर लोधी का वो प्रदीप्त चेहरा जिसपर ग्वालियर फतह का सपना बैठा था अब हेमू के सामने तना खड़ा था! अब वहां न कोई जोश था और न जौहर, मात्र एक सन्नाटा था जो पीछे छूट गया था!
“यही तुम्हारे सीखने की उम्र है हेमू!” कोई उसके कान में कहता लग रहा था। “धौलपुर के बाद अब ग्वालियर की फतह भी तुम्हारे हाथ लगेगी!” एक निर्णय सा कुछ था। “देख! ये है मेरा करिश्मा? सिकंदर लोधी न सिकंदर लोधी रहा .. न इब्राहिम है और जलाल तो भाग ही गया! हा-हा-हा! अब तुम अकेले लड़ोगे – मेरे लाड़ले!
संग्राम जीतना ही तो बादशाहों का शुगल होता है!
मेजर कृपाल वर्मा