by Rachna Siwach | Nov 17, 2019 | Uncategorized
” हम्म! रुको..! पहले गेस्टों को जाने दो.. अभी मत लेना..!”। गेस्टों के जाने के बाद.. ” अब लें लें माँ!”। और माँ प्यार से मुस्कुराते हुए.. कहा करतीं थीं.. ” हाँ! अब तुम खा सकते हो!”,। ” ये वाले स्नैक्स आपने बहुत ही टेस्टी बनाए...
by Rachna Siwach | Nov 17, 2019 | Uncategorized
पीतल की परात में रखे गूँधे हुए आटे की खुशबू सवेरे ही महका गई थी मुझे I सवेरे की ताज़ी ठंडी हवा गाँव के खेत खलियान में ले गयी थी मुझे। न जाने क्यों आज वो गाँव का पहले वाला शुद्ध वातावरण याद आ गया था I मन धुएँ – धूल और शोर से हटकर, नीम के नीचे बनी गाँव की उसी...
by Verma Ashish | Nov 15, 2019 | Uncategorized
न्याय अन्याय के इस खेल मेंशामिल हैं सभीजो मुकदमा डालता हैअपने बचाव में फिर जो चारों तरफ भागता है पुलिस भी खेलती है खेल यहनज़र से उसकी क्या बच पाता है?फिर वकील पहन काला कोटमैदान मै आ जाता हैन्याय होया हो अन्यायकोई भी दाग, उसके दामन कोन छू पाता हैये समाज ही, हर बारहार...
by Verma Ashish | Nov 15, 2019 | Uncategorized
देखा उसे जब पहली बारअस्त-व्यस्त बालबेहाल,वेदना से व्याकुल,मुस्कुरा दी मुझे देख कर!वो -माँ थी!फिर जब भीमुझे दर्द होतारो देती उसे चाहे भूख होतीया की प्यास से आकुलनहीं हुआ मै कभी भूख प्यास से व्याकुल!वो – माँ...
by Rachna Siwach | Nov 15, 2019 | Uncategorized
” अरे! रे! ..रे! क्या फेंक रही हो! गाय के आगे दीदी.. रुको!”। ” कुछ नहीं छोले हैं! पता नहीं.. कब के पड़े थे.. ध्यान ही नही रहा.. पैकेट खोला तो ये काली सुरसी लगी पायीं! क्या करती.. पानी में भिगो रखे थे.. सोचा गाय को ही दे दूँ!”। ” अरे!...
by Akhileshwar Mishra | Nov 13, 2019 | Uncategorized
ख्वाबों के शहर में हम कुछ यूँ खो गए हैं अपने उलझनों में उलझे ही सो गए हैं उलझने दिमाग को ही अपना घर समझती हैं मुझे परेशाँ करना अपना मकसद समझती हैं परेशानियों की बातें भी हम कुछ बताते हैं एक खतम होते ही दूसरे शुरू हो जाते हैं किन्ही तरीकों से उलझने अब नहीं सुलझती हैं...