महान पुरुषों के पूर्वापर की चर्चा.

भोर का तारा – नरेन्द्र मोदी !

उपन्यास अंश :-

“दिल्ली लुट रही है ,नरेन्द्र !” मैं आवाजें सुन रहा था . “तुम सो रहे हो …और लुटेरे देश में डाके मार रहे हैं …? धन-माल लूट-लूट कर लिए जा रहे हैं !” आवाज़ एक दम स्पष्ट थी . “बफोर्स …..!” मैं सुन रहा था . “टू …जी ….?” आवाजें आती ही जा रही थीं . “सत्यम …..?” कोई कहता ही जा रहा था . “कॉमन वेल्थ गेम्स में तो …लूट मची है,रे !” मुझे किसी ने झिंझोड़ डाला था . “तुम …..तुम …सोते ही रहोगे ….?” अब की बार उल्हाना आया था . “अकेले गुजरात को ले कर …कब तक झांझ बजाते रहोगे ….? है क्या ,अकेला गुजरात …? यही तो हर बार हुआ है ..और बारी-बारी देश लुटा है ! याद नहीं ……”

अब आ कर मेरी नीद खुली थी . मैंने आँखें खोल कर देखा था . धूनी तप रही थी . कोयले दहक रहे थे . भीना-भीना पवन …छोटे-छोटे झकोरों से …बीमार पड़े देश को प्राणदान दे रहा था . गुरु जी द्यानावस्थित थे ! मैं भी उठ कर बैठ गया था . लेकिन …….

“भूल गए ….?” गुरु जी ने मुझे विहंस कर पूछा था . “मैंने बताया न था ,नरेन्द्र कि ….भारत …की गुलामी का इतिहास बृहद है ? याद हो तो …मैंने कहा था कि ….शुरू-शुरू में जब भी अरब और तुर्क आए थे …तो हम लड़े थे ! लेकिन हम गांधार को बचा न पाए थे …? कारण था …! तुर्कों की भारी संख्या …और राजा जयपाल का छोटा बजूद ! यहाँ से कोई भी मदद न पहुंची . हार गए – जयपाल ? सब हार गए – राज-पाठ …धन-दौलत ….और यहाँ तक कि …स्त्रियाँ भी लुटीं … और अंत में …….

“अंत में …..?” मेरी नीद खुल चुकी थी .

“अंत में …चिता बना कर ….जल मरे …..!” गुरु जी की आवाज़ में आक्रोश था . “क्या करते , बेचारे ….? उन की तो रानी भी साथ लड़ी थी ….? पर विवश थी ….हार गई थी ….!” गुरु जी ने बताया था . “गंधार गया ….और उस के बाद तो ……”

उस के बाद तो हम हारते ही चले गए थे – मुझे याद आने लगा था !

“सत्रह बार आक्रमण किया …मुहम्मद गज़नी ने …! और हर बार वह एक न एक शिकार को खा कर ही गया …? धन-माल भी ले कर गया ! समग्र भारत तमाशा देखता रहा ….?” गुरु जी ने मुझे घूरा था . “जैसे कि आज ….तुम तमाशा देख रहे हो ….?” वह हंस पड़े थे . “सोच रहे हो – तुम ने तो गुजरात को महान बना लिया …है ! तुम ने तो अपनी मंजिल पा ली है !! और अब तुमने तो …..”

“मैं ….मैं …और क्या करू…..?” मैं निराश था . “एक मुख्य मंत्री हूँ ….एक प्रान्त का …..सो …मैं ….”

“देखते नहीं हो , दिल्ली में फिर से …विदेशियों का राज हो गया है ….?” कड़क आवाज़ में पूछा था , गुरु जी ने . “मुखौटे हैं , मनमोहन !” उन्होंने स्पष्ट कहा था . “देश में साजिश चल पड़ी है ! लोगों को बहकाया जा रहा है ! अब की बार ..हिन्दूओं को नंगा कर के …देश निकाला दिया जाएगा ….और …..”

मैं थर्रा गया था ! मैं हिल गया था !! गुरु जी सच ही कह रहे थे …? एक साथ – धर्मनिरपेक्षता की चली चाल ….मेरी समझ में आ गई थी !

“सब कुछ हार जाओगे , नरेन्द्र !” गुरु जी गरज रहे थे .

मुझे पसीने आ गए थे ! दिल्ली पर हमला …..दिल्ली पर चढ़ाई ……?

“गज़नी के पास भी क्या था , नरेन्द्र ?” गुरु जी ने मुझे स्नेह से पुकारा था . मैं डर गया था ,ना ! “गज़नी कोई बहुत बड़ी ….राजधानी …या कुछ ऐसा गढ़ न था – जिस का बखान किया जाए …?” उन्होंने मुझे फिर से ध्यान पूर्वक देखा था . “यों ही एक उजाड़-वियावान था -सब ! पहाड़ी इलाका …असभ्य लोग ….!” उन की आवाज़ कड़क थी .”लेकिन …ये गज़नी -अच्छा सैनिक था …चतुर सिपहसालार था …और दूरदर्शी था ! बहादुर तो वो था ही …पर उस ने अपने सरीखे …और भी बहादुरों को आमंत्रित कर लिया था ! कहा था – वहां भारत में धन की धाराएं बहती हैं ! वहां सुंदर स्त्रियाँ मिलती है !! वहां के आदमी डरपोक हैं ….और हम आसानी से ..लूट-पाट कर माल कमा लाएंगे !!! चलते हैं …..? वह कहता और उस जैसे ही लुटेरे उस के साथ हो लेते …”

गुरु जी ठहर गए थे . गुरु जी जैसे थक गए थे ! गुरु जी की आँखें नम हो आईं थीं !!

“और हम , नरेन्द्र ….? हम इस भारत-भूमि का भोग करते ….कायर , चूहों की तरह ….बिल बनाने लगते हैं …! हम शुतुर मुर्ग की तरह …रेत में मुंह गाढ़ कर …सोचते हैं कि …हम तो अब सुरक्षित हैं ! लोग सोचते थे – क्या करेगा अब गज़नवी ….हमारा …? लूट-पाट करेगा …और कुछ माल और स्त्रियाँ ले कर चलता बनेगा …! हमारा बिगड़ेगा , क्या ….?”

खोटा सोच था -मैंने माना था . कायरतापूर्ण प्रतिक्रिया था – हमारी , मैं गुरु जी की बात समझ गया था !

“ये नहीं कि ….हमारे राजों-रजवाड़ों के पास …लाव-लश्कर न था …? और ना यही कि …हमें लड़ना न आता था …? लेकिन हमारे पास गज़नी जैसी सूझ-बूझ ना थी ….साहस न था …दूरदर्शिता न थी ! हम उठ कर कभी गज़नी की ओर चले ही नहीं ….? हमने कभी दो कदम उठा कर न धरे – दुश्मन की ओर ? हम इंतज़ार करते रहे ….हर बार , उस के आने का ….और आ कर लौट जाने का ….!”गुरु जी ने मुझे फिर से देखा था .

“पर ….पर …अब तो ….?”

“क्यों ….? बारी-बारी लाशें उठ जाती हैं , नेताओं की ….?” गुरु जी ने स्पष्ट कहा था . “हर बार हार जाते हैं ….हम ! लेकिन न तो ….उठते हैं …और न ही एकजुट होते हैं ….?” सफ़ेद सच का बयान कर रहे थे,वो . मैं भी सोचने लगा था कि …सब कुछ हमारी आँखों के सामने ही घट रहा था …पर फिर भी हम आपस में लड़ते चले जा रहे था ….?

“तुम ….! नरेन्द्र मोदी – तुम , अकेले …अब …इस वक्त की …उन की आँख की किरकिरी हो ! उन्हें लगता है कि तुम …उन का रास्ता रोकोगे ? उन के पास तुम्हारे बारे में सब सूचनाएं हैं . ‘गोधरा’ के रचे लाक्षाग्रह से जिन्दा बच गए हो – …इस का मतलब ये नहीं कि तुम्हें जीवन-दान मिल गया है ?” गुरु जी गंभीर थे . “मुझे तुम्हारी चिंता है , पुत्र !” वो कहीं सोचने लगे थे . “ये लोग बहेलिए हैं ! तुम चाहे जितना इन का भला सोचो ….. पर ये मौका आते ही ….तुम्हारे पंख उखाड़ देंगे …..और ….”

अँधेरा छा गया था ….मेरी आँखों के सामने ….!!

“संग्राम वो जीतता है ….जो पहला तीर मारता है !” गुरु जी बता रहे थे . बैठ कर मौत का इंतज़ार तो हमने हर बार किया है ?” उन का ये उल्हाना था . “हमला करो तो …..जानें ….?” वो मुझे चुनौती दे रहे थे . “सवेरा तो होने को है , नरेन्द्र ….? इस बार मत चूक जाना , पुत्र !!” और वो चले गए थे .

मैं जागा था ! मैं उछाला था !! मैंने सब से पहले …अमित को फोन पर पुकार लिया था ! मैं अब …बैठ कर …या कि चूहों की तरह बिल में घुस कर मरना न चाहता था ….?

अब मैंने …आक्रमण के आदेश देने थे ….!!

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श्रेष्ठ साहित्य के लिए – मेजर कृपाल वर्मा साहित्य !!

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