by Major Krapal Verma | Sep 19, 2023 | स्नेह यात्रा
अपनी पूरी सामर्थ्य लगा कर मैं मेले के प्रतिबंध में जुट गया हूँ। आचार्य की छोटी जमा पूंजी के पांच सौ रुपये मैंने वैशाली से अंट लिए हैं और आचार्य को शामियाना और कनात लाने पांच मील कस्बे तक दौड़ाया है। मैं अब पूर्णतः मेला को एक यादगार बनाने की सोच बैठा हूँ और चाहता हूँ...
by Major Krapal Verma | Sep 14, 2023 | स्नेह यात्रा
“और दूसरा कदम?” “दूसरे कदम में गृहस्थ होना चाहिए लेकिन सधा हुआ, सोचा हुआ और उस गृहस्थ की उन मांगों को संवरण करने की संपूर्ण शक्ति होनी चाहिए!” “लेकिन आज तो फ्री सोसाइटी .. फ्री सेक्स और ..” “मैं जानता हूँ कि ये नई लहर...
by Major Krapal Verma | Sep 12, 2023 | स्नेह यात्रा
जब चेत आया है तो लगा है कोई धीरे-धीरे मेरा मस्तक सहला रहा है। मैं स्पर्श से ही जान गया हूँ कि ये वैशाली है। यही जान कर मैं पता नहीं क्यों आंखे खोलना नहीं चाहता। फिर अचानक मुझे सोफी की फटकार याद हो आती है। अपनी अनधिकार चेष्टा पर मैं कुछ खीजने लगा हूँ। मैंने आंख खोल कर...
by Major Krapal Verma | Sep 11, 2023 | स्नेह यात्रा
शून्य में नोटों की भारी गड्डियां मेरे गिर्द घूमने लगती हैं। मैं किसी थके हारे इंसान सा मरुस्थल की मोटी-मोटी रेत खा कर अपनी जनसेवा और समाज सेवा के मोह से अब भी निकल नहीं पा रहा हूँ। जो धन मैं गरीबों में बांटना चाहता था वो अब भी ताले तिजोरियों में बंद है। लोगों के लालची...
by Major Krapal Verma | Sep 10, 2023 | स्नेह यात्रा
“चलो अंदर! बिस्तर हो गया है।” वैशाली ने स्नेह सिक्त स्वर में मुझसे आग्रह किया है। मैं फटी-फटी आंखों से उसे घूरता रहा हूँ। वह आरक्त हुए मुख मंडल पर कोई लाल-लाल आभा संजोए इंतजार में छिटक कर खड़ी हो गई है। “मैं चल नहीं सकता!” मैंने मरियल आवाज में...
by Major Krapal Verma | Sep 8, 2023 | स्नेह यात्रा
सामने गेंदे के फूल खिले हैं जो चढ़ती जवानी पर टिके से लग रहे हैं। ये स्थान यमुना से उतना ही दूर है जितना कि मंदिर और मैं नदी की जलधारा पर लहरों की पड़ी सिकुड़न तक देख पा रहा हूँ। एक अजीब सा सुख मुझमें भरता जा रहा है। आचार्य ने मुझे बाहर पड़ी चारपाई पर लिटा दिया है।...