वीराने में बहार आई हुई थी। आमोद प्रमोद की किलकारियां सुदूर से चलकर हेमू के कानों तक पहुंच रही थीं। सब कुछ सहज था, सहल था और हर ओर मुक्त आवाजाही थी। दोनों ओर की सेनाएं जैसे मेले में थीं, जश्न मना रही थीं और ..
हेमू का ललाट चिंता रेखाओं से भर गया था। कुछ था – अप्रत्याशित था जो कुछ उसकी आंख के परे घट गया था। लेकिन कैसे ..?
“ये जश्न कैसा मन रहा है?” हेमू ने अंगद को बुला कर पूछा था।
“संधि पर हस्ताक्षर हो गये हैं।” अंगद ने सूचना दी थी।
“लेकिन .. लेकिन ..कब?” हैरान परेशान था हेमू। उसका जैसे मानसिक संतुलन हिल गया था। ये पहाड़ गिरा और उसे पता तक न लगा? “हुआ कैसे? कब हुआ?” उसने प्रश्नों की झड़ी लगा दी थी। “तुमने भी?” उसने पलट कर अंगद को घूरा था।
“मैं भी गया हुआ था और आप गंगा विहार पर निकले थे। तब हुमायू के बिचौलिये आये थे।” अंगद ने बात स्पष्ट की थी। “गहरी चाल चल गया है हुमायू।” अंगद का चेहरा भी उतर गया था। वह भी परेशान था। “लेकिन हुआ सब बड़ी सफाई से – सुलतान!” अंगद को भी अफसोस था।
“लेकिन हुआ क्या? संधि का मजमून .. मतलब कि ..?”
“वही तो विचित्र है। मेरी तो समझ में ही नहीं आया कि इस पागल ने न जाने किस झोंक में आकर संधि पर हस्ताक्षर कर दिये और अब ..” चुप हो गया था अंगद।
वो दोनों चुप थे। विचार मग्न थे। घटना किसी भी अजूबे से कम न थी और जो घट गया था वो तो ..
“क्या है संधि का मजमून अंगद?” होश में आते ही हेमू ने फिर से पूछा था।
“मुगल और अफगान नहीं लड़ेंगे!” अंगद ने बताया था। “शेर खान को बंगाल मिल गया है और कुछ हिस्सा बिहार में मिलेगा। शेर खान मुगल सुलतान के नीचे ही काम करेगा। हुमायू ही हिन्दुस्तान का बादशाह होगा। शेर खान की सेना हुमायू की सेना के किये आक्रमण पर भाग खड़ी होगी और मुगल सेना विजयी घोषित होगी। उसके बाद तो ..”
“रह ही कुछ नहीं जाता?” हेमू ने अंत देख लिया था। उसका मन खिन्न हो गया था। उसके सामने शेर खान एक मूर्ख और अनाड़ी बना आ खड़ा हुआ था। हेमू का मन हुआ था कि उसके गालों पर तड़ातड़ दो चार तमाचे जड़ दे और पूछे – पागल! पल्ले की बिलकुल नहीं है? अपनी मौत पर हस्ताक्षर करते तुम पहले आदमी देखे हो मैंने! चलते हैं – अंगद! हेमू ने गहरी नि:श्वास छोड़ते हुए हाथ झाड़े थे। “मिल गया सब मिट्टी में?” एक बार फिर हेमू को इब्राहिम लोधी याद हो आया था।
“आप ..?” अंगद कुछ कहना चाहता था। “लेकिन .. आप .. सुलतान?”
“मैं क्या कर सकता हूँ?” क्रोधित होकर पूछा था हेमू ने।
“यूं पत्ते क्यों फेंकते हैं ..?” अंगद भी रोष में था। “नई चाल फेंकिये ना?” उसने आग्रह किया था। “आप तो ..?” जैसे अंगद उसे याद दिला रहा था कि वो सर्वश्रेष्ठ था, हेमू था और कुछ भी स्याह सफेद करने में समर्थ था!
“खंजर से भी ज्यादा कुछ गहरा घोंप दिया है पीठ में, अंगद!” हेमू कराहने लगा था। “मैं न जानता था कि ये हुमायू इतना चालाक है!” उसे अफसोस हो रहा था। “इस ओर तो मेरा ध्यान ही न गया था!” उसने पहली बार अपनी भूल स्वीकारी थी।
“कुछ तो हो ही सकता है?” अंगद पूछ रहा था। “यूं हार कर लौटे तो?”
“हॉं! शायद .. हॉं कुछ हो ही जाये!” तनिक हंसा था हेमू। “प्रयत्न करके अवश्य देखेंगे!” उसने अंगद की बात मान ली थी। “मुझे संधि का मजमून लाकर दे देना!” उसने अंगद को काम बांटा था। “और हॉं! उधर की खबर भी और इस जश्न उल्लास सब पर निगाह रखना!”
“पल पल की खबर है सुलतान! मेरे लोग लगे हुए हैं!” अंगद ने सूचना दी थी।
“शेर शान मिला तो नहीं हुमायू से?” हेमू का प्रश्न था।
“नहीं!” अंगद ने उत्तर दिया था। “लेकिन आगरा जाने से पहले ..”
“अब नहीं!” हेमू ने होंठ भिंचे थे। “दूसरी गलती अब नहीं!” उसकी मुठ्ठियां कसी थीं।
और हेमू अकेला गंगा विहार के लिए निकल गया था।
हेमू लौटा था तो अचानक ही शेर खान का बुलावा आ गया था।
हेमू अभी भी विचार मग्न था। उसने अभी तक शेर खान को पढ़ लिया था। वही बाबर की दहशत थी जो उसके दिमाग में भी गहरी जा बैठी थी। उसे हुमायू नहीं – अभी भी बाबर ही नजर आता था। वह कहीं अपने भीतर बहुत डरा हुआ था – मुगलों से! उसे अपनी आज की सामर्थ्य का भान तक न था। वह नहीं जानता था कि हुमायू उसे डरा बैठा था। और .. और हॉं उसने चालाकी से संधि की और दोस्ती का हाथ बढ़ा कर शेर खान का उल्लू बना दिया था।
“उल्लू कहते ही ये उल्लू अपनी गर्दन कटवा देगा?” हेमू इस बार बड़े जोरों से हंसा था। “जहर को तो जहर ही मारता है!” हेमू ने मन में दोहराया था।
विचारों की इस ऊहापोह के बीचों बीच ही हेमू शेर खान के खेमे के सामने आ खड़ा हुआ था। शेर खान जैसे उसकी प्रतीक्षा में ही था – उसे तुरंत ही अंदर बुला लिया था। शेर खान ने हेमू का स्वागत किया था, आदर किया था और बड़े ही आत्मीय भाव से आग्रह किया था।
“बैठिये पंडित जी!” शेर खान की आवाज विनम्र थी। “बताना भूल गया आपको कि हमारी संधि हो गई है!” तनिक लजाते हुए कहा था शेर खान ने।
जैसे कुछ हुआ ही न हो – हेमू चुप चाप शेर खान से बतियाता रहा था। हेमू की इन ठंडी निगाहों ने शेर खान को हिला दिया था। फिर एक छोटी तैयारी के बाद हेमू ने सोच समझ कर अपनी जबान का ताला खोला था!
“सच्चे मायनों में हिन्दुस्तान का शहंशाह है, हुमायू!” हेमू ने अति आकर्षक आवाज में कहा था। “बिना एक तीर चलाए ..” रुक कर हेमू ने शेर खान को घूरा था। “हिन्दुस्तान जीत लिया!” हेमू ने तालियां बजाई थीं। “भाई कमाल है!” हेमू की आंखों से आश्चर्य टपक रहा था।
अब शेर खान के चौंकने की बारी थी। वह प्रति उत्तर में कुछ कह न पा रहा था। हुमायू हिन्दुस्तान का बादशाह था – यही शब्द बार बार उसके जहन में आ जा रहे थे।
“मेरे लिए तो कुछ करने के लिए रहा ही नहीं सुलतान?” हेमू तनिक सा हंसा था। “दोपहर के भोजन के उपरांत मैं भी प्रस्थान कर जाऊंगा!” हेमू ने शेर खान को सूचना दी थी।
हेमू चुपचाप उठा था और चला आया था।
“हार ..?” आश्चर्य हुआ था शेर खान को। “शेर खान की हार?” उसने मन में दोहराया था। “और हुमायू की जीत तो वास्तव में ही बेजोड़ थी। शेर खान तो सब कुछ हार गया था। अब तक का जीता सब जाता रहा था। ये .. ये .. ये क्या हुआ?” शेर खान विभ्रम में था। वह कुछ समझ ही न पा रहा था।
संधि को शेर खान ने स्वीकार लिया था। अब कल ही उसकी सेना को मैदान छोड़कर भागना था। मुगल सेना की विजय होनी थी और शेर खान की हार हो जानी थी। उसके बाद तो सब हुमायू का ही था?
घटनाक्रम के सामने खड़ा खड़ा शेर खान कांप रहा था। ये सब क्या हो गया था – वह समझ ही न पा रहा था।
“गलती हो गई पंडित जी!” सहसा शेर खान कहने लगा था। “लेकिन वो लोग आये ही तब जब आप .. पंडित जी ..” इसका मतलब कि वो लोग भी समझते हैं – पंडित जी को! एक बोध उगा था शेर खान के जहन में। इसका मतलब कि ये हुमायू की गहरी चाल है? समझी सोची चाल है यह और इसका अर्थ है कि ..
“गुलाम!” इस बार शेर खान के अंतर ने उत्तर दिया था। “शेर खान – हुमायू का गुलाम शेर खान! आज से अफगान मुगलों के मातहत और हिन्दुस्तान का बादशाह – हुमायू? और फिर शेर खान ..”
“मुगलों का पानी भरोगे ताउम्र!” उसका अंतर फिर बोला था। “पागल बन गये तुम शेर खान! पूछ ही लेते पंडित जी से तो ..?” एक उलाहना आया था जो शेर खान के मन में कांटे सा जा गढ़ा था!
फिर से बुलावा भेजा था शेर खान ने पंडित जी के लिए!