“अगर पुर्तगालियों से बात न बनी तो?” प्रश्न केसर ने किया था। वह चिंतित थी।

“पुर्तगाली तो सौदागर हैं केसर!” हेमू ने भी अपने विचार बताए थे। “अगर शेर शाह ने उन्हें कोई मोटा लालच दे दिया तो हमें बकरा बना देंगे!” वह तनिक मुसकुराया था। “अपना तो अब केसर ..” हेमू ने आंखें उठा कर आसमान को देखा था।

हेमू शेर शाह सूरी की नस नस से परिचित था। उसका चालाक दिमाग किस तरह सोचता था हेमू को विदित था। शेर शाह ने क्या बाबर क्या हुमायू और क्या राजपूत रजवाड़े, सभी को पटखनी दी थी। उसका सहयोग जरूर रहा था लेकिन जो शेर शाह का गुरूर था वो तो गजब ही था। और अब अगर किसी तरह उसने कालिंजर को फतह कर लिया तो ..

“हम क्या करेंगे साजन?” केसर का प्रश्न फिर से आया था। उसे भी अब लग रहा था कि खतरा कभी भी उनके प्राण तक ले सकता था।

“वही जो हमारे पूर्वजों ने किया!” तनिक मुसकुराया था हेमू। “सीधी सी बात है केसर – तुम मेरा सर काट देना और मैं तुम्हारा!” उसने दोनों हाथ फेंक कर खतरे का अंत बता दिया था। “धर्म परिवर्तन करना न तुम चाहोगी न मैं।”

बाहर खामोशी लौटी थी। अंत आसान तो था लेकिन एक हिन्दू राष्ट्र की स्थापना की कामना करने वालों के लिए अत्यंत दुख दाई भी था।

“कोई है! मैं देखती हूँ!” केसर उठ कर चली गई थी।

उनका एकांतवास परम गुप्त था। यहां तक किसी का पहुंचना अवश्य ही अर्थ पूर्ण होता था।

“मैं वैद्य राज चूड़ामन हूँ, महारानी जी!” सामने खड़े व्यक्ति ने विनीत स्वर में कहा था। “सुना कि सुलतान असाध्य रोग से ग्रसित हैं तो मुझसे रहा न गया।” उसने चिंता व्यक्त की थी। “मैं दक्खिन से चलकर आ रहा हूँ!” वह तनिक मुसकुराया था।

केसर उस वैद्य राज के हुलिए को पहचानना चाहती थी। उसके ललाट पर लगा त्रिपुण्ड और कंधे पर टंगा झोला उसके वैद्य होने के प्रमाण जैसे थे। उसकी विनीत भाषा भी केसर को भली लगी थी।

“ठहरिये आप!” केसर कुछ सोच कर अंत:पुर के अंदर समा गई थी।

हेमू भी अब उसका इंतजार कर रहा था। केसर को आया देख उसने किसी प्रश्न की प्रतीक्षा की थी।

“वैद्य राज हैं चूड़ामन – कोई! कहते हैं दक्खिन से आये हैं।” केसर ने डरते डरते बताया था। “वो आपकी बीमारी ..”

“बुला लो न!” हेमू ने हंस कर कहा था। “मांगी मुराद है ये केसर!” एक संकेत दिया था हेमू ने।

और वैद्य राज चूड़ामन सहज भाव से चलकर सुलतान हेमू के सामने आ खड़े हुए थे। हेमू ने उनके चरण लिए थे और प्रणाम किया था। फिर केसर भी चरण लेने चली थी तो विप्र ने उसे रोक दिया था।

“मुझे तो निराशा होने लगी थी गुरुवर!” हेमू ने कहा था। “कुछ संयोग ही ऐसा बना है कि समझ ही नहीं आ रहा कि रास्ता किधर है।” हेमू ने सीधे सीधे मुद्दे की बात की थी।

केसर सब कुछ समझ कर अब आगंतुक की सेवा चाकरी में जुट गई थी।

“गुरु विद्यारण्य श्रंगेरी के श्रेष्ठ विचारक और हिन्दू धर्म संस्थापकों में गिने जाते हैं।” संत चूड़ामन बताने लगे थे। “मैं उनका ही परम प्रिय शिष्य हूँ, राजन!” उन्होंने अपना परिचय दिया था। “कृष्ण देवराया की तरह हम सब को दक्खिन में बैठ कर दिल्ली में जलता एक हिन्दू धर्म का दीपक दिखाई दे रहा था! आप से हम सब बड़े ही आशान्वित हो उठे थे। हिन्दू राष्ट्र की स्थापना की कल्पना देश के आरपार जा चुकी थी। लेकिन ..” वह ठहर गये थे।

केसर अर्धनिमिलित आंखों से दक्खिन से आये उस संत को देख रही थी।

“अब जब हिन्दू धर्म के रक्षक हमारे बाल रवि को ग्रहण लग गया है तो मैं आया हूँ!” वह फिर से बताने लगे थे। “कहीं दूसरी बार भी हमारे परम पूज्य गुरु जी की अभिलाषा लुप्त न हो जाए तो मैं भी कोई उपाय खोजने चला आया हूँ!” उन्होंने अपना उद्देश्य बताया था।

हेमू को लगा था कि वो अचानक ही अकेला नहीं रहा था।

उसने दक्खिन से आये संत की जिज्ञासा सुन कर अनुमान लगाया कि वह अकेला ही नहीं था जो गुरु गुरुलाल शास्त्री की छत्र छाया में हिन्दू राष्ट्र स्थापित करने के इस पुण्य प्रसंग से जुड़ा था बल्कि कहीं पूरा भारत ही इस सपने को पोष रहा था। हिन्दू संत महंत और मनीषियों की अब एक आवश्यकता थी – हिन्दू राष्ट्र! चूंकि हमारे राजे रजवाड़े खेत छोड़ कर भाग रहे थे और तुर्कों, अफगानों और मुगलों से डर गये थे अतः अब चाणक्य की तरह का प्रयोग के तहत जन नायकों की खोज आरम्भ हो चुकी थी।

“मुसलमान बनने से पहले हमने तो एक दूसरे का शीश काटकर आत्म दाह करने की ठान ली है गुरुवर!” केसर ने उन्हें अपना अंतिम इरादा भी कह सुनाया था। “अगर शेर शाह सूरी ..”

“हाहाहाहा!” संत चूड़ामन अट्टहास से हंसे थे। फिर उन्होंने केसर के परास्त चेहरे को पढ़ा था।

“बेटी!” बड़े ही स्नेह के साथ बोले थे वो। “विजय नगर की विजय गाथा भी सुन लो!” उनका आग्रह था। “फिर निश्चित करना कि ..” उन्होंने हेमू के उदास चेहरे पर भी नजर डाली थी। “ये कोई नई बात नहीं है कि हम अपनी जान दे दें! नया तो यह है कि हम दुश्मन की जान कैसे ले लें? यह रास्ता दिखाया था हरिहर राय और बुक्का राय ने!” बताने लगे थे संत। “ये दोनों भाई थे। दोनों गौ पालक थे। संगमा वंश के लाड़ले थे। दोनों संत श्री विद्यारण्य के शिष्य थे और दोनों ही कैम्पली राज्य में मंत्री थे। और जब मोहम्मद बिन तुगलक ने आक्रमण किया था तो ये दोनों उसकी पूरी सेना पर भारी पड़े थे! लेकिन जब राजा खेत छोड़ कर भाग गया था तो तुगलक इन्हें बंदी बना कर दिल्ली ले गया था।” संत ने ठहर कर हेमू और केसर को ध्यान से देखा था।

“मुसलमान बनोगे या सर कटवाओगे?” तुगलक का सीधा प्रश्न था। संत बता रहे थे कि हरिहर ने तो सर कटवाने की ठान ली थी – तुम्हारी तरह! लेकिन बुक्का राय ने आंख का इशारा किया था और मुसलमान बनने की हामी भर ली थी। मुसलमान बनने के बाद बुक्का ने तुगलक को वचन दिया था कि अगर उन्हें दक्खिन भेजा जाए तो वो दोनों भाई पूरे प्रदेश को मुसलमान बना देंगे और तुगलक वंश की सल्तनत कायम कर देंगे! तुगलक प्रसन्न हो गया था। उसे लगा था कि उसकी चली चाल कामयाब हो गई थी।

“अपराध क्षमा करें गुरु जी!” दोनों भाई दक्खिन पहुंच कर श्रंगेरी के जगद गुरु के चरणों में लेट गये थे। “हम लौट आये हैं अब आप हमें आदेश करें!” उन्होंने प्रार्थना की थी।

और गुरु जी ने उन्हें पुन: हिन्दू बनाया था और कहा था – अब स्थापना करो हम्पी राज्य की। तुंग भद्रा के किनारे वैदिक रीति से लग्न निकाल कर हम इस अभियान को आरम्भ करेंगे। दक्खिन में मुगलों के आगमन को रोकेंगे और एक समर्थ हिन्दू राष्ट्र की स्थापना कर संपूर्ण भारत में हिन्दू धर्म की ध्वजा फहराएंगे!”

तुगलक के शासन काल में ही विजय नगर की स्थापना हुई और फिर – कृष्ण देव राय ने विजय नगर की सेना में 150000 घुड़सवार, बीस हजार रथ, 64000 हाथी और 88000 पैदल सैनिकों के साथ दिल्ली पर चढ़ाई करने की पूरी तैयारी की लेकिन ..”

“लेकिन ..?” प्रश्न केसर ने ही पूछा था।

“लेकिन रहे नहीं कृष्ण देव राय!” आह रिता कर कहा था संत ने। “मानोगी नहीं तुम कि वो बड़े ही वीर और दूर दृष्टा थे! बयालीस विदेशी घुसपैठियों को उन्होंने देश से बाहर निकाल फेंका था और ये पुर्तगाली उनके पैर चाट रहे थे लेकिन ..” संत ने पलट कर केसर को देखा था। “मरने की तो बात ही नहीं करनी बेटी!” उन्होंने ताकीद की थी। “प्रयत्न वही करेंगे – बुक्का राय की तरह कि दिल्ली में हिन्दू राष्ट्र की स्थापना हो!” अब वह हंस रहे थे।

“क्या दक्खिन में शरण नहीं मिलेगी?” हेमू एक लम्बे सोच के बाद बोला था।

“नहीं!” स्पष्ट कहा था संत ने। “वहां अब अलिया राम राया का राज्य है। ये बेईमान कातिल है। सदाशिव जो असल उत्तराधिकारी है उसको बंदी बना लिया है। मुसलमानों को सेनापति बना लिया है! सोच रहा है कि बिना पहियों की गाड़ी के गंगा स्नान करेगा!” वह हंस रहे थे। “ये सपना कृष्ण देव राय का था कि दिल्ली फतह कर गंगा स्नान करेंगे लेकिन ..”

“गंगा स्नान करेंगे गुरुवर!” केसर बोली थी। “मेरा तो मन करता है कि ..”

“और मेरा भी मन करता है कि मैं तुम्हें आशीर्वाद देने के लिए जरूर जिंदा रहूंगा!” संत बोल पड़े थे।

मेजर कृपाल वर्मा

Discover more from Praneta Publications Pvt. Ltd.

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading