कोरोना वार्यस के चलते सरकार ने stay home का order दिया है.. जो देश के हित में है.. और फ़िर “जान है तो जहान है”।

खैर! घर में सारा परिवार इकट्ठा है.. और रोज़ ही इतवार मन रहा है।

सुबह बढ़िया थोड़ा heavy नाश्ता खा.. थोड़ी देर सब सो जाते हैं.. और बच्चे कमरे में अंधेरा कर.. अपना कोई खेल जमाते रहते हैं।

उस दोपहर के कमरे में पर्दे वगरैह खींच कर किए हुए, अँधेरे में, मैं भी उसी घर में पहुंच जाती हूँ.. जो कभी हम dining टेबल को चद्दर से चारों तरफ़ से ढक कर बनाया करते थे। 

दोपहर में अक्सर ही टेबल को चारों तरफ से कुर्सियां उल्टी कर, चद्दर से ढक कर.. उसके अंदर घुस कर, बैठ कर.. घर-घर खेला करते थे… हम!

शाम तक का हमारा घर हुआ करता था.. वो! फ़िर चद्दर वगरैह समेट कर.. वैसा का वैसा सब कर देते थे।

टेबल के नीचे वाले घर की बसावट हमारे आज के घर से कहीं ज़्यादा प्यारी हुआ करती थी। टेबल के नीचे वाला वो घर दुनिया की किट-किट से अलग बहुत प्यारा हुआ करता था।

बचपन में तो घर का मतलब वही घर था.. बड़े होने के साथ घर की परिभाषा बदली, पर टेबल के नीचे वो वाला घर और वो अंधेरा आज भी अपनी ओर बच्चा बनाकर आकर्षित करता है।

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