by Verma Ashish | Oct 26, 2022 | स्नेह यात्रा
मुक्तिबोध ने हम सब को एक चुनौती सी दी है। उसे अपने पैंतरे याद हैं। वह उन पर मनन और अभ्यास कर चुका है। मैंने भी मन ही मन मुक्तिबोध को स्वीकार कर लिया है। “ओके! आप का मांगा हम ने दिया!” कह कर बोर्ड के सभी मेंबर हंस पड़े हैं। हम सब के साथ मुक्तिबोध भी हंसा...
by Verma Ashish | Sep 13, 2021 | Uncategorized
रंगे सियार हैं ये कभी तिलक तो कभी टोपी लगाते हैं ये कभी क्रॉस भी लटका लेते हैं कभी दलित तो कभी ब्राह्मण बन जाते हैं भ्रमित न हो जाना दोस्तों इनका इष्ट तो बस कुर्सी है इन्हें मोक्ष नहीं सत्ता चाहिये बस। सड़क पर बैठे भिखारी को देखा, परेशान हैरान आम आदमी को देखा,...
by Verma Ashish | Sep 30, 2020 | Hindi Poems
लोकतंत्र तो देश के लिए है! राज नेताओं के लिए नहीं एक पार्टी बना लो उसके फिर कोई नियम नहीं जो मन में आये वो करो! चंदा लो, लोगों से, व्यापारियों से, नौकरी करने वालों से, सरकारी नौकरों को भी उगाही का काम दो! देश को बेच दो, दूसरे देशों से भी चंदा लो, ...
by Verma Ashish | Apr 10, 2020 | Hindi Poems
बंद करो कोरोना का रोना मिलो अपने आप से! कोई अच्छा गा सकता है तो कोई अच्छा लिख सकता है कोई पेंटर है कोई कवि कोई भोजन बना सकता है कोई विडिओ कोई सो सकता है आराम भी जरुरी है कोई कसरत कर सकता है समय मिला है मिलो अपने आप से! जो भी भीतर है वही बाहर भी है बहार दुःख है तो दुःख...
by Verma Ashish | Apr 4, 2020 | Stories by Munshi Premchand
– प्रेमचंद हल्कू ने आकर स्त्री से कहा – सहना आया है| लाओ, जो रूपए रखे हैं, उसे दे दूँ, किसी तरह गला तो छूटे| मुन्नी झाड़ू लगा रही थी| पीछे फिर कर बोली – तीन ही रूपए हैं, दे दोगे तो कम्बल कहाँ से आवेगा? माघ-पूस की रात हार में कैसे कटेगी? उससे कह दो,...