सिकंदर लोधी दरबार महल में बैठे अब अपने अमीर-उलेमाओं से मुलाकात कर रहे थे। कई निर्णय थे – जो उन्हें अभी भी लेने थे!
एक जाता तो दूसरे के मिलने की आवाज आती। जहॉं आने वाला कुछ पा कर खुश दिखाई देता वहीं मिलने जाता कहीं कांप रहा होता! राज शाही का दस्तूर अलग ही होता है। पल में तोला – पल में माशा!
“खतरनाक शेर है – सिकंदर!” बाहर इंतजार में सूखते लोग आपस में बतिया रहे थे। “इसने अपने सबसे सगे जौनपुर के उलेमा हुसैन शाह को कत्ल कराया था! नंगा करके निकाला था! रियासत चलाना सीखना पड़ता है, भाई जान!” कोई कह रहा था। “गुड़िया-गुड्डों का खेल नहीं है प्यारे!” उसने चेतावनी दी थी।
तभी शेख शामी के नाम का एलान हुआ था!
शेख शामी ने अपने दोनों नगमों को नई निगाहों से निहारा था। दोनों के चेहरे पूरे दिन की थकान से मुरझाए लगे थे। उन दोनों को सिकंदर लोधी से मिलने का कोई चाव न था। लेकिन शेख शामी के लिए तो ये एक मुबारक मौका था – जब उन्हें कुछ पा जाना था!
“तगड़े हो जाओ दोनों!” शेख शामी ने उन दोनों को जगाया था। “आ जाओ” कहकर वो दरबार महल में दाखिल हुए थे।
बड़े ही अदब से सिकंदर लोधी अपने सिंहासन पर विराजमान थे। उनका चेहरा निकलते सूरज सा दप-दप दहक रहा था। आंखों में चमक थी। हेमू ने उन्हें परखा था। सत्ता-महत्ता से लेकर अटूट माल असबाब और की लूटपाट – वहां सब लिखा था। लेकिन कहीं भी कोई भी दया-करुणा का कतरा हेमू को ढूंढे न मिला था। नर संहार और नृशंस हत्याओं के नाम वहां लिखे थे – लेकिन ..
तीनों ने सिकंदर लोधी के सामने खड़े होकर जुहार बजाया था!
शेख शामी ने दोनों के नाम बताए थे। हेमू और कादिर दोनों खड़े रहे थे। इन तीनों को अब सिकंदर लोधी ने बड़े गौर से देखा था। शेख शामी उनके बहुत बड़े खिदमतगार थे – ये उन्हें मालूम था।
“मेरा बेटा कादिर!” शेख शामी ने बिना वक्त जाया किये कहा था। “और ये मेरा शागिर्द हेमू!” अब उन्होंने अपने दोनों नगमों का परिचय दिया था।
सिकंदर लोधी की निगाहें लम्बे लमहों तक कादिर के ऊपर केंद्रित रही थीं। न जाने क्या था – जिसे वो खोजता टटोलता रहा था? कादिर उन आंखों का तेहा संभालता अपलक सामने बैठे बादशाह को देख रहा था। उसकी समझ में सिकंदर लोधी चढ़ न रहा था। बिना कुछ कहे सिकंदर लोधी ने निगाहें लौटा कर हेमू को देखा था!
“जांबाज लड़ाके हैं दोनों!” शेख शामी ने चुप्पी को तोड़ा था।
“बहुत खूब!” सिकंदर लोधी ने हेमू को ललचाई निगाहों से देखा था। हेमू जैसे उसे एक साथ ही पसंद आ गया था। “हिन्दू हो ..?” सिकंदर लोधी ने प्रश्न पूछा था।
सिकंदर लोधी की आवाज धारदार थी। हेमू ने सिकंदर लोधी के पूछे प्रश्न को सुना था।
“जी जनाब!” हेमू ने विनम्रता पूर्वक उत्तर दिया था।
सिकंदर लोधी ने हेमू की आवाज में एक गजब का आत्मविश्वास खोज लिया था और आये उत्तर से उसकी तमीज और तहजीब का अनुमान थी उसने लगा लिया था।
“जानते हो बरखुर्दार! हमारी मां – अम्बा भी हिंदू हैं?” सिकंदर लोधी ने एक अप्रत्याशित प्रश्न पूछ लिया था।
शेख शामी के भी कान खड़े हो गये थे! सुनने वाले सभी चर-चपरासी हैरान थे। कादिर का तो माथा ही ठनक गया था। जैसे कोई अजूबा घट गया हो – ऐसा लगा था। हिंदूओं का जानी दुश्मन सिकंदर लोधी आज हिंदूओं के साथ अपने रिश्तों को लेकर अपना नया ही परिचय दे रहा था। क्या होने वाला था – शेख शामी तो सोच ही न पा रहे थे!
“हमें हिंदूओं से सरोकार है!” सिकंदर लोधी कहते सुने गये थे। “हमने हिंदूओं के लिए खास रिआयतें दी हैं! हमने हिन्दुओं को अपनी फौज में लेने का ऐलान कर दिया है!” वो अब अपलक हेमू को देख रहे थे। “वफादारी .. हेमू!” उनका स्वर ऊंचा था। “हम इनाम देंगे .. ओहदा देंगे जागीरें देंगे .. लेकिन वफादारी ..?”
“इनका तो पूरा परिवार ही आपका ..” शेख शामी ने एन वक्त पर बात को तूल दे दिया था। “मेरी तो इनके साथ ..”
“ठीक है! हेमू को हम अपनी खिदमत में रखेंगे!” सिकंदर लोधी का महत्वपूर्ण फरमान था!
कादिर के पसीने छूट गये थे लेकिन शेख शामी की तो मेहनत वसूल हो गई थी।
“तुम्हें देखते ही न जाने क्यों हेमू मुझे महाराजा मान सिंह याद हो आये!” सिकंदर लोधी का स्वर बेहद कोमल और भीगा हुआ था। “उनकी मौत .. जैसे मेरा गहरा गम उठा लाये हो – ऐसा लगता है मुझे!” उन्होंने अबकी बार पूरे दरबार महल को देखा था। “खूब लड़े हम दोनों!” वह बता रहे थे। “जी खोल-खोल कर – जान लड़ा-लड़ा कर हम लड़े!” वह विहंसे थे। “सच मानो हेमू! मैंने अपने जीवन में आज तक ऐसा लड़ाका नहीं देखा!” वह अब हेमू को अपांग निहार रहे थे। “ऐसा जांबाज योद्धा .. वीर साहसी महाराजा मैंने शायद ही देखा हो या सना हो! इस कदर जूझता था रण में मान सिंह .. बाज की तरह फाड़ता फेंकता चला जाता था और ..” सिकंदर लोधी ने एक बार फिर हेमू को देखा था। “लोहा तो मानता हूँ मैं मान का!” बादशाह की आंखें नम थीं।
हेमू द्रवित था और उद्वेलित हो उठा था। लगा था महाराजा मान सिंह खड़े-खड़े हेमू को आशीर्वाद दे रहे थे और कह रहे थे मेरे बेटे! शूरवीर वही है जिसे देखते ही दुश्मन के कलेजे कांप उठें!
शेख शामी को मिला काम समाप्त हो गया था!
दरबार महल से बाहर आते हेमू और कादिर पर लोगों की आंखें टिक गई थीं। लोग समझ रहे थे कि लोधी सल्तनत के ये दोनों नए संवाहक थे। और अब हिन्दुओं को सिकंदर लोधी ने पास बिठाना था और शायद साथ लेकर चलना था अगले अभियानों में!
एक लम्बे सोच विमोचन के बाद और खूब खींचातानी के अंत में सब कुछ तय हो गया था।
सबसे पहले शहजादे जलालुद्दीन की सेना का प्रस्थान अगली रात को होना था। कादिर का नाम जलालुद्दीन के नए नियुक्त सुबेदारों में था। उसे अगले आदेश मिल चुके थे। लेकिन कादिर बेहद नाराज था!
“बेवकूफ है!” शेख शामी ने उत्तर में कहा था। “सेनापति बनना है तो सीढ़ियां तो चढ़नी ही पड़ेंगी! जलालुद्दीन भी तो?”
“मैं बिहार भाग जाऊंगा ..” कादिर को हेमू ने कहते सुना था। बाप बेटे में झड़प भी हो चुकी थी। कादिर को गम था कि हेमू को .. क्यों?
इसके बाद शहजादे जलालुद्दीन ने चंबल पार कर नसवार के किले पर कब्जा कर लेना था और अगले आदेशों का इंतजार करना था!
शहजादे इब्राहिम लोधी ने बीस हजार घुड़ सवारों के साथ चंबल को चांदनी रात में सुबह दो बजे पार करना था और मंदरायल के किले पर डेरा डाल देना था। फिर दिल्ली से बादशाह का काफिला उठेगा हाथियों पर और धौलपुर पर कब्जा करेगा और फिर आगे का आक्रमण बाद में होगा!
हेमू को बादशाह की खिदमत में स्वीकार कर लिया गया था!
सिकंदर लोधी जानते थे कि उनकी इस चाल को ग्वालियर में बैठा कोई भी पकड़ न पाएगा! महाराजा मान सिंह की तो बात ही अलग थी। लेकिन अब तो ग्वालियर न जाने कितने हाथों में बंटा खड़ा था? न जाने कौन-कौन – कौन-कौन सी खिचड़ी पका रहे थे? हंसी छूट रही थी – बादशाह सिकंदर लोधी की। वह कभी सोच भी नहीं सकते थे कि ग्वालियर के इतने बुरे दिन भी आ सकते थे?
लेकिन उनके लिए तो ये खुदा का भेजा सुनहरी अवसर था!
“ग्वालियर हाथ में आने के बाद तो?” प्रसन्न होकर सोचने लगे थे सिकंदर लोधी। “एक के बाद एक राजपूत राज्य हाथ में आते चले जाएंगे और फिर तो इन्हीं राजपूतों को साथ लेकर सिकंदर लोधी की सेनाएं हिन्दुस्तान के आर-पार आती जाती दिखाई देंगी!
हिन्दुओं को साथ लेकर चलने का ये नया मूल मंत्र सिकंदर लोधी का अपना और बिलकुल नया आविष्कार था! ये विचार उन्हें अचानक नहीं सूझा था बल्कि ये उनके जहन में तैमूर के हमलों को लेकर आया था! वह जानते थे कि आज नहीं तो कल उन्हें तैमूर के वंशजों का मुकाबला करना ही होगा और तैमूर के वंशज ..?
ये उनका नया आविष्कार तैमूर की गरजती-तरजती तोपों का उत्तर था!
वह हंस रहे थे!
मेजर कृपाल वर्मा