स्नैक्स

स्नैक्स

” हम्म! रुको..! पहले गेस्टों को जाने दो.. अभी मत लेना..!”। गेस्टों के जाने के बाद.. ” अब लें लें माँ!”। और माँ प्यार से मुस्कुराते हुए.. कहा करतीं थीं.. ” हाँ! अब तुम खा सकते हो!”,। ” ये वाले स्नैक्स आपने बहुत ही टेस्टी बनाए...
मुझे

मुझे

पीतल की परात में रखे गूँधे हुए आटे की खुशबू सवेरे ही महका गई थी मुझे I सवेरे की ताज़ी ठंडी हवा गाँव के खेत खलियान में ले गयी थी मुझे। न जाने क्यों आज वो गाँव का पहले वाला शुद्ध वातावरण याद आ गया था I मन धुएँ – धूल और शोर से हटकर, नीम के नीचे बनी गाँव की उसी...
कोर्ट-कचहरी

कोर्ट-कचहरी

न्याय अन्याय के इस खेल मेंशामिल हैं सभीजो मुकदमा डालता हैअपने बचाव में फिर जो चारों तरफ भागता है पुलिस भी खेलती है खेल यहनज़र से उसकी क्या बच पाता है?फिर वकील पहन काला कोटमैदान मै आ जाता हैन्याय होया हो अन्यायकोई भी दाग, उसके दामन कोन छू पाता हैये समाज ही, हर बारहार...
माँ

माँ

देखा उसे जब पहली बारअस्त-व्यस्त बालबेहाल,वेदना से व्याकुल,मुस्कुरा दी मुझे देख कर!वो -माँ थी!फिर जब भीमुझे दर्द होतारो देती उसे चाहे भूख होतीया की प्यास से आकुलनहीं हुआ मै कभी भूख प्यास से व्याकुल!वो – माँ...
क़ीमत

क़ीमत

” अरे! रे! ..रे! क्या फेंक रही हो! गाय के आगे दीदी.. रुको!”। ” कुछ नहीं छोले हैं! पता नहीं.. कब के पड़े थे.. ध्यान ही नही रहा.. पैकेट खोला तो ये काली सुरसी लगी पायीं! क्या करती.. पानी में भिगो रखे थे.. सोचा गाय को ही दे दूँ!”। ” अरे!...

ख्वाबों का शहर

ख्वाबों के शहर में हम कुछ यूँ खो गए हैं अपने उलझनों में उलझे ही सो गए हैं उलझने दिमाग को ही अपना घर समझती हैं मुझे परेशाँ करना अपना मकसद समझती हैं परेशानियों की बातें भी हम कुछ बताते हैं एक खतम होते ही दूसरे शुरू हो जाते हैं किन्ही तरीकों से उलझने अब नहीं सुलझती हैं...