by Major Krapal Verma | Oct 21, 2025 | स्वामी अनेकानंद
आनंद आज स्वयं चल कर आया था। राम लाल आदतन आकर अपनी कुर्सी पर बैठा था। चाय आ गई थी। लेकिन दोनों के बीच आज चुप्पी आ बैठी थी। आनंद ने कई बार राम लाल को पढ़ने का प्रयत्न किया था। लेकिन वह चुप ही बना रहा था। “मुझे संन्यासी बन कर क्या मिलेगा?” आनंद ने ही चुप्पी...
by Major Krapal Verma | Oct 19, 2025 | स्वामी अनेकानंद
राम लाल के कानों में बर्फी की आवाज घनघना रही थी। “सुनो। इसे निकालो यहां से। मेरे बच्चे बिगड़ेंगे।” के स्थान पर अब राम लाल सुन रहा था, “सुनो। तुम निकलो यहां से। मेरे बच्चे नहीं चाहते कि तुम ..” राम लाल के पसीने छूट गए थे। जिस स्वर्ग संसार के...
by Major Krapal Verma | Oct 16, 2025 | स्वामी अनेकानंद
रात का अवसान था। बर्फी ने राम लाल को गहरी नींद से झकझोर कर जगा दिया था। आंखें मलता राम लाल कई पलों तक कुछ समझ ही न पाया था। “उठो।” बर्फी ने धीमी आवाज में कहा था। “उसके कमरे की लाइट जल रही है।” बर्फी बता रही थी। “जाकर देखो।” उसने...
by Major Krapal Verma | Oct 15, 2025 | स्वामी अनेकानंद
राम लाल की मंजिल की दूसरी सीढ़ी का नाम था – आनंद बाबू। आदमी की चाहत ईश्वर पूरी करता है – अचानक राम लाल को एहसास हुआ था। उसे बिन मांगे बर्फी मिली, उसे बर्फी से दो बेटे और एक बेटी मिली। तीनों तंदुरुस्त, गोरे चिट्टे और साफ सुघड़ और अब आकर ईश्वर ने ही उसे आनंद...
by Major Krapal Verma | Oct 14, 2025 | स्वामी अनेकानंद
देर रात गए तक आनंद अंग्रेजी में आते समाचार ही सुनता रहा था। कहीं कुछ समझ आता तो कहीं सब छूट जाता। कहीं सर, तो कहीं पैर। पकड़ में जो आता नहीं – सफाचट्ट चला जाता। पर नीलू के कहे अनुसार आनंद लगातार उस वक्त के आते कंठ स्वरों को पकड़ने का प्रयास करता और एक फिनक में...