स्नेह यात्रा भाग दस खंड छह

स्नेह यात्रा भाग दस खंड छह

“काम शुरू करो!” कल्लू ने तैश में आकर हुक्म जारी किया है। कस्सी, कुदाल थामे लोगों में मात्र एक सिहरन दौड़ गई है पर हाथों की खोदने की सामर्थ्य नहीं जागी है। मैं जान गया हूँ कि अब भी वो हतप्रभ किसी चमत्कार के घटित हो जाने की शंका का निवारण नहीं कर पाए हैं।...
स्नेह यात्रा भाग दस खंड छह

स्नेह यात्रा भाग दस खंड पांच

अस्त होता चंद्रमा मेरे पस्त इरादों को उभारता लगा है। गोधूलि की आभा जैसा प्रकाश भी तिमिर बन जाएगा, सब अंधकारमय हो जाएगा, नदी और किनारे सभी घिल्लमिल्ल हो कर आपस में मिल जाएंगे तो मेरा क्या होगा? किनारे पर लम्बा बिछा मैं किसी आदि शक्ति को याद करने लगा हूँ। किसी चमत्कार...
स्नेह यात्रा भाग दस खंड छह

स्नेह यात्रा भाग दस खंड चार

सूखी जीभ ने मुंह में अटक कर बताया है कि एक चिकट थूक का थक्का अंदर गले तक जम कर बोलती बंद कर गया है। मैंने तनिक उलम कर अंजली भर पानी मुंह में सूंत गरगराया है ताकि अंदर का थक्का घोलायित होकर मेरी जान छोड़ दे। यमुना का पानी स्वादिष्ट लगा है। लगा है इस पानी में अनेकानेक...
स्नेह यात्रा भाग दस खंड छह

स्नेह यात्रा भाग दस खंड तीन

गहराता घनीभूत अंधेरा आज मुझे अभिन्न अंग लग रहा है। मैं इसी अंधेरे की सुरंग में सुरक्षित आगे लपका जा रहा हूँ। पैरों में मुझे बहुत दूर तक ले जाने की सामर्थ्य एकाएक भर गई लगी है। मन मेरे साथ है और ये सजीला पल कोई अनमोल अनुभव समेटता लग रहा है। वही जोशोखरोश जो आम तौर पर...
स्नेह यात्रा भाग दस खंड छह

स्नेह यात्रा भाग दस खंड दो

“मुक्ति!” “सर!” “मैं देहली जाना चाहता हूँ!” मैंने भर्राए कंठ से ही मांग जैसी की है जिस पर मैं अपना अधिकार खो बैठा हूँ। “अब संभव नहीं सर!” मुक्ति ने संयत स्वर में कहा है। “क्यों? मैं कोई ..?” मैं अब हांफ रहा...
स्नेह यात्रा भाग दस खंड छह

स्नेह यात्रा भाग दस खंड एक

बाहर मचे हू-हल्ला ने मेरी बेहोशी तोड़ी है। मैं कोई भयंकर आक्रमण जैसा आता देख रहा हूँ। पब्लिक का अथाह पारावार मुझ पर उमड़ता सा आगे बढ़ रहा है – दांत पैनाए, नाखून निकाले, चीखता चिल्लाता लगा है मेरा मुंह नोच-नोच कर कोई तालाब पोखर बना देगा! “सर!”...