‘माई वाइफ’ उस ने नहीं कहा था !

शायद लड़-लड़ा कर आया था कहीं से ….?

अब मेरे सामने खड़ा था . एक सुदर्शन …मन भावन ….और मस्त युवक मुझे अपलक घूरे जा रहा था . में भी न जाने क्यों उसे निहारती ही रही थी !मुझे अच्छा लग रहा था . ….उस का अंग सौष्ठव ! अब तक , जी हाँ …अभी तक …मैंने इतना आकर्षक पुरुष देखा नहीं था !!

“”ये …..!” उस ने अपनी कमीज़ के भीतर से पत्रिका ‘रिपोर्टर’ खींच ली और मुझे मेरा उस पर छपा चित्र दिखाया था . मेरे इस छपे चित्र ने जगत में धूम मचा दी थी . मेरा हुश्न पहली बार ही सर चढ़ कर बोला था ! लोग ये चित्र देख-देख कर दीवाने हो रहे थे . और अब ये दीवाना ……”तुम्हारा है ….?” उस ने प्रश्न पूछा था .

“क्यों …..?” मैंने तनिक मुस्करा कर कहा था . कमाल ये था कि मैं उसे अब भी अपलक देख रही थी . “पसंद नहीं आया ….?” मेरा स्वर शरारती था !

वह तनिक हिला था . मेरे और करीब आ गया था . उस की चंचल आँखें मुझे समेटती लगीं थीं . शायद वह मुझे अपनी बलिष्ठ बांहों में लेने के लिए बे-ताब था ! उस का लड़ाकू चेहरा अब सहज होने लगा था . उसे शायद मुझे पा लेने की उम्मीद बंध गई थी . अब वह मेरा हो चुका था . और मैं …..? सच-सच कहूँगी ! वही क्यों …मैं भी तो उस की दीवानी हो चुकी थी !! एक नज़र में मैं भी उसे अपना सर्वश्व दे बैठी थी . था …न …कमाल ….?’

“अंदर आ सकता हूँ ….?” उस ने मुस्कुराने का प्रयत्न किया था .

“सहर्ष ….!” मैंने उस का स्वागत किया था और उसे अंदर ले आई थी .

अब हम फिर से एक दूसरे के सामने खड़े थे .

“मुझे टोनी कहते हैं !” वह बोला था . “में ……..”

“मेरा नाम तो तुम जानते ही हो ….!” मैंने बड़े आदर के साथ कहा था . “मौना ….!” मैं हंसी थी . ” जो अब एक हस्ती है ….मशहूर है ….और …..”

“हर दिल अज़ीज़ है ….!” उस ने वाक्य पूरा किया था . “पर ‘टोनी’ …मेरा मतलब कि मैं अभी तक अज्ञात हूँ .” उस ने आँखें नचा कर कहा था . “लेकिन एक दिन ….सूरज मेरा भी चढ़ेगा …..!!” वह हंस पड़ा था . “अगर तुमने …..”

“बैठो ….!” अब की बार आग्रह मैंने किया था .

हम दोनों सहज हुए थे . मुझे एहसास हुआ था कि आज पहली बार मेरी किस्मत ने मेरा दरवाज़ा खटखटाया था . में जो मांगती रही थी ….वही स्वयं चल कर मेरे द्वार आ खड़ा हुआ था – एक करिश्मा की तरह ! का:श ! आज मेरी माँ जिन्दा होती ? टोनी को देख कर गदगद हो जाती !! घोर निराशा में मरी – मुझे अविवाहित छोड़ कर ! जब कि वह चाहती थी कि ….

“क्या चाहिए ….?” उस ने पूछा था .

न जाने क्यों ये प्रश्न आज मुझे बेहद बुरा लगा था ! आज पहली बार मैंने अपनी कीमत न मांग कुछ और ही मांगना चाहा था ! लेकिन ये था …कि पूछ रहा था ….कि ….

“तुम …., तुम चाहिए ….., तुम !!” मैंने उस की आँखों में आँखें डाल कर कहा था .

अब आ कर टकराईं  थीं – हमारी आँखें !!

अब आ कर हम एक दूसरे के सामने अपनी -अपनी चाहतें  ले कर तने खड़े थे ! उसे मैं चाहिए थी ….और मुझे वो चाहिए था ! यह घटना मेरे जीवन की प्रथम घटना थी …जब मैंने किसी पुरुष को मन से चाहा था ! अभी तक …आज तक ….और इस पल तक ….सच मानिए – मुझे कोई भी पुरुष पसंद ही न आया था….भाया तक न था मुझे ! जो भी मेरे संपर्क में आया ….मुझे वह बेहूदा …बेईमान …लुच्चा ….या कंगाल और कंजूस ही लगा ! मैंने – जो भी मुझसे चिपका , उसे लात मार कर भगा दिया ! मैं जानती थी कि ज़माना एक घटिया दौर से गुज़र रहा था …..और आदमी न आदमी रहा था ….और न आदमी का अंश ! आदमी नर-भक्षी बन चुका था !

लेकिन …ये पुरुष …..ये युवक …..न जाने कैसे मुझे समग्र रूप से पसंद आ गया था !!

“सोच लो …..!” वह बोला था . “मैं ……”

“लड़ाके हो , मैं जानती हूँ !” मैं जोरों से हंस पड़ी थी . “बट……आई …लाइक यू …….एंड ….आई ….लव यू …!” मैं कह बैठी थी .

“आई …लव यू …., मौना !” वह कह रहा था . मैं उस की बांहों में थी . “यू …आर माय लव ….माय …हेवन ….एंड …माय लाइफ ….!!”

‘माय …वाइफ’ उस ने नहीं कहा था !!

………………….

क्रमस –

श्रेष्ट साहित्य के लिए – मेजर कृपाल वर्मा साहित्य !!

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