हेम चंद्र विक्रमादित्य भाग पच्चीस

हेम चंद्र विक्रमादित्य भाग पच्चीस

दिल्ली लौटते हुए हेमू और कादिर घोड़ों पर सवार सरपट दौड़ते हुए दो अलग-अलग विचारधाराओं जैसे लग रहे थे! दोनों दोस्त थे, सहयोगी थे और दोनों बेजोड़ सैनिक भी! लेकिन थे अलग-अलग! कभी अपने घोड़े को भर फेंक दौड़ाता हेमू कादिर को बहुत पीछे छोड़ जाता तो कभी कादिर कुछ इस तरह घोड़े...
हेम चंद्र विक्रमादित्य भाग पच्चीस

हेम चंद्र विक्रमादित्य भाग चौबीस

सात दिन ससुराल में अपने साजन के साथ रह-सह कर केसर अपने पीहर जा रही थी। हेमू चुप था। उसे केसर के साथ गुजारा समय जहॉं बेजोड़ लग रहा था वहीं इतना कम और छोटा भी लगा था कि विछोह का डंक उसे गहरे घाव दिये जा रहा था। उसका मन तो न जाने कैसे केसर के पल्लू से जा बंधा था। और .....
हेम चंद्र विक्रमादित्य भाग पच्चीस

हेम चंद्र विक्रमादित्य भाग तेईस

“प्रणाम गुरु जी!” हेमू ने आसन पर बैठे गुरुलाल शास्त्री के पैर छूए थे। “क्षमा चाहूंगा कि मैं ..” उसने विलम्ब से आने के लिए क्षमा याचना की थी। “वो क्या था कि कादिर शेख शामी के साथ दिल्ली नहीं गया!” हेमू ने सूचना दी थी। “और कादिर...
हेम चंद्र विक्रमादित्य भाग पच्चीस

हेम चंद्र विक्रमादित्य भाग बाईस

“क्या सोच रहे हो?” अचानक चुप हो गये हेमू की गमगीन सूरत देख केसर ने पूछा था। हेमू अपलक केसर के चांद से चेहरे को देख रहा था। केसर के हुस्न के तिलिस्म से घायल हुआ हेमू तीर खाए तीतर की तरह छटपटा रहा था। केसर की आग्रही ऑंखें उत्तर मांग रही थीं – किये...
हेम चंद्र विक्रमादित्य भाग पच्चीस

हेम चंद्र विक्रमादित्य भाग इक्कीस

शेख शामी जैसे एक युग खुले आसमान के नीचे जीने के बाद दिल्ली लौट रहे थे। भक्क से सिकंदर लोधी का दप-दप जलता चेहरा उन्हें याद हो आया था। उसकी ऑंखें प्रश्नों से लबालब भरी थीं1 तलाश थी उसे और एक चाहत थी उसके दिमाग में। पूछ रहा था – क्या लाए? कित्ता लाए? क्यों नहीं...
हेम चंद्र विक्रमादित्य भाग पच्चीस

हेम चंद्र विक्रमादित्य भाग बीस

शयन कक्ष का दरवाजा बोल पड़ा था! धाड़, धाड़, धाड़! कोई था – जो दरवाजे को जोरों से पीटे जा रहा था। मैं हड़बड़ा कर पलंग से उठा था। मैंने लपक कर दरवाजा खोला था। मैं अब पार्वती के सामने खड़ा था। वह मुझे अपलक घूर रही थी। उसकी प्रश्नवाचक निगाहों के उत्तर मेरे पास नहीं...