स्नेह यात्रा भाग एक खंड बारह

स्नेह यात्रा भाग एक खंड बारह

लाला का हितैषी खिसक गया है। रोड़ों की बौछार और बढ़ गई है। मैंने लाला को पकड़ कर बाहर खींच लिया है। भूखे कुत्तों की तरह लंबी कतार राशन की दुकान पर टूट पड़ी है। जिसे गेहूँ मिल गए वो डालडा के डब्बे में गेहूँ भरे जा रहा है। जिसे चीनी मिल गई वो धोती उतार कर चीनी चढ़ा रहा...
स्नेह यात्रा भाग एक खंड बारह

स्नेह यात्रा भाग एक खंड ग्यारह

उद्विग्न मन ने उसी समय नाश्ता को मेज पर ही पूछ लिया है – कब तक उधार का खाओगे प्रिंस? सच भी है। आज नाश्ता में कोई स्वाद नहीं, कोई गंध नहीं, कोई अधिकार नहीं और न वो झटपट नाश्ता निगल जाने की उत्सुकता मुझमें बची है। खानसामा मेरा सूना सूना मुंह ताके जा रहा है कि अब...
स्नेह यात्रा भाग एक खंड बारह

स्नेह यात्रा भाग एक खंड दस

श्याम मुझे घर तक पहुंचा गया है। अब भी मेरे पैर शरीर का बोझ संभालने से आनाकानी कर रहे हैं। मैं अपने बेडरूम तक पहुंच ही जाना चाहता हूँ। मेरा पूरा बदन एक हडकल के हाथों में बिंधा-बिंधा टीस रहा है। पूरा घर शांति में डूबा निस्तब्ध सो रहा है। मैं खुश हूँ कि सिर्फ मुझे अकेले...
स्नेह यात्रा भाग एक खंड बारह

स्नेह यात्रा भाग एक खंड नौ

अब अकेला मैं इस विस्तार में बिफर जाना चाहता हूँ। इसकी सीमाएं बांध कर इस सूनी सी अराजकता को कुचल देना चाहता हूँ। इसमें जितनी भी कमियां हैं, सभी को दूर करके एक महत्वपूर्ण समाज की स्थापना करना चाहता हूँ। खोखली संज्ञाएं, रीति रिवाज, जात पात और धर्म के ढकोसले सभी मेरे...
स्नेह यात्रा भाग एक खंड बारह

स्नेह यात्रा भाग एक खंड आठ

“मैं .. न हारा हूँ न जीता हूँ!” लगा है वास्तव मैं ये हार जीत कुछ नहीं है। नमक और पानी की तरह ये दोनों एक दूसरे में घुलते जा रहे हैं। हार का गम और जीत की खुशी ये जो दो आभिजात्य हैं एक लक्ष्य बनकर सामने आए हैं और कह रहे हैं – हम तो कुछ भी नहीं हैं। हम...
स्नेह यात्रा भाग एक खंड बारह

स्नेह यात्रा भाग एक खंड सात

“अब क्यों नहीं जाता बे?” “पहले ट्रिप की विस्तार सहित व्याख्या हो जाए!” मैंने मांग की है। “देख बे ..” श्याम चुप हो गया है। एक नई नजर से उसने मुझे देखा है। “तू कहीं कोई खुफिया या कि कोई ..?” सशंक भाव लिए श्याम मुझे अब भी...