पंडित हेम चंद्र के अचानक कही चले जाने पर सुलतान शेर शाह सूरी बेहद प्रसन्न था।

उसका होंसला अब बुलंद था। अब तक की प्राप्त उसकी उपलब्धियां कम न थीं। और पंडित जी भी उसे सब कुछ देकर ही गये थे। अब तो वह हर तरह के राज काज ओर युद्ध कोशल में प्रवीण था। अब तो उसके नाम से ही उसके दुश्मन भाग रहे थे ओर उसका यश चारों ओर फैल रहा था।

खास कर उलेमाओं और काजियों का उसके प्रति स्नेह जाग उठा था। उन्हें अब शेर शाह से पूरी पूरी उम्मीदें थीं कि वो हिन्दुओं को समूल नष्ट कर देगा ओर इस्लाम का परचम पूरे हिन्दुस्तान पर फहरा देगा।

अचानक ही शेर शाह सूरी को अपना मित्र माल देव – महाराजा जोधपुर याद हो आया था।

“निबटाओ इसे भी!” शेर शाह सूरी के दिमाग ने आदेश दिया था। “काफिर है। कट्टर हिन्दू है। और ये राजपूत ..?” उसे लगा था जैसे राजपूतों का मात्र नाम लेना ही किसी मौत को बुलाना था। जांबाज थे राजपूत। मरने मारने से डरते कब थे। “छल से बल से .. रात में दिन में .. धोके से और मौके से निपटा दो इन्हें शेर खान।” वह हंस रहा था।

मेवाड़ पर आक्रमण करने की तैयारियां आरम्भ हो गई थीं।

शेर शाह सूरी के दिमाग में पंडित हेम चंद्र की चली सारी चालें और चालबाजियां ज्यों की त्यों धरी थीं। उसने मेवाड़ पर आक्रमण करने के रूप स्वरूप को एक दम पंडित हेम चंद्र की तरह ही तैयार किया था।

शेर शाह सूरी ने समेल या फिर सांभल को जो जोधपुर से नब्बे मील की दूरी पर था ओर जैतारन – पाली जिला राजस्थान में स्थित था – को इस बार युद्ध भूमि के रूप में चुना था। वह जानता था कि माल देव जोधपुर से चलकर सामेल पहुंचेगा ओर आक्रमण करेगा। तब उसकी फौजें चुन चुन कर काटेंगी राजपूतों को और ..

सामेल का इलाका राजस्थान का एक खुश्क शुष्क इलाका था। खुला खुला सब था। न नदी न पहाड़, न जंगल ओर न ही लूटपाट के लिए आस पास कुछ था। सूखी भदरंग झाड़ियों का एक मातम मनाता प्रदेश था।

और सुलतान शेर शाह सूरी अपनी भारी सेना सहित माल देव को ललकारने यहां मोर्चा संभाले आ खड़ा हुआ था। उसकी सेना में अस्सी हजार घुड़ सवार थे, पचास हजार पैदल सैनिक थे और चालीस तोपें थीं। वह जानता था कि माल देव उसका मुकाबला कर ही नहीं सकता था।

लेकिन आश्चर्य ये था कि माल देव की राजपूत सेनाएं समेल में शेर शाह सूरी की सेनाओं का मुकाबला करने आ डटी थीं।

घर बैठा हेमू होते क्रिया कलापों से बेखबर न था।

वह संजय की तरह कुरुक्षेत्र में आ पहुंची कौरव पांडवों की सेनाओं को निगाहें भर भर कर देख रहा था। परिणाम भी उसकी समझ से परे न था।

अंगद ने सारी सूचनाएं हेमू तक पहुंचा दी थीं। माहिल ओर अब्दुल भी आ पहुंचे थे। अब अगले आदेश निर्देश तय होने थे।

“इस बार तुमने नहीं कमाना है माहिल।” हेमू ने तनिक हंस कर कहा था। “तड़पने दो शेर शाह की सेना को। पानी तक ..” उसने माहिल को आंखों में देखा था। “है कहां पानी राजस्थान में भाई?” उसने व्यंग किया था।

“कहीं नहीं है सुलतान!” माहिल भी जोरों से हंसा था। “न चारा है न पानी है न दाना है न दुनका है। ओर यहां तक कि खाने पीने के लिए भी ..”

“हॉं! ठीक से बंदोबस्त करना!” हेमू हंस रहा था। “और अब्दुल ..?” निगाहें घुमाई थीं हेमू ने। “तोपों का बारूद अगर गीला हो जाए तो कोई क्या करे?” हेमू ने प्रश्न पूछा था।

“हो जाता है गीला सुलतान!” हामी भरी थी अब्दुल ने। “सब कुछ हो जाता है। कभी कभी कहीं भी बारूद गीला हो जाता है। और फिर तोपें तो बिना बारूद के ..?” वह भी खूब हंसा था। उसे हेमू की युक्ति पसंद आ गई थी।

“और अंगद माल देव को कहना कि इशारा पाते ही पीछे हट जाएगा।” हेमू अंगद को समझा रहा था। “भूखा प्यासा शेर शाह सूरी का लश्कर नब्बे मील चलकर जोधपुर को कैसे फतह कर पाएगा भला?” हेमू का मुख मंडल खिल रहा था।

“दुरुस्त बात है सुलतान!” इस बार वो तीनों कह उठे थे। “ये तो बिना तीर तलवार के ही मारे जाएंगे गुलफाम!” अब्दुल ने हाथ झाड़ दिये थे।

और सच में ही शेर शाह सूरी की विशाल सेना अब बूंद बूंद पानी के लिए तरस रही थी ओर हाथी घोड़ों के लिए चारा किसी कीमत पर मोहिया न हो पा रहा था तथा सेना भूखे पेट बैठी थी।

शाही खजाना भी खाली होने को था – दिल्ली से सूचना आ रही थी। हर किसी ने शाही महसूल देना बंद कर दिया था। सब जान गये थे कि इस बार शेर शाह सूरी मुश्किल से ही लौटेंगे।

शेर शाह सूरी की समझ में भी आ गया था कि वह इस बार कच्ची जमीन पर आ खड़ा हुआ था।

क्या करे? क्या आगे बढ़े और आक्रमण करे? तोपों के गोले दागे – पर माल देव तो दूर जाकर बैठा था। ‘बारूद गीला है’ का संदेश उसके पैर तोड़े दे रहा था। कहां से आये बारूद प्रश्न था और फिर एक माह होने को था लेकिन ..? क्या करे? जटिल प्रश्न सामने आकर खड़ा हो गया था।

“बुलाओ उस पंडित को। पुकार लो उस पुरुष को जिसे सारे उत्तर आते हैं!” अचानक शेर शाह सूरी का विवेक बोला था। “फौरन भेजो हरकारे को और ..”

शेर शाह सूरी की सेना में बुझते चिरागों को अचानक रोशनी मिल गई थी। पंडित जी आ रहे थे – मात्र इस सूचना ने ही सारी सेना को प्राणवान बना दिया था।

“आपको हर कीमत पर .. और हर शर्त पर बुलाया है पंडित जी।” हेमू के सामने खड़ा हरकारा कहने लगा था। “हम आपको लेकर ही लौटेंगे!” उसने साफ साफ कह दिया था।

हेमू के दिमाग में चंदेरी में हुआ पूरा नरसंहार घूम गया था।

“चलते हैं सुलतान!” अंगद ने तुरंत कहा था।

और शेर शाह सूरी भी जानता था कि पंडित हेम चंद्र आएंगे तो अवश्य।

लेकिन आज वह कहीं शर्मसार हुआ खड़ा था। वह भी जानता था कि चंदेरी में जो सुलूक उसने राजपूतों के साथ किया था वह पंडित जी को भला न लगा था। था तो गलत ही यह शेर शाह भी जानता था लेकिन उलेमाओं और मौलानाओं का दबाव था ओर खुरासान और उस्मानिया का आदेश था। वह कहीं बहुत विवश था। और पंडित जी ..

“स्वागत है आपका!” शेर शाह सूरी ने पंडित हेम चंद्र का स्वयं आ कर स्वागत किया था। “बहुत अकेला अकेला लग रहा था मुझे।” वह तनिक हंसा था। “अब आ कर जान लौटी है मेरी!” वह बता रहा था।

“पिताजी की तबीयत ठीक नहीं थी!” पंडित जी बता रहे थे। “अभी भी अस्वस्थ हैं। लेकिन आपका फरमान था इसलिए ..”

“अच्छा किया आप चले आये!” सुलतान ने आभार व्यक्त किया था।

“हुमायू के बारे कुछ सुना आपने?” अचानक पंडित जी ने सुलतान से पूछ लिया था।

“नहीं तो!” शेर शाह का उत्तर था। “मैं तो यहां फंसा हूँ!” उसने शिकायत जैसी की थी।

कई पलों तक पंडित हेम चंद्र शेर शाह सूरी के चालाक चेहरे को पढ़ते रहे थे। चूहे से बना शेर अब उनके सामने खड़ा खड़ा लजा रहा था। उसे चंदेरी की घटना कहीं भीतर से तोड़े दे रही थी। और ये हुमायू का पूछा प्रश्न नई शिद्दत के साथ सताने लगा था।

“उसने भी तो फौज तैयार कर ली है!” पंडित जी ने सूचना दी थी। “अमर कोट में राणा के साथ आ मिला है।” वह बता रहे थे। “इन दोनों ने मिल कर हुसैन और कामरान को हरा दिया है और अब दिल्ली लौटने की तैयारियां हो रही हैं!” पंडित जी बताते ही रहे थे।

शेर शाह सूरी के पैरों तले की जमीन खिसक गई लगी थी। उस पर हुमायू का डर ज्वर की तरह चढ़ बैठा था। अगर इस हाल में हुमायू और राणा ने दिल्ली पर चढ़ाई कर दी तो क्या होगा? वह कैसे लौट पाएगा दिल्ली? ओर अगर राजपूतों ने उसका पीछा किया .. और अगर ..? हिया हिल गया था शेर शाह सूरी का।

“हिन्दू राजा राणा ने अमर कोट में हुमायू का स्वागत उस बुरे वक्त में किया जब उसे पूरे मुगल जहान ने कुत्ते की तरह दुतकार कर भगा दिया था! बुरे हाल में पहुंचे थे अमर कोट। भूखे प्यासे, टूटे फटे ओर साथ में नई नवेली हमीदा बेगम जो गर्भ से थीं और ..”

“शादी कर ली ..?” अचानक शेर शाह की नींद खुली थी।

“जी हॉं!” मुसकुराए थे पंडित जी। “कहते हैं हमीदा बेगम पर आशिक हो गये थे शहंशाह हुमायू और लाख हमीदा के मना करने पर उनसे निकाह पढ़वा लिया। कुल सोलह साल की थीं हमीदा और ये थे चौंतीस साल के।” पंडित जी सारी सूचनाएं देते जा रहे थे।

शेर शाह सूरी का भीतर टूटने लगा था। हुमायू अगर फिर से लौटा तो उनकी लुटिया डूबने में देर न थी – वह जानता था।

हेमू ने नजर भरकर सुलतान शेर शाह सूरी को देखा था। शायद हॉं हॉं शायद शेर को याद आने लगा था कि वो चूहा था और सामने बैठे साधू ने ही तो उसे शेर बनाया था।

“हमीदा बानो बेगम ने एक बेटे को जन्म दिया है!” पंडित जी फिर से बताने लगे थे। “कहते हैं कि किसी दरवेश ने लाहौर में हुमायू को बताया था कि तुम्हारे यहां पुत्र जन्म होगा ओर इस बेटे का नाम जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर होगा।” हेमू ने मुड़ कर शांत खड़े शेर शाह सूरी को देखा था। “और ये तुम्हारा बेटा हिन्दुस्तान का बादशाह होगा!” पंडित जी ने एक घोषणा जैसी की थी।

सुलतान शेर शाह सूरी का चेहरा जर्द पीला पड़ गया था।

पंडित हेम चंद्र ने उन पलों में शेर को चूहा बनते देख लिया था।

मेजर कृपाल वर्मा

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