पुर्तगालियों का आगमन पूरे बुंदेलखंड के लिए एक महत्वपूर्ण खबर थी।

कुछ नया – नायाब और अनूठा होगा – यह सब ने मान लिया था। सब जानते थे कि हारे थके शेर शाह सूरी के थके बाहुबल ने पुर्तगालियों को मदद के लिए बुलाया था।

“कालिंजर तो क्या समूचा बुंदेलखंड खंड खंड हो जाएगा!” शेर शाह सूरी पंडित हेम चंद्र के लिखे को बांच रहा था। “फतह होगी आपकी!” पंडित का एलान था। सब कुछ पहले की तरह लगा था, लेकिन फिर लगा था कि क्या करना चाहता था ये पंडित? सुलतान शेर शाह सूरी ने फिर से लिखे मजमून को पढ़ा था, कई बार पढ़ा था लेकिन उसे कुछ समझ न आया था।

“कैसे मदद करेंगे आप लोग?” सुलतान ने पुर्तगाली अफसरों से सीधा प्रश्न पूछा था। “कालिंजर का किला ..?”

“देख भाल करते हैं पहल!” मेजर डिसूजा बोले थे। “पूरा परिदृष्य देखने के बाद ही योजना बनेगी!” उसका सुझाव था।

और फिर पुर्तगालियों को सुरक्षा प्रदान करते तुर्क सैनिक उन के साथ हो लिये थे। घोड़ों पर सवार पुर्तगालियों ने कालिंजर के किले के आस पास और बाहर भीतर का अनुमान लगाया था और कुछ मंसूबे बनाए थे। तीन दिन तक ये लोग जांच पड़ताल करते रहे थे।

शहंशाह शेर शाह सूरी को एक एक दिन भारी पड़ रहा था!

कलाकृति को पाने की चाह ने खूब सताया था सुलतान को। फिर राजा कीरत सिंह का सर काटकर खुरासान भेजने की अभिलाषा अब और भी बलवती हो चुकी थी। और कालिंजर के खजाने को प्राप्त करने का उनका मन बन चुका था। वह जानते थे कि कालिंजर से खूब धन माल लूट कर गजनी और गौरी ले गये थे। वह यह भी जानते थे कि हिन्दू राजा किस तरह खजाने भर कर धन माल संजोते थे .. और ..

“उस गद्दार की चाल है!” एकबारगी सुलतान को दिल्ली से भाग कर आया वो भगोड़ा राजा याद हो आया था। “इसका सर कलम करके ..” रोष चढ़ने लगा था शहंशाह को!

सात महीनों से झक मारते – अमीर, उलेमा और अफगान सेनाएं अब तनिक प्रसन्न हुए थे। फतह की एक उम्मीद दिल्ली से चलकर पुर्तगालियों के रूप में आ पहुंची थी। अब उन्हें उम्मीद थी कि किला फतह होने के बाद खूब माल टाल लूटने को मिलेगा और औरतें भी मिलेंगी और यहां तक कि हाथी, घोड़े और ऊंट भी हाथ लगेंगे!

“बारूदी सुरंग लगा कर तीन स्थानों से किले को उड़ाना होगा सुलतान!” मेजर डिसूजा ने बताया था। “इस बीच तोपखाने की गोलाबारी भी होगी और फिर आप उन तीन टूटे स्थानों से किले पर एक साथ हमला कर दें ताकि ..”

“आ गया समझ में!” सुलतान ने सर हिला कर स्वीकार किया था। “आप लोग कर दें शुभ कार्य शुरू!” सुलतान का आदेश था।

अब भी सुलतान शेर शाह सूरी अपने आस पास के किसी षड्यंत्र के हो जाने की संभावना के लिए संभावनाएं तलाश रहा था। तैयारियां करते पुर्तगाली उनकी आंख से दूर न थे और पंडित हेम चंद्र का पत्र भी उन्होंने कई बार पढ़ लिया था।

“पंडित को जाते ही इस्लाम का चोला पहनाऊंगा वरना तो ..” हंस कर कहा था सुलतान ने। “सब राजे रजवाड़ों को धर्म परिवर्तन करवा कर फिर से मोर्चों पर तैनात करना होगा!” उनका नया निश्चय था। “अब हिन्दू तो कोई दिखेगा ही नहीं!” एक शपथ जैसी ले ली थी शहंशाह शेर शाह सूरी ने।

“योजना तैयार है सुलतान!” मेजर डिसूजा ने आज पांच दिन के बाद बताया था।

“हम निरीक्षण करेंगे!” सुलतान की मांग थी। “मुझे बताएं मौके पर चलकर कि क्या और कैसे होगा, और फिर आक्रमण कैसे करना होगा!” सुलतान की मांग थी।

बड़ी ही बारीक निगाहों से सुलतान ने सारी योजना को देखा था, समझा था ओर सोचा था। सारी जांच पड़ताल के बाद सुलतान ने अपनी सहमति जताई थी।

शाम हो चुकी थी। कालिंजर किले के नीलकंठ मंदिर में आरती अर्चना आरम्भ हो चुकी थी। मेजर डिसूजा और कैप्टेन हैरिस को बड़ा ही अजीब लगा था – होता ये पूजा पाठ! फिर जब शंख ध्वनि सुनाई दी थी तो न जाने क्यों उनके कलेजे दहला उठे थे।

क्या था ये तंत्र मंत्र और ये शंख नाद कोई समझ ही न पाया था!

“किसने बनवाया था इस अद्भुत किले को?” दोनों पुर्तगाली अफसरों का प्रश्न था। “बड़ा ही दिव्य स्थान दिखता है!” उन्होंने हैरानी के साथ कहा था। “जैसे ये अनूठा किला ..?”

“किसी को कुछ पता नहीं है!” आदिल उन्हें बताने लगा था। “लेकिन हिन्दुओं का विश्वास है कि ये किला तब भी था जब समुद्र मंथन हुआ था और शिव ने विष पी कर यहां उसे पचाने के लिए तपस्या की थी। ये जो पूजा अर्चना होती है – नील कंठ मंदिर में ये सब शिव के भक्त हैं।” वह ठहरा था। उसने आश्चर्य में डूबे पुर्तगालियों के चेहरों का देखा था। “इन हिन्दुओं की कथाएं बड़ी विचित्र हैं!” वह तनिक हंसा था। “हमारी हार का कारण इनका शिव ही तो है!” पुर्तगालियों की आंखों में अब एक अविश्वास तैर रहा था।

“और बताते हैं कि 925 से लेकर 950 तक यहां कोई यशोवर्मन राजा था जिसकी राजधानी खजुराहो थी और वह बड़ा ही पराक्रमी राजा था। कालिंजर को अपना गढ़ बना कर वह पूरे भारत पर राज करता था और मजाल कि कोई परिंदा भी उसके राज में पर मार जाए!” उसने अब पुर्तगालियों को घूरा था। “विदेशी तो न जाने कब से भारत लेने की फिराक में घूम रहे थे!” वह तनिक हंसा था। “लेकिन कामयाब तो मुसलमान ही हुए!” वह फिर से हंसा था। “और अब तो ..” उसने पुर्तगालियों को जैसे एक संदेश दिया था।

प्रातः काल में ही सुलतान शेर शाह सूरी ने कालिंजर के किले को निगाहों में भर कर देखा था।

“इस किले का नाम कालिंजर नहीं शेर शाह रक्खेंगे!” उसने स्वयं से कहा था। “और बुंदेलखंड का नाम होगा – गुलाम खंड!” वह मुसकुराया था। “फतह के बाद किले में कलाकृति का नृत्य होगा और ..”

“खून की नदियां नहीं बहाओगे सुलतान?” खुरासानी दार्शनिक पूछ रहे थे। “भूल गये अपने वायदे? राजपूतों के सर काट काट कर मीनार नहीं बनाओगे? और .. और हिन्दू स्त्रियां और कीरत सिंह का खजाना? तुम्हें तो ..”

“इस बार नहीं बख्शूंगा किसी को!” शेर शाह सूरी की दांती भिच आई थी। “इन हिन्दुओं को गाजर मूलियों की तरह काटूंगा और ..”

“तोपों को दागने के लिए फरमान दें सुलतान!” इलाहीबक्श सुलतान के सामने आ खड़ा हुआ था।

“इजाजत है!” सुलतान शेर शाह सूरी ने प्रसन्नता पूर्वक कहा था। “या खुदा फतह बख्शना!” अचानक सुलतान बोल पड़े थे।

पूरी सेना को तीन हिस्सों में बांटकर सुलतान ने तीनों की बागडोर तीनों बाप बेटों के बीच ही रक्खी थी। जहां वह स्वयं मुख्य द्वार पर तैनात थे, वहीं उनके दोनों बेटे अन्य दो दिशाओं से होते हमलों के कर्णधार थे। सुलतान खबरदार थे कि कहीं लूटपाट का माल अफगान और तुर्क सरदारों के हाथ न लग जाए!

“हुक्म सुलतान?” मेजर डिसूजा पूछ रहे थे। तोपों का हमला अभी भी चल रहा था। “बारी बारी फटेंगी सुरंगें!” मेजर डिसूजा बता रहा था। “आप का मोर्चा सब से पहले टूटेगा!” उसका कहना था। “फिर दोनों साथ साथ टूटेंगे और ..”

“अल्लाह खैर करें!” सुलतान ने बड़ी श्रद्धा के साथ पुकारा था अल्लाह को। “शुरू करें मेजर ..” वह मुसकुराए थे।

बारूद की पहली सुरंग सुलतान की आंखों के सामने फटी थी। एक भयंकर और भीषण दृश्य उठ खड़ा हुआ था। जैसे कोई पहाड़ फटा हो, ऐसा निनाद सुनाई दिया था। और फिर धूल धक्कड़, कंकड़ पत्थर और रेत, मिट्टी उठ कर आसमान पर छा गई थी। उसके फौरन बाद ही अन्य दो मोर्चों पर भी धमाका हुआ था। धरती दहला गई थी। कालिंजर का किला हिल गया था। और तीन ओर से टूट गया किला किसी खंडहर हुए शहर सा जमीन पर बिछ गया था।

जैसे ही धूल धक्कड़ का गुबार थमा था अफगान सेनाएं आक्रमण करने चल पड़ी थीं। किले में भागते दौड़ते सैनिक, घुड़सवार और हाथियों पर सवार सैनिक घावड़े बावले हुए दुश्मन की सेना से भिड़ने भाग रहे थे। लेकिन वहां तो कोई सेना थी ही नहीं। किला तो खाली पड़ा था ..

विशाल सेना ने फतह प्राप्त की थी और कुल 75 सैनिकों को बंदी बना कर संतोष कर लिया था। उनके सर कलम करने के आदेश इस्लाम शाह सूरी ने जारी कर दिये थे।

और .. और किले के मुख्य द्वार से कुछ दूर पर ही अफगान सेना ने मृत पड़े शेर शाह सूरी – सुलतान-ए-हिन्द की लाश बरामद की थी।

सुलतान शेर शाह सूरी का पूरा बदन बारूद की आग में जल चुका था और निष्प्राण हुए सुलतान हमेशा के लिए खामोश हो चुके थे।

मेजर कृपाल वर्मा

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