“थालियां किसने धोईं?” श्यामल का सीधा प्रश्न था।
चांदी की तरह चमकती थालियों को देख श्यामल का मन प्रसन्न हो उठा था। उसने निगाहें उठा कर कालू के चेहरे को पढ़ा था। एक नया गर्व बैठा था वहां। कालू के हाव भाव बदले हुए थे। वो अन्य दिनों वाला हारा थका कालू न था। वह, वह कालू न था – जो रोज घर का खाना बेच कर टूटे पेड़ की तरह आ गिरता था। वह आज ..
“राम चरण ने!” कालू ने बड़े ही सहज स्वभाव में उत्तर दिया था।
“कौन राम चरण?” श्यामल ने भी हार न मानी थी।
कालू कई लंबे पलों तक राम चरण के बारे में सोचता रहा था।
“था एक!” कालू का स्वर गुरु गंभीर था। “सच श्यामो! पहली बार मैंने आदमी के दर्शन किए हैं। एक आदमी .. वो आदमी .. जो ..” कालू ने मुड़ कर श्यामल को देखा था।
“भिखारी था?”
“नहीं! वो दरवेश था।”
“तुम्हारी तबीयत तो ठीक है?” श्यामल पूछ रही थी।
उनके दोनों बेटे – अरुण और वरुण भी घर से बाहर आ गए थे। दोनों खड़े-खड़े उन दोनों को देखे जा रहे थे।
“वह भूखा था श्यामो। लेकिन खाना मांग नहीं रहा था। मैंने ही पूछा – खाना खाओगे, तो भी नहीं हिला था। फिर खाना लेकर चुपचाप खाना खाया और थाली धोते-धोते सारी थालियां धो डालीं!” कालू फिर से चुप हो गया था।
कालू के दिमाग में थालियों को धोने का शोर गुल उठ बैठा था। कैसे वो थालियां धोते-धोते रोता-रोता चला जाता था और उस गिरे-गिरे एहसास से सुबह तक उबर नहीं पाता था। लेकिन आज जब राम चरन थालियां धो रहा था तो उसे लग रहा था – वो एक सेठ था। श्रेष्ठ था – वह! वह बड़ा था और राम चरन ..
“कहां गया?” श्यामल ने फिर पूछा था।
“पंडित जी के पास छोड़ आया। शिव मंदिर में ..” कालू ने डरते-डरते कहा था।
श्यामल किसी गहरे सोच में जा डूबी थी। कालू कितना काम करता था – आज पहली बार उसे ज्ञान हुआ था। अगले दिन का खाना तैयार करते-करते रात के बारह बज जाते थे। कालू सोता ही था कि फिर जग जाता था। रेहड़ी लगाता था। नहाता धोता था और फिर रास्ता तय कर रहा होता था। आधा काम वह स्वयं संभालती थी और अगर नौकर चाकर रख लेते तो व्यापार कमाता क्या? अरुण वरुण अभी बहुत छोटे थे। वैसे भी वह दोनों नहीं चाहते थे कि उनके बेटे ..
“ठीक किया पापा!” वरुण बोल उठा था। “जमाना खराब है। कोई साला फ्रॉड होगा!”
“ऐसे लोगों से बचना चाहिए पापा!” अरुण की राय थी। “हमारे स्कूल में आ गया था एक ..!”
“चुप कर!” श्यामल गरजी थी। “तुम दोनों भागो!” उसने आदेश दिया था।
अरुण और वरुण के जाने के बाद अब वो दोनों अकेले थे।
श्यामल को आज कालू पर दया आ रही थी। आज उसे रह-रह कर एहसास हो रहा था कि कालू बहुत अकेला था। उसे अब मदद की दरकार थी।
“अगर कल आ जाए तो रख लेना!” श्यामल आहिस्ता से बोली थी। “भला आदमी भी कब-कब मिलता है। क्या पता – ईश्वर क्या चाहते हैं?” उसने आसमान की ओर देखा था और हाथ जोड़ दिए थे।
मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड