सम्मेलन में ग्यारह बजे पहुंचना था। पूरी दुनिया के पुरोधा सम्मेलन में भाग लेने के लिए पधारे थे। आज दुनिया के दो सौ करोड़ मुसलमानों ने एक अहम वक्त नियुक्त करना था – जब उन्हें चारों ओर से गोलबंदी कर काफिरों पर गिद्धों की तरह टूट पड़ना था और उन्हें तबाहो-बर्बाद कर इस्लामिक स्टेट कायम कर देना था।
मुनीर खान जलाल और शगुफ्ता ऊपर नाश्ते के लिए तिमंजिले पर आ बैठे थे।
शीतल स्वच्छ मंद समीर नीले समुंदर के आर पार से चल कर उनके साथ अठखेलियां कर रहा था। मुनीर खान जलाल के होंसले आज बुलंद थे। उसे उम्मीद थी कि आज अवश्य ही वह खलीफात में चुन लिया जाएगा। उसके पास अकूत ढोलू शिव का खजाना था और वह चाहता तो सारी दुनिया का सौदा कर लेता .. लेकिन संघमित्रा ..
“तुम्हारा केस खुल गया है, मुनीर।” शगुफ्ता धीमे से बोली थी। “बलूच हैज स्पिल्ड द बीन्स।” उसने मुनीर खान जलाल को सूचित किया था। “सात खाली चले कारतूस और तीन जिंदा कारतूस तुम्हारी उस नाइन ओ नाइन पिस्तौल समेत ..” रुकी थी शगुफ्ता। दोनों के बीच सन्नाटा लौट आया था। “कोर्ट मार्शल हुआ – बलूच का।” वह फिर बोली थी। “अब जेल में बंद है।” उसने अगली सूचना भी दे दी थी।
मुनीर खान जलाल पीला पड़ गया था। उसका शरीर एक अजीब सन्निपात को झेलता रहा था। वह समझने की कोशिश कर रहा था कि आखिर शगुफ्ता अपने होश हवास में तो थी? वह जो कहती जा रही थी वह तो भूला बिसरा विगत था। वह तो ..
“पाकिस्तान को यह भी पता है कि तुम ..” शगुफ्ता ने अगली सूचना भी दी थी। “लेकिन इन्होंने पाकिस्तान से वक्त खरीद लिया है।”
मुनीर खान जलाल ने खिड़की से बाहर पसरे नीले आसमान की पड़ताल की थी।
तनिक संभला था मुनीर खान जलाल। उसने अपने मन में कहा था – मैं चाहूंगा तो अब पाकिस्तान को ही खरीद लूंगा। लेकिन उसने शगुफ्ता पर अपने भाव व्यक्त नहीं किए थे।
“ये लोग मन बना बैठे हैं कि तुम्हें काम होने के बाद पाकिस्तान को सुपुर्द कर देंगे।” शगुफ्ता बताने लगी थी। “वैसे भी ये लोग हम मुसलमानों को हिन्दू ही मानते हैं। हमें कनवर्टी कहते हैं। हम पर विश्वास नहीं करते। खलीफा बनाने की बात तो दूर है, मुनीर ये लोग तो तुम्हें ..” शगुफ्ता का मन भर आया था। “बेकार की रार मोल ले रहे हैं हम हिन्दुओं से।” शगुफ्ता ने अपनी राय पेश की थी।
ये दूसरी गाज गिरी थी मुनीर खान जलाल के ऊपर। उसे अचानक अपने परदादा जोरावर सिंह याद हो आए थे। क्यों कनवर्ट हुए दद्दा, उसने बिलख कर स्वयं से प्रश्न पूछा था। क्या मिला उन्हें मुसलमान बन कर – वह समझ ही न पा रहा था।
“मुझे ये सब तुम्हें बताना नहीं चाहिए था, मुनीर।” शगुफ्ता ने चुप्पी तोड़ी थी। “मैंने अपनी ओथ तोड़ी है।” वह बता रही थी। “जानते हो क्यों?”
“क्यों ..?” मुनीर ने गहक कर पूछा था।
“आई लव यू मुनीर।” शगुफ्ता का कंठ भारी था। “क्योंकि हम दोनों ही अभागे हैं।” उसने बताया था। “हम दोनों के साथ अन्याय ही होता रहा है। और अब तो इंतहा ..” शगुफ्ता की आंखें गीली हो आई थीं। “पाकिस्तान इंतजार में है कि तुम लौटो। बलूच के साथ ही तुम्हें भी फांसी पर लटकाएंगे – ये तय है।”
“ओह नो ..!” उछल पड़ा था मुनीर खान जलाल।
“ओह यस।” शगुफ्ता ने उत्तर की पुष्टि की थी। “और मैं भी ओथ तोड़ने के जुर्म में कम से कम आजीवन के लिए कारावास में रहूंगी।” शगुफ्ता ने सारा सच बयान किया था।
मुनीर खान जलाल आज पहली बार अपना विवेक खो बैठा था।
“मेरी बात मान लो मुनीर।” शगुफ्ता ने धीमे से कहा था। “मैंने सारे बंदोबस्त कर लिए हैं। अपने द्वीप पर चलते हैं, सब कुछ सुरक्षित है वहां। तुम्हें मैं ताती बयार तक न लगने दूंगी, माई लव!” उसने मुनीर को मनाया था। “कुछ नहीं धरा हिन्दुस्तान ओर पाकिस्तान में।” शगुफ्ता का आखिरी आग्रह था। “चलते हैं ..”
लेकिन शगुफ्ता को क्या पता था कि अब मुनीर का सब कुछ हिन्दुस्तान में ही था, और अब उसका जीना और मरना संघमित्रा के साथ ही था।
मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड