महान पुरुषों के पूर्वापर की चर्चा .

भोर का तारा – नरेन्द्र मोदी !

उपन्यास अंश :-

मुझे भी तो इसी प्रकार का रोमांच हुआ था जब मैंने पहली बार क्रिस्टी को देखा था ?

गंगा सागर श्रद्धालूओं की भीड़ से नाक तक भरा था ! देश-विदेश के लोग गंगा स्नान की तैयारियां कर रहे थे . आज के दिन का महान महात्म्य था ! आज के दिन …इस घडी और नक्षत्र में गंगा सागर आ कर गंगा में स्नान करना बड़े ही महत्व का था !

धूनी जल रही थी . गुरु जी एकाग्रचित्त हो कर अपनी साधना में लीन थे !

अचानक जीर्ण-शीर्ण … पीत-श्वेत अंग-वस्त्र में …ऊपर से नीचे तक लिपटी एक आकर्षक …सुंदर …लम्बी …गोरी …नीली आँखों वाली …और अपनी भूरी जटाओं को फहराती – युवती धूनी के सामने आ खड़ी हुई थी ! मैंने आँखें झिपझिपा कर उसे देखा था . उस ने भी मुझे एक अजूबे की तरह …पहचानने की कोशिश की थी ! छातियों से ले कर उस का नीचे घुटनों तक का शरीर ढंका था ! बाकी का सब भस्म में पुता था ! मुझे वो महिला परलोक से आई कोई परी लगी थी !

“तुम ……?” उस ने पहले मुझे प्रश्न पूछा था क्यों कि मेरा यहाँ होना भी तो एक अजूबा ही था ?

“नरेन्द्र ….!” मैंने साहस बटोर कर कहा था . मैं अब भी सोच रहा था कि कहीं ये …सिस्टर निवेदिता तो नहीं आ गई ? “म…म…मैं …..” और क्या कहता आगे – समझ में ही न आ रहा था .

“क्या हुआ ….?” गुरु जी ने आँखें खोल दी थीं . उन्होंने सीधा प्रश्न पूछा था . शायद वो जानते थे कि उस सुंदरी का वहां आना कोई अर्थ रखता था ?

“राबर्ट की म्रत्यु हो गई है !” उस युवती ने गुरु जी को सूचना दी थी .

गुरु जी ने फिर से आँखें बंद कर एक छोटी प्रार्थना की थी .

“मैं …मैं …चाहती हूँ कि ….” वह रोने लगी थी . “अ-ग-र …..आप ….?”

“बैठो !” गुरु जी ने आदेश दिया था . “देखो , मंजू ! क्रिस्टी तो कब की मर चुकी है ….? उस का तर्पण भी तुमने कर दिया ….? अब राबर्ट तुम्हारा …..?”

“पिता ….तो थे …ही ….?”

“अब नहीं ! मंजू का कोई पिता-माता नहीं है ! वह तो सन्यासी है ….निर्मोही है ….! अकेली है ….ईश्वर की है !” मुस्कराए थे , गुरु जी . “व्यर्थ के शोक में क्यों पड़ती हो ….?” गुरु जी ने पूछा था . “कौन है – जो मरेगा नहीं ….?” उन का प्रश्न था .

“इतनी बड़ी संम्पत्ति है ….गुरु जी ! बैक में भी …..पैसा …..है ….और …..”

“तुम क्या करोगी …..?”

“सोचती हूँ , दान ही कर दूं ….? निर्मोही को ही दे दूं , सब ….?”

“उचित है !” गुरु जी ने संयत स्वर में कहा था .

अब गुरु जी ने और मंजू ने पलट कर एक साथ मुझे घूरा था !

“आते हो , नहाने नरेन्द्र ….?” मंजू ने मुझे पूछा था . “ले जाऊं नरेन्द्र को, गुरु जी ….?” उस ने आज्ञा मांगी थी .

“ले, जाओ …..!” गुरु जी ने आज्ञा दे दी थी . “पर नरेन्द्र को दीक्षा नहीं देनी है !” उन्होंने मंजू को बताया था . “इसे तो संसार में लौटना होगा …..!” उन का स्वर उच्च था . “उसी के लिए तैयारी होनी है , नरेन्द्र की !” हंस गए थे , गुरु जी .

“चलो,नरेन्द्र !” मंजू ने मुझे बांह पकड़ कर उठाया था . “बातें करेंगे …..” वह कह रही थी . “तरस गई हूँ, गप्पें मारने को ….?” वह अब गुरु जी को देख रही थी . “राबर्ट को भी भूल जाऊंगी …..”

“नरेन्द्र को बता कर ….?” गुरु जी मुस्कराए थे .”यही ठीक रहेगा ….! दुःख बट जाता है ….तो …छोड़ जाता है !” उन का कहना था .

हम गंगा किनारे आ बैठे थे . मंजू ने अपना श्वेत -पीत …अंग-वस्त्र …मुझे भी स्नान करने के लिए दिया था . अब हम दोनों एक जैसे ही लग रहे थे ! आते-जाते लोग हमें शकिय निगाहों से देखते … और निकल जाते ! लेकिन मैं और मंजू बे-खबर हो अपनी ही गप्पों में उलझे थे !

“मेरे पिता रोबर्ट यहीं भारत में वायसराय के आफिस में सेक्रेटरी थे ! ढेर सारा धन-दौलत कमा कर भारत से लौटे . लन्दन से कुछ दूर उन्होंने बायना में जागीर खरीदी . माँ -लूसी के साथ एशो-आराम से रहने लगे ! मेरा जन्म भी बायना में हुआ . दम्पति – जाने-माने लोगों में से एक थे ! उन की सोशल लाइफ व्यस्त होती ही चली गई . मैं तो आया और नौकरों के साथ ही खेलती ! बहुत बड़ी जागीर थी . उस में मैं – एक नन्हीं -सी बच्ची ….ढूढे न …मिलती …?” मंजू ने मेरी आँखों में झाँका था .

कैसी भेद भरी निगाह थी – मंजू की ….? मैं डर गया था . मैं सोच रहा था कि …जरूर ही मंजू ….मुझे …..

“फिर दोनों …अलग-अलग रहने लगे थे .” मंजू ने बात खोली थी . दोनों के रास्ते कहीं न मिलते थे ! और जब कभी दोनों आमने-सामने होते थे – तो …उन के आपस में लड़ने की आवाजें ….मैं सुनती रहती थी ! रोबर्ट माँ को ‘बिच’ कह रहा होता ….तो माँ उसे …ब्लडी बास्टर्ड , कह – बखान कर रही होती ! फिर कभी-कभी जब उन में ज्यादा झगडा हो जाता तो ….नौकर-चाकर भागते और उन की सुलह-सफाई कराते ! और फिर दोनों पंछियों की तरह ….घोसला छोड़ कर भाग जाते !!”

“और ….तु-म-…. मेरा मतलब ….आप ….?” मैं कहानी को ध्यान से सुन रहा था .

“लावारिश ….थी …मैं तो ….नरेन्द्र …?”

“फिर …..?”

“फिर एक दिन ….बड़ा काण्ड हुआ ! दोनों खूब लड़े …और रोबर्ट ने लूसी को पीट दिया ! लूसी दौड़ी …और किचिन से मीट -चौपर ले कर अपना गला काट लिया ! मैं इन पलों में डूब कर उन की होती जंग देख रही थी ! और जब लूसी ने अपना गला काटा …और सर ज़मीन पर गिरा …तो …मैं ही नहीं …रोबर्ट भी बेहोश हो कर …वहीं ढेर हो गए थे !! “

“फिर ….?”

“फिर , नरेन्द्र ! होश आते ही मैं उठी …..और भाग ली ! मैं भागती ही रही …और …भारत लौट आई ! मैंने सुना था -हिमालय और वहां कंदराओं में तपस्या करते साधुओं के बारे ! मैं सीधी हिमालय की ओर चली ….और लोगों ने मुझे यहाँ …इस निर्मोही अखाड़े तक पहुंचा दिया !” अब मंजू ने फिर से मुझे देखा था . “अब तो रोबर्ट भी मर गया ….?” उस ने गहरी निस्वांस छोड़ी थी .

“गरीब भारतीयों का माल लूट कर ले गए थे ….?” मैं मन-ही-मन कह रहा था . “ये तो होना ही था , क्रिस्टी ?” न मैं रोया था …और न ही मैंने कोई अफ़सोस जाहिर हिय था .

मंजू लौटी थी . उस ने मुझे हाथ पर छुआ था . में भी अब अपने आप में लौट आया था . मंजू की आँखें निरभ्र आकाश की तरह थीं ! वह अपने लिए व्रत के प्रति समर्पित थी !!

“रोबर्ट ने मुझे खोज लिया था ! वह तो भारत को …और यहाँ के लोगों को …खूब जानता था !”

“रोबर्ट क्यों कहती हो ….? ‘पिता जी ‘ ……..क्यों नहीं …?”

“मैंने व्रत ले लिया है ,ना ….? मैं तो अब ‘क्रिस्टी’ हूँ ही नहीं ? मैं तो अब एक ….मौज हूँ , नरेन्द्र ! …मैं …मंजू हूँ ….जो एक अकेली आत्मा है …और मेरा अभीष्ट …परमात्मा है !” मंजू ने मुझे भी विचलित कर दिया था . “रोबर्ट और लूसी का ..जीवन देख कर तो …जीने की चाह ही चुक गई थी !”मंजू चुप हो गई थी . मैं उस के मौन को परखने लगा था . “क्या,रे ….?” वह फिर से चहकी थी . ” बदबू मारती है – इस अपने तेरे के संसार में ….?” उस ने कहा था . “लेकिन …अब …?” उस ने मुझे बांह से पकड़ा था . “चल ! लगाते हैं – डुबकी …..? गंगा मैया ….जानें ……..”

और हम दोनों गंगा के प्रवाहित होते पवित्र जल में डुबकियाँ लगा रहे थे ….!!!

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श्रेष्ठ साहित्य के लिए – मेजर कृपाल वर्मा साहित्य !!

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