हेम चंद्र विक्रमादित्य भाग उन्नासी

हेम चंद्र विक्रमादित्य भाग उन्नासी

वीराने में बहार आई हुई थी। आमोद प्रमोद की किलकारियां सुदूर से चलकर हेमू के कानों तक पहुंच रही थीं। सब कुछ सहज था, सहल था और हर ओर मुक्त आवाजाही थी। दोनों ओर की सेनाएं जैसे मेले में थीं, जश्न मना रही थीं और .. हेमू का ललाट चिंता रेखाओं से भर गया था। कुछ था –...
हेम चंद्र विक्रमादित्य भाग उन्नासी

हेम चंद्र विक्रमादित्य भाग अठहत्तर

सुख स्वप्नों में डूबे हुमायू की जब नींद खुली थी तो उसने चारों ओर चौड़ा हुआ देखा था! शेर खान ने बंगाल बिहार और गुजरात पर कब्जा कर लिया था। अब उसकी आंख आगरा पर लगी थी। हुमायू के रोंगटे खड़े हो गये थे। बाबर की सल्तनत उसे जाती लगी थी। उसे लगा था कि शेर खान – जो कभी...
हेम चंद्र विक्रमादित्य भाग उन्नासी

हेम चंद्र विक्रमादित्य भाग सतहत्तर

शेर शाह सूरी के दिमाग में बहुत गहरे में हेमू जा बैठा था! इतना आकर्षक, विद्वान, सुलझा हुआ, विनम्र और जहीन युवक उसने पहली बार देखा था। एक दिव्यता जैसा कुछ दैवीय स्वरूप था उसका। शेर शाह सूरी किसी भी तरह उसे अपने साथ ले लेना चाहता था। वह व्यापारी था धनवान था, गुणवान था और...
हेम चंद्र विक्रमादित्य भाग उन्नासी

हेम चंद्र विक्रमादित्य भाग छिहत्तर

“हुमायू से बात संभल नहीं रही है!” निपट एकांत में बैठे अंगद और हेमू मशविरा कर रहे थे। “एक तो नासमझ है ये हुमायू! है ही कुल बाईस साल का!” अंगद ने जानकारी दी थी। “फिर थोड़ा रहमदिल इंसान भी है। ये बाबर की तरह खूंखार नहीं है। और इसके भाई भी...
हेम चंद्र विक्रमादित्य भाग उन्नासी

हेम चंद्र विक्रमादित्य भाग पचहत्तर

“तुम ही तो मेरे विक्रम जीत हो साजन!” केसर की आवाजें थीं, आग्रह थे, प्रोत्साहन था और उसकी आंखों में समाई आकांक्षा की महक थी, एक सुखद भविष्य था – एक साम्राज्य का जिसे हेमू ने पहली बार देखा था! उसे आश्चर्य तो हुआ था .. लेकिन आज का विश्वास ..?...
हेम चंद्र विक्रमादित्य भाग उन्नासी

हेम चंद्र विक्रमादित्य भाग चौहत्तर

राय पूरन दास के घर में बधाइयां बज रही थीं! हेमू और केसर के आगमन की खुशी में हर कोई खुश था! चूंकि हेमू एक लंबे अंतराल के बाद लौटा था, जिंदा था और लड़ना भिड़ना छोड़ शोरे का व्यापार संभालने लगा था – यह एक बड़ी खुश खबरी थी। मुसलमानों के बीच में किसी भी हिन्दू का...