“आप इंस्पेक्टर राना से मिल चुके हैं?” मुक्ति ने पूछा है।
“नहीं! उसके बाप से मिला था। उस बूढे खुरैल गीदड़ सिंह से ..”
“तब तो काम बन गया होगा। वास्तव में मिस्टर शेर सिंह ..” वी के ने बीच में बात काट श्रेय लपक लेना चाहा है।
“साला पिट्ठू है – पिट्ठू! एक दम नपुंसक ..” मैंने जी भर कर अंकल शेर सिंह से बदला लिया है।
“तब तो .. सर?” वी के के चेहरे पर चिंता व्याप्त है।
“जेल जाना होगा, यही ना? ये खबर मैं अपने आप को पिछली रात दो बजे दे चुका हूँ।” मैंने बताया है।
“लेकिन सर ..” मुक्ति ने बिना किसी युक्ति के बोलने का प्रयत्न किया है।
“बस वकील और कानून ही बचा सकता है।” उपहास के स्वर में कह कर वी के को घूरता रहा हूँ।
वी के को एक डरे धमके और टूटे-टाटे दिलीप से मिलने की उम्मीद थी जो निहत्था वी के के कानूनी पेचों में गिरफ्तार हो अपने को उसके सुपुर्द कर देता पर वैसा न पा कर वी के घबराया सा लग रहा है। जहां तक जेल जाने तक की बात सहजता से मेरी जुबान पर फिसलती देख वी के किसी गलत आदमी से आ मिलने की घिल्लमिल्ल बात को दानवीर कर्ण के सेंस में इस तरह ले रहा है कि मैं अब टूटा कि जब टूटा!
“बोल वी के! अब तू कैसे बचाएगा मुझे?” मैंने सीधा चमकता खंजर जैसा सवाल वी के की नाक तक ला कर खड़ा कर दिया है।
“मैं .. अर मैं .. पर .. बस मुझ पर छोड़ दो!” घबराया वी के बोल रहा है।
“ये हवा बाजी नहीं! कुछ सॉलिड बको। कुछ ठोस कानून जैसा होता है और जो अंधे गवाहों को और झूठे वकीलों को छका जाता है!”
वी के कहीं निरर्थक शून्य के विस्तारों में अपनी बुद्धि दौड़ाता रहा है। वह कानून के अदृश्य नियमों में से कोई एक पकड़ लाना चाहता है। उसे अब भी कोई धुंधुआता मेरा भविष्य अजीब लग रहा है और वो सोचे जा रहा है। मैं वी के की असमर्थता पर तनिक विमुग्ध हो कर इंसान की हदबंदियां करने लगा हूँ – एक वकील हो कर भी अधूरा, डॉक्टर हो कर भी अधूरा, ज्योतिषी भी अंधा, पुजारी भी भिखारी और एक-एक कर मुझे सभी दीन गरीब और अज्ञानी लगने लगे हैं। अंदर का दलीप मुझसे कट कर अलग खड़ा हो गया है। हंस कर वह बता रहा है – यही सच्चाई है दलीप। यहां सूरा पूरा कोई नहीं। सच्चाई मौत भी नहीं। ये सब झूठ है – झूठ!
“ये हमारा जिम्मा। बस हो जाएगा काम!” वी के का काला चेहरा तनिक पिघल गया है।
“क्या धारा है?” मुक्ति ने बहुत ही गंभीर स्वर में पूछा है।
“सर ये सब पागलपन है ..”
“होश में तो है?” मुक्ति ने वी के को टहोक कर होश में लाने का प्रयत्न किया है।
“हां हां पागल .. आई मीन पागल का अभिनय! बस फिर मैं बचा लूंगा!”
“वैल डन वी के!” कह कर मैंने ताली बजाई है।
लगा है वी के अपने पागलपन पर शर्मा गया है। तनिक गंभीर हो कर फिर से कुछ सोचने लगा है।
“मुक्ति!”
“सर!”
“क्या तुम इन गवाहों को खरीद सकते हो?” मैंने जैसे सहसा अपने बगल में दबे अमोघ अस्त्र को प्रयोग करना चाहा है।
“आज क्या नहीं बिक रहा है?” वी के ने बात की पुष्टि की है।
“कोशिश कर के देख लेते हैं, सर!” मुक्ति बोध को भी सुझाव बुरा नहीं लगा है।
एकाएक मुक्ति मुझमें कोई हुआ स्थानांतरण खोज रहा है। उसकी आंखें किन्हीं घातक प्रश्न चिन्हों से भरी-भरी लगने लगी हैं। जैसे वह पूछने को ही था – सर, आप कब बदले? मैं सफाई देने की तैयारी करने लगा हूँ।
“मेरे हाथ में धन का हथियार ही शेष है। मैं अपनी बेगुनाही के सबूतों की तलाश में जेल पहुंच गया तो .. शायद सिद्ध ही न कर पाऊंगा कि मैं जिन लोगों के लिए जिया था और उन्हीं लोगों ने मुझे मिटा दिया।”
मुक्तिबोध तनिक सधा सा लगा है। शायद वो भी अपने अंदर के अभिमानी सदाचारी से लड़कर ही समझौता कर पाया है। अतिरिक्त विकल्प भी क्या हो सकता है जो मैं बच जाऊं?
“समय चूक फिर का पछताने, बंधु! लेट्स गो!” वी के अब कार्यरत हो जाने को आतुर है।
“क्या ये संभव है?” मैंने उतावली करते वी के से ही पूछा है।
“संभव ..? एक दम कुत्ते में ईंट मारी है आपने। गवाह बेचना खरीदना तो रोजमर्रा का धंधा है। सर, हमारा और कौन धंधा है जो ..?”
वी के ने तनिक हंसने का प्रयत्न किया है। मुक्ति और वी के बाहर चले गए हैं। इन दोनों की उपस्थिति में मैं तनिक सुरक्षित लग रहा था। लेकिन अब नितांत अकेला रह गया हूँ और डर रहा हूँ कि कहीं और कोई अशुभ बात न घट जाए! आज बार-बार ये ठिकाना छोड़ने को जी हो रहा है और मुक्ति की बात न मानने पर खींज रहा हूँ। मुक्ति ही ठीक कहता है – मुझे इन कंगालों के साथ सहानुभूति नहीं बरतनी चाहिए थी। इनके साथ इस तरह घुलना मिलना और ..। आज यही एक घातक भूल लग रही है। सबसे बड़ा एक ही जुर्म है जिसका मैं कायल हूँ – मैंने कोरी सहानुभूति जताने का चलन झुठला दिया है।
बिस्तर से उठ कर मैं पश्चाताप से कट गया हूँ और अपने जाने माने दलीप को तरोताजा करने लगा हूँ। दलीप किसी से नहीं डरता, किसी की परवाह नहीं करता और जो दो पल पहले जेल जाने की तैयारी कर रहा था।
मैं अब अकेला हूँ। शायद यही मेरी करुणांत नियति है। अपने मन के भाव शराब में घोल कर पीने लगा हूँ। आज मन कर रहा है कि शराब गिलास में डाल कर, सोडा मिला कर पीने से बोतल मुंह में ठूंस-ठूंस कर पीऊंगा। खूब पी कर मैं सड़क पर औंधे मुंह लटक जाऊंगा और बे रोक टोक गालियां दूंगा। उसके बाद वी के मुझे पागल करार दे दे तो क्या? राना आ कर जेल में ठूंस दे तो क्या? कम से कम मैं अपने ही सदाचार के हाथों बिकने से बच जाऊंगा। शायद सामान्य स्थिति में मैं ये सहन न कर पाऊंगा?
मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड