“सर!”

“यस!”

“आज का पेपर पढ़ा है?”

“नहीं तो, क्यों?”

“प्रेस ने इंस्पेक्टर राना की रिपोर्ट नमक मिर्च लगा कर छापी है!”

“तो ..?”

“सर, आप ने जो स्टेटमेंट दिया है – आई मीन गलती हो गई है!”

“क्या?”

“हमें लॉयर से कंसल्ट कर लेना चाहिए था। मैंने वी के से कह दिया है ..”

“क्या कहता है वी के?” मैं जानता हूँ कि ये वी के असल काइयां है और पैसे ऐंठने की गरज से जरूर कोई भांची मार रहा होगा!

“आप का स्टेटमेंट आप के अगेंस्ट जा सकता है।”

“ओह, हैल।” मुझे पसीना आ गया है। “वी के को बुलाओ!” मैंने आदेश दिया है।

मैं जानता हूँ कि वी के मेरे केस को अपना ही समझ लेगा। सारी बारीकियों में घुस कर समझाएगा कि क्लाइंट को कभी भी बिना लॉयर के छींक भी नहीं मारनी चाहिए। बताएगा कि वो लालची एक दम नहीं है और जाते जाते नोटों की गड्डी को इस तरह गप्प कर जाएगा मानो वो आजन्म से पैसे का भूखा भिखारी है। वी के मुझे किचन में छुपे कॉकरोज में से एक लगता है – घिनौना, डरपोक, मतलबी और पैंतरे का निहायत चुस्त! मैं ही हूँ जो पैंतरा बदलने में चूक जाता हूँ।

“आप ने गजब कर दिया सर! अरे, मुझे तो बुला लिया होता! आगरा कौन हज्जियों में है और फिर मैं तो ..”

“बैठो वी के! बोलो क्या पीओगे?”

“भाई मैं तो पहले ..”

“पहले ठंडे हो लो! खून मैंने नहीं किया और न मेरा हाथ है!”

“जैसे मैं नहीं जानता। पर एवीडेंस .. यानी कि सबूत ..”

“ये सब गड़बड़ घोटाला ..”

“अरे, मर्डर केस सब के सब घोटाले होते हैं। कसम से मेरे तो बाल पक गए हैं। क्या-क्या टर्न लेता है साला केस भी! अब देखो वो सोरों वाला केस .. भाई ..”

“उसे छोड़ो और अब ये बताओ कि ..”

“क्या बताऊं? आप ने सारा स्टेटमेंट उनके फेवर में दिया है। कौन नहीं जानता इस बदमाश राना को? भाई ये तो नेताओं का पिठ्ठू है!”

वी के ने सब कुछ गोल माल कर दिया है। खून, मुकदमा, एवीडेंस – पॉलिटिक्स और की गलतियां सभी का बंडल बांध मेरे सर पर रख दिया है और अब कानून की बेड़ियां मुझे पहना कर मेरी जुबान पर ताला डाल देगा!

“इंपोर्टेंट बात! आइंदा बिना मुझे कंसल्ट किए सांस भी नहीं निकालना है और आप जानते हैं कि ये लोग भी अलर्ट हैं!”

चुपचाप मैं वी के को सुनता रहा हूँ। कभी से मैं इन वकील मुवव्किल के चक्करों से कतराता रहा हूँ पर अब ..?

“वी के! मैंने खून नहीं किया है। यकीनन ..”

“ये मुझ पर छोड़ दो” वी के ने इस तरह कहा है जिस तरह उसे मुझ पर और मेरी बात पर लेश मात्र भी विश्वास नहीं हो।

वी के ने भूल कर भी ये नहीं कहा है कि मैं कातिल नहीं हूँ। उसे तो सबूत चाहिए, गवाह चाहिए। कानून पर तुली नपी बात, कागजों पर छपी गुलाबी और लाल मोहरों के ठप्पों से सजी संवरी कोई पुष्ट बात जिस पर किसी ऊंघते अधिकारी के तिड़भंगे हस्ताक्षर हों।

जाते-जाते वी के मुझे समझा गया है कि किस तरह कोई भी हादसा होने पर उसका वहां आना जरूरी है। मुझे बस फोन ही करना है बाकी सब समझने का जिम्मा उसका है। लगा है मैं कोई अपाहज हूँ। कोई रुल्ला जमीन का अकर्मण्य सा भाग हूँ और अज्ञानता के घोर अंधकार में भटकती कोई रूह – जिसे अब तक ये पता नहीं लगा है कि वो खुद क्या है? कानून – कुछ होता है – मैं नहीं ये वी के जानता है। स्टेटमेंट – एवीडेंस – मर्डर केस के जोड़ तोड़ – सभी सिर्फ वी के समझता है – मैं नहीं! तो फिर मैं क्या समझता हूँ? प्रति उत्तर में मैंने ही जवाब दिया है – कुछ नहीं!

दूसरे दिन जब मैं और मुक्ति डांगरी पहने मिल में धसे हैं तो एक अजीब सर्द सी कातिल बात मन में जा चुभी है। लगता है सभी कारीगर मुझ पर अविश्वास उड़ेल-उड़ेल कर मूक व्यंजना में कह रहे हैं – खूनी हो! वापस जाओ! खूनी हो .. ये कैसा माहौल घिरता आ रहा है? मेरे अपने मन का विश्वास मुझे अधनंगा छोड़ने को तैयार है। अगर तुम जीत को न खरीदते तो शायद ..! बार-बार यही बात मुझे चुभती जा रही है। मैं जल्दी पल्दी में सब के पास गया हूँ। माथे पर पसीने की बूंदें उग आई हैं।

“जय राम जी की सरकार!” गोपाल ने मेरे अभिवादन में हंस दिया है।

“जय-जय राम! कहो गोपाल कैसे हो?” मैंने भी मन को काबू में कर के उत्तर दिया है।

आज राम का शब्द पहली बार मेरी जुबान से टूटा है। मैं अब तक इस भोंड़े अभिवादन सत्कार के सिलसिले से चिढ़ता आया हूँ। गुड मॉर्निंग सर .. एक व्यापारिक स्माइल, गुड बाई सर ..एक मोल मंडी का सा लतीफा और नमस्कार पर आ कर मेरी लिमिट होती! राम-राम, सत्त श्री अकाल, जय-जय राम और पा लागन आदि मुझे दकियानूसी और बेहूदा लगते रहे हैं। पर आज ये जय-जय राम – की ध्वनि किसी पीयूष सुधा की तरह मन पर असर कर गई है। मैं गोपाल की आंखों में भरी सरलता, उन में छिपी लाचारी और तन पर सिमिटी गरीबी सभी एक समग्र भाव सा बना तोलता रहा हूँ।

Major krapal verma

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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