लग रहा था जैसे आज हिन्दुस्तान में एक नया सवेरा हुआ था।

सूरज की तरह आसमान पर उदय होकर आज शहंशाह शेर शाह सूरी ने नई घोषणाएं हुई थीं।

शेख निजामी शहंशाह शेर शाह सूरी के फरमान को दरबार में पढ़ कर सुना रहे थे, “काफिरों के खिलाफ इस्लाम की जंग खुदा का पैगाम है।” शेख निजामी ने भरे दरबार को आंख उठा कर देखा था। उसे लगा था – अफगानों, तुर्कों और मुगलों के चेहरे गुलाबों से खिल गये थे। जबकि हिन्दू जमात के सभी सभासदों के मुंह लटक गये थे। खुशी हुई थी शेख निजामी को। “दोस्तों! अगर तुम इस जंग में मारे भी जाते हो तो तुम्हें इस्लाम जगत शहीदों के नाम से पुकारेगा!” शेख निजामी का स्वर ऊंचा था और उसका हाथ हवा में लहरा रहा था। “और अगर इंशा अल्ला हमारी फतह होती है तो आप होगे हमारे चहेते गाजी।” अपने दोनों हाथ उठा कर शेख निजामी जोरों से चिल्लाया था।

दरबार में तालियां बजी थीं। शोर शराबा उठ खड़ा हुआ था। इस्लाम की वाहवाही हुई थी और एक बारगी सभी इस्लाम के बंदों ने अपने शहंशाह शेर शाह सूरी को आंखें भर भर कर देखा था। जो वो चाह रहे थे अब वही घटना था और अब अफगान अमीर और औलिया के पुराने दिन लौट आने थे।

हिन्दू सभासदों को जैसे फालिज मार गया था – सब चुप थे। सब के होंठ बंद थे और शेख निजामी के पैगाम को सुनकर सब को सांप सूंघ गया था। हर आंख ने आज पहली बार दरबार में पंडित हेम चंद्र को तलाशा था। लेकिन पंडित हेम चंद्र जो आज गम्भीर रूप से बीमार था और छूत की बीमारी का शिकार हुआ था और अब तिल तिल कर सूख रहा था – कांटे की तरह मुसलमानों के मन से निकल गया था।

शहंशाह शेर शाह सूरी ने भी पंडित हेम चंद्र की अनुपस्थिति को आज दूसरे ही ढंग से महसूसा था।

शहंशाह शेर शाह सूरी बेहद खुश थे कि पंडित हेम चंद्र अब कभी दरबार न देख पाएंगे। उन्हें याद है जब उन्होंने हिन्दुओं का नरसंहार किया था और चंदेरी के राजपूत राजा ने आत्मघात किया था, औरतें जल कर मरी थीं और सैनिकों ने एक दूसरे के सर काटे थे तो पंडित हेम चंद्र ..

“जरूरत भी क्या है अब उसकी?” प्रसन्न होकर शहंशाह ने मन में दोहराया था।

उन्होंने आंख उठा कर देखा था तो पूरा का पूरा हिन्दुस्तान उनकी मुट्ठी में समा गया लगा था।

आज शहंशाह सूरी का साम्राज्य बोलन और खैबर के दर्रों से लेकर बंगाल, बिहार, ग्वालियर, मेवाड़ और मारवाड़ तक फैला था। रोहतास नगर लेने के बाद सारी सीमाएं सुरक्षित थीं। हॉं लाख कोशिश करने के बाद भी वह कश्मीर को नहीं ले पाए ओर अभी तक मालवा और गुजरात लेना बाकी था। लेकिन अब यह कोई कठिन काम नहीं रह गया था।

जो कठिन था उसे तो पंडित कर गया था – अचानक बादशाह के मन में लरज गया था। हुमायू को हराना उसके बस की बात नहीं थी – स्वीकारा था सुलतान ने। लेकिन पंडित हेम चंद्र ने तो असंभव को भी संभव कर दिया था – इस पर बेहद प्रसन्न थे बादशाह। ओर अब तो जो पथ प्रणाली, नियम कानून और परम्पराएं कायम कर दी हैं पंडित ने वही चलेंगी, रुकेंगी नहीं, पंडित रहे या न रहे। जोरों से हंस पड़े थे सुलतान। उन्हें पंडित को यों ठग लेना आज अपनी हर सफलता से आगे की बात लगी थी।

और तभी अचानक उनके दिमाग पर बैठा एक संकोच भी भाग खड़ा हुआ था। एक बेहद खूबसूरत स्वप्न की तरह उनके मानस पटल पर एक परछाईं आ टिकी थी – कलाकृति की परछाईं! उन्होंने सुना था कि कलाकृति एक सर्व श्रेष्ठ नृत्यांगना है, कोकिल कंठ है और बला की खूबसूरत भी है।

“हमें कलाकृति चाहिये!” सुलतान का मन मांग बैठा था। “हर कीमत पर हमें अपने दरबार में हमें कलाकृति चाहिये!” अपने आप से कहते ही रहे थे सुलतान!

और दूसरी सुबह ही फरमान भेजा था ग्वालियर नगर के राजा कीरत सिंह को कि वह कलाकृति को उन्हें भेंट स्वरूप भेजे वरना तो ..

“मेरी शिष्या ही तो है कलाकृति!” तन्ना शास्त्री बताने लगे थे। मैंने ही इसे गाना और नृत्य करना सिखाया है।” उन्होंने स्वीकारा था। “आप मानेंगी नहीं महारानी जब तक आप कलाकृति को गाते ओर नृत्य करते देख न लेंगी कि मेरी ये शिष्या कितनी बड़ी कलाकार है। यथा नाम तथा गुण वाली कहावत कलाकृति के लिए कही जा सकती है। कभी कभी तो मैं भी दंग रह जाता था राजन .. जब ..”

“केसर भी तो आप की ही शिष्या है!” हेमू ने हलके मन से कहा था और केसर की ओर देखा था। केसर लजा गई थी। “ये भी तो गाती हैं तो ..?” प्रशंसा की थी हेमू ने। “हाल तो मेरा ही बुरा है!” उन्होंने कटाक्ष किया था। “कुछ सिखा पाएंगे – मुझे भी?” हेमू ने यूं ही प्रश्न पूछ लिया था।

अंत: पुर के परम गुप्त प्रकोष्ठ में बंद ये तीनों प्राणी बड़े ही मुग्ध भाव से बतिया रहे थे। अपने इस एकांत में अब हेमू ने पंडित तन्ना शास्त्री से स्वयं भी संगीत सीखना आरम्भ कर दिया था। उसका मन बंट जाता था और संगीत सारी चिंता हर लेता था। हेमू को अंदाज था कि उनका ये एकांत लम्बा चलेगा और उनकी ये कथित बीमारी उनकी कब जान लेगी – उन्होंने अभी तक तय नहीं किया था।

केसर को अच्छा लगता था जब वह दोनों मिल कर साज बजाते, गाते और संगीत लोक में अलोप हो जाते!

“शहंशाह के दरबार में कलाकृति के आने के बाद तो अब ..?” हेमू ने यूं ही पूछ लिया था।

“कहां आई वह?” तन्ना मिश्र ने सीधा उत्तर दिया था। “राजा कीरत सिंह कभी भी शहंशाह के इस फरमान को नहीं मानेंगे – मैं तो जानता हूँ।” तन्ना मिश्र ने बेधड़क उत्तर दिया था।

“आक्रमण हुआ तो भी ..?” तनिक हंस कर पूछा था हेमू ने। हेमू को अब जंच गया था कि किसी न किसी बहाने शहंशाह शेर शाह सूरी ने कालिंजर पर हमला करना ही था। हेमू का अनुमान था कि शायद राजा कीरत सिंह शहंशाह शेर शाह सूरी का मुकाबला न कर पाएं?

“तो भी राजा कीरत सिंह मुकाबला करेंगे!” तन्ना मिश्र ने स्पष्ट कहा था। “आप सुलतान एक बड़ा पहलू नहीं पहचानते हैं!” तन्ना ने आंखें नचाते हुए कहा था। “इनकी बेटी प्रभावती की शादी महाराजा दलपत के बेटे के साथ हुई है और महाराजा दलपत गोंडवाना के महा राजाधिराज हैं। उनके होते हुए आपका ये शेर शाह सूरी उनकी पूंछ भी नहीं उखाड़ पाएगा!” तनिक भावुक हो आये थे तन्ना मिश्र।

इस नई सूचना ने हेमू का मन प्रसन्न कर दिया था। एक लम्बे अंतराल के बाद आज एक आशा किरण से उनकी भेंट हुई थी। तन्ना की बात में दम है – उन्होंने मान लिया था।

“अब सुलतान शायद कालिंजर गढ़ के बारे भूल ही गये थे कि हाल ही में जब हुमायू ने कालिंजर पर चढ़ाई की थी तो उसका क्या हश्र हुआ था?” तन्ना मिश्र ने प्रश्न पूछ लिया था।

अचानक ही हेमू का सोया शेर जाग उठा था। अचानक ही उसे पूरे हुमायू के आक्रमण और उसे हराने के प्रयत्न याद हो आये थे। उसे याद आया था जब कालिंजर के आक्रमण पर गया हुमायू बाबर की मौत की खबर पा कर लौट आया था और कालिंजर अजेय ही बना रहा था।

“अजेय गढ़ के दोनों किलों पर फतह पाना शेर शाह के बस की बात नहीं सुलतान!” तन्ना मिश्र बताने लगे थे। ये भगवान शिव का रक्षित गढ़ है। वहां नील कंठ महादेव के मंदिर में साक्षात शिव निवास करते हैं!” तन्ना मिश्र बता रहे थे।

हेमू का मन और भी प्रसन्न हो उठा था। अचानक उसे लगा था कि अब भगवान शिव भी उसके साथ थे और इस बार उसकी जीत अवश्यंभावी थी। इस बार .. हॉं हॉं इस बार अगर भगवान शिव ने चाहा तो शायद इस बार जरूर कोई कामयाबी मिलेगी उसे ..

“आप तो वैसे भी भगवान शिव के भक्त हैं!” तन्ना मिश्र ने प्रशंसक निगाहों से हेमू को देखा था। “आप के ललाट पर लगा त्रिपुंड भगवान शिव का दिया आशीर्वाद जैसा लगता है!” तन्ना मिश्र बताते रहे थे। “शिव आपकी हर मनोकामना पूरी करते हैं!” तन्ना मिश्र ने हेमू को आशीर्वाद जैसा दिया था!

मेजर कृपाल वर्मा

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