शहंशाह शेर शाह सूरी के मनाकाश पर अब हिन्दुस्तान एक इस्लाम के नए सितारे के रूप में उगा टिमटिमा रहा था।

खुरासान और उस्मानिया के माप दंड के मुताबिक ही शहंशाह शेर शाह सूरी ने तय कर लिया था कि अब वह हिन्दुस्तान में हिन्दुओं का सफाया करेगा और मुसलमानों को हर कीमत पर बसाएगा, उन्हें सुरक्षा देगा ओर हर तरह से सहारे बांटेगा!

“अब से आप अब्दुल कादर बदायूनी के मातहत की तरह काम करेंगे!” शेर शाह सूरी का पहला हुक्म आया था राजा टोडर मल के लिए। “और अगर आप चाहें कि आप ..” सुलतान ने राजा टोडरमल की आंखों में झांका था। “इस्लाम कबूल करने पर हम आपका रुतबा बढ़ा देंगे राजा साहब।” उन्होंने वायदा किया था।

और यही हर स्तर पर हुआ था। सारे अफगान, तुर्क, मुगल बलूच और मीरासी ऊंचे ओहदों पर आसीन हो गये थे और हिन्दुओं को उनका मातहत बना दिया गया था।

पूरे का पूरा राज्य प्रबंध अब मुसलमानों के हाथों सोंप दिया गया था।

चूंकि गाक्खरों के साथ जंग में ज्यादा सफलता नहीं मिली थी अत: उन को रोकने के लिए हैबत खान निजामी को नियुक्त किया गया था। रोहतास गढ़ का जिम्मा अब खबस खान का था तो बोलन और खैबर दर्रों की जिम्मेदारी कुतुब खान की थी। मिर्जा हैदर को अभी भी कश्मीर फतह करने को कहा था और राजपूतों से अपनी शर्तों पर सुलह नामे किये थे। मेवाड़ और मारवाड़ में ज्यादा दम न था ओर उनके शासक शेर शाह सूरी का लोहा मान गये थे।

अमीर और उलेमाओं को अब पुराने अधिकार प्राप्त हो गये थे और वो अब हिन्दुओं को लूटने खाने के लिए स्वतंत्र थे।

दीन ए पनाह – जो नया शहर हुमायू ने बसाया था उसे बर्बाद करा कर शहंशाह ने अपने नाम पर शेर गढ़ बसाया था और अब वहां जो हिन्दू मुसलमान भाई चारे की शमा जली थी – बुझा दी गई थी। अब वहां के बौद्ध, जैन और हिन्दुओं पर तरह तरह के जुर्म ढाए जा रहे थे, उन्हें मारा काटा जा रहा था ओर उनका धर्म परिवर्तन कराया जा रहा था।

अबुल कादिर बदायुनी ने भी मंदिरों को तोड़ने और धार्मिक संस्थानों को तबाह करने का काम जोरों से आरम्भ कर दिया था। मथुरा और काशी उसके निशाने पर थे। नए फरमानों के मुताबिक हर गांव और शहर का नाम भी बदली किया जा रहा था। और सभी हिन्दू नामों को मिटाया जा रहा था।

पुरानी दिल्ली पर भी हथौड़े चल रहे थे। शहंशाह शेर शाह सूरी चाहते थे कि दिल्ली को नए ढंग से एक इस्लाम का नायाब शहर बना कर पेश करें। हिन्दुओं के सारे नाम और निशान मिटाए जा रहे थे। पुराने किले को भी नए ढंग से बनाया जा रहा था ..

संकट की इस घड़ी में हिन्दुओं को दो चमकते सितारों से संत और साधू नजर आये थे। एक तो थे संत कबीर जो काशी में पैदा हुए थे लेकिन वो न हिन्दू थे न मुसलमान। वो दोनों के मित्र और शत्रु दोनों ही थे। उनकी सधुक्कडी भाषा में दिये दोहों के रूप में उनके उपदेश हिन्दू और मुसलमान दोनों के लिए थे और ये उन दोनों के धर्म के दोशों को बताते थे।

गुरु नानक भी एक अलग मंच लेकर निकले थे जो हिन्दुओं को एक अलग दर्शन देता था लेकिन सनातन से भिन्न था। मूर्ति पूजा का विरोध ये भी कबीर की तरह करते थे और गुरु को ही ईश्वर मानते थे।

इसे भक्ति काल का आरम्भ कहा जा सकता था लेकिन ये सब मुसलमानों के ही हित चिंतक थे और उन्हीं की कृपा से ये जिंदा भी थे। हिन्दू दार्शनिकों को तो खोज खोज कर खत्म किया जा रहा था।

“कैसे हैं पंडित जी ..?” सुलतान शेर शाह सूरी ने वैद्य धन्वंतरि को बुला कर पंडित जी की खैरियत पूछी थी।

“विष बीज के विषाणु का प्रकोप है, सुलतान!” वैद्य धन्वंतरि ने उन्हें बताया था। “काया तिल तिल कर कट रही है। बचना तो मुश्किल है।”

बादशाह शेर शाह सूरी ने कहीं दूर – कहीं बहुत दूर घी के चिरागों को रोशन होते देख लिया था। लेकिन प्रत्यक्ष में तो उन्होंने पंडित जी की बीमारी पर खेद ही व्यक्त किया था।

“धोबी आया है!” केसर को सूचना मिली थी।

बौखला गई थी केसर। ये धोबी कौन था और क्यों आया था – वह कुछ समझ ही न पाई थी। चूंकि वक्त बहुत नाजुक दौर से गुजर रहा था अत: केसर चाह कर भी कोई गलत निर्णय न लेना चाहती थी। उसने सीधा हेमू से जाकर संवाद बोला था।

“कोई धोबी है और न जाने क्यों आया है?” केसर हतप्रभ हुई हेमू के सामने खड़ी थी।

“बुलाओ उसे!” हंस कर कहा था हेमू ने।

फिर भी अंत: पुर के उस परम गुप्त प्रकोष्ठ में प्रवेश पा रहे उस धोबी को केसर ने बड़े ध्यान से देखा था। लम्बा चौड़ा वह पुरुष धोबी था या कुछ और था – केसर समझ ही न पाई थी।

अंदर जाकर जब उसने हेमू के चरण स्पर्श किये थे, आशीर्वाद लिया था और फिर मुड़ कर केसर के भी चरण स्पर्श किये थे .. और ..

“बहन जी को मेरा प्रणाम!” उसने बड़े ही विनम्र स्वर में अभिवादन किया था तो भी केसर एक सदमे में बनी रही थी।

“अरे भाई! ये राजा वीर भान सिंह हैं!” हेमू बताने लगे थे। “महाराजा रीवा के छोटे भाई हैं!” फिर हेमू ने विस्तार से बताया था। “मैंने ही बुलाया था इन्हें दिल्ली! बात भी तय थी कि ये शहंशाह शेर शाह सूरी के सेना नायक बनेंगे और शहंशाह इन्हें ..”

“अब वो मेरा सर कटवाना चाहते हैं!” राजा वीर भान सिंह ने बीच में ही कहा था। “अब अगर मैं मुसलमान नहीं बनता और धर्म परिवर्तन नहीं करता तो मुझे ..”

“बनेंगे आप मुसलमान ..?” केसर ने प्रश्न पूछा था।

“नहीं!” दृढ़ स्वर में बोले थे राजा वीर भान सिंह। “चाहे मेरा स्वर ही क्यों न कट जाये ..”

“सर काटने की बात क्यों नहीं करते भइया?” केसर बीच में बोल पड़ी थी। “ये क्यों नहीं कहते कि मैं हजारों हजार सर काटूंगा और मैं ..” क्रोध चढ़ आया था केसर को। “मैं जब भी सुनती हूँ – हिन्दुओं ने आत्मघात कर लिया, जल मरीं हिन्दू रानियां, एक दूसरे के सर काट दिये राजपूतों ने! ये कैसी विडम्बना है भइया?” केसर ने राजा वीर भान सिंह की आंखों में देखा था।

“आप की बात ही बड़ी करूंगा बहन जी!” राजा वीर भान कह रहे थे। “मैं .. मैं लड़ूंगा और शहंशाह के मंसूबे कभी पूरे न होने दूंगा .. चाहे ..”

“बहन भाई की जंग समाप्त हो गई हो तो काम की दो बातें कर लें?” हंस कर हेमू ने पूछा था। “शांति पूर्वक बैठते हैं!” हेमू ने कहा था। “और देखते हैं कि अब करें तो क्या करें?” उनका आग्रह था।

“सुलतान! मैं दिल्ली छोड़कर जाने की तैयारियां करके आया हूँ। अपने सारे जांबाजों के साथ मैं ..”

“कहां जाओगे?” हेमू ने पूछा था।

एक चुप्पी लौटी थी। राजा वीर भान सिंह बोल नहीं पा रहे थे। यही प्रश्न तो था जिसे वह हल नहीं कर पा रहे थे। वह जानते थे कि वो जहां भी जाएंगे – शेर शाह सूरी को ही सामने पाएंगे। यों अकेले अकेले बगावत करना बहुत महंगा पड़ेगा – यह तो सर्व विदित था।

“कालिंजर चले जाओ!” हेमू एक लम्बे सोच के बाद बोला था। “और जाकर कहना कीरत सिंह से कि युद्ध की तैयारियां आरम्भ कर दे। शेर शाह सूरी बहुत जल्दी ही आक्रमण करेगा! अब उसे हर कीमत पर कलाकृति चाहिये!” हंस रहे थे हेमू।

केसर भी अब सहज हो आई थी। राजा वीर भान सिंह को भी सुझाव पसंद आया था। वह भी शेर शाह सूरी से दो दो हाथ करने के लिए अब लालायित था।

“ध्यान से सुनो!” हेमू की आवाज गहराइयों से उगी लगी थी। “कहना कीरत से कि हर संभव प्रयास होंगे .. हर मदद मिलेगी लेकिन सीधे सीधे मुठभेड़ नहीं होगी! इसके लिए दलपत का गोंडवाना है और तुम भी वीर भान ..”

विस्तार से हेमू ने राजा वीर भान सिंह को पूरी रण नीति समझा दी थी और आश्वस्त कर दिया था कि सभी राजपूत एक गुट हो कर कालिंजर पर युद्ध करेंगे ओर किसी भी कीमत पर कालिंजर ..

कालिंजर शिव का है और कालिंजर को हराना शिव को हराना है! हेमू का संदेश था।

मेजर कृपाल वर्मा

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