“सलमा की तरह सुंदरी भी तो सेकिंड हैंड है। महेंद्र की विधवा है। राहगीर राम चरन को पकड़ा था और शादी कर ली। एक बेटा शिव चरन बड़ा हो रहा है तो दूसरा श्याम चरन इज ऑन द वे। और तुम ..? राम चरन ढोलुओं का नौकर!” खाली-खाली निगाहों से खुले आसमान को देखा था – राम चरन ने। “बेकार में ही अपना चौड़ा कर बैठे – मुनीर खान।”

ढोलुओं का उजड़ा बियाबान बगीचा हरा भरा हो उठा था। संतान का आगमन कितना शुभ होता है – आज उसे शिद्दत के साथ सता रहा था। कहां होंगे – अमन और चमन – वह तो जानता तक नहीं था। सोलंकी के थे या नहीं थे – उसके थे या नहीं थे – पर दो बेटे तो थे। लेकिन ..

“अपने हाथों अपना सुखी संसार उजाड़ने वाला – यू आर अ फुलिश मैन – मुनीर खान जलाल।” दुख के अथाह सागर में जा डूबा था वह। “खलीफा भी बने तो क्या लोगे? है क्या तुम्हारे पास?” क्षत विक्षत था राम चरन। “क्या लूट लोगे हिन्दुओं को? सो वॉट? पता चलते ही कि तुम एक जासूस हो और मुसलमान हो – सुंदरी सहज कहां रह पाएगी? शिव चरन और श्याम चरन तो हिन्दू हैं – हिन्दू ही रहेंगे। अब तुम क्या करोगे दोस्त?” वह स्वयं से पूछ रहा था। “खलीफा बनना या न बनना तो मात्र एक ख्वाब ही तो था। असल में तो तुम ..?”

मुगलों का इतिहास सामने आ खड़ा हुआ था और उस पर लानत भेज रहा था। कह रहा था – तुम तो प्रशिक्षित सैनिक हो मुनीर। पाकिस्तानी सेना के चीफ बन जाते अब तक। बहुलोल लोधी को देखो। क्या था? कुछ लोगों को साथ लेकर हिन्दुस्तान चला आया था – घोड़ों पर सवार हो कर। एक हिन्दू कन्या – संघमित्रा जैसी उसे नजर आई थी। उठा लाया था उसे। निकाह किया उससे। संतान पैदा की और सल्तनत कायम की। दिल्ली पर राज किया उन बेटों ने जो उस हिन्दू महिला से पैदा हुए थे – मुसलमान थे, कट्टर मुसलमान ..”

“लेकिन संघमित्रा तो विदुषी है! संघमित्रा कोई साधारण स्त्री नहीं है।” मुनीर ने अपनी बात आगे रक्खी थी।

“स्त्री – स्त्री होती है।” इतिहास हंसा था। “उसे दूसरे आंगन में जब रोप दिया जाता है तो वह वहीं अपनी जड़ें जमा लेती है। स्त्री को संसार बसाना आता है।”

“लेकिन .. लेकिन मैं तो ..?”

“घोड़ों पर नहीं तुम तो हवाई जहाजों पर सवार हो।” इतिहास जोरों से हंसा था। “प्रशिक्षित सैनिक हो। भूल क्यों रहे हो कि तुम्हारा इरादा हिन्दुस्तान को फतह करना था? आज भी इरादा तो वही है। बस थोड़ी सी हिम्मत कर दिखाओ। थोड़ा सा मोड़ दो इसे। हिन्दुस्तान को हड़प लो स्वयं। संघमित्रा से संतान पैदा करो और जमा दो सल्तनत – मुनीर खान जलाल ..”

“लेकिन ..?”

“अब लेकिन को छोड़ो और आंखें खोल कर देखो। हिन्दुस्तान के चप्पे-चप्पे पर मुसलमानों के हस्ताक्षर दर्ज हैं। हिन्दुस्तान के बच्चे मुगलों का इतिहास पढ़ते हैं, उन्हें मानते हैं और मान्यताएं देते हैं। थोड़ी सी हिम्मत का काम है मुनीर। सब लाइन पर आया धरा है। हिन्दू ही आ मिलेंगे तुम्हारे साथ। पहले भी तो यही हुआ था। कितने लोग लाया था बहलोल लोधी? बाकी सब तो हिन्दू ही थे, जो मुसलमान बन गए थे ओर उन्होंने ही हिन्दू का कत्ले आम किया था।”

“वो मौका और था।”

“आज का मौका बुरा नहीं है। ज्यादा आसान है आज। देख तो रहे हो – कितने मुसलमान हैं यहां जो तुम्हारे साथ जुड़ जाएंगे और ..! पाकिस्तान में क्या धरा है जो तुम लौट कर पा लोगे?”

राम चरन का दिमाग अब एक दम चुप हो गया था।

“देश के साथ गद्दारी? इस्लाम के साथ धोखा? कॉम के साथ खिलाफत .. और बगावत? कैसे .. कैसे कर पाएगा वह? इस्लाम की एक बार फतह होने के बाद उसे जो हासिल होगा वो तो बेजोड़ होगा! वह नई खलीफात में जरूर ही किसी ऊंचे पद पर स्थित होगा और तब ..?”

संघमित्रा तो दूर का ख्वाब था – राम चरन ने स्वयं को बता दिया था।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

Discover more from Praneta Publications Pvt. Ltd.

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading