सुलतान इब्राहिम लोधी के लगे दरबार का दृश्य हेमू भूल नहीं पा रहा था!

महाराजा विक्रम जीत सिंह का बुझा बुझा चेहरा और कांपते होंठ उसे किसी बेबस रहस्य के छोर हर बार पकड़ा कर भाग जाते! और फिर उभरता आजम खान शेरवानी का मचाया शोर – उसकी मांग – ग्वालियर प्राप्त करने की उसकी आकांक्षा!

और फिर आवाजें आतीं इब्राहिम लोधी की। इंसाफ करता इब्राहिम लोधी इनाम इकरार बांटता इब्राहिम लोधी और सजाएं सुनाता इब्राहिम लोधी उसे एक फरिश्ता जैसा ही लगा था। इतनी चतुराई से उसने सारा काम निपटा दिया था – हेमू हैरान था! सियासत चलाने के लिए एक अलग से शऊर होना आवश्यक है – हेमू ने मान लिया था!

हेमू ने न कुछ मांगा था और न ही सुलतान ने कुछ दिया था।

लेकिन इस युद्ध में जो हेमू को मिला था – वह शायद स्वयं इब्राहिम लोधी को भी नहीं मिला था। इतिहास के पन्नों पर ये जीत हेमू के नाम लिख दी गई थी। हेमू का नाम और काम एक बार फिर किले पर खड़ा हो मुनादी कर रहा था! हेमू ने हर दिल जीत लिया था – यह भी एक सत्य था!

तालाब में गोते लगाने के बाद जैसे कोई बाहर आये – हेमू उसी तरह युद्ध भूमि के बाहर खुली हवा में आ गया था और अब वह शीघ्रातिशीघ्र अपनी संजोई केसर क्यारियों में मचल गये भंवरे की तरह भाग जाना चाहता था, कुछ खाना चाहता था कुछ चुराना चाहता था और चाहता था कि कैसे भी हो, जब भी संभव हो जल्द से जल्द हो!

“सलाम सुलतान!” हेमू सुन रहा था। आवाज परिचित थी। उसने मुड़कर देखा था।

माहिल था। सामने खड़ा खड़ा मुसकुरा रहा था।

भक्क से हेमू की समझ में आ गया था कि वह माहिल ही था जिसने उसके घर बार को चार चांद लगा दिये थे। वह तो सोचता रहा था कि सब कुछ गड्ड-मड्ड मिलेगा लेकिन घर क्या था – चमन बना खड़ा था!

“इतनी मेहरबानियां क्यों, माहिल?” हेमू ने हंसते हुए पूछा था।

“बादशाह बने तो ..?” हंसा था माहिल भी। उसका चेहरा आरक्त हो गया था।

“ये बेबुनियाद बातें हैं माहिल!” हेमू ने तनिक गंभीर होते हुए कहा था।

“मैंने खुली ऑंखों से जंग देखी है .. योद्धा और शूरवीर भी देखें हैं .. बादशाह और उन सब सुलतानों को देखा है, बरदाश्त भी किया है – जिनके नाम से लोग थर थर कांपते थे!”

“कहना क्या चाहते हो?”

“कुछ भी नहीं!” हाथ झाड़े थे माहिल ने।

“मेरा मन कहीं और है माहिल!” हेमू ने तनिक चुहल की थी।

“मैं आपसे पहले वहीं पहुंचा हुआ हूँ। मैंने सारे बंदोबस्त कर दिये हैं! आना जाना, रहना ठहरना, और खाना पीना – सब!” माहिल कहता ही जा रहा था। “और ये लीजिये मेरी तरफ से महारानी जी के लिए तोहफा!”

हेमू माहिल का मुंह देखता रह गया था!

यही नहीं – जब घर मेहमानों से लबालब भर गया था तब भी माहिल ने सबकी आवभगत का पूरा बंदोबस्त किया हुआ था। हेमू को आश्चर्य जब हुआ था तब उसने देखा कि शाही सवारी पर सवार मुरीद भी चले आ रहे थे!

“आपने तकलीफ क्यों की ..?” हेमू ने चौंक कर पूछा था। “मैं तो .. मैं तो ..”

“मेरा भी तो कोई फर्ज बनता है, सुलतान!” मुरीद की आवाज भी आज अलग थी। “गौना करके आ रहे हैं! बादशाह इब्राहिम ने स्वयं संदेश दिया है!” वह हंसे थे। “अरे, भाई! आपने तो लोधी वंश की शान में चार चांद लगा दिये! जो ग्वालियर पंद्रह वर्षों से दूर दूर भाग रहा था – वह ..”

“आप भी ..?”

“मैं ही नहीं – अब हर कोई जानता है कि हेमू कौन है!” मुरीद ने प्रसन्न होकर कहा था। “लीजिए! गौनावली के लिए बादशाह की ओर से ..” मुरीद ने तोहफे हेमू को पकड़ाए थे।

अचानक आगंतुकों की भीड़ में हेमू ने अब्दुल को आया देख लिया था!

“सलाम मेरे बादशाह!” अब्दुल ने भी मौका नहीं छोड़ा था। “अब तो आप ..?”

“अब्दुल!” हेमू ने अर्ज की थी। “बारूद .. तोपें और वो बवंडर आज कुछ नहीं यार! मैं एक अलग ..”

“मैं जानता हूँ!” हंसा था अब्दुल। “गौनावली के लिए तुच्छ भेट लाया हूँ!” कहकर वह भी हंस गया था।

हेमू ने निगाहें पसार कर देखा था तो शेख शामी भी अपनी छड़ी घुमाते घुमाते चले आ रहे थे। साथ में अशरफ बेगम और नीलोफर भी थी!

दृश्य ही बदल गया था जैसे!

“प्रणाम बूआ!” हेमू ने दौड़ कर अशरफ बेगम के चरण छूए थे और उन्हें प्रणाम किया था।

“जुग जुग जिओ मेरे लाल!” अशरफ बेगम ने ठेठ हिन्दुओं के से ही अंदाज में ही आशीर्वाद दिया था। “नाम रोशन कर दिया तुमने हमारा!” अशरफ बूआ प्रसन्न थी।

“आदाब अब्बा जान!” हेमू ने झुक कर बड़ी ही विनम्रता के साथ शेख शामी का स्वागत किया था। “मैं .. मैं तो स्वयं ही आने वाला था!” हेमू तनिक शर्मा गया था।

“कुंए के पास प्यासा आता है, रे!” बड़े स्नेह से बोले थे शेख शामी। “तुम दोनों ने मेरा यकीन कायम कर दिया, हेमू!” शेख शामी गदगद हो आये थे। “नाज है मुझे तुम पर, बेटे!” उन्होंने आगे बढ़ कर हेमू को प्यार से नवाजा था।

“नमस्कार!” दोनों हाथ जोड़े हेमू अब नीलोफर के सामने खड़ा हंस रहा था। “आप आईं – उसके लिए ..”

“नमस्कार-नमस्कार! हमारे बहादुर देवर जी के लिए बधाइयां!” नीलोफर की आवाज मधुर थी। फिर अचानक ही उसे जैसे कुछ याद आ गया था। “हमारे कादिर कब आएंगे ..?” उसने पूछ लिया था। नीलोफर को शायद उम्मीद थी कि कादिर भी आया होगा?

“माफ कीजिए भाभी जान! कादिर काम में नाक तक डूबा है! आप तो जानती हैं कि मेरे आने के बाद ..”

“हॉं! मैं समझती हूँ!” कुछ सोच कर नीलोफर ने कहा था। “आपस में चल पड़ी है न लोधियों में?” नीलोफर कह रही थी। “जान के प्यासे हो रहे हैं – एक दूसरे के” वह कहती रही थी।

शेख शामी बड़े ही सुकून के साथ गाव तकिये लगा कर बैठ गये थे!

“ये देख! मैंने जेवर गढ़ाए हैं – केसर के लिए!” अशरफ बूआ प्रसन्न थी। “देख! बता तुझे भी पसंद हैं या नहीं?”

“मेरी पसंद आपकी पसंद से आगे कैसे हो सकती है, बूआ?” हेमू ने दुलार के साथ कहा था। “केसर आपकी बहू है – फिर मैं कौन?” हंसा था हेमू।

एक हंसी का फव्वारा जैसा उन सब आत्मीय के बीच बह चला था!

“कुछ मिला तुम्हें ..?” शेख शामी ने चुपके से पूछा था।

“मैंने मांगा ही कुछ नहीं था।” हेमू ने स्पष्ट कहा था।

“हूँ!” कुछ सोच रहे थे शेख शामी। “मतलब कि तुम दोनों की एवज ही इनाम मिला है – हमें!” उन्होंने हेमू को देखा था। “बिहार में जागीर दी है, इब्राहिम ने!” उन्होंने बताया था।

“मुबारक हो आपको!” हेमू ने गर्म जोशी से शेख शामी से कहा था।

“गौना कर के आ जाओ! तब बिहार बुलाऊंगा बहू को!” शेख शामी बता रहे थे। “मैं चाहता हूँ हेमू कि तुम दोनों बिहार को ..”

“आपका हुक्म सिर माथे है अब्बा!” हेमू विनम्रता से बोला था। “जो आप चाहेंगे वही होगा!” उसने भरोसा दिलाया था शेख शामी को।

हेमू जानता था कि हिन्दुस्तान आये हर मुसलमान का एक ही सपना था – सल्तनत कायम करना!

“मेरी भी सुन लो देवर जी!” चुहल के अंदाज में नीलोफर कहने लगी थी। “केसर को लाना है दिल्ली! बहाना नहीं सुनूंगी कि – मॉं नहीं मानी या बहिन जी पानी भरने चली गईं!” उसने हिदायतें दी थीं। “केसर का पूरा बंदोबस्त मैंने करना है!” हंस कर बता रही थी, नीलोफर। “हम दोनों की जोड़ी रहेगी – आप दोनों की ही तरह!” उसने ऐलान किया था।

बाकी के लोग जा चुके थे। अब हेमू के अपने तीनों की बारी थी।

“सच में बेटे! दिल्ली के लोगों की जबान पर तुम्हारा नाम चढ़ गया है!” शेख शामी बताते रहे थे। “ये बारादरी बड़ी ही भाग्यवान है! यहां अब केसर महल बनेगा – देख लेना!” वह भविष्यवाणी कर रहे थे। “बिहार आओगे तब बातें करेंगे!” वह कह कर चले गये थे।

अब कहॉं टिक रहे थे हेमू के पैर!

सात सवारों को साथ लिए हेमू अपने प्रेम पथ पर उड़ता ही चला जा रहा था! अब उसका अभीष्ट केवल केसर ही थी!

और वह देख रहा था कि केसर बांहें पसारे उसके स्वागत के लिए बेचैन खड़ी थी!

मेजर कृपाल वर्मा

मेजर कृपाल वर्मा

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