आगरा जमीन का डील हो गया है। मथुरा आगरा के बीच जहां रिफाइनरी की योजना है उससे चार मील के फासले पर कई एकड़ जमीन का फैलाव है। श्याम तो अब भी कह रहा है कि हमें जमीन फरीदाबाद, बल्लभगढ़ या गुड़गॉंव रोड पर सस्ती मिलेगी। लेकिन यहां फैक्टरी डालने का मेरा अपना ही विचार है।
हवाई जहाज उड़ चला है। मैंने श्याम की ओर देखा है। श्याम एअर हॉस्टेस को घूर रहा है जो अपनी साज सज्जा में अति सुंदर लग रही है। श्याम जैसे सदियों से भूखा हो, औरत को पहली बार देखा हो और कल्पना में हवाई जहाज से भी तेज कहीं स्वच्छ सजीले प्रदेश की सैर में मस्त हो!
“ऐ ऐ ..?” मैंने श्याम को कुनिहा कर उसका ध्यान आकर्षित किया है।
“क्या है बे!” झल्ला कर श्याम ने निगाहों में ही मुझे वर्ज दिया है। मुझे लगा है जैसे मैंने आलिंगन बद्ध श्याम को उस हॉस्टेस के नरम और छबीले बदन से दूर खींच लिया है।
“ऐसा क्या है बे ..?” मैंने चुपके से श्याम को चिढ़ाया है।
“ओ बे! कभी तो जान बख्शा कर!”
“वो तो ठीक है मेरी जान! पर आज ये ..”
“तू अभी बच्चा है!”
“तो चचा जान एक किस्सा सुनाओ!” मैं निरंतर श्याम के विचारों को काटता रहा हूँ।
श्याम की भूखी प्यासी नजरें वापस लौट आई हैं। उसने मेरी आंखों में झांका है और एक उत्तर की अपेक्षा में पलक नहीं झपकी हैं।
“इसे अनैतिकता कहते हैं मिस्टर। समझे ..।” मैंने उपदेश दिया है।
“समझ गए गुरु! अब तुम बोलो तुम्हें क्या खा रहा है?” श्याम पूरी तरह मेरी ओर मुड़ कर बैठ गया है। हमारे पीछे बैठा बूढ़ा हम पर हंस रहा है।
“इसके बारे में क्या खयाल है?” मैंने श्याम को इशारे से उसे बूढ़े को जताया है।
“छट्टा बदमाश है! अभी जब वो काफी लेकर आई थी तो पूरा का पूरा तुड़-मुड़ गया था। पाजी कहीं का ..!”
“छेड़ा तो नहीं था!”
“छेड़ता तो मैं साले की ..” श्याम ने मेरी गर्दन पकड़ कर तनिक दबाई है। मैं और श्याम खिलखिला कर हंस गए हैं। सभी ने हमें घूर घूर कर देखा है। एअर हॉस्टेस ने भी एक व्यापारिक स्माइल फेंकी है। श्याम पालतू कुत्ते की तरह लपक कर उसे चाट गया है।
“जुग जुग जिओ! खुश कर दिया ..” श्याम ने मुझे कोहनी मारी है।
हम दोनों बहुत खुश हैं। मैं श्याम को कुछ गहन तथ्यों पर बात करने को घसीटने के अभिप्राय से बोला हूं।
“समय कितना छोटा पड़ जाता है, जिंदगी कितनी सिकुड़ जाती है और इच्छाओं के विस्तार कितने कितने फैल जाते हैं। कितना ही तेज भागो – कार से, ट्रेन से या हवाई जहाज से पर समय हाथ नहीं आता! जीवन नहीं टिकता एक पल, एक दिन, एक घंटे लेकिन साल बदल जाते हैं और जीवन को खा जाते हैं।”
“और कभी कभी तो एक पल, एक दिन जिंदगी बन जाता है जिसे जीते नहीं बनता, जो काटे नहीं कटती ओर इतना सब घट जाता है कि उसकी अनुभूति भुलाए नहीं भूलती!” श्याम ने मेरा साथ दिया है। कितनी सच बात कह गया है श्याम।
सोफी एक बिंदु जैसी लगने लगी है ओर वो बिंदु एअर हॉस्टेस का रूप धारण करके बड़ा होता चला जा रहा है। वही शरीर का भराव, वक्षों का उतार चढ़ाव, नितंबों को चूमती बालों की नोकें ओर आंखों में वही गहराइयां जिसमें मैं हमेशा उतर जाना चाहता हूँ। अब मैं समा जाना चाहता हूँ उस पल में जो जिआ सा लग रहा है। एक अपूर्ण सी आशा है और एक केंद्र बिंदु है जिसके गिर्द मेरी हर सफलता घूमने लगी है। मैं अपने अतीत वर्तमान और भविष्य को जोड़ता तोड़ता इसी बिंदु से जुड़ जाना चाहता हूँ। मेरी हर इच्छा और आकांक्षा मुझे यहां ला कर छोड़ गई है। मंत्र मुग्ध सा मैं अपनी हर भावना और सुखद अनुभूतियां सोफी को कह सुनाना चाहता हूँ। जैसे हम सदियों से जुड़े थे, हम एक अंतर पर खड़े दो छोर थे और दो पृथक किए दो प्राणी थे जो अब तक न मिल पाए थे और अब जब मिले हैं तो हमारे कंठ अवरुद्ध हैं, भाव ठहर गए हैं, समय भी ठहर गया है और हम दिग्भ्रांत हुए चलने में असमर्थ हैं! यही पल छिन जी जाना चाहते हैं, यहां से हिलना नहीं चाहते – हम दोनों!
“आप को कॉफी चाहिए सर?” उस युवती ने मुझे पूछा है।
लगा है उसने पानी में पत्थर फेंक कर उसकी सतह तोड़ डाली है! मैं तनिक संभला हूँ फिर बोला हूँ।
“जी ..! जी हां कॉफी ..!”
मेरे इस अभिनय पर वो तनिक मुसकुरा गई है। श्याम ने भी मौका पा कर अपनी मांग मांगी है।
“मेरे लिए भी ..” युवती श्याम की ओर मुखातिब हुई खड़ी रही है। श्याम चाहता भी तो यही है।
“कॉफी नहीं है!”
“और क्या है?”
“चाय, शर्बत और कोको – ऐनीथिंग यू वांट!” युवती ने आखिरी अंग्रेजी शब्द बोल कर गजब ढा दिया है।
श्याम ने अपनी पैनी कोहनी को इतनी जोर से मेरी पाँसूँ में कूचा है कि मैं चीख उठा हूँ। रोष में आ कर मैं अपने आप को रोक नहीं पाया हूँ।
“कुछ भी ले ले यार ..!” मैंने श्याम को सहारा दिया है।
“अच्छा तो दो कॉफी ही ले आइए!” श्याम ने मुसकुराकर कहा है। युवती फिल्ल से हंस गई है। श्याम जोकर है इसका उसे पता चल गया है। उसने बात का बुरा नहीं माना है। वैसे भी ये लोग बुरा नहीं मानती हैं। मनोरंजन तो इनके पेशे में शामिल होता है।
“हुआ ना फ्रेश?” श्याम ने मुझे पूछा है।
“बे साले! इतनी जोर से कोहनी क्यों मारी?”
“इसलिए बॉस कि मुझे भी तो चार सौ चालीस वोल्ट का शौक लगना चाहिए था! बाई गॉड दलीप – वॉट ए ब्यूट?” श्याम ने भी उसी युवती की तरह जबान तोड़ कर अंग्रेजी में कहा है।
हम दोनों हंस रहे हैं। पीछे बैठा वो बूढ़ा खूसट भी मजा ले रहा है। जब श्याम एक्टिंग कर रहा था तब भी ये साला अपलक उस युवती को घूरता रहा था।
“पुराना अड़ियल है!” श्याम ने मुझे इशारे से जताया है।
कॉफी ले कर आती युवती को देख श्याम उचक कर बैठ गया है। उसने मेरे हाथ को अपने हाथ में भर कर दबा दिया है। युवती मेरे सामने आ कर रुकी है। एक मुसकान मुझ पर निसार की है और कहा है योर कॉफी – मिस्टर दलीप!
मेजर कृपाल वर्मा