हम गलतियाँ कर चुके थे !!

युग पुरूषों के पूर्वापर की चर्चा !

उपन्यास अंश ;-

जसोदा के साथ हुई टक्कर में , मेरा मन टूट गया था . मैं खंड-खंड हो गया था . मैं परास्त हो गया था —–छोटी-मोटी जो जीने की उमंग थी वह भी मुझे छोड़ कर भाग गई थी . अब मरने को मन कर रहा था ! अब —-सन्यास-सा कुछ ग्रहण करने की सलाह दे रही थी -मेरी अंतरात्मा !

उस छोटी उम्र में ये वैराग्य क्यों उगा था ? मुझे लगा था – इस धरा पर मेरे लिए कुछ धरा न था ! मेरे पैदा होने से पहले ही यहाँ तो लूट हो चुकी थी . लोगों ने अपने-अपने घर-घूरे बना लिए थे . खेत-खलिहान हथिया लिए थे . राजा-रजवाड़ों ने अपनी सल्तनतें खड़ी कर लीं थीं . वंश-बेलें थीं जो ….हर अच्छे-बुरे पहाड़-प्रदेशों पर चढ़ कर ….उन्हें अपना चुकीं थीं . नाम थे – जिन के सामने सब पानी भरते थे ! लोग थे – जिन के सामने सब झुक-झुक कर सलाम करते थे !!

संसार था – लोग थे ……उन के अपार वैभव थे !!

मैं क्या था ….? मैं कौन था ….? मैं क्यों था ….? था कोई उत्तर ….?

नेहरू जी का युग चल रहा था . कांग्रेस के परचम हर दिल-दिमाग पर लहरा रहे थे . नेता गन …श्रेष्ट थे ! जिन्होंने आज़ादी की जंग लड़ी थी ….समाज में उन का मान था …..सम्मान था ….! उन्हीं के कहानी-किस्से थे . मेरा स्थान तो केवल सुनने वालों की कतारों में था .

“डाक्टर केशव बलिराम हेगडेवार जी  …..का नाम तो तुमने सुना ही होगा ….?” शाखा प्रमुख भाई अथावले बता रहे थे .

“नहीं सुना ….!” मैं अकड़ कर बोला था .

एक और कोई नाम था – मैंने सोचा ! ये नाम भी कोई महिमा मंडित नाम होगा – जिन्होंने खूब धन कमाया होगा …? जिस ने खूब ऐश-ऐयाशी की होगी ….और जो जरूर ही …..एक सल्तनत छोड़ कर गया होगा ….जो जरूर ….जरूर ही …..

“हमारे महान पुरुष हैं , ये !” अथावले ने सीधे स्वभाव में कहा था . “इन्हें ज़रूर ..जानो, नरेन्द्र !” उन का सुझाव था . “ये हमारे प्रेरणा -श्रोत हैं …….हमारी पीढ़ी के लिए ये एक …दर्शन हैं …..एक उपदेश हैं ….एक ….!”

‘ऐसा क्या है ….?” मेरी जिज्ञासा जागी थी .

“सन १९१० में ….कलकत्ता …डाक्टर बनने की पढ़ाई करने के लिए गए थे …!”

“तो ….?”

“लेकिन ……जानते हो पढ़ा क्या ….?”अथावले मुस्कराए थे .

“क्या ….?”

“जासूसी ….!!” एक ठहाका मार कर हँसे थे – सभी लोग . “हाँ, सच ….! उन्होंने जासूसी करना कलकत्ता में ही सीखा था !”

“लेकिन क्यों ….?” मेरा मन फिर से बिगड़ गया था . ‘जासूसी’ जैसे किसब को तो मैं निहायत ही घटिया मानता था . मेरा मन कभी होता ही न था कि मैं ….’जासूसी’ के विषय में कुछ पढूं !

लोगों के निजी क्रिया-कलापों में दखल देना ……चुपके से उन के परम-गुप्त राज़ चुरा लेना …..और उन्हें  फिर ब्लैक मेल करना , कहाँ की ….कला थी ……?

“उन में ये एक अलग से कला थी . और तब इस की ज़रुरत भी थी !”

“क्यों ….?”

“क्यों कि  ….स्वतंत्रता संग्राम तब अपने शैशव पर था ! अंग्रेजों का साम्राज्य अपने शिखर पर था ! सूरज उन के कहने पर उगता था ……हवा उन के हिसाव से चलती थी …..साँस लेना तक तब  उन से पूछ कर ही होता था ….! वो बहुत खबरदार थे . १८५७ के स्वतंत्रता संग्राम के बाद अब वो ….लोग दूसरी गलती न करना चाहते थे . वो नहीं चाहते थे कि ….फिर से कोई ‘आज़ादी’ जैसा बबाल खड़ा हो जाए .” वो रुके थे . उन्होंने हम सब के जिज्ञासू चहरों को पढ़ा था . वो तनिक खबरदार हुए थे . फिर बोले थे . “लेकिन ‘बबाल’ तो खड़ा हो चुका था ….!!”

अब आ कर मुझे उन की बातों में आनंद आने लगा था . अब , हाँ …अब …मैं चाहता था कि ….उस ‘बबाल’ के बारे जानूं …..जो तब ….१९१० में कलकत्ता में उठ खड़ा हुआ था ….!!

“राम प्रसाद बिस्मिल से संयोग वश उन की मुलाक़ात हुई थी .” अथावले ने बात के सन्दर्भ-सूत्र सामने रख दिये थे . “अब पूछोगे – ये महाशय कौन थे …? फिर पूछोगे कि ….भगत सिंह कौन था …?”

“नहीं ! भगत सिंह को तो हम जानते हैं ….” मैंने उत्सुक हो कर कहा था .

“सिर्फ ..उन का नाम जानते हो …..काम नहीं …!”

‘नहीं , हम जानते है कि …उन्हें फांसी की सजा हुई थी ….”

“पर क्यों ….?”

“बम फेंका था …उन्होंने …..”

“क्यों …?”

“क्यों कि ….क्यों कि …..वो ‘आज़ादी’ मांगते थे ….और ….”

“हाँ, ये लोग आज़ादी मांगते थे …….और अंग्रेज उन्हें मौत बांटते थे . “अथावले भी अब भावुक थे . “संक्रमण काल चल रहा था ….! देश में दो धाराएं बह रही थीं – गरम और नरम ! गरम दल के लोग – राम प्रसाद बिस्मिल और …उन के साथी चाहते थे कि ….छल से …बल से ….कौशल से ….पराक्रम से ….हम अपने देश को जीतें ….आज़ादी को हासिल करें ….! लेकिन नरम दल – गाँधी जी …नेहरु जी …..पटेल और पटवर्धन चाहते थे ….कि ….हम शांति से काम लें ! अहिंसा का अस्त्र गाँधी जी ने ईजाद कर दिया था . कहते थे – कोई एक गाल पर तमाचा मारे तो ….उसे दूसरे गाल पर भी ….तमाचा मारने को कहो ….आग्रह करो ….”

“क्यों ….?” मैं कूद पड़ा था . “यह क्यों ….?” मैंने पूछा था . “क्यों न हम उसे छटी का दूध याद दिला दें …? ऐसा प्रहार करें ….तमाचे के बदले …मुक्का मारें …लात …घूंसे …सभी का प्रयोग करें ….और …….”

“गाँधी जी की मान्यताएं अलग थीं .” चुप थे , अथावले .

लेकिन मैं था कि ….कूद कर …गरम दल की धारा से जा जुडा था ! मेरे खून में उबाल आ गया था . मेरा मन …लड़ने-मरने के लिए उतावला हो गया था . किसी भी अन्याय के खिलाफ मैं सीना तान कर ….खड़ा हो जाना चाहता था ! मैं तनिक भी बर्दास्त न करना चाहता था  …कि ….कोई किसी का हक़ छीन कर खा ले ! मैं नहीं चाहता था कि कोई दूसरे का परिश्रम चुरा कर अपने नाम लिख ले ! मैं तो चाहता था कि ….हक़-हकूक …का न्याय भी उसी प्रकार सही हो – जहाँ सब बाँट कर खाएं …..सब महनत कर के खाएं ….और सब एक दूसरे का द्यान रखें …!

और अगर कोई इस में गलती करे ….दूसरे का हक़ छीने ….औरों को गुलाम बनाए ….तो उसे …..दंडित किया जाए ! उस का तो बहिष्कार होना चाहिए ….! वह …प्रार्थना पूर्वक तो मानेगा ही नहीं …! अगर ऐसा होता तो ….आज ….जो लोग माल-असबाब दबा कर बैठे थे ….

“अंग्रेज तो पूरी दुनियां को ही दबा कर बैठे थे …..!” अथावले कहने लगे थे . “उन का तो सूरज नहीं डूबता था ….”

“सुना तो है ……पर कैसे ….था कि उन का सूरज डूबता ही नहीं था ……?” मैंने जिज्ञासा वश पूछ ही लिया था .

“विश्व दो गोलार्धों में बटा है …..! सूरज जब एक में गरूव होता है तो ….दूसरे में उदय होता है …..! अंग्रेजों का राज्य तो समूचे विश्व में था ….तो …सूरज उन के राज में चमकता ही रहता था ….!!”

“आश्चर्य ….!!” मैं भिन्न तरह से …विभोर हो गया था . “महान लोग थे . विद्वान् लोग थे …..समर्थ थे …..वीर थे …..! ज़रूर ……उन में से कुछ इतने पराक्रमी होंगे ….कि ….”

“चालाक थे …..!” अथावले हँसे थे . “क्राफ्टी थे ….! वक्त उन के पक्ष  में था .”

“हमारे पक्ष में क्यों नहीं था ….?”

“हम गलतियाँ कर चुके थे …..!”

“कैसी गलतियाँ ….?”

“एक दूसरे को परास्त करने की गलतियाँ …..! भाई-भाई की जंग में हम ….देश ही नहीं …..धर्म -ईमान तक हार चुके थे …..!! हमारे पास रहा ही क्या था ….? यहाँ तक कि हमारे ही लोग ….अंग्रेजी शाशन के साथ थे ….उन के पिठ्ठू …बने हुए थे ….उन का सहयोग कर रहे थे ….! हमारे ही लोग पुलिस की बर्दियाँ पहन-पहन कर …हमारे ही स्वतंत्रता सैनानियों पर कोड़े वर्षा रहे थे ….उन्हें यातनाएं दे रहे थे ….”

“यातनाएं ……?”

“हाँ ! भयंकर यातनाएं ……!! सुनोगे …तो रो पड़ोगे , नरेन्द्र !!”

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श्रेष्ठ साहित्य के लिए – मेजर कृपाल वर्मा साहित्य !!

 

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