हेम चंद्र विक्रमादित्य भाग सैंतीस

हेम चंद्र विक्रमादित्य भाग सैंतीस

चढ़ाई करती सिकंदर की फौजों ने ग्वालियर को टिड्डी दल की तरह घेर लिया था। अंधकार छा गया था आसमान पर। आस-पास के किले हमारे कब्जे में थे। हमारे घोड़े हिनहिना रहे थे, हमारे हाथी चिंघाड़ रहे थे और हमारे सिपाही दहाड़ रहे थे। ग्वालियर में बैठे महाराजा मान सिंह थर-थर कांप रहे...
हेम चंद्र विक्रमादित्य भाग सैंतीस

हेम चंद्र विक्रमादित्य भाग छत्तीस

“यहॉं गुलाब पैदा होते हैं!” मुरीद अफगान बहुत दूर देख रहे थे। “पर मेरा ये मित्र सिकंदर यहॉं बबूल बो रहा है!” वह तनिक हंसे थे। उम्र भर की दास्तान उनके चेहरे पर उभर आई थी। “इस्लाम इस जमीन पर कभी न उगेगा!” एक भविष्यवाणी जैसी की थी...
हेम चंद्र विक्रमादित्य भाग सैंतीस

हेम चंद्र विक्रमादित्य भाग पैंतीस

हेमू ने अश्वस्थामा की चिंघाड़ सुन ली थी। उसने ऑंख उठा कर महादेव को हंसते हुए भी देख लिया था। वह जानता भी था कि महादेव और अश्वस्थामा उसे गढ़ी गोशाल ले जाने के लिए हाजिर हुए थे। और वह ये भी जानता था कि .. शाही फरमान – हेमू, सिपहसालार मुराद अफगान के साथ काम...
हेम चंद्र विक्रमादित्य भाग सैंतीस

हेम चंद्र विक्रमादित्य भाग चौंतीस

“हमने मुहर्रम और ताजिया बंद कराने का ऐलान कर दिया है!” सिकंदर लोधी खचाखच भरे दरबार में घोषणा कर रहे थे। “हमने कबीर साहब और संत नसीब दास की फरमाइश पर हिन्दू और मुसलमानों के बीच भाईचारे की नींव डाली है और हमने अब अपनी फौजों में भी अफगान, मुगल और...
हेम चंद्र विक्रमादित्य भाग सैंतीस

हेम चंद्र विक्रमादित्य भाग तैंतीस

शाम ढलते न ढलते फतेहाबाद का किला शाही सजावट के साथ-साथ प्रकृति की छटा से निहाल हुआ खड़ा था। किले का आस-पास बहुत ही रमणीक था और कभी किलों के मालिकों के वक्त बेजोड़ रहा होगा! सैनिकों की आवा-जाही से झलक रहा था कि उनका मनोबल ऊंचा था और उनकी ऑंखों में ग्वालियर की जीत दर्ज...
हेम चंद्र विक्रमादित्य भाग सैंतीस

हेम चंद्र विक्रमादित्य भाग बत्तीस

फतेहाबाद के उजाड़ में कवायदें करते शाही सैनिक और उनके विशाल कौशल से लगा था जैसे ये लोग फतह का जश्न मना रहे थे .. जीत गये थे जंग और अब चहूँ दिक प्रसन्नता की उमंगों की हिलोरें थीं .. मर्दाना को काफी समय लगा था – उस दुर्गम जंगल को पार करने में! छोटी-छोटी घाटियां और...